ॐ बालरविद्युतिमिन्दुकिरिटां तुङ्गकुचा नयनत्रययुक्ताम्।
स्मेरमुखीं वरदाङ्कुशपाशाभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम्।।
बाल रवि द्युतिम् = उदित होते सूर्य की आभा वाली
इन्दुकिरिटां = चन्द्रमा के मुकुट वाली
तुङ्गकुचा = उच्च स्तनों वाली
नयनत्रययुक्ताम्= तीन नेत्रों से युक्त
स्मेरमुखीं = मुस्कुराते मुख वाली
वरदाङ्कुशपाशाभीतिकरां = हाथ में वरद, अंकुश, पाश, अभयमुद्रा वाली
प्रभजे भुवनेशीम् = भुवनेश्वरी देवी का ध्यान करता/करती हूँ
उदित होते सूर्य की आभा वाली , चन्द्रमा के मुकुट वाली ,उच्च स्तनों वाली , तीन नेत्रों से युक्त , मुस्कुराते मुख वाली, हाथ में वरद, अंकुश, पाश, अभयमुद्रा वाली भुवनेश्वरी देवी का ध्यान करता/करती हूँ ।
ॐ ऋषिरुवाच ॥ १॥
ऋषि बोला ।
देव्या हते तत्र महासुरेन्द्रे
सेन्द्राः सुरा वह्निपुरोगमास्ताम् ।
कात्यायनीं तुष्टुवुरिष्टलाभाद्
विकाशिवक्त्राब्जविकाशिताशाः ॥ २॥
देव्या = देवी द्वारा
हते = मारे जाने पर
तत्र = वहां
महासुरेन्द्रे =असुरराज के
सेन्द्राः = इंद्र के साथ
सुरा = देवता
वह्निपुरोगम: = अग्नि को आगे कर के
आस्ताम् = वे
कात्यायनीं = कात्यायनी की
तुष्टुवु = स्तुति करने लगे
इष्टलाभाद् =अभीष्ट प्राप्ति होने से
विकाशि = खिलते हुए , चमकते हुए
वक्त्रा= मुख
अब्ज = कमल
विकाशित = चमकती थीं
आशाः = दिशाएँ
वहां देवी द्वारा असुरराज के मारे जाने पर इंद्र के साथ वे देवता अग्नि को आगे कर के कात्यायनी की स्तुति करने लगे । अभीष्ट प्राप्ति होने से चमकते हुए मुख कमल से दिशाएँ चमक रहीं थी ।
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य ।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥ ३॥
देवि = देवी
प्रपन्ना = शरणागत की
आर्तिहरे = पीड़ा को हरने वाली
प्रसीद प्रसीद = प्रसन्न हो जाओ
मात: जगतो अखिलस्य= सारे संसार की माँ
प्रसीद =प्रसन्न हो जाओ
विश्वेश्वरि =विश्वेश्वरि
पाहि= रक्षा करो
विश्वं= विश्व की
त्वम= तुम
ईश्वरी = अधीश्वरी हो
देवि = हे देवी
चराचरस्य= चर अचर की
शरणागत की पीड़ा हरने वाली हे देवी प्रसन्न हो जाओ , प्रसन्न हो जाओ , हे विश्वेश्वरि विश्व की रक्षा करो , हे देवी तुम चर अचर की अधीश्वरी हो ।
आधारभूता जगतस्त्वमेका
महीस्वरूपेण यतः स्थितासि ।
अपां स्वरूपस्थितया त्वयैत-
दाप्यायते कृत्स्नमलङ्घ्यवीर्ये ॥ ४॥
आधारभूता = आधार रूप हो
जगत:= जगत की
तवं एका = तुम एक ही
महीस्वरूपेण = पृथ्वी के रूपमे
यतः = जो
स्थितासि = स्थित हो
अपां = जल के
स्वरूपस्थितया = रूप में स्थित
त्वयैत- त्वया एतत = तुम इसे
आप्यायते = तृप्त , पुष्ट
कृत्स्नम् = करती हो
अलङ्घ्य वीर्ये = पराक्रम अलंघनीय है
तुम एकमात्र ही संसार का आधार हो जो पृथ्वी के रूप में स्थित हो , जल के रूप में स्थित हो तुम इसे तृप्त करती हो , (तुम्हारा ) पराक्रम अलंघनीय है ।
त्वं वैष्णवीशक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया ।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः ॥ ५॥
त्वं= तुम
वैष्णवीशक्ति: अनन्तवीर्या= अत्यंत बलशाली वैष्णवी शक्ति हो
विश्वस्य = संसार की
बीजं = बीज (उत्पत्ति का कारण )
परमा = परम
असि = हो
माया = माया
सम्मोहितं = सम्मोहित किया है
देवि = देवी
समस्तम = सब को , सारे
एतत् = इस (जगत को )
त्वं = तुम
वै = वास्तव में
प्रसन्ना = प्रसन्न होने पर
भुवि = पृथ्वी पर
मुक्तिहेतुः = मुक्ति का कारण हो
तुम अत्यंत बलशाली वैष्णवी शक्ति हो , तुम संसार की बीज (उत्पत्ति का कारण ) पर माया हो , तुमने इस सारे जगत को सम्मोहित किया है , वास्तव में तुम ही प्रसन्न होने पर पृथ्वी पर मुक्ति का कारण हो ।
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः
स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु ।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्
का ते स्तुतिः स्तव्यपरापरोक्तिः ॥ ६॥
विद्याः = विद्याएं
समस्ता:= सारी
तव = तुम्हारा
देवि = देवी
भेदाः= रूप हैं
स्त्रियः = स्त्रियां
समस्ताः = सभी
सकला = सारा
जगत्सु = संसार में
त्वयैकया त्वया एकया= एकमात्र तुम्ही से
पूरितम = व्यापत है
अम्बया = हे अम्बा
एतत् = ये
का = कौन
ते = तुम्हारी
स्तुतिः = स्तुति कर सकता है
स्तव्यपरा= स्तवन से परे
परोक्तिः= वाणी से परे
सारे संसार में सभी विद्याएं, सभी स्त्रियां तुम्हारे ही रूप हैं । हे अम्बा ये संसार एकमात्र तुम्ही से व्याप्त है , तुम्हारी स्तुति कौन कर सकता है , तुम स्तवन से परे (और) वाणी से परे हो ।
सर्वभूता यदा देवी भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी ।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः ॥ ७॥
सर्वभूता = सर्वस्वरूपा
यदा = जब
देवी = देवी
स्वर्ग मुक्ति प्रदायिनी = स्वर्ग और मोक्ष देने वाली हो
त्वं = तुम्हारी
स्तुता = स्तुति की जाती है
स्तुतये = स्तुति के लिए
का = क्या
वा =तब
भवन्तु = होगी
परमोक्तयः= इससे उत्तम उक्तियाँ
हे देवी जब स्वर्ग और मोक्ष देने वाली हो, सर्वस्वरूपा हो (कह कर ) तुम्हारी स्तुति की जाती है , तब स्तुति के लिए इससे उत्तम उक्तियाँ क्या होगी ।
सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते ।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ८॥
सर्वस्य = सब के
बुद्धिरूपेण = बुद्धि के रूप में
जनस्य = लोगों के
हृदि = ह्रदय में
संस्थिते = स्थित हो
स्वर्गापवर्गदे = स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करने वाली
देवि नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी देवी आप को नमस्कार है ।
सब लोगों के ह्रदय में बुद्धि रूप में हो , स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करने वाली नारायणी देवी आप को नमस्कार है ।
कलाकाष्ठादिरूपेण परिणामप्रदायिनि ।
विश्वस्योपरतौ शक्ते नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ९॥
कलाकाष्ठादिरूपेण = कला काष्ठ(समय गणना) आदि के रूप में
परिणामप्रदायिनि = परिणाम(बदलाव) देने वाली
विश्वस्य = संसार का
उपरतौ = उपसंहार ( प्रलय , समाप्ति) करने में
शक्ते = समर्थ
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हें नमस्कार है
कला काष्ठ आदि के रूप में परिणाम देने वाली, संसार का उपसंहार ( प्रलय , समाप्ति) करने में समर्थ नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १०॥
सर्व मंगल मांगल्ये= सभी मंगलों में मंगलमयी
शिवे= कल्याणकारी
सर्व अर्थ साधिके = सभी मनोरथों को सिद्ध करने वाली
शरण्ये = शरणागत वत्सला,शरण ग्रहण करने योग्य
त्रयम्बके= तीन नेत्रों वाली
गौरी= शिवपत्नी
नारायणी= विष्णुपत्नी
नमः अस्तु ते= तुम्हे नमस्कार है
तुम्ही शिव पत्नी, तुम्ही नारायण पत्नी अर्थात भगवान के सभी स्वरूपों के साथ तुम्हीं जुडी हो, तुम्हे नमस्कार है.
