Tuesday, March 24, 2015

द्वितीयोऽध्यायः

विनियोगः
अस्य श्री मध्यमचरित्रस्य विष्णुरृषिः ।
श्रीमहालक्ष्मीर्देवता ।
उष्णिक् छन्दः । शाकम्भरी शक्तिः । दुर्गा बीजम् ।
वायुस्तत्त्वम् ।
यजुर्वेदः स्वरूपम् । श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थे
मध्यमचरित्रजपे विनियोगः ।
। ध्यानम् ।
ॐ अक्षस्रक्परशू गदेषुकुलिशं पद्मं धनुः कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम् ।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रवालप्रभां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ॥

ॐ अक्षस्रक् = रुद्राक्ष माला 
परशुम्= परशु  
गदेषुकुलिशं = गदा , कुलिश 
पद्मं = पद्म 
धनुः = धनुष 
कुण्डिकां= कुण्डिका 
दण्डं = दंड 
शक्तिमसिं = शक्ति , तलवार 
च =और 
चर्म = ढाल 
जलजं = शंख 
घण्टां = घंटा 
सुराभाजनम् = मधु पात्र 
शूलं = त्रिशूल 
पाश= पाश 
सुदर्शने च = और सुदर्शन चक्र 
दधतीं हस्तैः = हाथों में धारण करती है 
प्रसन्नानां= प्रसन्न मुख वाली 
सेवे = भजन करता हूँ 
सैरिभमर्दिनीमिह = महिषासुर को मारने वाली इस 
महालक्ष्मीं = महालक्ष्मी का 

सरोजस्थिताम्= कमल पर बैठी हुई 

मैं कमल पर बैठी हुई प्रसन्नमुखी , महिषासुर को मारने वाली इस महालक्ष्मी का भजन करता/करती  हूँ जो हाथों में  रुद्राक्ष माला, परशु, गदा , कुलिश, पद्म, धनुष, कुण्डिका, दंड , शक्ति , तलवार और ढाल, शंख, घंटा , मधु पात्र, त्रिशूल, पाश और सुदर्शन चक्र धारण करती है । 

ॐ ह्रीं ऋषिरुवाच ॥ १॥

देवासुरमभूद्युद्धं पूर्णमब्दशतं पुरा ।
महिषेऽसुराणामधिपे देवानां च पुरन्दरे ॥ २॥

देवासुरम् = देवा असुरम् = देवों और असुरों में 
अभूत् = हुआ 
युद्धं = युद्ध 
पूर्णम् = पुरे  
अब्दशतं = सौ साल 
पुरा = पूर्वकाल में 
महिषे = महिषासुर 
असुराणाम् = असुरों के 
अधिपे = राजा थे
देवानाम् = देवताओं के 
च = और 
पुरन्दरे = इंदर


देवों और असुरों में पूर्वकाल में पुरे सौ साल तक युद्ध हुआ । महिषासुर असुरों और इंद्र देवताओं के राजा थे । 


तत्रासुरैर्महावीर्यैर्देवसैन्यं  पराजितम् ।
जित्वा च सकलान् देवानिन्द्रोऽभून्महिषासुरः ॥ ३॥

तत्र = वहां 
असुरैः = असुरों से 
महावीर्यैः = महावीर 
देवसैन्यम् = देवताओं की सेना
पराजितम् = पराजित हुई 
जित्वा = जीत कर 
च = और 
सकलान् = सब 
देवान् = देवताओं को 
इन्द्रः = इन्दर 
अभूत् = बन गया 
महिषासुरः = महिषासुर 


वहाँ महावीर असुरों से देवताओं की सेम पराजित हुई सब देवताओं को जीत कर महिषासुर इन्दर बन गया । 

ततः पराजिता देवाः पद्मयोनिं प्रजापतिम् ।
पुरस्कृत्य गतास्तत्र यत्रेशगरुडध्वजौ ॥ ४॥

ततः = तब 
पराजिताः = हारे हुए 
देवाः = देवता 
पद्मयोनिम् = कमल से उत्पन्न 
प्रजापतिम् = ब्रह्मा को 
पुरस्कृत्य =पुरः कृत्य= आगे कर के 
गताः = गए 
तत्र = वहां 
यत्र = जहां 
ईशगरुडध्वजौ = शिव और विष्णु थे 


तब हारे हुए देवता कमल से उत्पन्न ब्रह्मा को आगे करके वहां गए जहां शिव और विष्णु थे । 

यथावृत्तं तयोस्तद्वन्महिषासुरचेष्टितम् ।
त्रिदशाः कथयामासुर्देवाभिभवविस्तरम् ॥ ५॥

यथा = जिस प्रकार 
वृत्तम् = घटित हुआ 
तयोः = उनको 
तत्र = वहां 
महिषासुरचेष्टितम् = महिषासुर के कार्यों को 
त्रिदशाः = देवताओं 
कथयामासुः = वर्णन किया 
दॆवाभिभवविस्तरम् देवानां अभिभव = देवाभिभव= देवताओं की हार 
 विस्तरम् = विस्तार से 


वहाँ देवताओं ने उनको देवों की पराजय और महिषासुर के कार्यों को जिस प्रकार घटित हुआ विस्तार से वर्णन किया । 

सूर्येन्द्राग्न्यनिलेन्दूनां यमस्य वरुणस्य च ।
अन्येषां चाधिकारान्स स्वयमेवाधितिष्ठति ॥ ६॥

सूर्येन्द्राग्न्यनिलेन्दूनां = सूर्य इंदर अग्नि अनिल इन्दुनाम् = सूर्य , इंद्र अग्नि, वायु , चन्द्र के 
यमस्य = यम के 
वरुणस्य च = और वरुण के 
अन्येषां = अन्यो के 
चाधिकारान्स = च 
अधिकारान् = अधिकारों का 
स = वह 
स्वयमेवा= खुद ही 
अधितिष्ठति = संचालक हो गया है , शाशक होना , वश में करना 

 सूर्य , इंद्र अग्नि, वायु , चन्द्र के यम के और वरुण के और 

अन्यो के अधिकारों का वह खुद ही संचालक हो गया है । 

स्वर्गान्निराकृताः सर्वे तेन देवगणा भुवि ।
विचरन्ति यथा मर्त्या महिषेण दुरात्मना ॥ ७॥

स्वर्गान्निराकृताः = स्वर्ग से निकाले गए 
सर्वे = सब 
तेन = वे 
देवगणा = देवता 
भुवि = पृथ्वी पर 
विचरन्ति = घूम रहे हैं 
यथा = जैसे 
मर्त्या = मनुष्यों 
महिषेण = महिषासुर द्वारा 
दुरात्मना= दुष्ट 


महिषासुर द्वारा स्वर्ग से निकाले गए वे सब देवता पृथ्वी पर मनुष्यों जैसे घूम रहे हैं । 

एतद्वः कथितं सर्वममरारिविचेष्टितम् ।
शरणं वः प्रपन्नाः स्मो वधस्तस्य विचिन्त्यताम् ॥ ८॥

