Tuesday, March 24, 2015

एकादशोऽध्यायः

ॐ बालरविद्युतिमिन्दुकिरिटां तुङ्गकुचा नयनत्रययुक्ताम्।

स्मेरमुखीं वरदाङ्कुशपाशाभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम्।।

बाल रवि द्युतिम् = उदित होते सूर्य की आभा वाली 
इन्दुकिरिटां = चन्द्रमा के मुकुट वाली 
तुङ्गकुचा = उच्च स्तनों वाली 
नयनत्रययुक्ताम्= तीन नेत्रों से युक्त 

स्मेरमुखीं = मुस्कुराते मुख वाली 
वरदाङ्कुशपाशाभीतिकरां = हाथ में वरद, अंकुश, पाश, अभयमुद्रा वाली 

प्रभजे भुवनेशीम् = भुवनेश्वरी देवी का ध्यान करता/करती हूँ 

उदित होते सूर्य की आभा वाली , चन्द्रमा के मुकुट वाली ,उच्च स्तनों वाली , तीन नेत्रों से युक्त , मुस्कुराते मुख वाली, हाथ में वरद, अंकुश, पाश, अभयमुद्रा वाली  भुवनेश्वरी देवी का ध्यान करता/करती हूँ । 



ॐ ऋषिरुवाच ॥ १॥

ऋषि बोला ।

देव्या हते तत्र महासुरेन्द्रे
        सेन्द्राः सुरा वह्निपुरोगमास्ताम् ।
कात्यायनीं तुष्टुवुरिष्टलाभाद्
      विकाशिवक्त्राब्जविकाशिताशाः ॥ २॥

देव्या = देवी द्वारा 
हते = मारे जाने पर 
तत्र = वहां 
महासुरेन्द्रे =असुरराज के 
सेन्द्राः = इंद्र के साथ 
सुरा = देवता 
वह्निपुरोगम:  = अग्नि को आगे कर के 
आस्ताम् = वे 
कात्यायनीं = कात्यायनी की 
तुष्टुवु = स्तुति करने लगे  
इष्टलाभाद् =अभीष्ट प्राप्ति होने से 
विकाशि = खिलते हुए , चमकते हुए 
वक्त्रा= मुख 
अब्ज = कमल 
विकाशित = चमकती थीं 
आशाः = दिशाएँ 


वहां देवी द्वारा असुरराज के मारे जाने पर इंद्र के साथ वे देवता अग्नि को आगे कर के कात्यायनी की स्तुति करने लगे ।  अभीष्ट प्राप्ति होने से चमकते हुए मुख कमल से दिशाएँ चमक रहीं थी । 

देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
        प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य ।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं
        त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥ ३॥

देवि = देवी 
प्रपन्ना = शरणागत की 
आर्तिहरे = पीड़ा को हरने वाली 
प्रसीद प्रसीद = प्रसन्न हो जाओ 
मात: जगतो अखिलस्य= सारे संसार की माँ
प्रसीद =प्रसन्न हो जाओ 
विश्वेश्वरि =विश्वेश्वरि
पाहि= रक्षा करो 
विश्वं= विश्व की 
 त्वम= तुम 
ईश्वरी = अधीश्वरी  हो 
देवि = हे देवी 
चराचरस्य= चर अचर की 


शरणागत की पीड़ा हरने वाली हे देवी प्रसन्न हो जाओ , प्रसन्न हो जाओ , हे विश्वेश्वरि विश्व की रक्षा करो , हे देवी तुम चर अचर की अधीश्वरी  हो । 

आधारभूता जगतस्त्वमेका
        महीस्वरूपेण यतः स्थितासि ।
अपां स्वरूपस्थितया त्वयैत-
      दाप्यायते कृत्स्नमलङ्घ्यवीर्ये ॥ ४॥

आधारभूता = आधार रूप हो 
जगत:= जगत की 
तवं एका = तुम एक ही 
महीस्वरूपेण = पृथ्वी के रूपमे 
यतः = जो 
स्थितासि = स्थित हो 
अपां = जल के 
स्वरूपस्थितया = रूप में स्थित 
त्वयैत- त्वया एतत = तुम इसे 
आप्यायते = तृप्त , पुष्ट 
कृत्स्नम् = करती हो  
अलङ्घ्य वीर्ये  = पराक्रम अलंघनीय है 


तुम एकमात्र ही संसार का आधार हो जो पृथ्वी के रूप में स्थित हो , जल के रूप में स्थित हो तुम इसे तृप्त करती हो , (तुम्हारा ) पराक्रम अलंघनीय है । 