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ११॥
सृष्टिस्थितिविनाशानां = सृष्टि पालन और संहार की
शक्तिभूते = शक्ति भूता
सनातनि = सनातनी(शाश्वत) देवी
गुणाश्रये = गुणों(सत्व , रजस, तमस) का आधार
गुणमये = सर्व गुणमयी
नारायणि = नारायणी
नमोऽस्तु ते = तुम्हे नमस्कार है
सृष्टि पालन और संहार की शक्तिभूता सनातनी(शाश्वत) देवी, गुणों(सत्व , रजस, तमस) का आधार, सर्व गुणमयी नारायणी तुम्हे नमस्कार है ।
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १२॥
शरणागत = शरण में आये
दीन = दुखी
आर्त= पीड़ित
परित्राण = रक्षा में
परायणे= संलग्न
सर्वस्य= सब की
आर्ति= पीड़ा को
हरे = हरने वाली
शरण में आये, दुखियों और पीड़ितों की रक्षा में संलग्न, सब की पीड़ा को हरने वाली देवी नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
हंसयुक्तविमानस्थे ब्रह्माणीरूपधारिणि ।
कौशाम्भःक्षरिके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १३॥
हंसयुक्तविमानस्थे = हंस जुते विमान पर बैठी
ब्रह्माणीरूपधारिणि= ब्रह्माणी का रूप धारण कर
कौशाम्भःक्षरिके= कुश मिश्रित जल छिड़कने वाली
देवि नारायणि नमोऽस्तु ते =नारायणी देवी तुम्हे नमस्कार है ।
ब्रह्माणी का रूप धारण कर हंस जुते विमान पर बैठी कुश मिश्रित जल छिड़कने वाली नारायणी देवी तुम्हे नमस्कार है ।
त्रिशूलचन्द्राहिधरे महावृषभवाहिनि ।
माहेश्वरीस्वरूपेण नारायणि नमोऽस्तुते ॥ १४॥
त्रिशूल चन्द्र अहि धरे = त्रिशूल , चन्द्र , सांप धारण करने वाली
महावृषभवाहिनि = महा वृष के वाहन वाली
माहेश्वरीस्वरूपेण = माहेश्वरी के रूप में
नारायणि नमोऽस्तुते= नारायणी तुम्हे नमस्कार है
माहेश्वरी के रूप में त्रिशूल , चन्द्र , सांप धारण करने वाली, महा वृष के वाहन वाली नारायणी तुम्हे नमस्कार है ।
मयूरकुक्कुटवृते महाशक्तिधरेऽनघे ।
कौमारीरूपसंस्थाने नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १५॥
मयूरकुक्कुटवृते = मोरों और मुर्गों से घिरी
महाशक्तिधरे = महा शक्ति धारण करने वाली
अनघे = निष्पाप
कौमारीरूपसंस्थाने = कौमारी रूप धारण करने वाली
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हे नमस्कार है
मोरों और मुर्गों से घिरी , महा शक्ति धारण करने वाली , निष्पाप , कौमारी रूप धारण करने वाली नारायणी तुम्हे नमस्कार है ।
शङ्खचक्रगदाशार्ङ्गगृहीतपरमायुधे ।
प्रसीद वैष्णवीरूपे नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १६॥
शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग = शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग धनुष आदि
गृहीत परमायुधे = उत्तम हथियारों को धारण करने वाली
प्रसीद = प्रसन्न हो जाओ
वैष्णवीरूपे = वैष्णवी के रूप में
नारायणि नमोऽस्तु ते= नारायणी तुम्हे नमस्कार है
वैष्णवी के रूप में शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग धनुष आदि उत्तम हथियारों को धारण करने वाली नारायणी तुम्हे नमस्कार है ।
गृहीतोग्रमहाचक्रे दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे ।
वराहरूपिणि शिवे नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १७॥
गृहीत उग्रमहाचक्रे = भयानक महाचक्र लिए
दंष्ट्र उद्धृत वसुन्धरे = दाढ़ों पर पृथ्वी को धारण करने वाली
वराहरूपिणि = वाराही के रूप में
शिवे = कल्याणकारी
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हे नमस्कार है
वाराही के रूप में भयानक महाचक्र लिए, दाढ़ों पर पृथ्वी को धारण करने वाली कल्याणकारी नारायणी तुम्हे नमस्कार है ।
नृसिंहरूपेणोग्रेण हन्तुं दैत्यान् कृतोद्यमे ।
त्रैलोक्यत्राणसहिते नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १८॥
नृसिंहरूपेण उग्रेण = भयंकर नृसिंह के रूप में
हन्तुं = मारने का
दैत्यान् = दैत्यों को
कृत उद्यमे= उद्योग करने वाली
त्रैलोक्य त्राण सहिते = त्रिलोक की रक्षा में लीन
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हें नमस्कार है
भयंकर नृसिंह के रूप में दैत्यों को मारने का उद्योग करने वाली त्रिलोक की रक्षा में लीन नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
किरीटिनि महावज्रे सहस्रनयनोज्ज्वले ।
वृत्रप्राणहरे चैन्द्रि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १९॥
किरीटिनि = मुकुट धारण करने वाली
महावज्रे = महाव्रज लिए
सहस्रनयनोज्ज्वले= हजारों आँखों से उज्जवल
वृत्रप्राणहरे= वृत्रसुर के प्राण हरने वाली
च = और
एन्द्रि = इन्द्रशक्ति रूपा
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हें नमस्कार है
मुकुट धारण करने वाली , महाव्रज धारण करने वाली , हजारों आँखों से उज्जवल और वृत्रसुर के प्राण हरने वाली इन्द्रशक्ति रूपा नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
शिवदूतीस्वरूपेण हतदैत्यमहाबले ।
घोररूपे महारावे नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ २०॥
शिवदूतीस्वरूपेण = शिवदूती के रूप में
हतदैत्यमहाबले = दैत्यों की महान सेना को मारने वाली
घोररूपे = भयंकर रूप वाली
महारावे = महान गर्जना वाली
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हें नमस्कार है
शिवदूती के रूप में दैत्यों की महान सेना को मारने वाली, भयंकर रूप वाली ,महान गर्जना वाली नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
दंष्ट्राकरालवदने शिरोमालाविभूषणे ।
चामुण्डे मुण्डमथने नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ २१॥
दंष्ट्राकरालवदने = दाढ़ों से भयानक मुख वाली
शिरोमालाविभूषणे = सिरों की माला से सुशोभित
चामुण्डे = चामुण्डा
मुण्डमथने = मुंड मर्दनी
नारायणि नमोऽस्तु ते= नारायणी तुम्हें नमस्कार है
दाढ़ों से भयानक मुख वाली , सिरों की माला से सुशोभित मुंड मर्दनी चामुण्डा नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
लक्ष्मि लज्जे महाविद्ये श्रद्धे पुष्टि स्वधे ध्रुवे ।
महारात्रि महामाये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ २२॥
लक्ष्मि = लक्ष्मी
लज्जे = लज्जा
महाविद्ये = महाविद्या
श्रद्धे = श्रद्धा
पुष्टि = पुष्टि
स्वधे = स्वधा
ध्रुवे= ध्रुवा
महारात्रि = महारात्रि
महामाये = महामाया रूपा
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हे नमस्कार है
लक्ष्मी , लज्जा , महाविद्या , श्रद्धा , पुष्टि , स्वधा , ध्रुव , महारात्रि , महामाया रूपा नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
मेधे सरस्वति वरे भूति बाभ्रवि तामसि ।
नियते त्वं प्रसीदेशे नारायणि नमोऽस्तुते ॥ २३॥
मेधे = मेधा
सरस्वति = सरस्वती
वरे = वारा (श्रेष्ठ )
भूति = भूति ( ऐश्वर्यरूपा )
बाभ्रवि = पार्वती
तामसि = तामसी (काली )
नियते = नियता (सन्यम्परायणा )
त्वं = तुम
प्रसीदे=प्रसन्न हो जाओ
ईशे = ईश्वरी
नारायणि नमोऽस्तुते नारायणी तुम्हे नमस्कार है
मेधा, सरस्वती ,वरा (श्रेष्ठ ), भूति ( ऐश्वर्यरूपा) , बाभ्रवि (पार्वती) , तामसी (काली ), नियता (सन्यम्परायणा ), तुम प्रसन्न हो जाओ हे ईश्वरी नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥ २४॥
सर्वस्वरूपे = सर्वस्वरूपा
सर्वेशे = सर्वेश्वरी
सर्वशक्तिसमन्विते = सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न
भयेभ्य: त्राहि = सब भयों से रक्षा कीजिये
नो = हमारी
देवि = देवी
दुर्गे देवि = हे दुर्गे देवी
नमः अस्तु ते = तुम्हे नमस्कार है
सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न देवी सब भयों से हमारी रक्षा कीजिये | हे दुर्गे देवी तुम्हें नमस्कार है |