एतद्वः= एतत् = ये , अब 
 वः= हमने 
कथितं = कह दिए 
सर्वममरारिविचेष्टितम् = सर्व अमरारि विचेष्टितम् = असुरों के सब कार्य 
शरणं = शरण को 
वः = हम 
प्रपन्नाःस्मो  = प्राप्त हुए हैं 

वधस्तस्य = वधः तस्य = उसके वध का 
विचिन्त्यताम् = उपाय करिये 


अब हमने असुरों की सब चेष्टाएँ कह दी हैं , हम आप की शरण को प्राप्त हुए हैं , उसके वध का उपाय कीजिये ।

इत्थं निशम्य देवानां वचांसि मधुसूदनः ।
चकार कोपं शम्भुश्च भ्रुकुटीकुटिलाननौ ॥ ९॥

इत्थं = इसप्रकार 
निशम्य = सुन कर 
देवानाम् = देवताओं के 
वचांसि = वचनों को 
मधुसूदनः = विष्णु 
चकार = किया 
कोपं = क्रोध 
शम्भुः = शिव 
च = और 
भ्रुकुटीकुटिलाननौ ।भ्रुकुटी- भौहें 
कुटिल - टेढ़ा 
आननौ= चेहरा 


इस प्रकार देवताओं के वचनों को सुन कर विष्णु और शिव ने क्रोध किया और उनकी भौहें और चेहरा कुटिल हो गया । 

ततोऽतिकोपपूर्णस्य  चक्रिणो वदनात्ततः ।
निश्चक्राम महत्तेजो ब्रह्मणः शङ्करस्य च ॥ १०॥

ततः = तब 
अतिकोपपूर्णस्य = अत्यंत क्रोध से युक्त 
चक्रिणः = विष्णु 
वदनात् = मुख से 
ततः = तब 
निश्चक्राम = निकला 
महत् = महान 
तेजः = प्रकाश 
ब्रह्मणः = ब्रह्मा 
शङ्करस्य = शिव के 
च = और 


तब अत्यंत क्रोध से युक्त विष्णु के चेहरे से महान प्रकाश निकला , तब ब्रह्मा और शिव के ( चेहरे से प्रकाश निकला ) । 

अन्येषां चैव देवानां शक्रादीनां शरीरतः ।
निर्गतं सुमहत्तेजस्तच्चैक्यं समगच्छत ॥ ११॥

अन्येषाम् = अन्यो 
च = और 
एव= भी, ही 
देवानाम् = देवताओं के 
शक्रादीनाम् = शुक्र आदि 
शरीरतः = शरीर से 
निर्गतम् = निकला 
सुमहत् = महान 
तेजः =प्रकाश 
तत् = तब 
च = और 
ऐक्यम् = इकठ्ठा 
समगच्छत= हो गया 


शुक्र आदि अन्य देवताओं के शर्रे से भी महान प्रकाश निकला और इकठ्ठा हो गया । 

अतीव तेजसः कूटं ज्वलन्तमिव पर्वतम् ।
ददृशुस्ते सुरास्तत्र ज्वालाव्याप्तदिगन्तरम् ॥ १२॥

अतीव = अत्यंत 
तेजसः = प्रकाश 
कूटं = पुंज 
ज्वलन्तम = जलते हुए 
इव = सामान 
पर्वतम्= पर्वत 
ददृशु: = देखा 
ते = उन 
सुराः=   देवता 
तत्र= वहां
ज्वालाव्याप्तदिगन्तरम्  = दिशाएँ ज्वाला से व्याप्त हो गयीं 


उन देवताओं ने वहाँ पर्वत के सामान अत्यंत प्रकाश का पुंज देखा जिसकी ज्वाला से दिशाएँ व्याप्त थी । 



अतुलं तत्र तत्तेजः सर्वदेवशरीरजम् ।
एकस्थं तदभून्नारी व्याप्तलोकत्रयं त्विषा ॥ १३॥

अतुलम् = अतुलनीय 
तत्र = वहां 
तत् = वह 
तेजः= प्रकाश  
सर्वदेवशरीरजम् सभी देवताओं के शरीरों से उत्पन्न 
एकस्थम् = इकठ्ठा हो 
तत् = तब 
अभूत् = बन गया 
नारी = नारी 
व्यप्तलोकत्रयम् = तीनों लोक व्याप्य 
त्विषा ।= चमक 


सभी देवताओं के शरीरों से उत्पन्न वह अतुलनीय प्रकाश वहां इकठ्ठा हो नारी बन गया जिसकी चमक से तीनों लोक व्याप्त हो गए । 

यदभूच्छाम्भवं तेजस्तेनाजायत तन्मुखम् ।
याम्येन चाभवन् केशा बाहवो विष्णुतेजसा ॥ १४॥

यदभूच्छाम्भवं = यत = जो 
 अभूत = बन गया 
 शाम्भवं = शिव का 
तेजस्तेनाजायत= तेजः
 तेन= उसका 
 अजायत = बन गया 
तन्मुखम् । = उस का मुंह 
याम्येन = यम के 
चाभवन् = च अभवन =बन गया 
केशा = बाल 
बाहवो = हाथ 
विष्णुतेजसा = विष्णु के तेज से 


जो शिव का तेज था उससे उसका मुंह बन गया , यम के तेज से बाल बन गए और विष्णु के तेज से हाथ बन गए । 

सौम्येन स्तनयोर्युग्मं मध्यं चैन्द्रेण चाभवत् ।
वारुणेन च जङ्घोरू नितम्बस्तेजसा भुवः ॥ १५॥

सौम्येन = चन्द्रमा के 
स्तनयोर्युग्मं =स्तनयो: युगमम् = दोनों स्तन 
मध्यं = कमर 
चैन्द्रेण = च इन्द्रेण 
चाभवत् = च अभवत्
वारुणेन = वरुण के 
च = और 
जङ्घोरू = जंघा और पिंडली 
नितम्बस्तेजसा = 
 नितम्ब: = नितम्ब 
 तेजसा = प्रकाश से 
भुवः = पृथ्वी 


चन्द्रमा के तेज से दोनों स्तन , इंद्र के तेज से कमर बन गयी , और वरुण के तेज से जंघा और पिंडली और पृथ्वी के तेज से नितम्ब बने । 

ब्रह्मणस्तेजसा पादौ तदङ्गुल्योऽर्कतेजसा ।
वसूनां च कराङ्गुल्यः कौबेरेण च नासिका ॥ १६॥

तस्यास्तु दन्ताः सम्भूताः प्राजापत्येन तेजसा ।
नयनत्रितयं जज्ञे तथा पावकतेजसा ॥ १७॥

ब्रह्मणस्तेजसा =ब्रह्मण तेजसा = ब्रह्मा के तेज से 
पादौ = दोनों पाँव 
तदङ्गुल्योऽर्कतेजसा=
 तद = उसकी 
 अंगुल्यो= उंगलियां 
 अर्क= सूर्य 
 तेजसा = तेज से 
वसूनां = वसुओं के 
 च = और 
कराङ्गुल्यः हाथ की उंगलियां 
कौबेरेण च  = और कुबेर के 
नासिका= नाक 