त्वं वैष्णवीशक्तिरनन्तवीर्या
      विश्वस्य बीजं परमासि माया ।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
      त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः ॥ ५॥

त्वं= तुम 
वैष्णवीशक्ति: अनन्तवीर्या= अत्यंत बलशाली वैष्णवी शक्ति हो 
विश्वस्य = संसार की 
बीजं = बीज (उत्पत्ति का कारण )
परमा = परम 
असि = हो 
माया = माया 
सम्मोहितं = सम्मोहित किया है 
देवि = देवी 
समस्तम = सब को , सारे 
 एतत् =  इस (जगत को )
त्वं = तुम 
वै = वास्तव में 
प्रसन्ना = प्रसन्न होने पर 
भुवि = पृथ्वी पर 
मुक्तिहेतुः = मुक्ति का कारण हो 


तुम अत्यंत बलशाली वैष्णवी शक्ति हो , तुम संसार की  बीज (उत्पत्ति का कारण ) पर माया हो , तुमने इस सारे जगत को सम्मोहित किया है , वास्तव में तुम ही प्रसन्न होने पर पृथ्वी पर मुक्ति का कारण हो । 

विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः
        स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु ।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्
        का ते स्तुतिः स्तव्यपरापरोक्तिः ॥ ६॥

विद्याः = विद्याएं 
समस्ता:= सारी
तव = तुम्हारा 
देवि = देवी 
भेदाः= रूप हैं 
स्त्रियः = स्त्रियां 
समस्ताः = सभी 
सकला = सारा 
जगत्सु = संसार में 
त्वयैकया त्वया एकया= एकमात्र तुम्ही से 
पूरितम = व्यापत है 
अम्बया = हे अम्बा 
एतत् = ये 
 का = कौन 
ते = तुम्हारी 
स्तुतिः = स्तुति कर सकता है 
स्तव्यपरा= स्तवन से परे 
 परोक्तिः= वाणी से परे


सारे संसार में सभी विद्याएं, सभी स्त्रियां तुम्हारे ही रूप हैं । हे अम्बा ये संसार एकमात्र तुम्ही से व्याप्त है , तुम्हारी स्तुति कौन कर सकता है , तुम स्तवन से परे (और) वाणी से परे हो । 

सर्वभूता यदा देवी भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी ।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः ॥ ७॥

सर्वभूता = सर्वस्वरूपा 
यदा = जब  
देवी = देवी 
स्वर्ग मुक्ति प्रदायिनी = स्वर्ग और मोक्ष देने वाली हो  
त्वं = तुम्हारी 
स्तुता = स्तुति की जाती है 
स्तुतये = स्तुति के लिए 
का = क्या 
 वा =तब  
भवन्तु = होगी 
परमोक्तयः= इससे उत्तम उक्तियाँ 


हे  देवी जब स्वर्ग और मोक्ष देने वाली हो, सर्वस्वरूपा हो (कह कर ) तुम्हारी स्तुति की जाती है , तब स्तुति के लिए इससे उत्तम उक्तियाँ क्या होगी । 

सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते ।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ८॥

सर्वस्य = सब के 
बुद्धिरूपेण = बुद्धि के रूप में 
जनस्य = लोगों के 
हृदि = ह्रदय में 
संस्थिते = स्थित हो 
स्वर्गापवर्गदे = स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करने वाली 
देवि नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी देवी आप को नमस्कार है । 


सब लोगों के ह्रदय में बुद्धि रूप में हो , स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करने वाली नारायणी देवी आप को नमस्कार है । 

कलाकाष्ठादिरूपेण परिणामप्रदायिनि ।
विश्वस्योपरतौ शक्ते नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ९॥

कलाकाष्ठादिरूपेण = कला काष्ठ(समय गणना)  आदि के रूप में 
परिणामप्रदायिनि = परिणाम(बदलाव)  देने वाली 
विश्वस्य = संसार का  
उपरतौ = उपसंहार ( प्रलय , समाप्ति)  करने में 
शक्ते = समर्थ 
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हें नमस्कार है 


 कला काष्ठ आदि के रूप में परिणाम देने वाली, संसार का  उपसंहार ( प्रलय , समाप्ति)  करने में समर्थ नारायणी तुम्हें नमस्कार है । 

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १०॥

सर्व मंगल मांगल्ये= सभी मंगलों में मंगलमयी 
शिवे= कल्याणकारी
सर्व अर्थ साधिके = सभी मनोरथों को सिद्ध करने वाली
शरण्ये = शरणागत वत्सला,शरण ग्रहण करने योग्य
त्रयम्बके= तीन नेत्रों वाली
गौरी= शिवपत्नी
नारायणी= विष्णुपत्नी
नमः अस्तु ते= तुम्हे नमस्कार है

 तुम्ही शिव पत्नी, तुम्ही नारायण पत्नी अर्थात भगवान के सभी स्वरूपों के साथ तुम्हीं जुडी हो, तुम्हे नमस्कार है.


सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ११॥

सृष्टिस्थितिविनाशानां = सृष्टि पालन और संहार की 
शक्तिभूते = शक्ति भूता
सनातनि = सनातनी(शाश्वत)  देवी 
गुणाश्रये = गुणों(सत्व , रजस, तमस) का आधार 
गुणमये = सर्व गुणमयी 
नारायणि = नारायणी 
नमोऽस्तु ते = तुम्हे नमस्कार है


सृष्टि पालन और संहार की शक्तिभूता सनातनी(शाश्वत)  देवी, गुणों(सत्व , रजस, तमस) का आधार, सर्व गुणमयी नारायणी  तुम्हे नमस्कार है । 

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १२॥

शरणागत = शरण में आये 
दीन = दुखी 
आर्त= पीड़ित 
परित्राण = रक्षा में 
परायणे= संलग्न 
सर्वस्य= सब की 
आर्ति= पीड़ा को 
हरे = हरने वाली

 शरण में आये, दुखियों और पीड़ितों की रक्षा में संलग्न, सब की पीड़ा को हरने वाली देवी नारायणी तुम्हें नमस्कार है । 

हंसयुक्तविमानस्थे ब्रह्माणीरूपधारिणि ।
कौशाम्भःक्षरिके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १३॥

हंसयुक्तविमानस्थे = हंस जुते विमान पर बैठी  
ब्रह्माणीरूपधारिणि= ब्रह्माणी का रूप धारण कर 
कौशाम्भःक्षरिके= कुश मिश्रित जल छिड़कने वाली 
देवि नारायणि नमोऽस्तु ते =नारायणी देवी तुम्हे नमस्कार है । 


ब्रह्माणी का रूप धारण कर हंस जुते विमान पर बैठी  कुश मिश्रित जल छिड़कने वाली नारायणी देवी तुम्हे नमस्कार है । 

त्रिशूलचन्द्राहिधरे महावृषभवाहिनि ।
माहेश्वरीस्वरूपेण नारायणि नमोऽस्तुते ॥ १४॥

त्रिशूल चन्द्र अहि धरे = त्रिशूल , चन्द्र , सांप धारण करने वाली 
महावृषभवाहिनि = महा वृष के वाहन वाली 
माहेश्वरीस्वरूपेण = माहेश्वरी के रूप में 
नारायणि नमोऽस्तुते= नारायणी तुम्हे नमस्कार है 


 माहेश्वरी के रूप में त्रिशूल , चन्द्र , सांप धारण करने वाली, महा वृष के वाहन वाली नारायणी तुम्हे नमस्कार है । 

मयूरकुक्कुटवृते महाशक्तिधरेऽनघे ।
कौमारीरूपसंस्थाने नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १५॥

मयूरकुक्कुटवृते = मोरों और मुर्गों से घिरी 
महाशक्तिधरे = महा शक्ति धारण करने वाली 
अनघे = निष्पाप 
कौमारीरूपसंस्थाने = कौमारी रूप धारण करने वाली 
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हे नमस्कार है 


मोरों और मुर्गों से घिरी , महा शक्ति धारण करने वाली , निष्पाप , कौमारी रूप धारण करने वाली नारायणी तुम्हे नमस्कार है । 

शङ्खचक्रगदाशार्ङ्गगृहीतपरमायुधे ।
प्रसीद वैष्णवीरूपे नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १६॥

शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग = शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग धनुष आदि 
गृहीत परमायुधे = उत्तम हथियारों को धारण करने वाली 
प्रसीद = प्रसन्न हो जाओ 
वैष्णवीरूपे = वैष्णवी के रूप में 
नारायणि नमोऽस्तु ते= नारायणी तुम्हे नमस्कार है 


वैष्णवी के रूप में शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग धनुष आदि  उत्तम हथियारों को धारण करने वाली नारायणी तुम्हे नमस्कार है । 

गृहीतोग्रमहाचक्रे दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे ।
वराहरूपिणि शिवे नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १७॥