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम् ।
पातु नः सर्वभूतेभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते ॥ २५॥
एतत् = ये
ते = तुम्हारा
वदनं = मुख
सौम्यं = सौम्य
लोचन त्रय भूषितम्= तीन नयनों से सुसज्जित
पातु = रक्षा करे
नः = हमारी
सर्वभूतेभ्यः = सब भयों से
कात्यायनि नमोऽस्तु ते= कात्यायनि तुम्हे नमस्कार है
तीन नयनों से सुसज्जित ये तुम्हारा सौम्य मुख सब भयों से हमारी रक्षा करे । हे कात्यायनि तुम्हें नमस्कार है ।
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम् ।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते ॥ २६॥
करालम् = विकराल
अत्युग्रम्= अत्यंत उग्र
अशेष असुरसूदनम्= सभी असुरों क संहार करने वाला
त्रिशूलं = त्रिशूल
पातु= रक्षा करे
नो = हमारी
भीते= भय से
भद्रकालि = भद्रकाली
नमोऽस्तु ते =तुम्हें नमस्कार है
हे भद्रकाली ,जवालों से विकराल , अत्यंत उग्र ,सभी असुरों क संहार करने वाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमारी रक्षा करे , तुम्हें नमस्कार है ।
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ॥ २७॥
हिनस्ति =नष्ट करता है
दैत्य तेजांसि = दैत्यों के तेज को
स्वनेन आपूर्य = आवाज़ से व्याप्त करता है
या = जो
जगत् = संसार को
सा = वह
घण्टा = घंटा
पातु = रक्षा करे
नो = हमारी
देवि = हे देवी
पापेभ्यो = पापों से
नः = हमारी
सुतानिव = पुत्रों के समान
हे देवी जो घंटा दैत्यों के तेज को नष्ट करता है , संसार को आवाज़ से व्याप्त करता है वह हमारी पुत्रों के समान पापों से रक्षा करे ।
असुरासृग्वसापङ्कचर्चितस्ते करोज्ज्वलः ।
शुभाय खड्गो भवतु चण्डिके त्वां नता वयम् ॥ २८॥
असुरासृग्वसापङ्क चर्चित:= असुरों के खून और चर्बी से चर्चित
ते =वह
करोज्ज्वलः = हाथों में चमकती
शुभाय = शुभ
खड्गो = तलवार
भवतु = हो
चण्डिके त्वां नता वयम्= हे चण्डिका हम आपको नमन करते हैं
असुरों के खून और चर्बी से चर्चित, हाथों में चमकती वह तलवार (हमारे लिए ) शुभ हो । हे चण्डिका हम आपको नमन करते हैं ।
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥ २९॥
रोगान्= रोगों को
अशेषान् = सब
अपहंसि = नष्ट कर देती हो
तुष्टा= प्रसन्न होने पर
रुष्टा = कुपित होने पर
तु = और
कामान् = कामनाओं का
सकलान्= सभी
अभीष्टान् = इच्छित
त्वाम् = तुम्हारी
आश्रितानां = शरण में आये
न विपत् = विपत्ति नही आती
नराणां = नरों को
त्वाम् = तुम्हारे
आश्रिता: = आश्रित
हि=निश्चित रूप से
आश्रयतां = शरण
प्रयान्ति = प्रदान करते हैं
प्रसन्न होने पर सब रोगों को और कुपित होने पर सब कामनाओं को नष्ट कर देती हो , तुम्हारी शरण में आये नारों को विपत्ति नहीं आती , निश्चित रूप से तुम्हारे आश्रित (दूसरों को ) शरण प्रदान करते हैं ।
एतत्कृतं यत्कदनं त्वयाद्य
धर्मद्विषां देवि महासुराणाम् ।
रूपैरनेकैर्बहुधात्ममूर्तिं
कृत्वाम्बिके तत्प्रकरोति कान्या ॥ ३०॥
एतत् कृतं = जो किया है
यत्= जो
कदनं = वध , विनाश
त्वया= तुम्हारे द्वारा
अद्य = आज
धर्मद्विषां = धर्म विरोधी
देवि = देवी
महासुराणाम् = महासुरों का
रूपै:= रूप
अनेकै: = कई
बहुधा= अलग प्रकार के
आत्ममूर्तिं= अपने स्वरूपको
कृत्वा= करके
अम्बिके = अम्बिका
तत्= वह
प्रकरोति = करेगा
का= कौन
अन्या = दूसरा
देवी आज तुम्हारे द्वारा जो अपने स्वरुप के कई अलग प्रकार के रूप कर के धर्मविरोधी महासुरों का विनाश किया है , वह हे अम्बिके दूसरा कौन करेगा ।
विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपे-
ष्वाद्येषु वाक्येषु च का त्वदन्या ।
ममत्वगर्तेऽतिमहान्धकारे
विभ्रामयत्येतदतीव विश्वम् ॥ ३१॥
विद्यासु = विद्याओं में
शास्त्रेषु = शास्त्रों में
विवेकदीपेषु = दर्शन शास्त्र
आद्येषु = आदि , प्रथम
वाक्येषु = वाक्यों में
च = और
का = कौन है
त्वदन्या = तुम्हारे इलावा
ममत्वगर्ते= ममता के गर्त में
अतिमहान्धकारे= अत्यंत अंधकारमय
विभ्रामयति = घुमाती हो
एतत = इस
अतीव =अत्यंत
विश्वम् = विश्व को
विद्याओं में ,शास्त्रों में , दर्शन शास्त्र में और आदि वाक्यों (वेदों ) में तुम्हारे इलावा और कौन है , ममता के अत्यंत अंधकारमय गर्त में इस विश्व को बहुत ज्यादा घुमाती हो , (वो भी तुम ही हो ) ।
रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा
यत्रारयो दस्युबलानि यत्र ।
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये
तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम् ॥ ३२॥
रक्षांसि = राक्षस
यत्र = जहां
उग्रविषा:= भयंकर विष वाले
च = और
नागा= सांप
यत्र= जहां
अरयो = शत्रु
दस्युबलानि = लुटेरों की सेना
यत्र = जहां
दावानलो = दावानल (जंगल की आग )
यत्र = जहां
तथा = इसी प्रकार
अब्धिमध्ये = समुन्दर के बीच में
तत्र = वहां
स्थिता = रह कर
त्वं = तुम
परिपासि = रक्षा करती हो
विश्वम्= विश्व की
जहां राक्षस हों , जहां भयंकर विष वाले सांप हों , जहां शत्रु हों , लुटेरों की सेना हो , जहां दावानल हो , इसी प्रकार समुन्दर के बीच में स्थित रह कर तुम विश्व की रक्षा करती हो ।
विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं
विश्वात्मिका धारयसीह विश्वम् ।
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति
विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः ॥ ३३॥
विश्वेश्वरि= विश्व की अधीश्वरी
त्वं = तुम
परिपासि = रक्षा करती हो
विश्वं= विश्व की
विश्वात्मिका = विश्व की आत्मा हो
धारयसि धारण करती है
विश्वं = विश्व को
इह = इस
विश्वेश वन्द्या = विश्वनाथ की वन्दनीय हो
भवती = आप
भवन्ति= होते हैं
विश्वाश्रया = विश्व को आश्रय देने वाले
ये = जो
त्वयि = तुम्हारी
भक्तिनम्राः= भक्ति से नतमस्तक है
विश्व की अधीश्वरी तुम विश्व की रक्षा करती हो ,विशव को धारण करने वाली विश्व की आत्मा हो , आप विश्वनाथ की वन्दनीय हो , जो तुम्हारी भक्ति से नतमस्तक हैं वे विश्व को आश्रय देने वाले होते हैं ।
देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीते-
र्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्यः ।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु
उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान् ॥ ३४॥
देवि =हे देवी
प्रसीद = प्रसन्न हो जाओ
परिपालय = रक्षा करो
न:= हमारी
अरिभीते- शत्रुओं के भय से
नित्यं = हमेशा
यथा= जिस प्रकार
असुरवधात् = असुरों के वध से
अधुना एव = अभी
सद्यः = आज
पापानि = पापों को
सर्वजगतां = सारे जगत के
प्रशमं नय: = नष्ट कर दो
आशु = शीघ्र ही
उत्पातपाकजनितान् = उत्पात और पापों से उत्पन्न
महोपसर्गान् = बड़े उपद्रवों को
हे देवी प्रसन्न हो जाओ, शत्रुओं के भय से हमारी रक्षा करो जिस प्रकार असुरों का वध कर आज अभी की है । सारे जगत के पापों और उत्पात और पापों से उत्पन्न बड़े उपद्रवों को शीघ्र ही नष्ट कर दो ।
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि ।
त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव ॥ ३५॥
प्रणतानां = प्रणाम करते हैं
प्रसीद = प्रसन्न हो जाओ
त्वं = तुम
देवि = हे देवी
विश्व आर्तिहारिणि = विश्व की पीड़ा हरने वाली
त्रैलोक्यवासिनाम् = तीनों लोकों के वासियों की
ईड्ये = पूजनीय
लोकानां = लोगों को
वरदा = वरदान देने वाली
भव= हो जाओ
विश्व की पीड़ा हरने वाली हे देवी हम प्रणाम करते हैं तुम प्रसन्न हो जाओ , तीनों लोकों के वासियों की पूजनीय लोगों को वरदान देने वाली हो जाओ ।