ब्रह्मा के तेज से दोनों पाँव सूर्य के तेज से उनकी(पाँव की )  उंगलियां और वसुओं के तेज से हाथ की उंगलियां और कुबेर के तेज से नाक बनी । 

भ्रुवौ च सन्ध्ययोस्तेजः श्रवणावनिलस्य च ।
अन्येषां चैव देवानां सम्भवस्तेजसां शिवा ॥ १८॥

भ्रुवौ = भौहें 
च = और 
सन्ध्ययोस्तेजः=सन्ध्ययो तेजः  = संध्या के तेज से 
श्रवणावनिलस्य =श्रवणाव अनिलस्य = वायु से कान 
च=और
अन्येषां= अन्यों के 
चैव= च एव =  और इसी प्रकार 
देवानां = देवताओं के 
सम्भवस्तेजसां 
 सम्भव:= जन्म हुआ 
 तेजसा = तेज से 
शिवा= कल्याणमयी देवी का 


और संध्या के तेज से भौहें ,वायु से कान और इसी प्रकार अन्य देवताओं के तेज से कल्याणमयी देवी का जन्म हुआ । 

ततः समस्तदेवानां तेजोराशिसमुद्भवाम् ।
तां विलोक्य मुदं प्रापुरमरा महिषार्दिताः ॥ १९॥

ततः = तब 
समस्तदेवानां= सब देवताओं के 
तेजोराशिसमुद्भवाम् = तेजोराशि समुद्भवाम्=  तेज पुंज से उत्पन्न
तां = उस देवी को 
विलोक्य = देख कर 
मुदं = प्रसन्नता 
प्रापुरमरा =
 प्रापुः = प्राप्त की 
 अमरा = देवताओं ने 
महिषार्दिताः= महिषासुर के सताए 


तब सब देवताओं के  तेज पुंज से उत्पन्न उस देवी को  देख कर महिषासुर के सताए देवताओं ने प्रसन्नता प्राप्त की । 

शूलं शूलाद्विनिष्कृष्य ददौ तस्यै पिनाकधृक् ।
चक्रं च दत्तवान् कृष्णः समुत्पाट्य स्वचक्रतः ॥ २०॥
शूलं = त्रिशूल से 
शूलाद्विनिष्कृष्य = शूलात् विनिष्कृष्य = त्रिशूल निकाल कर 
ददौ = दिया 
तस्यै  उस देवी को 
पिनाकधृक् = शिव ने 
चक्रं = चक्र 
च = और 
दत्तवान् = दिया 
कृष्णः = विष्णु ने 
समुत्पाट्य = निकाल कर 
स्वचक्रतः= अपने चक्र से 

 शिव ने त्रिशूल से त्रिशूल निकाल कर उसे दिया और विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से चक्र निकाल कर दिया । 

शङ्खं च वरुणः शक्तिं ददौ तस्यै हुताशनः ।
मारुतो दत्तवांश्चापं बाणपूर्णे तथेषुधी ॥ २१॥

शङ्खं = शंख 
च = और 
वरुणः = वरुण ने 
शक्तिं = शक्ति (भाला ) 
ददौ = दी 
तस्यै = उस का  
हुताशनः=  अग्नि ने 
मारुतो = वायु ने 
दत्तवांश्चापं = धनुष दिया 
बाणपूर्णे = बाणों से भरा 
तथेषुधी =
 तथा = इसी प्रकार 
 इषुधि= तरकश 


वरुण ने शंख और अग्नि ने शक्ति दी, इसी प्रकार वायु ने धनुष और बाणों से भरा तरकश दिया । 

वज्रमिन्द्रः समुत्पाट्य कुलिशादमराधिपः ।
ददौ तस्यै सहस्राक्षो घण्टामैरावताद्गजात् ॥ २२॥

वज्रमिन्द्रः=
 वज्रम् = वज्र 
 इंद्र: = इंद्र ने 
समुत्पाट्य = निकाल कर 
कुलिशादमराधिपः =
 कुलिशात= व्रज से 
 अमराधिपः = देवताओं के राजा 
ददौ = दिया 
तस्यै = उसको 
सहस्राक्षो = हजार आँखों वाले 
घण्टामैरावताद्गजात् = घंटाम ऐरावतात् गजात्= ऐरावत हाथी का घंटा 


हजार आँखों वाले  देवताओं के राजा इंद्र ने अपने व्रज से व्रज निकाल कर और ऐरावत हाथी का घंटा उसे दिया । 

कालदण्डाद्यमो दण्डं पाशं चाम्बुपतिर्ददौ ।
प्रजापतिश्चाक्षमालां ददौ ब्रह्मा कमण्डलुम् ॥ २३॥

कालदण्डाद्यमो =कालदण्डात यमो =
दण्डं = दंड 
पाशं = पाश 
चाम्बुपतिर्ददौ= च अम्बुपति ददौ = और वरुण ने दिया 
प्रजापतिश्चाक्षमालां= प्रजापति च अक्षमाला = और प्रजापति ने स्फटिक माला 
ददौ = दिया 
ब्रह्मा = ब्रह्मा ने 
कमण्डलुम्= कमण्डलु


याम ने अपने कालदंड से दंड , वरुण ने पाश, प्रजापति ने स्फटिक माला और ब्रह्मा ने कमण्डलु दिया । 

समस्तरोमकूपेषु निजरश्मीन् दिवाकरः ।
कालश्च दत्तवान् खड्गं तस्यै चर्म च निर्मलम् ॥ २४॥

समस्तरोमकूपेषु = सब रोमकूपों में 
निजरश्मीन् = अपनी किरणें 
दिवाकरः = सूर्य ने 
कालश्च = और काल ने 
दत्तवान् = दिया 
खड्गं  = तलवार 
तस्यै = उसको 
चर्म = ढाल 
च = और 
निर्मलम् = चमकीली , स्वच्छ 


सूर्य ने सब रोमकूपों में अपनी किरणें और काल ने उसे चमकीली तलवार और ढाल दी । 

क्षीरोदश्चामलं हारमजरे च तथाम्बरे ।
चूडामणिं तथा दिव्यं कुण्डले कटकानि च ॥ २५॥

क्षीरोदश्चामलं =क्षीरोद च अमलं = समुन्दर ने उज्जवल 
हारमजरे=
 हारं= हार 
अजरे = जीर्ण न होने वाले 
च = और 
तथाम्ब=रे तथा अम्बरे = इसी प्रकार वस्त्र 
चूडामणिं =चूडामणिं
तथा = और 
दिव्यं = दिव्य
कुण्डले = कुण्डल 
कटकानि = कड़े 
च = और 


और समुन्दर ने उज्जवल  हार , कभी जीर्ण न होने वाले वस्त्र और इसी प्रकार चूड़ामणि , दिव्या कुण्डल और कड़े दिए । 

अर्धचन्द्रं तथा शुभ्रं केयूरान् सर्वबाहुषु ।
नूपुरौ विमलौ तद्वद् ग्रैवेयकमनुत्तमम् ॥ २६॥