देव्युवाच ॥ ३६॥
देवी बोलीं ।
वरदाहं सुरगणा वरं यन्मनसेच्छथ ।
तं वृणुध्वं प्रयच्छामि जगतामुपकारकम् ॥ ३७॥
वरदाहं = मैं वर देती हूँ
सुरगणा - हे सुरगण
वरं = वर
यत् मनस इच्छथ = जो मन चाहे
तं = उसे
वृणुध्वं = मांगो
प्रयच्छामि = प्रदान करुँगी
जगताम् = जगत के
उपकारकम्= उपकार के लिए
हे सुरगण मैं वार देती हूँ , जो मन चाहे मांगों , जगत के उपकार के लिए उस वर को प्रदान करुँगी ।
देवा ऊचुः ॥ ३८॥
देवता बोले ।
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥ ३९॥
सर्वा बाधा प्रशमनं = सब बाधाओं का शमन करो
त्रैलोक्यस्य = तीनों लोकों की
अखिलेश्वरि= हे अखिलेश्वरी
एवमेव = इसी प्रकार ही
त्वया = तुम
कार्यम्= करती रहो
अस्मत्= हमारे
वैरि विनाशनम् = शत्रुओं का विनाश
हे अखिलेश्वरी तीनों लोकों की सब बाधाओं का शमन करो इसी प्रकार ही त्वया हमारे शत्रुओं का विनाश करती रहो ।
देव्युवाच ॥ ४०॥
देवी बोलीं ।
वैवस्वतेऽन्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे ।
शुम्भो निशुम्भश्चैवान्यावुत्पत्स्येते महासुरौ ॥ ४१॥
वैवस्वते अन्तरे = वैवस्वत मन्वन्तर
प्राप्ते = आने पर
अष्टाविंशतिमे युगे = अठाईसवाँ युग
शुम्भो निशुम्भ = शुम्भो निशुम्भ
च= और
एव अन्ये = जैसे दूसरे
उत्पत्स्येते = उत्पन्न होंगे
महासुरौ = महासुर
वैवस्वत मन्वन्तर में अठाईसवाँ युग आने पर शुम्भ और निशुम्भ जैसे दूसरे महासुर उत्पन्न होंगे ।
नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भसम्भवा ।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी ॥ ४२॥
नन्दगोपगृहे = नन्दगोपके घर में
जाता = उत्पन्न हो
यशोदागर्भसम्भवा= यशोदा के गर्भ से
तत:= तब
तौ= उन दोनों का
नाशयिष्यामि = नाश करुँगी
विन्ध्याचलनिवासिनी= विन्ध्याचलनिवासिनी के रूप में
तब नन्दगोपके घर में यशोदा के गर्भ से उत्पन्न हो विन्ध्याचलनिवासिनी के रूप में उन दोनों का नाश करुँगी ।
पुनरप्यतिरौद्रेण रूपेण पृथिवीतले ।
अवतीर्य हनिष्यामि वैप्रचित्तांश्च दानवान् ॥ ४३॥
पुन:= दुबारा
अपि = भी
अतिरौद्रेण = अत्यंत भयंकर
रूपेण = रूप में
पृथिवीतले =भूमि पर
अवतीर्य = अवतरित हो
हनिष्यामि = वध करुँगी
वैप्रचित्तां = वैप्रचित्ता
दानवान् = दानवों का
दुबारा भी अत्यंत भयंकर रूप में अवतरित हो वैप्रचित्ता दानवों का वध करुँगी ।
भक्षयन्त्याश्च तानुग्रान् वैप्रचित्तान् महासुरान् ।
रक्ता दन्ता भविष्यन्ति दाडिमीकुसुमोपमाः ॥ ४४॥
भक्षयन्त्या:= खाने से
च = और
तान् उग्रान् = उन भयानक
वैप्रचित्तान् महासुरान्= वैप्रचित्त महासुरों को
रक्ता = लाल
दन्ता = दांत
भविष्यन्ति = हो जाएंगे
दाडिमीकुसुम उपमाः= अनार के फूल के सामान
और उन भयानक वैप्रचित्त महासुरों को खाने से अनार के फूल के सामान लाल दांत हो जाएंगे ।
ततो मां देवताः स्वर्गे मर्त्यलोके च मानवाः ।
स्तुवन्तो व्याहरिष्यन्ति सततं रक्तदन्तिकाम् ॥ ४५॥
ततो = तब
मां = मेरी
देवताः = देवता
स्वर्गे = स्वर्ग में
मर्त्यलोके = मृत्युलोक में
च = और
मानवाः= मनुष्य
स्तुवन्तो = स्तुति करेंगे
व्याहरिष्यन्ति = कहते हुए
सततं = हमेशा
रक्तदन्तिकाम् = रक्तदन्तिका
तन स्वर्ग में देवता और मृत्युलोक में मनुष्य हमेशा रक्त दन्तिका कहते हुए मेरी स्तुति करेंगे ।
भूयश्च शतवार्षिक्यामनावृष्ट्यामनम्भसि ।
मुनिभिः संस्मृता भूमौ सम्भविष्याम्ययोनिजा ॥ ४६॥
भूयश्च = और दुबारा
शतवार्षिक्याम् = सौ वर्षों तक
अनावृष्ट्याम् = बारिश न होने से
अनम्भसि = पानी के अभाव में
मुनिभिः = मुनियों के
संस्मृता = स्तुति करने पर
भूमौ = भूमि पर
सम्भविष्यामि= प्रकट होउंगी
अयोनिजा = अयोनिजा रूप में
और दुबर सौ वर्षों तक बारिश न होने से पृथ्वी पर पानी के अभाव में मुनियों के स्तुति करने पर अयोनिजा रूप में प्रकट होउंगी ।
ततः शतेन नेत्राणां निरीक्षिष्याम्यहं मुनीन् ।
कीर्तयिष्यन्ति मनुजाः शताक्षीमिति मां ततः ॥ ४७॥
ततः = तब
शतेन = सौ
नेत्राणां = नेत्रों से
निरीक्षिष्यामि= देखूंगी
अहम्= मैं
मुनीन् = मुनियों को
कीर्तयिष्यन्ति = कीर्तन करेंगे
मनुजाः = मनुष्य
शताक्षीम् इति= शताक्षी नाम से
मां = मेरी
ततः = तब
तब मैं सौ नेत्रों से मुनियों को देखूंगी , मनुष्य तब शताक्षी के नाम से मेरा कीर्तन करेंगे ।
ततोऽहमखिलं लोकमात्मदेहसमुद्भवैः ।
भरिष्यामि सुराः शाकैरावृष्टेः प्राणधारकैः ॥ ४८॥
अहम्= मैं
अखिलं = सारे
लोकम् = संसार का
आत्मदेह समुद्भवैः = अपनी देह पर उत्पन्न
भरिष्यामि = भरण पोषण करुँगी
सुराः = हे देवताओं
शाकै: = शाकों से
आवृष्टेः = बारिश न होने तक
प्राणधारकैः= प्राण दायक
हे देवताओं तब मैं बारिश न होने तक अपनी देह पर उत्पन्न प्राण दायक शाकों से सारे संसार का भरण पोषण करुँगी ।
शाकम्भरीति विख्यातिं तदा यास्याम्यहं भुवि ।
तत्रैव च वधिष्यामि दुर्गमाख्यं महासुरम् ॥ ४९॥
शाकम्भरीति = शाकम्भरी नाम से
विख्यातिं = ख्याति
तदा = तब
यास्यामि = प्राप्त करुँगी
भुवि = पृथ्वी पर
तत्रैव = वहीँ
च = और
वधिष्यामि = वध करुँगी
दुर्गमाख्यं = दुर्गम कहे जाने वाले
महासुरम् = महासुर का
तब मैं पृथ्वी पर शाकम्भरी नाम से ख्याति प्राप्त करुँगी और वहीँ दुर्गम कहे जाने वाले महासुर का वध करुँगी ।
दुर्गादेवीति विख्यातं तन्मे नाम भविष्यति ।
पुनश्चाहं यदा भीमं रूपं कृत्वा हिमाचले ॥ ५०॥
दुर्गादेवी इति = दुर्गा देवी इसप्रकार
विख्यातं = प्रसिद्द
तत मे = तब मेरा
नाम = नाम
भविष्यति = होगा
पुनश्च = और दुबारा
अहं = मैं
यदा = जब
भीमं = भीम
रूपं = रूप
कृत्वा = करके
हिमाचले = हिमाचल पर
तब मेरा नाम दुर्गादेवी इस प्रकार प्रसिद्ध होगा , और दुबारा जब माओं हिमाचल पर भीम रूप करके ...
रक्षांसि भक्षयिष्यामि मुनीनां त्राणकारणात् ।
तदा मां मुनयः सर्वे स्तोष्यन्त्यानम्रमूर्तयः ॥ ५१॥
रक्षांसि = राक्षसों को
भक्षयिष्यामि = खाऊँगी
मुनीनां = मुनियों की
त्राणकारणात् = रक्षा के लिए
तदा = तब
मां = मुझे
मुनयः मुनि
सर्वे = सब
तोष्यन्ति = स्तुति करेंगे
नम्रमूर्तयः= नतमस्तक हो
मुनियों की रक्षा के लिए आक्षसों को खाऊँगी तब सब मुनि नतमस्तक हो कर स्तुति करेंगे ।
भीमादेवीति विख्यातं तन्मे नाम भविष्यति ।
यदारुणाख्यस्त्रैलोक्ये महाबाधां करिष्यति ॥ ५२॥
भीमादेवी इति = भीमा देवी इस प्रकार
विख्यातं = प्रसिद्द
तन्मे = तब मेरा
नाम = नाम
भविष्यति = होगा
यदा = जब
अरुणाख्य= अरुण नाम का ( असुर )
त्रैलोक्ये = तीनों लोकों में
महाबाधां = महा उपद्रव
करिष्यति = करेगा
तब मेरा नाम भीमा देवी इस प्रकार प्रसिद्द होगा । जब अरुण नाम का ( असुर ) तीनों लोकों में महा उपद्रव करेगा...
तदाहं भ्रामरं रूपं कृत्वासङ्ख्येयषट्पदम् ।
त्रैलोक्यस्य हितार्थाय वधिष्यामि महासुरम् ॥ ५३॥
तदा अहं = तब मैं
भ्रामरं = भ्रामर
रूपं= रूप
कृत्वा= करके
असङ्ख्येय = असंख्य
षट्पदम् = छह पैरों वाले
त्रैलोक्यस्य= तीनों लोकों के
हितार्थाय = हित के लिए
वधिष्यामि = वध करुँगी
महासुरम् = महासुर का
तब मैं छह पैरों वाले असंख्य भ्रामरों का रूप कर के तीनों लोकों के हित के लिए महासुर का वध करुँगी ।
भ्रामरीति च मां लोकास्तदा स्तोष्यन्ति सर्वतः ।
इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति ॥ ५४॥
भ्रामरी इति = भ्रामरी इस प्रकार
च = और
मां = मेरी
लोका:= लोग
तदा = तब
स्तोष्यन्ति = स्तुति करेंगे
सर्वतः = सब
इत्थं = इस प्रकार
यदा यदा = जब जब
बाधा = बाधा
दानव = दानवों द्वारा
उत्था = खड़ी
भविष्यति = होगी
और तब सब लोग मेरी भरामृ इस प्रकार स्तुति करेंगे । इस प्रकार जब जब दानवों द्वारा बाधा खड़ी होगी ...
तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसङ्क्षयम् ॥ ५५॥
तदा तदा= तब तब
अवतीर्या= अवतार ले कर
अहं = मैं
करिष्यामि = करुँगी
अरिसङ्क्षयम् =शत्रुओं का संहार
तब तब अवतार ले कर मैं शत्रुओं का संहार करुँगी ।
॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
नारायणीस्तुतिर्नामैकादशोऽध्यायः ॥ ११॥
स्मेरमुखीं वरदाङ्कुशपाशाभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम्।।
बाल रवि द्युतिम् = उदित होते सूर्य की आभा वाली
इन्दुकिरिटां = चन्द्रमा के मुकुट वाली
तुङ्गकुचा = उच्च स्तनों वाली
नयनत्रययुक्ताम्= तीन नेत्रों से युक्त
स्मेरमुखीं = मुस्कुराते मुख वाली
वरदाङ्कुशपाशाभीतिकरां = हाथ में वरद, अंकुश, पाश, अभयमुद्रा वाली
प्रभजे भुवनेशीम् = भुवनेश्वरी देवी का ध्यान करता/करती हूँ
उदित होते सूर्य की आभा वाली , चन्द्रमा के मुकुट वाली ,उच्च स्तनों वाली , तीन नेत्रों से युक्त , मुस्कुराते मुख वाली, हाथ में वरद, अंकुश, पाश, अभयमुद्रा वाली भुवनेश्वरी देवी का ध्यान करता/करती हूँ ।
ॐ ऋषिरुवाच ॥ १॥
ऋषि बोला ।
देव्या हते तत्र महासुरेन्द्रे
सेन्द्राः सुरा वह्निपुरोगमास्ताम् ।
कात्यायनीं तुष्टुवुरिष्टलाभाद्
विकाशिवक्त्राब्जविकाशिताशाः ॥ २॥
देव्या = देवी द्वारा
हते = मारे जाने पर
तत्र = वहां
महासुरेन्द्रे =असुरराज के
सेन्द्राः = इंद्र के साथ
सुरा = देवता
वह्निपुरोगम: = अग्नि को आगे कर के
आस्ताम् = वे
कात्यायनीं = कात्यायनी की
तुष्टुवु = स्तुति करने लगे
इष्टलाभाद् =अभीष्ट प्राप्ति होने से
विकाशि = खिलते हुए , चमकते हुए
वक्त्रा= मुख
अब्ज = कमल
विकाशित = चमकती थीं
आशाः = दिशाएँ
वहां देवी द्वारा असुरराज के मारे जाने पर इंद्र के साथ वे देवता अग्नि को आगे कर के कात्यायनी की स्तुति करने लगे । अभीष्ट प्राप्ति होने से चमकते हुए मुख कमल से दिशाएँ चमक रहीं थी ।
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य ।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥ ३॥
देवि = देवी
प्रपन्ना = शरणागत की
आर्तिहरे = पीड़ा को हरने वाली
प्रसीद प्रसीद = प्रसन्न हो जाओ
मात: जगतो अखिलस्य= सारे संसार की माँ
प्रसीद =प्रसन्न हो जाओ
विश्वेश्वरि =विश्वेश्वरि
पाहि= रक्षा करो
विश्वं= विश्व की
त्वम= तुम
ईश्वरी = अधीश्वरी हो
देवि = हे देवी
चराचरस्य= चर अचर की
शरणागत की पीड़ा हरने वाली हे देवी प्रसन्न हो जाओ , प्रसन्न हो जाओ , हे विश्वेश्वरि विश्व की रक्षा करो , हे देवी तुम चर अचर की अधीश्वरी हो ।
आधारभूता जगतस्त्वमेका
महीस्वरूपेण यतः स्थितासि ।
अपां स्वरूपस्थितया त्वयैत-
दाप्यायते कृत्स्नमलङ्घ्यवीर्ये ॥ ४॥
आधारभूता = आधार रूप हो
जगत:= जगत की
तवं एका = तुम एक ही
महीस्वरूपेण = पृथ्वी के रूपमे
यतः = जो
स्थितासि = स्थित हो
अपां = जल के
स्वरूपस्थितया = रूप में स्थित
त्वयैत- त्वया एतत = तुम इसे
आप्यायते = तृप्त , पुष्ट
कृत्स्नम् = करती हो
अलङ्घ्य वीर्ये = पराक्रम अलंघनीय है
तुम एकमात्र ही संसार का आधार हो जो पृथ्वी के रूप में स्थित हो , जल के रूप में स्थित हो तुम इसे तृप्त करती हो , (तुम्हारा ) पराक्रम अलंघनीय है ।
त्वं वैष्णवीशक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया ।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः ॥ ५॥
त्वं= तुम
वैष्णवीशक्ति: अनन्तवीर्या= अत्यंत बलशाली वैष्णवी शक्ति हो
विश्वस्य = संसार की
बीजं = बीज (उत्पत्ति का कारण )
परमा = परम
असि = हो
माया = माया
सम्मोहितं = सम्मोहित किया है
देवि = देवी
समस्तम = सब को , सारे
एतत् = इस (जगत को )
त्वं = तुम
वै = वास्तव में
प्रसन्ना = प्रसन्न होने पर
भुवि = पृथ्वी पर
मुक्तिहेतुः = मुक्ति का कारण हो
तुम अत्यंत बलशाली वैष्णवी शक्ति हो , तुम संसार की बीज (उत्पत्ति का कारण ) पर माया हो , तुमने इस सारे जगत को सम्मोहित किया है , वास्तव में तुम ही प्रसन्न होने पर पृथ्वी पर मुक्ति का कारण हो ।
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः
स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु ।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्
का ते स्तुतिः स्तव्यपरापरोक्तिः ॥ ६॥
विद्याः = विद्याएं
समस्ता:= सारी
तव = तुम्हारा
देवि = देवी
भेदाः= रूप हैं
स्त्रियः = स्त्रियां
समस्ताः = सभी
सकला = सारा
जगत्सु = संसार में
त्वयैकया त्वया एकया= एकमात्र तुम्ही से
पूरितम = व्यापत है
अम्बया = हे अम्बा
एतत् = ये
का = कौन
ते = तुम्हारी
स्तुतिः = स्तुति कर सकता है
स्तव्यपरा= स्तवन से परे
परोक्तिः= वाणी से परे
सारे संसार में सभी विद्याएं, सभी स्त्रियां तुम्हारे ही रूप हैं । हे अम्बा ये संसार एकमात्र तुम्ही से व्याप्त है , तुम्हारी स्तुति कौन कर सकता है , तुम स्तवन से परे (और) वाणी से परे हो ।
सर्वभूता यदा देवी भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी ।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः ॥ ७॥
सर्वभूता = सर्वस्वरूपा
यदा = जब
देवी = देवी
स्वर्ग मुक्ति प्रदायिनी = स्वर्ग और मोक्ष देने वाली हो
त्वं = तुम्हारी
स्तुता = स्तुति की जाती है
स्तुतये = स्तुति के लिए
का = क्या
वा =तब
भवन्तु = होगी
परमोक्तयः= इससे उत्तम उक्तियाँ
हे देवी जब स्वर्ग और मोक्ष देने वाली हो, सर्वस्वरूपा हो (कह कर ) तुम्हारी स्तुति की जाती है , तब स्तुति के लिए इससे उत्तम उक्तियाँ क्या होगी ।
सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते ।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ८॥
सर्वस्य = सब के
बुद्धिरूपेण = बुद्धि के रूप में
जनस्य = लोगों के
हृदि = ह्रदय में
संस्थिते = स्थित हो
स्वर्गापवर्गदे = स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करने वाली
देवि नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी देवी आप को नमस्कार है ।
सब लोगों के ह्रदय में बुद्धि रूप में हो , स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करने वाली नारायणी देवी आप को नमस्कार है ।
कलाकाष्ठादिरूपेण परिणामप्रदायिनि ।
विश्वस्योपरतौ शक्ते नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ९॥
कलाकाष्ठादिरूपेण = कला काष्ठ(समय गणना) आदि के रूप में
परिणामप्रदायिनि = परिणाम(बदलाव) देने वाली
विश्वस्य = संसार का
उपरतौ = उपसंहार ( प्रलय , समाप्ति) करने में
शक्ते = समर्थ
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हें नमस्कार है
कला काष्ठ आदि के रूप में परिणाम देने वाली, संसार का उपसंहार ( प्रलय , समाप्ति) करने में समर्थ नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १०॥
सर्व मंगल मांगल्ये= सभी मंगलों में मंगलमयी
शिवे= कल्याणकारी
सर्व अर्थ साधिके = सभी मनोरथों को सिद्ध करने वाली
शरण्ये = शरणागत वत्सला,शरण ग्रहण करने योग्य
त्रयम्बके= तीन नेत्रों वाली
गौरी= शिवपत्नी
नारायणी= विष्णुपत्नी
नमः अस्तु ते= तुम्हे नमस्कार है
तुम्ही शिव पत्नी, तुम्ही नारायण पत्नी अर्थात भगवान के सभी स्वरूपों के साथ तुम्हीं जुडी हो, तुम्हे नमस्कार है.
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ११॥
सृष्टिस्थितिविनाशानां = सृष्टि पालन और संहार की
शक्तिभूते = शक्ति भूता
सनातनि = सनातनी(शाश्वत) देवी
गुणाश्रये = गुणों(सत्व , रजस, तमस) का आधार
गुणमये = सर्व गुणमयी
नारायणि = नारायणी
नमोऽस्तु ते = तुम्हे नमस्कार है
सृष्टि पालन और संहार की शक्तिभूता सनातनी(शाश्वत) देवी, गुणों(सत्व , रजस, तमस) का आधार, सर्व गुणमयी नारायणी तुम्हे नमस्कार है ।
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १२॥
शरणागत = शरण में आये
दीन = दुखी
आर्त= पीड़ित
परित्राण = रक्षा में
परायणे= संलग्न
सर्वस्य= सब की
आर्ति= पीड़ा को
हरे = हरने वाली
शरण में आये, दुखियों और पीड़ितों की रक्षा में संलग्न, सब की पीड़ा को हरने वाली देवी नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
हंसयुक्तविमानस्थे ब्रह्माणीरूपधारिणि ।
कौशाम्भःक्षरिके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १३॥
हंसयुक्तविमानस्थे = हंस जुते विमान पर बैठी
ब्रह्माणीरूपधारिणि= ब्रह्माणी का रूप धारण कर
कौशाम्भःक्षरिके= कुश मिश्रित जल छिड़कने वाली
देवि नारायणि नमोऽस्तु ते =नारायणी देवी तुम्हे नमस्कार है ।
ब्रह्माणी का रूप धारण कर हंस जुते विमान पर बैठी कुश मिश्रित जल छिड़कने वाली नारायणी देवी तुम्हे नमस्कार है ।
त्रिशूलचन्द्राहिधरे महावृषभवाहिनि ।
माहेश्वरीस्वरूपेण नारायणि नमोऽस्तुते ॥ १४॥
त्रिशूल चन्द्र अहि धरे = त्रिशूल , चन्द्र , सांप धारण करने वाली
महावृषभवाहिनि = महा वृष के वाहन वाली
माहेश्वरीस्वरूपेण = माहेश्वरी के रूप में
नारायणि नमोऽस्तुते= नारायणी तुम्हे नमस्कार है
माहेश्वरी के रूप में त्रिशूल , चन्द्र , सांप धारण करने वाली, महा वृष के वाहन वाली नारायणी तुम्हे नमस्कार है ।
मयूरकुक्कुटवृते महाशक्तिधरेऽनघे ।
कौमारीरूपसंस्थाने नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १५॥
मयूरकुक्कुटवृते = मोरों और मुर्गों से घिरी
महाशक्तिधरे = महा शक्ति धारण करने वाली
अनघे = निष्पाप
कौमारीरूपसंस्थाने = कौमारी रूप धारण करने वाली
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हे नमस्कार है
मोरों और मुर्गों से घिरी , महा शक्ति धारण करने वाली , निष्पाप , कौमारी रूप धारण करने वाली नारायणी तुम्हे नमस्कार है ।
शङ्खचक्रगदाशार्ङ्गगृहीतपरमायुधे ।
प्रसीद वैष्णवीरूपे नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १६॥
शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग = शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग धनुष आदि
गृहीत परमायुधे = उत्तम हथियारों को धारण करने वाली
प्रसीद = प्रसन्न हो जाओ
वैष्णवीरूपे = वैष्णवी के रूप में
नारायणि नमोऽस्तु ते= नारायणी तुम्हे नमस्कार है
वैष्णवी के रूप में शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग धनुष आदि उत्तम हथियारों को धारण करने वाली नारायणी तुम्हे नमस्कार है ।
गृहीतोग्रमहाचक्रे दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे ।
वराहरूपिणि शिवे नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १७॥
गृहीत उग्रमहाचक्रे = भयानक महाचक्र लिए
दंष्ट्र उद्धृत वसुन्धरे = दाढ़ों पर पृथ्वी को धारण करने वाली
वराहरूपिणि = वाराही के रूप में
शिवे = कल्याणकारी
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हे नमस्कार है
वाराही के रूप में भयानक महाचक्र लिए, दाढ़ों पर पृथ्वी को धारण करने वाली कल्याणकारी नारायणी तुम्हे नमस्कार है ।
नृसिंहरूपेणोग्रेण हन्तुं दैत्यान् कृतोद्यमे ।
त्रैलोक्यत्राणसहिते नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १८॥
नृसिंहरूपेण उग्रेण = भयंकर नृसिंह के रूप में
हन्तुं = मारने का
दैत्यान् = दैत्यों को
कृत उद्यमे= उद्योग करने वाली
त्रैलोक्य त्राण सहिते = त्रिलोक की रक्षा में लीन
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हें नमस्कार है
भयंकर नृसिंह के रूप में दैत्यों को मारने का उद्योग करने वाली त्रिलोक की रक्षा में लीन नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
किरीटिनि महावज्रे सहस्रनयनोज्ज्वले ।
वृत्रप्राणहरे चैन्द्रि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १९॥
किरीटिनि = मुकुट धारण करने वाली
महावज्रे = महाव्रज लिए
सहस्रनयनोज्ज्वले= हजारों आँखों से उज्जवल
वृत्रप्राणहरे= वृत्रसुर के प्राण हरने वाली
च = और
एन्द्रि = इन्द्रशक्ति रूपा
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हें नमस्कार है
मुकुट धारण करने वाली , महाव्रज धारण करने वाली , हजारों आँखों से उज्जवल और वृत्रसुर के प्राण हरने वाली इन्द्रशक्ति रूपा नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
शिवदूतीस्वरूपेण हतदैत्यमहाबले ।
घोररूपे महारावे नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ २०॥
शिवदूतीस्वरूपेण = शिवदूती के रूप में
हतदैत्यमहाबले = दैत्यों की महान सेना को मारने वाली
घोररूपे = भयंकर रूप वाली
महारावे = महान गर्जना वाली
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हें नमस्कार है
शिवदूती के रूप में दैत्यों की महान सेना को मारने वाली, भयंकर रूप वाली ,महान गर्जना वाली नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
दंष्ट्राकरालवदने शिरोमालाविभूषणे ।
चामुण्डे मुण्डमथने नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ २१॥
दंष्ट्राकरालवदने = दाढ़ों से भयानक मुख वाली
शिरोमालाविभूषणे = सिरों की माला से सुशोभित
चामुण्डे = चामुण्डा
मुण्डमथने = मुंड मर्दनी
नारायणि नमोऽस्तु ते= नारायणी तुम्हें नमस्कार है
दाढ़ों से भयानक मुख वाली , सिरों की माला से सुशोभित मुंड मर्दनी चामुण्डा नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
लक्ष्मि लज्जे महाविद्ये श्रद्धे पुष्टि स्वधे ध्रुवे ।
महारात्रि महामाये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ २२॥
लक्ष्मि = लक्ष्मी
लज्जे = लज्जा
महाविद्ये = महाविद्या
श्रद्धे = श्रद्धा
पुष्टि = पुष्टि
स्वधे = स्वधा
ध्रुवे= ध्रुवा
महारात्रि = महारात्रि
महामाये = महामाया रूपा
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हे नमस्कार है
लक्ष्मी , लज्जा , महाविद्या , श्रद्धा , पुष्टि , स्वधा , ध्रुव , महारात्रि , महामाया रूपा नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
मेधे सरस्वति वरे भूति बाभ्रवि तामसि ।
नियते त्वं प्रसीदेशे नारायणि नमोऽस्तुते ॥ २३॥
मेधे = मेधा
सरस्वति = सरस्वती
वरे = वारा (श्रेष्ठ )
भूति = भूति ( ऐश्वर्यरूपा )
बाभ्रवि = पार्वती
तामसि = तामसी (काली )
नियते = नियता (सन्यम्परायणा )
त्वं = तुम
प्रसीदे=प्रसन्न हो जाओ
ईशे = ईश्वरी
नारायणि नमोऽस्तुते नारायणी तुम्हे नमस्कार है
मेधा, सरस्वती ,वरा (श्रेष्ठ ), भूति ( ऐश्वर्यरूपा) , बाभ्रवि (पार्वती) , तामसी (काली ), नियता (सन्यम्परायणा ), तुम प्रसन्न हो जाओ हे ईश्वरी नारायणी तुम्हें नमस्कार है ।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥ २४॥
सर्वस्वरूपे = सर्वस्वरूपा
सर्वेशे = सर्वेश्वरी
सर्वशक्तिसमन्विते = सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न
भयेभ्य: त्राहि = सब भयों से रक्षा कीजिये
नो = हमारी
देवि = देवी
दुर्गे देवि = हे दुर्गे देवी
नमः अस्तु ते = तुम्हे नमस्कार है
सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न देवी सब भयों से हमारी रक्षा कीजिये | हे दुर्गे देवी तुम्हें नमस्कार है |
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम् ।