अर्धचन्द्रं = अर्धचन्द्र 
तथा = और 
शुभ्रं = उज्जवल 
केयूरान् =बाजूबंद  
सर्वबाहुषु = सब बाहों के लिए 
नूपुरौ = पाजेब 
विमलौ= सुन्दर 
तद्वद् तद्वत् = उसी तरह 
ग्रैवेयकमनुत्तमम्  = ग्रैवेयकम् अनुत्तमम् =  श्रेष्ठ हंसली (गले का हार ) 


और उज्जवल अर्धचन्द्र सभी बाजुओं के लिए बाजूबंद , उसी तरह उत्तम हंसली दी । 

अङ्गुलीयकरत्नानि समस्तास्वङ्गुलीषु च ।
विश्वकर्मा ददौ तस्यै परशुं चातिनिर्मलम् ॥ २७॥

अङ्गुलीयकरत्नानि= रत्नों की अंगूठियां 
समस्तास्वङ्गुलीषु च = और सभी उँगलियों के लिए 
विश्वकर्मा = विश्कर्मा ने 
ददौ = दी 
तस्यै = उसे 
परशुं = फरसा(कुल्हाड़ी ) 
चातिनिर्मलम् और अति चमकता 



और सभी उँगलियों के लिए रत्नों की अंगूठियां दी ।  विश्कर्मा ने उस देवी को अत्यंत निर्मल फरसा दिया । 

अस्त्राण्यनेकरूपाणि तथाभेद्यं च दंशनम् ।
अम्लानपङ्कजां मालां शिरस्युरसि चापराम् ॥ २८॥

अस्त्राण्यनेकरूपाणि =अस्त्राणि अनेक रूपाणि = अनेक प्रकार के अस्त्र 
तथा = और 
अभेद्यं= अभेद्य जिसे भेद न जा सके 
च = और 
दंशनम्= कवच 
अम्लान=न कुम्हलाने वाला 
पङ्कजां = कमल 
मालां = माला 
शिरस्युरसि =शिरस्य उरसि = मस्तक और सीने के लिए 
चापराम् = 
 च = और 
 अपराम् = इसके  अतिरिक्त 


अनेक प्रकार के अस्त्र अभेद्य कवच और इसके अतिरिक्त सिर और वक्षस्थल  के लिए कभी न कुम्हलाने वाले कमलों की माला दी । 

अददज्जलधिस्तस्यै पङ्कजं चातिशोभनम् ।
हिमवान् वाहनं सिंहं रत्नानि विविधानि च ॥ २९॥

अददज्जलधिस्तस्यै  अददत जलधिः  तस्यै = जलधि ने उसे दिया 
पङ्कजं = कमल 
चातिशोभनम् अत्यंत सुन्दर 
हिमवान् = हिमालय ने 
वाहनं = वाहन( सवारी के लिए )
सिंहं = सिंह
रत्नानि = रत्न
विविधानि = अनेक प्रकार के 
 च = और 


जलधि ने उसे दिया अत्यंत सुन्दर कमल और हिमालय ने सवारी के लिए सिंह और अनेक प्रकार के रत्न दिए । 

ददावशून्यं सुरया पानपात्रं धनाधिपः ।
शेषश्च सर्वनागेशो महामणिविभूषितम् ॥ ३०॥

 दादाव = दिया 
 अशून्यम् = भरा हुआ 
सुरया = मधु से 
पानपात्रं = प्याला 
धनाधिपः= कुबेर ने 
शेषश्च = और शेष नाग ने 
सर्वनागेशो = सब नागों के राजा 
महामणिविभूषितम् = महा मणि से सज्जित 


कुबेर ने मधु से भरा हुआ प्याला दिया और सब नागों के राजा शेषनाग ने महामणि से सज्ज्ति ...

नागहारं ददौ तस्यै धत्ते यः पृथिवीमिमाम् ।
अन्यैरपि सुरैर्देवी भूषणैरायुधैस्तथा ॥ ३१॥

नागहारं = नाग हार 
ददौ = दिया 
तस्यै = उसको 
धत्ते = धारण किया 
यः = जिसने 
पृथिवीमिमाम् पृथिवीम् ईमाम् इस पृथ्वी को 
अन्यैरपि = अन्यै: अपि = दूसरों ने भी 
सुरैर्देवी = सुरै: देवी = देवताओं ने देवी को 
भूषणैरायुधैस्तथा= भूषणै: आयुधै: तथा = इस प्रकार आभूषण और हथियार

जिसने इस पृथ्वी को धारण किया हुआ है उस विष्णु ने उसे नागहार दिया दूसरों  देवताओं ने भी देवी को इस प्रकार आभूषण और हथियार दिए । 

सम्मानिता ननादोच्चैः साट्टहासं मुहुर्मुहुः ।

अन्यैः = दूसरे 
अपि = भी 
सुरैः = देवताओं से  
देवी = देवी 
भूषणैः = आभूषण 
आयुधैः = हथियार 
तथा = इस प्रकार 
सम्मानिता=  सम्मानित 
ननाद = आवाज 
उच्चैः = ऊँचा
साट्टहासम् = हंसना 
मुहुः मुहुः= बार बार 


इस प्रकार दूसरे देवताओं से भी देवताओं और हथियारों से सम्मानित देवी ऊँची आवाज़ में बार बार हंसने लगी । 

तस्या नादेन घोरेण कृत्स्नमापूरितं नभः ॥ ३२॥
तस्या = उसकी 
नादेन = आवाज़ से 
घोरेण = भयंकर 
कृत्स्नमापूरितं  
कृत्स्नम् = सारा 
आपूरितम् = भर गया 
नभः= आकाश 


उसकी भयंकर आवाज से सारा आकाश भर गया । 


अमायतातिमहता प्रतिशब्दो महानभूत् ।
चुक्षुभुः सकला लोकाः समुद्राश्च चकम्पिरे ॥ ३३॥

चुक्षुभुः = डांवांडोल, व्याकुल 
सकलाः = सारा  
लोकाः = विश्व 
समुद्राः = समुन्दर 
च = और 



सारा विश्व व्याकुल हो गया और समुन्दर कांपने लगे । 

चचाल वसुधा चेलुः सकलाश्च महीधराः ।
जयेति देवाश्च मुदा तामूचुः सिंहवाहिनीम् ॥ ३४॥

चकम्पिरे = कांपने लगे 
चचाल = हिलने लगी 
वसुधा = पृथ्वी 
चेलुः = डोलने, हिलने लगे 
सकलाः = सभी 
महीधराः = पर्वत 
पृथ्वी हिलने लगी और पर्वत डोलने लगे । 

तुष्टुवुर्मुनयश्चैनां भक्तिनम्रात्ममूर्तयः ।
दृष्ट्वा समस्तं सङ्क्षुब्धं त्रैलोक्यममरारयः ॥ ३५॥

 तुष्टुवु:= स्तवन , प्रसंशा 
 मुनय: = मुनियों ने 
च= और 
एनाम् = उसका 
भक्ति नम्रात्ममूर्तयः = भक्ति भाव से विनम्र हो कर 
दृष्ट्वा = देख कर  
समस्तं = सभी 
सङ्क्षुब्धं = पीड़ित 
त्रैलोक्यम्= तीनों लोकों को 
अमरारयः = देवताओं के दुश्मन , असुर 


और मुनियों ने  भक्ति भाव से विनम्र हो कर उसका स्तवन किया । तीनों लोकों में सभी असुरों को पीड़ित देख कर.. .