पातु नः सर्वभूतेभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते ॥ २५॥
एतत् = ये
ते = तुम्हारा
वदनं = मुख
सौम्यं = सौम्य
लोचन त्रय भूषितम्= तीन नयनों से सुसज्जित
पातु = रक्षा करे
नः = हमारी
सर्वभूतेभ्यः = सब भयों से
कात्यायनि नमोऽस्तु ते= कात्यायनि तुम्हे नमस्कार है
तीन नयनों से सुसज्जित ये तुम्हारा सौम्य मुख सब भयों से हमारी रक्षा करे । हे कात्यायनि तुम्हें नमस्कार है ।
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम् ।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते ॥ २६॥
करालम् = विकराल
अत्युग्रम्= अत्यंत उग्र
अशेष असुरसूदनम्= सभी असुरों क संहार करने वाला
त्रिशूलं = त्रिशूल
पातु= रक्षा करे
नो = हमारी
भीते= भय से
भद्रकालि = भद्रकाली
नमोऽस्तु ते =तुम्हें नमस्कार है
हे भद्रकाली ,जवालों से विकराल , अत्यंत उग्र ,सभी असुरों क संहार करने वाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमारी रक्षा करे , तुम्हें नमस्कार है ।
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ॥ २७॥
हिनस्ति =नष्ट करता है
दैत्य तेजांसि = दैत्यों के तेज को
स्वनेन आपूर्य = आवाज़ से व्याप्त करता है
या = जो
जगत् = संसार को
सा = वह
घण्टा = घंटा
पातु = रक्षा करे
नो = हमारी
देवि = हे देवी
पापेभ्यो = पापों से
नः = हमारी
सुतानिव = पुत्रों के समान
हे देवी जो घंटा दैत्यों के तेज को नष्ट करता है , संसार को आवाज़ से व्याप्त करता है वह हमारी पुत्रों के समान पापों से रक्षा करे ।
असुरासृग्वसापङ्कचर्चितस्ते करोज्ज्वलः ।
शुभाय खड्गो भवतु चण्डिके त्वां नता वयम् ॥ २८॥
असुरासृग्वसापङ्क चर्चित:= असुरों के खून और चर्बी से चर्चित
ते =वह
करोज्ज्वलः = हाथों में चमकती
शुभाय = शुभ
खड्गो = तलवार
भवतु = हो
चण्डिके त्वां नता वयम्= हे चण्डिका हम आपको नमन करते हैं
असुरों के खून और चर्बी से चर्चित, हाथों में चमकती वह तलवार (हमारे लिए ) शुभ हो । हे चण्डिका हम आपको नमन करते हैं ।
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥ २९॥
रोगान्= रोगों को
अशेषान् = सब
अपहंसि = नष्ट कर देती हो
तुष्टा= प्रसन्न होने पर
रुष्टा = कुपित होने पर
तु = और
कामान् = कामनाओं का
सकलान्= सभी
अभीष्टान् = इच्छित
त्वाम् = तुम्हारी
आश्रितानां = शरण में आये
न विपत् = विपत्ति नही आती
नराणां = नरों को
त्वाम् = तुम्हारे
आश्रिता: = आश्रित
हि=निश्चित रूप से
आश्रयतां = शरण
प्रयान्ति = प्रदान करते हैं
प्रसन्न होने पर सब रोगों को और कुपित होने पर सब कामनाओं को नष्ट कर देती हो , तुम्हारी शरण में आये नारों को विपत्ति नहीं आती , निश्चित रूप से तुम्हारे आश्रित (दूसरों को ) शरण प्रदान करते हैं ।
एतत्कृतं यत्कदनं त्वयाद्य
धर्मद्विषां देवि महासुराणाम् ।
रूपैरनेकैर्बहुधात्ममूर्तिं
कृत्वाम्बिके तत्प्रकरोति कान्या ॥ ३०॥
एतत् कृतं = जो किया है
यत्= जो
कदनं = वध , विनाश
त्वया= तुम्हारे द्वारा
अद्य = आज
धर्मद्विषां = धर्म विरोधी
देवि = देवी
महासुराणाम् = महासुरों का
रूपै:= रूप
अनेकै: = कई
बहुधा= अलग प्रकार के
आत्ममूर्तिं= अपने स्वरूपको
कृत्वा= करके
अम्बिके = अम्बिका
तत्= वह
प्रकरोति = करेगा
का= कौन
अन्या = दूसरा
देवी आज तुम्हारे द्वारा जो अपने स्वरुप के कई अलग प्रकार के रूप कर के धर्मविरोधी महासुरों का विनाश किया है , वह हे अम्बिके दूसरा कौन करेगा ।
विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपे-
ष्वाद्येषु वाक्येषु च का त्वदन्या ।
ममत्वगर्तेऽतिमहान्धकारे
विभ्रामयत्येतदतीव विश्वम् ॥ ३१॥
विद्यासु = विद्याओं में
शास्त्रेषु = शास्त्रों में
विवेकदीपेषु = दर्शन शास्त्र
आद्येषु = आदि , प्रथम
वाक्येषु = वाक्यों में
च = और
का = कौन है
त्वदन्या = तुम्हारे इलावा
ममत्वगर्ते= ममता के गर्त में
अतिमहान्धकारे= अत्यंत अंधकारमय
विभ्रामयति = घुमाती हो
एतत = इस
अतीव =अत्यंत
विश्वम् = विश्व को
विद्याओं में ,शास्त्रों में , दर्शन शास्त्र में और आदि वाक्यों (वेदों ) में तुम्हारे इलावा और कौन है , ममता के अत्यंत अंधकारमय गर्त में इस विश्व को बहुत ज्यादा घुमाती हो , (वो भी तुम ही हो ) ।
रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा
यत्रारयो दस्युबलानि यत्र ।
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये
तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम् ॥ ३२॥
रक्षांसि = राक्षस
यत्र = जहां
उग्रविषा:= भयंकर विष वाले
च = और
नागा= सांप
यत्र= जहां
अरयो = शत्रु
दस्युबलानि = लुटेरों की सेना
यत्र = जहां
दावानलो = दावानल (जंगल की आग )
यत्र = जहां
तथा = इसी प्रकार
अब्धिमध्ये = समुन्दर के बीच में
तत्र = वहां
स्थिता = रह कर
त्वं = तुम
परिपासि = रक्षा करती हो
विश्वम्= विश्व की
जहां राक्षस हों , जहां भयंकर विष वाले सांप हों , जहां शत्रु हों , लुटेरों की सेना हो , जहां दावानल हो , इसी प्रकार समुन्दर के बीच में स्थित रह कर तुम विश्व की रक्षा करती हो ।
विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं
विश्वात्मिका धारयसीह विश्वम् ।
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति
विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः ॥ ३३॥
विश्वेश्वरि= विश्व की अधीश्वरी
त्वं = तुम
परिपासि = रक्षा करती हो
विश्वं= विश्व की
विश्वात्मिका = विश्व की आत्मा हो
धारयसि धारण करती है
विश्वं = विश्व को
इह = इस
विश्वेश वन्द्या = विश्वनाथ की वन्दनीय हो
भवती = आप
भवन्ति= होते हैं
विश्वाश्रया = विश्व को आश्रय देने वाले
ये = जो
त्वयि = तुम्हारी
भक्तिनम्राः= भक्ति से नतमस्तक है
विश्व की अधीश्वरी तुम विश्व की रक्षा करती हो ,विशव को धारण करने वाली विश्व की आत्मा हो , आप विश्वनाथ की वन्दनीय हो , जो तुम्हारी भक्ति से नतमस्तक हैं वे विश्व को आश्रय देने वाले होते हैं ।
देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीते-
र्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्यः ।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु
उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान् ॥ ३४॥
देवि =हे देवी
प्रसीद = प्रसन्न हो जाओ
परिपालय = रक्षा करो
न:= हमारी
अरिभीते- शत्रुओं के भय से
नित्यं = हमेशा
यथा= जिस प्रकार
असुरवधात् = असुरों के वध से
अधुना एव = अभी
सद्यः = आज
पापानि = पापों को
सर्वजगतां = सारे जगत के
प्रशमं नय: = नष्ट कर दो
आशु = शीघ्र ही
उत्पातपाकजनितान् = उत्पात और पापों से उत्पन्न
महोपसर्गान् = बड़े उपद्रवों को
हे देवी प्रसन्न हो जाओ, शत्रुओं के भय से हमारी रक्षा करो जिस प्रकार असुरों का वध कर आज अभी की है । सारे जगत के पापों और उत्पात और पापों से उत्पन्न बड़े उपद्रवों को शीघ्र ही नष्ट कर दो ।
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि ।
त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव ॥ ३५॥
प्रणतानां = प्रणाम करते हैं
प्रसीद = प्रसन्न हो जाओ
त्वं = तुम
देवि = हे देवी
विश्व आर्तिहारिणि = विश्व की पीड़ा हरने वाली
त्रैलोक्यवासिनाम् = तीनों लोकों के वासियों की
ईड्ये = पूजनीय
लोकानां = लोगों को
वरदा = वरदान देने वाली
भव= हो जाओ
विश्व की पीड़ा हरने वाली हे देवी हम प्रणाम करते हैं तुम प्रसन्न हो जाओ , तीनों लोकों के वासियों की पूजनीय लोगों को वरदान देने वाली हो जाओ ।
देव्युवाच ॥ ३६॥
देवी बोलीं ।
वरदाहं सुरगणा वरं यन्मनसेच्छथ ।
तं वृणुध्वं प्रयच्छामि जगतामुपकारकम् ॥ ३७॥
वरदाहं = मैं वर देती हूँ
सुरगणा - हे सुरगण
वरं = वर
यत् मनस इच्छथ = जो मन चाहे
तं = उसे
वृणुध्वं = मांगो