सन्नद्धाखिलसैन्यास्ते समुत्तस्थुरुदायुधाः ।
आः किमेतदिति क्रोधादाभाष्य महिषासुरः ॥ ३६॥

सन्नद्धा= कवच पहने 
अखिलसैन्या:= सारी सेना 
ते = वे 
समुत्तस्थु: = खड़ा हो गया 
 उदायुधाः = हथियार उठाये हुए 
आः= ओह 
किमेतदिति = ये क्या है , इस प्रकार 
क्रोधादाभाष्य क्रोधात् अभाष्य क्रोध से बोला 
महिषासुरः = महिषासुर


कवच पहने और हथियार उठाये वो सारी सेना खड़ी हो गयी । महिषासुर क्रोध से बोला ओह ये क्या है । 

अभ्यधावत तं शब्दमशेषैरसुरैर्वृतः ।
स ददर्श ततो देवीं व्याप्तलोकत्रयां त्विषा ॥ ३७॥

अभ्यधावत= की तरफ भाग 
तं= उस 
शब्दम्= शब्द की 
अशेषै:= सारे 
असुरै:= असुरों से 
वृतः = घिरा 
स = वह
ददर्श = देखा 
ततो= तब 
 देवीं = देवी 
व्याप्त= व्याप्त थे 
लोकत्रयां = तीनों लोक 
त्विषा = चमक , प्रकाश

 असुरों से घिरा वह महिषासुर  उस शब्द की तरफ भागा| तब उसने देवी जिसके प्रकाश से तीनो लोक व्याप्त थे , को देखा । 

पादाक्रान्त्या नतभुवं किरीटोल्लिखिताम्बराम् ।
क्षोभिताशेषपातालां धनुर्ज्यानिःस्वनेन ताम् ॥ ३८॥

पादाक्रान्त्या = पाद आक्रान्त्या= कदम रखने से 
नतभुवं = पृथ्वी नत थी 
किरीटोल्लिखिताम्बराम्  = मुकुट से आकाश में रेखांकित हो रहा था   
क्षोभिताशेषपातालां सारे पाताल को क्षुब्ध 
धनुर्ज्यानिःस्वनेन धनुष की टंकार 
ताम् = उसके 


 उसके पैरों से दबी पृथ्वी नत थी , मुकुट से आकाश रेखांकित हो रहा था, धनुष की टंकार से सारा पाताल क्षुब्ध था । 

दिशो भुजसहस्रेण समन्ताद्व्याप्य संस्थिताम् ।
ततः प्रववृते युद्धं तया देव्या सुरद्विषाम् ॥ ३९॥

दिशो = दिशाओं को 
भुजसहस्रेण = हजारों भुजाओं से 
समन्ताद्व्याप्य = समन्तात् व्यापत 
संस्थिताम् = कड़ी थी 
ततः= तब 
 प्रववृते = शुरू हुआ 
युद्धं = युद्ध 
तया देव्या = उस देवी से 
सुरद्विषाम्= देवताओं का शत्रु 


हजारों भुजाओं से सभी दिशाओं को व्यापत कर कर खड़ी थी , तब उस देवी के साथ दैत्यों का युद्ध शुरू हुआ  । 

शस्त्रास्त्रैर्बहुधा मुक्तैरादीपितदिगन्तरम् ।
महिषासुरसेनानीश्चिक्षुराख्यो महासुरः ॥ ४०॥

शस्त्रास्त्रै:=शास्त्रों और अस्त्रों से  
र्बहुधा = बहुत से 
मुक्तै:= छोड़े गए 
आदीपितदिगन्तरम् = दिशाए रोशन हो गयी 

महिषासुरसेनानीश्चिक्षुराख्यो =महिषासुर सेनानी चिक्षुर् आख्यो = महिषासुर का सेनापति चिक्षु  नाम का महासुर 

छोड़े गए शास्त्रों और अस्त्रों से  दिशाएँ रोशन हो गयी महिषासुर का सेनापति चिक्षुर  नाम का महासुर 

युयुधे चामरश्चान्यैश्चतुरङ्गबलान्वितः ।
रथानामयुतैः षड्भिरुदग्राख्यो महासुरः ॥ ४१॥

युयुधे = युद्ध किया 
चामरश्चान्यैश्चतुरङ्गबलान्वितः ।
चामर = चामर 
 च= और 
 अन्यैः= अन्य 
 चतुरङ्गबलान्वितः चतुरंगिणी सेना के साथ (हाथीसवार, रथसवार, पैदल, घुड़सवार )
रथानामयुतैः = रथों के साथ 
षड्भिरुदग्राख्यो
 षड्भि:= साठ हजार 
 उदग्रा आख्यो  उद्ग्रा नाम के 
 महासुरः= महासुर ने 


 चामर ने दूसरी चतुरंगिणी सेना के साथ और  साठ हजार रथों के साथ उद्ग्रा नाम के महासुर ने युद्ध किया । 

अयुध्यतायुतानां च सहस्रेण महाहनुः ।
पञ्चाशद्भिश्च नियुतैरसिलोमा महासुरः ॥ ४२॥

अयुध्यत =युद्ध किया 
आयुतानां= दस हज़ार 
 च = और 
सहस्रेण = हज़ारों
 महाहनुः =महाहनु 
पञ्चाशद्भिश्च= पचास 
 नियुतै = खरब
असिलोमा 
महासुरः 


महाहनु  ने करोड़ों ( रथों) और महाअसुर असिलोमा ने पचास खरब रथियों के साथ युद्ध किया । 


अयुतानां शतैः षड्भिर्बाष्कलो युयुधे रणे ।

 महाहनुः =महाहनु 
पञ्चाशद्भिश्च= पचास 
 नियुतै = खरब
असिलोमा 
महासुरः 



बाष्कल ने  छह करोड़  रणभूमि में युद्ध किया |

गजवाजिसहस्रौघैरनेकैः परिवारितः ॥ ४३॥

वृतो रथानां कोट्या च युद्धे तस्मिन्नयुध्यत ।

गज= हाथी 
 वाजि= घोड़े 
 सहस्र= हजारों 
 औघै:= नदी , प्रवाह 
अनेकैः = अनेक 
परिवारितः= परिवारित नामक दैत्य 
वृतो= घिरे 
 रथानां = रथों से  
कोट्या = करोड़ों 
च = और 
युद्धे = युद्ध किया 
तस्मिन्नयुध्यत = तस्मिन् अयुध्यत = उससे युद्ध लड़ा 

परिवारित नामक दैत्य ने हज़ारों हाथियों, घोड़ों जो अनेकों  नदियों के प्रवाह (जैसे दिख रहे थे ) के साथ 
उस ने (परिवारित ने ) करोड़ों रथों से घिर कर  युद्ध लड़ा । 

बिडालाख्योऽयुतानां च पञ्चाशद्भिरथायुतैः ॥ ४४॥
युयुधे संयुगे तत्र रथानां परिवारितः ।

बिडालाख्यो= बिड़ाल नामक 
अयुतानां = दस हजार 
 च = और 
पञ्चाशद्भि= पचास 
रथायुतैः=  रथों के साथ 

युयुधे = युद्ध किया 
संयुगे = संग्राम में 
तत्र = वहां 
रथानां = रथों से 
परिवारितः = घिर कर 

और बिड़ाल नामक राक्षस ने पांच करोड़ रथों के साथ
वहां संग्राम में बिड़ाल ने रथों से घिर कर युद्ध किया


अन्ये च तत्रायुतशो रथनागहयैर्वृताः ॥ ४५॥
युयुधुः संयुगे देव्या सह तत्र महासुराः ।

अन्ये च = दूसरों ने 
 तत्रायुतशो तत्र अयुतशो = वहां हज़ारों में या असंख्य 
रथ नाग हयै: वृताः = रथ , हाथी , घोड़ों से घिरे 


युयुधुः = युद्ध किया 
संयुगे= संग्राम में 
 देव्या = देवी के 
सह= साथ 
 तत्र = वहां 
महासुराः =महासुर 

 और दूसरे महासुरों ने असंख्य रथ , हाथी , घोड़ों से घिर कर 
वहाँ संग्राम में देवी के साथ युद्ध किया । 

कोटिकोटिसहस्रैस्तु रथानां दन्तिनां तथा ॥ ४६॥
हयानां च वृतो युद्धे तत्राभून्महिषासुरः ।

कोटिकोटिसहस्रैस्तु हजारों करोड़ों 
रथानां = रथों 
दन्तिनां = हाथियों 
तथा = और , इस प्रकार 

हयानां= घोड़ों से 
 च = और 
वृतो = घिरा 
युद्धे = युद्ध में 

तत्राभून्महिषासुरः = तत्र आभूत महिषासुरः=  वहां महिषासुर आया 

और , इस प्रकार  हज़ारों करोड़ों हाथियों , रथों 

और घोड़ों से घिरा महिषासुर वहाँ युद्ध में आया ,

तोमरैर्भिन्दिपालैश्च शक्तिभिर्मुसलैस्तथा ॥ ४७॥

युयुधुः संयुगे देव्या खड्गैः परशुपट्टिशैः ।


तोमरैर्भिन्दिपालैश्च = तोमरैः भिन्दिपालेैः च = भाला,बन्दुक 
शक्तिभिर्मुसलैस्तथा= शक्तिभिः मुसलैः तथा = बरछी , मूसल 

युयुधुः = युद्ध किया 
संयुगे = संग्राम में 
देव्या = देवी के साथ 
खड्गैः = तलवार 
परशुपट्टिशैः =

 वे  भाला, बंदूक, बरछी, मूसल ....

तलवार , परशु , पट्टिश के साथ देवी से संग्राम में युद्ध करने लगे  ।

केचिच्च चिक्षिपुः शक्तीः केचित् पाशांस्तथापरे ॥ ४८॥

देवीं खड्गप्रहारैस्तु ते तां हन्तुं प्रचक्रमुः ।

परशुपट्टिशैः =
केचिच्च = किसी ने 
चिक्षिपुः = फेंका 
शक्तीः = शक्ति 
केचित् = किसी ने 
पाशांस्तथापरे पाशं= पाश 
 तथा इसी  प्रकार 
 अपरे = दूसरों ने  

देवीं = देवी पर  
खड्ग प्रहारै: तु = तलवार से प्रहार किया और   
ते =वे 
तां= उसको 
 हन्तुं = मारने का 
प्रचक्रमुः= प्रयास करने लगे 

 किसी ने शक्ति फेंकी , किसी ने पाश  , इसी प्रकार दूसरों ने 

देवी पर तलवार से प्रहार किया और वे उसको मारने का प्रयास करने लगे । 

सापि देवी ततस्तानि शस्त्राण्यस्त्राणि चण्डिका ॥ ४९॥

लीलयैव प्रचिच्छेद निजशस्त्रास्त्रवर्षिणी ।

सापि = वह भी 
देवी = देवी 
ततस्तानि = ततः तानि
शस्त्राण्यस्त्राणि = शस्त्राणि अस्त्राणि = शस्त्रों अस्त्रों को 
चण्डिका = चण्डिका 

लीलयैव =खेल खेल में  ही 
प्रचिच्छेद = काट दिए 
निज शस्त्रास्त्र वर्षिणी= अपने शस्त्रों अस्त्रों की वर्षा से 


उस चण्डिका देवी ने भी उनके  शस्त्रों अस्त्रों को खेल खेल में  ही अपने शस्त्रों अस्त्रों की वर्षा से काट दिया । 

अनायस्तानना देवी स्तूयमाना सुरर्षिभिः ॥ ५०॥
अनायस्तानना = अनायस्त आनना = चेहरे पर थकावट के चिन्ह नहीं थे 
 देवी = देवी के 
 स्तूयमाना = पूजित 
 सुरर्षिभिः= ऋषियों द्वारा 

ऋषियों द्वारा पूजित देवी के  चेहरे पर थकावट के चिन्ह नहीं थे । 


मुमोचासुरदेहेषु शस्त्राण्यस्त्राणि चेश्वरी ।

मुमोच = छोड़ रही थी , फेंक रही थी 
असुरदेहेषु = असुरों की देहों पर 
शस्त्राण्यस्त्राणि = शास्त्रों अस्त्रों को  
चेश्वरी च ईश्वरी =और देवी 


और देवी शास्त्रों अस्त्रों को असुरों की देहों पर फेंक रही थी । 


सोऽपि क्रुद्धो धुतसटो देव्या वाहनकेसरी ॥ ५१॥

चचारासुरसैन्येषु वनेष्विव हुताशनः ।

सः =वह 
अपि = भी 
क्रुद्धो= गुस्से से 
धुत सटो = हिलाता हुआ बाल 
देव्याः = देवी का
वाहनकेसरी = वाहन शेर 
चचार = घूमने, विचरने  लगा 
असुरसैन्येषु = असुरों की सेना में 
वनेषु= वन में 
 इव = समान
हुताशनः = आग 


वह देवी का वाहन केसरी भी क्रोध से बाल हिलाता हुआ असुरों की सेना में व में आग की तरह विचरने  लगा । 

निःश्वासान् मुमुचे यांश्च युध्यमाना रणेऽम्बिका ॥ ५२॥

त एव सद्यः सम्भूता गणाः शतसहस्रशः ।
निश्वासान् = साँसे 
मुमुचे = छोड़े 
यान् = जो 
तु = और 
युध्यमाना  युद्ध में रत 
रणे = युद्ध भूमि में 
अम्बिका = अम्बिका देवी ने 
ते एव = वे सभी ही 
सद्यः = तभी , उसी वक़्त 
सम्भूताः = बन गए 
गणाः = गण 
शतसहस्रशः= सैंकड़ों हज़ारों 