प्रयच्छामि = प्रदान करुँगी
जगताम् = जगत के
उपकारकम्= उपकार के लिए
हे सुरगण मैं वार देती हूँ , जो मन चाहे मांगों , जगत के उपकार के लिए उस वर को प्रदान करुँगी ।
देवा ऊचुः ॥ ३८॥
देवता बोले ।
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥ ३९॥
सर्वा बाधा प्रशमनं = सब बाधाओं का शमन करो
त्रैलोक्यस्य = तीनों लोकों की
अखिलेश्वरि= हे अखिलेश्वरी
एवमेव = इसी प्रकार ही
त्वया = तुम
कार्यम्= करती रहो
अस्मत्= हमारे
वैरि विनाशनम् = शत्रुओं का विनाश
हे अखिलेश्वरी तीनों लोकों की सब बाधाओं का शमन करो इसी प्रकार ही त्वया हमारे शत्रुओं का विनाश करती रहो ।
देव्युवाच ॥ ४०॥
देवी बोलीं ।
वैवस्वतेऽन्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे ।
शुम्भो निशुम्भश्चैवान्यावुत्पत्स्येते महासुरौ ॥ ४१॥
वैवस्वते अन्तरे = वैवस्वत मन्वन्तर
प्राप्ते = आने पर
अष्टाविंशतिमे युगे = अठाईसवाँ युग
शुम्भो निशुम्भ = शुम्भो निशुम्भ
च= और
एव अन्ये = जैसे दूसरे
उत्पत्स्येते = उत्पन्न होंगे
महासुरौ = महासुर
वैवस्वत मन्वन्तर में अठाईसवाँ युग आने पर शुम्भ और निशुम्भ जैसे दूसरे महासुर उत्पन्न होंगे ।
नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भसम्भवा ।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी ॥ ४२॥
नन्दगोपगृहे = नन्दगोपके घर में
जाता = उत्पन्न हो
यशोदागर्भसम्भवा= यशोदा के गर्भ से
तत:= तब
तौ= उन दोनों का
नाशयिष्यामि = नाश करुँगी
विन्ध्याचलनिवासिनी= विन्ध्याचलनिवासिनी के रूप में
तब नन्दगोपके घर में यशोदा के गर्भ से उत्पन्न हो विन्ध्याचलनिवासिनी के रूप में उन दोनों का नाश करुँगी ।
पुनरप्यतिरौद्रेण रूपेण पृथिवीतले ।
अवतीर्य हनिष्यामि वैप्रचित्तांश्च दानवान् ॥ ४३॥
पुन:= दुबारा
अपि = भी
अतिरौद्रेण = अत्यंत भयंकर
रूपेण = रूप में
पृथिवीतले =भूमि पर
अवतीर्य = अवतरित हो
हनिष्यामि = वध करुँगी
वैप्रचित्तां = वैप्रचित्ता
दानवान् = दानवों का
दुबारा भी अत्यंत भयंकर रूप में अवतरित हो वैप्रचित्ता दानवों का वध करुँगी ।
भक्षयन्त्याश्च तानुग्रान् वैप्रचित्तान् महासुरान् ।
रक्ता दन्ता भविष्यन्ति दाडिमीकुसुमोपमाः ॥ ४४॥
भक्षयन्त्या:= खाने से
च = और
तान् उग्रान् = उन भयानक
वैप्रचित्तान् महासुरान्= वैप्रचित्त महासुरों को
रक्ता = लाल
दन्ता = दांत
भविष्यन्ति = हो जाएंगे
दाडिमीकुसुम उपमाः= अनार के फूल के सामान
और उन भयानक वैप्रचित्त महासुरों को खाने से अनार के फूल के सामान लाल दांत हो जाएंगे ।
ततो मां देवताः स्वर्गे मर्त्यलोके च मानवाः ।
स्तुवन्तो व्याहरिष्यन्ति सततं रक्तदन्तिकाम् ॥ ४५॥
ततो = तब
मां = मेरी
देवताः = देवता
स्वर्गे = स्वर्ग में
मर्त्यलोके = मृत्युलोक में
च = और
मानवाः= मनुष्य
स्तुवन्तो = स्तुति करेंगे
व्याहरिष्यन्ति = कहते हुए
सततं = हमेशा
रक्तदन्तिकाम् = रक्तदन्तिका
तन स्वर्ग में देवता और मृत्युलोक में मनुष्य हमेशा रक्त दन्तिका कहते हुए मेरी स्तुति करेंगे ।
भूयश्च शतवार्षिक्यामनावृष्ट्यामनम्भसि ।
मुनिभिः संस्मृता भूमौ सम्भविष्याम्ययोनिजा ॥ ४६॥
भूयश्च = और दुबारा
शतवार्षिक्याम् = सौ वर्षों तक
अनावृष्ट्याम् = बारिश न होने से
अनम्भसि = पानी के अभाव में
मुनिभिः = मुनियों के
संस्मृता = स्तुति करने पर
भूमौ = भूमि पर
सम्भविष्यामि= प्रकट होउंगी
अयोनिजा = अयोनिजा रूप में
और दुबर सौ वर्षों तक बारिश न होने से पृथ्वी पर पानी के अभाव में मुनियों के स्तुति करने पर अयोनिजा रूप में प्रकट होउंगी ।
ततः शतेन नेत्राणां निरीक्षिष्याम्यहं मुनीन् ।
कीर्तयिष्यन्ति मनुजाः शताक्षीमिति मां ततः ॥ ४७॥
ततः = तब
शतेन = सौ
नेत्राणां = नेत्रों से
निरीक्षिष्यामि= देखूंगी
अहम्= मैं
मुनीन् = मुनियों को
कीर्तयिष्यन्ति = कीर्तन करेंगे
मनुजाः = मनुष्य
शताक्षीम् इति= शताक्षी नाम से
मां = मेरी
ततः = तब
तब मैं सौ नेत्रों से मुनियों को देखूंगी , मनुष्य तब शताक्षी के नाम से मेरा कीर्तन करेंगे ।
ततोऽहमखिलं लोकमात्मदेहसमुद्भवैः ।
भरिष्यामि सुराः शाकैरावृष्टेः प्राणधारकैः ॥ ४८॥
अहम्= मैं
अखिलं = सारे
लोकम् = संसार का
आत्मदेह समुद्भवैः = अपनी देह पर उत्पन्न
भरिष्यामि = भरण पोषण करुँगी
सुराः = हे देवताओं
शाकै: = शाकों से
आवृष्टेः = बारिश न होने तक
प्राणधारकैः= प्राण दायक
हे देवताओं तब मैं बारिश न होने तक अपनी देह पर उत्पन्न प्राण दायक शाकों से सारे संसार का भरण पोषण करुँगी ।
शाकम्भरीति विख्यातिं तदा यास्याम्यहं भुवि ।
तत्रैव च वधिष्यामि दुर्गमाख्यं महासुरम् ॥ ४९॥
शाकम्भरीति = शाकम्भरी नाम से
विख्यातिं = ख्याति
तदा = तब
यास्यामि = प्राप्त करुँगी
भुवि = पृथ्वी पर
तत्रैव = वहीँ
च = और
वधिष्यामि = वध करुँगी
दुर्गमाख्यं = दुर्गम कहे जाने वाले
महासुरम् = महासुर का
तब मैं पृथ्वी पर शाकम्भरी नाम से ख्याति प्राप्त करुँगी और वहीँ दुर्गम कहे जाने वाले महासुर का वध करुँगी ।
दुर्गादेवीति विख्यातं तन्मे नाम भविष्यति ।
पुनश्चाहं यदा भीमं रूपं कृत्वा हिमाचले ॥ ५०॥
दुर्गादेवी इति = दुर्गा देवी इसप्रकार
विख्यातं = प्रसिद्द
तत मे = तब मेरा
नाम = नाम
भविष्यति = होगा
पुनश्च = और दुबारा
अहं = मैं
यदा = जब
भीमं = भीम
रूपं = रूप
कृत्वा = करके
हिमाचले = हिमाचल पर
तब मेरा नाम दुर्गादेवी इस प्रकार प्रसिद्ध होगा , और दुबारा जब माओं हिमाचल पर भीम रूप करके ...
रक्षांसि भक्षयिष्यामि मुनीनां त्राणकारणात् ।
तदा मां मुनयः सर्वे स्तोष्यन्त्यानम्रमूर्तयः ॥ ५१॥
रक्षांसि = राक्षसों को
भक्षयिष्यामि = खाऊँगी
मुनीनां = मुनियों की
त्राणकारणात् = रक्षा के लिए
तदा = तब
मां = मुझे
मुनयः मुनि
सर्वे = सब
तोष्यन्ति = स्तुति करेंगे
नम्रमूर्तयः= नतमस्तक हो
मुनियों की रक्षा के लिए आक्षसों को खाऊँगी तब सब मुनि नतमस्तक हो कर स्तुति करेंगे ।
भीमादेवीति विख्यातं तन्मे नाम भविष्यति ।
यदारुणाख्यस्त्रैलोक्ये महाबाधां करिष्यति ॥ ५२॥
भीमादेवी इति = भीमा देवी इस प्रकार
विख्यातं = प्रसिद्द
तन्मे = तब मेरा
नाम = नाम
भविष्यति = होगा
यदा = जब
अरुणाख्य= अरुण नाम का ( असुर )
त्रैलोक्ये = तीनों लोकों में
महाबाधां = महा उपद्रव
करिष्यति = करेगा
तब मेरा नाम भीमा देवी इस प्रकार प्रसिद्द होगा । जब अरुण नाम का ( असुर ) तीनों लोकों में महा उपद्रव करेगा...
तदाहं भ्रामरं रूपं कृत्वासङ्ख्येयषट्पदम् ।
त्रैलोक्यस्य हितार्थाय वधिष्यामि महासुरम् ॥ ५३॥
तदा अहं = तब मैं
भ्रामरं = भ्रामर
रूपं= रूप
कृत्वा= करके
असङ्ख्येय = असंख्य
षट्पदम् = छह पैरों वाले
त्रैलोक्यस्य= तीनों लोकों के
हितार्थाय = हित के लिए
वधिष्यामि = वध करुँगी
महासुरम् = महासुर का
तब मैं छह पैरों वाले असंख्य भ्रामरों का रूप कर के तीनों लोकों के हित के लिए महासुर का वध करुँगी ।
भ्रामरीति च मां लोकास्तदा स्तोष्यन्ति सर्वतः ।
इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति ॥ ५४॥
भ्रामरी इति = भ्रामरी इस प्रकार
च = और
मां = मेरी
लोका:= लोग
तदा = तब
स्तोष्यन्ति = स्तुति करेंगे
सर्वतः = सब
इत्थं = इस प्रकार
यदा यदा = जब जब
बाधा = बाधा
दानव = दानवों द्वारा
उत्था = खड़ी
भविष्यति = होगी
और तब सब लोग मेरी भरामृ इस प्रकार स्तुति करेंगे । इस प्रकार जब जब दानवों द्वारा बाधा खड़ी होगी ...
तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसङ्क्षयम् ॥ ५५॥
तदा तदा= तब तब
अवतीर्या= अवतार ले कर
अहं = मैं
करिष्यामि = करुँगी
अरिसङ्क्षयम् =शत्रुओं का संहार
तब तब अवतार ले कर मैं शत्रुओं का संहार करुँगी ।
॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
नारायणीस्तुतिर्नामैकादशोऽध्यायः ॥ ११॥
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