और युद्धभूमि में युद्ध में रत अम्बिका देवी ने जी साँसे छोड़ी वे सभी ही सैंकड़ों हज़ारों भूतगण बन गयी । 


युयुधुस्ते परशुभिर्भिन्दिपालासिपट्टिशैः ॥ ५३॥

युयुधुस्ते = युयुधु: ते = वे युद्ध करने लगे 
परशुभि:= परशु 
भिन्दिपाल= भिन्दिपाल 
असि= तलवार 
पट्टिशैः = पट्टिश


वे गण परशु , भिन्दिपाल , तलवार और पट्टिश लेकर युद्ध करने लगे ।  

नाशयन्तोऽसुरगणान् देवीशक्त्युपबृंहिताः ।
अवादयन्त पटहान् गणाः शङ्खांस्तथापरे ॥ ५४॥

नाशयन्तोऽसुरगणान् =नाशयन्तः असुरगणान् = असुरों के समूह  का नाश करने लगे 
देवीशक्त्युपबृंहिताः = देवी शक्ति उपबृंहिताः= देवी की शक्ति से बढे हुए  
अवादयन्त = बजाने लगे 
पटहान् = नगाड़ा 
गणाः = गण 
शङ्खांस्तथापरे = शङ्खां तथा अपरे = इसी प्रकार दूसरे शंख 


देवी की शक्ति से बढे हुए गण असुरों के समूह  का नाश करने लगे, इसी प्रकार दूसरे गण नगाड़े और शंख बजाने लगे ।  

मृदङ्गांश्च तथैवान्ये तस्मिन् युद्धमहोत्सवे ।
ततो देवी त्रिशूलेन गदया शक्तिवृष्टिभिः ॥ ५५॥

मृदङ्गांश्च = मृदङ्गां च = और मृदंग 
तथैवान्ये = तथा एव अन्ये इसी प्रकार दूसरे गणों ने 
तस्मिन् = उस 
युद्धमहोत्सवे=युद्ध के महोत्सव में
ततो = तब 
देवी = देवी ने 
त्रिशूलेन = त्रिशूल 
गदया = गदा 
शक्तिवृष्टिभिः = शक्ति की वर्षा से 


इसी प्रकार उस युद्ध के महोत्सव में अन्यों ने मृदंग बजाये । तब देवी ने त्रिशूल गदा और शक्ति की वर्षा से 

खड्गादिभिश्च शतशो निजघान महासुरान् ।
पातयामास चैवान्यान् घण्टास्वनविमोहितान् ॥ ५६॥

खड्गादिभिश्च खड्ग आदिभि च =और तलवार आदि से 
शतशो = सैंकड़ों 
निजघान = मार दिया   
महासुरान्= महा असुर 
पातयामास = गिरा दिया 
चैवान्यान् = और दूसरों को 
घण्टास्वन = घंटे की आवाज़ से 
विमोहितान्= बेसुध कर 


और तलवार आदि से सैंकड़ों असुरों को मार दिया और दूसरों को घंटे की आवाज़ से बेसुध कर गिरा दिया । 


असुरान् भुवि पाशेन बद्ध्वा चान्यानकर्षयत् ।
केचिद् द्विधाकृतास्तीक्ष्णैः खड्गपातैस्तथापरे ॥ ५७॥

असुरान् = असुरों को 
भुवि = पृथ्वी पर 
पाशेन = पाश से 
बद्ध्वा = बाँध कर 
चान्यानकर्षयत् =  च अन्यान अकर्षयत्= और दूसरों को घसीटा  
केचिद् = कुछ को 
द्विधाकृता= दो भाग कर दिए 
तीक्ष्णैः = तीखी 
खड्गपातै= तलवार के प्रहार से 
तथापरे = तथा अपरे = इसी प्रकार दूसरों को 


और दूसरे (असुरों) को पाश से बाँध कर भूमि पर घसीटा और इसी प्रकार अन्य कुछ के तीखी तलवार के प्रहार से दो टुकड़े कर दिए । 

विपोथिता निपातेन गदया भुवि शेरते ।
वेमुश्च केचिद्रुधिरं मुसलेन भृशं हताः ॥ ५८॥

विपोथिता = शांत हो 
निपातेन = प्रहार से 
गदया = गदा के 
 भुवि = भूमि पर 
शेरते = गिर गए 
वेमुश्च = वमन, उलटी 
 केचिद्रुधिरं= केचित् रुधिरम् = कुछ खून की 
मुसलेन = मूसल के 
भृशं= बार बार , शक्तिशाली 
 हताः = मार से 


कुछ गदा के प्रहार से शांत हो भूमि पर गिर गए , मूसल की शक्तिशाली मार से खून की उलटी करने लगे 

केचिन्निपतिता भूमौ भिन्नाः शूलेन वक्षसि ।
निरन्तराः शरौघेण कृताः केचिद्रणाजिरे ॥ ५९॥

केचिन्निपतिता केचित निपतिता = कुछ गिर गए 
भूमौ = भूमि पर 
भिन्नाः = भिद कर 
शूलेन = शूल से 
वक्षसि = छाती में 
निरन्तराः = लगातार 
शरौघेण = तीरों की धारा से 
कृताः कर 
केचिद्रणाजिरे केचित रण अजिरे जो  युद्ध के मैदान में 


युद्धभूमि में कुछ शूल से भिद कर और कुछ लगातार तीरों की धरा से । 

श्येनानुकारिणः प्राणान् मुमुचुस्त्रिदशार्दनाः ।
केषाञ्चिद् बाहवश्छिन्नाश्छिन्नग्रीवास्तथापरे ॥ ६०॥

श्येनानुकारिणः = श्येन अनुकारिणः = बाज़ का अनुकरण करने वाले 
प्राणान् = प्राण 
मुमुचुस्त्रिदशार्दनाः =
 मुमुचु = छोड़ने लगे 
 त्रिदशार्दनाः= असुर 
केषाञ्चिद् केषां चिद्=  कुछ 
बाहव = बांह 
छिन्न = काट गयी 
छिन्नग्रीवा= गर्दन काट गयी 
तथापरे= इसी प्रकार दूसरों की 


बाज़ का अनुकरण करने वाले असुर प्राण छोड़ने लगे ,कुछ की बांह काट गयी , इसी प्रकार  दूसरों की गर्दन काट गयी । 

शिरांसि पेतुरन्येषामन्ये मध्ये विदारिताः ।
विच्छिन्नजङ्घास्त्वपरे पेतुरुर्व्यां महासुराः ॥ ६१॥

शिरांसि = सिर
पेतु:= गिर गए 
अन्येषाम = अन्यों के 
अन्ये = दूसरों को 
मध्ये = बीच से 
विदारिताः = फाड़ दिया 
विच्छिन्न = कटे कर अलग होना 
जङ्घास्त्वपरे=  अन्यों की जांघ  
पेतुरुर्व्यां = पेतुः उर्व्यां= भूमि पर गिर गए 
महासुरा महासुर 


अन्यों के सर गिर गए , दूसरों को बीच से फाड़ दिया गया ,  दूसरे महासुर जाँघ अलग होने से पृथ्वी पर गिर गए । 

एकबाह्वक्षिचरणाः केचिद्देव्या द्विधाकृताः ।
छिन्नेऽपि चान्ये शिरसि पतिताः पुनरुत्थिताः ॥ ६२॥

एक= एक 
बाह्व= बाजू 
अक्षि= आँख 
चरणाः = चरण 
केचिद्देव्या = कुछ को देवी ने 
द्विधाकृताः = दो टुकड़े कर दिए 
छिन्ने= कटे  
अपि= भी 
चान्ये च अन्ये = और दूसरे 
शिरसि = सर 
पतिताः = गिर कर 
पुनरुत्थिताः पुनः उत्थिता =फिर से खड़े हो गए 


कुछ को देवी ने एक बाह , आँख , पैर वाला तथा अन्यों के दो टुकड़े कर दिए । कटे सर होने पर गिर कर भी (वे )फिर से खड़े हो गए । 

कबन्धा युयुधुर्देव्या गृहीतपरमायुधाः ।
ननृतुश्चापरे तत्र युद्धे तूर्यलयाश्रिताः ॥ ६३॥

कबन्धा = धड़ 
युयुधुर्देव्या = युयुधुः देव्या= देवी से युद्ध करने लगे  
गृहीत= ले कर 
परमायुधाः = उत्तम हथियार ले कर 
ननृतु:= नाचे 
 च = और 
अपरे = दूसरे 
तत्र = वहाँ 
युद्धे = युद्ध के 
तूर्य= बाजों की 
लय= लय पर 
आश्रिताः= आश्रित हो 


(महासुरों के) धड़ उत्तम हथियार ले कर देवी से युद्ध करने लगे और दूसरे वहां युद्ध के बाजों की लय पर आश्रित हो नाचने लगे । 


कबन्धाश्छिन्नशिरसः खड्गशक्त्यृष्टिपाणयः ।
तिष्ठ तिष्ठेति भाषन्तो देवीमन्ये महासुराः ॥ ६४॥

 कबन्धाः= धड़ 
 छिन्न= कटे 
 शिरसः = सर 
खड्ग= तलवार 
शक्ति = शक्ति 
ऋष्टि ऋष्टि 
पाणयः= हाथ में ले कर 
तिष्ठ तिष्ठेति = ठहरो ठहरो 
भाषन्तो = कहते 
 देवीम्= देवी को 
अन्ये = दूसरे 
महासुराः = महा सुर 


दूसरे महासुरों के सर कटे धड़ हाथ में तलवार , शक्ति , ऋष्टि ले कर देवी को ठहरों ठहरों बोले । 

पातितै रथनागाश्वैरसुरैश्च वसुन्धरा ।
अगम्या साभवत्तत्र यत्राभूत् स महारणः ॥ ६५॥

पतितैः = गिरे हुए 
रथनागाश्वैः = रथ नागा अश्वैः = रथों , हाथियों और घोड़ों  
असुरैः = असुरों 
च = और 
वसुन्धरा = पृथ्वी 
अगम्या = अगम्य = चलना फिरना मुश्किल 
सा = वह 
अभवत् = हो गयी 
तत्र = वहां 
यत्र = जहां 
अभूत् = हुआ 
सः = वह 
महारणः = महा युद्ध 


जहां वह महायुद्ध हुआ वहाँ वह पृथ्वी  गिरे हुए रथों, हाथियों  घोड़ों और असुरों के गिरने से अगम्य हो गयी । 

शोणितौघा महानद्यः सद्यस्तत्र प्रसुस्रुवुः ।
मध्ये चासुरसैन्यस्य वारणासुरवाजिनाम् ॥ ६६॥

शोणितौघाः = शोणि ओघाः = रक्त की धारा
महानद्यः = महा नदियां 
सद्यः= उसी वक़्त 
तत्र = वहां 
विसुस्रुवुः = बहने लगी 
मध्ये = बीच 
च = और 
असुरसैन्यस्य = असुरों की सेना के 
वारणासुरवाजिनाम् = वारण, असुर , वाजिनाम = हाथियों, असुरों, घोड़ों के  


और तभी वहाँ असुरों की सेना के बीच हाथियों, असुरों, घोड़ों के रक्त की धारा की महा नदियां बहने लगी । 

क्षणेन तन्महासैन्यमसुराणां तथाम्बिका ।
निन्ये क्षयं यथा वह्निस्तृणदारुमहाचयम् ॥ ६७॥

क्षणेन = क्षण भर में 
तत् = तब 
सैन्यम् = सेना को 
सर्वम् = सारी
असुराणाम् = असुरों की 
तथा = इस प्रकार 
अम्बिका = अम्बिका देवी ने 
निन्ये = कर दिया (ले जाना )
क्षयं = नष्ट , नाश 
यथा = जिस प्रकार 
वह्निः = आग 
तृणदारुमहाचयम्= तृण दारु महा चयम् = तिनको और लकड़ी में महान समूह को 


तब अम्बिका देवी ने क्षण भर में असुरों की सारी सेना को इस प्रकार नष्ट कर दिया जिस प्रकार अग्नि तिनको और लकड़ी में महान समूह को नष्ट कर देती है । 

स च सिंहो महानादमुत्सृजन् धुतकेसरः ।
शरीरेभ्योऽमरारीणामसूनिव विचिन्वति ॥ ६८॥

स = वह 
च = और 
सिंहो = सिंह 
महानादमुत्सृजन्= महा नादम् उत्सृजन् = महान आवाज करता हुआ 
धुतकेसरः= गर्दन के बालों को हिलता हुआ 
धुत = हिलाना 
केसर = गर्दन के बाल 
शरीरेभ्योऽमरारीणामसूनिव= शरीरेभ्यो अमरारीणाम् असून   असुरों के शरीर से प्राण 
इव= मानो 
विचिन्वति = ढूंढ रहा था (खाने के लिए ) 


और वह सिंह भी महान आवाज करता हुआ ,  गर्दन के बालों को हिलता हुआ मानो असुरों के शरीर से प्राण ढूंढ रहा था । 



देव्या गणैश्च तैस्तत्र कृतं युद्धं तथासुरैः ।
यथैषां तुतुषुर्देवाः पुष्पवृष्टिमुचो दिवि ॥ ६९॥

देव्य़ा = देवी के 
गणैः = गणों ने 
च = और 
तैः = उन 
तत्र = वहां 
कृतम् = किया 
युद्धम् = युद्ध किया 
तथा= इस प्रकार 
असुरैः= असुरों के साथ 
यथैषां = जिस से  
एषां = सभी 
तुतुषु: = संतुष्ट 
देवाः = देवता 
पुष्पवृष्टिमुचः = फूलों की वर्षा करने लगे 
दिवि = स्वर्ग से 


और देवी के गानों ने उन असुरों के साथ इस प्रकार युद्ध किया जिससे सभी देवता संतुष्ट हो कर स्वर्ग से फूलों की वर्षा करने लगे । 


॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
महिषासुरसैन्यवधो नाम द्वितीयोऽध्यायः ॥ २॥

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