गृहीत उग्रमहाचक्रे = भयानक महाचक्र लिए 
दंष्ट्र उद्धृत वसुन्धरे = दाढ़ों पर पृथ्वी को धारण करने वाली 
वराहरूपिणि = वाराही के रूप में 
शिवे = कल्याणकारी 
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हे नमस्कार है 


वाराही के रूप में भयानक महाचक्र लिए, दाढ़ों पर पृथ्वी को धारण करने वाली कल्याणकारी नारायणी तुम्हे नमस्कार है । 

नृसिंहरूपेणोग्रेण हन्तुं दैत्यान् कृतोद्यमे ।
त्रैलोक्यत्राणसहिते नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १८॥

नृसिंहरूपेण उग्रेण = भयंकर नृसिंह के रूप में 
हन्तुं = मारने का 
दैत्यान् = दैत्यों  को 
कृत उद्यमे= उद्योग करने वाली 
त्रैलोक्य त्राण सहिते = त्रिलोक की रक्षा में लीन 
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हें नमस्कार है 


भयंकर नृसिंह के रूप में दैत्यों  को मारने का उद्योग करने वाली त्रिलोक की रक्षा में लीन नारायणी तुम्हें नमस्कार है । 

किरीटिनि महावज्रे सहस्रनयनोज्ज्वले ।
वृत्रप्राणहरे चैन्द्रि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ १९॥

किरीटिनि = मुकुट धारण करने वाली 
महावज्रे = महाव्रज लिए 
सहस्रनयनोज्ज्वले= हजारों आँखों से उज्जवल
वृत्रप्राणहरे= वृत्रसुर के प्राण हरने वाली 
च = और 
 एन्द्रि = इन्द्रशक्ति रूपा 
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हें नमस्कार है 


मुकुट धारण करने वाली ,  महाव्रज धारण करने वाली , हजारों आँखों से उज्जवल और वृत्रसुर के प्राण हरने वाली इन्द्रशक्ति रूपा नारायणी तुम्हें नमस्कार है । 

शिवदूतीस्वरूपेण हतदैत्यमहाबले ।
घोररूपे महारावे नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ २०॥

शिवदूतीस्वरूपेण = शिवदूती के रूप में 
हतदैत्यमहाबले = दैत्यों की महान सेना को मारने वाली 
घोररूपे = भयंकर रूप वाली 
महारावे = महान गर्जना वाली 
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हें नमस्कार है 


शिवदूती के रूप में दैत्यों की महान सेना को मारने वाली, भयंकर रूप वाली ,महान गर्जना वाली नारायणी तुम्हें नमस्कार है । 

दंष्ट्राकरालवदने शिरोमालाविभूषणे ।
चामुण्डे मुण्डमथने नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ २१॥

दंष्ट्राकरालवदने = दाढ़ों से भयानक मुख वाली 
शिरोमालाविभूषणे = सिरों की माला से सुशोभित 
चामुण्डे = चामुण्डा 
मुण्डमथने = मुंड मर्दनी
नारायणि नमोऽस्तु ते= नारायणी तुम्हें नमस्कार है 


दाढ़ों से भयानक मुख वाली , सिरों की माला से सुशोभित मुंड मर्दनी चामुण्डा नारायणी तुम्हें नमस्कार है । 

लक्ष्मि लज्जे महाविद्ये श्रद्धे पुष्टि स्वधे ध्रुवे ।
महारात्रि महामाये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ २२॥

लक्ष्मि = लक्ष्मी 
लज्जे = लज्जा 
महाविद्ये = महाविद्या 
श्रद्धे = श्रद्धा 
पुष्टि = पुष्टि 
स्वधे = स्वधा 
ध्रुवे= ध्रुवा 
महारात्रि = महारात्रि 
महामाये = महामाया रूपा 
नारायणि नमोऽस्तु ते = नारायणी तुम्हे नमस्कार है 


लक्ष्मी , लज्जा , महाविद्या , श्रद्धा , पुष्टि , स्वधा , ध्रुव , महारात्रि , महामाया रूपा नारायणी तुम्हें नमस्कार है । 

मेधे सरस्वति वरे भूति बाभ्रवि तामसि ।
नियते त्वं प्रसीदेशे नारायणि नमोऽस्तुते ॥ २३॥

मेधे = मेधा 
सरस्वति = सरस्वती 
वरे = वारा (श्रेष्ठ )
भूति = भूति ( ऐश्वर्यरूपा ) 
बाभ्रवि = पार्वती 
तामसि = तामसी (काली ) 
नियते = नियता (सन्यम्परायणा ) 
त्वं = तुम 
प्रसीदे=प्रसन्न हो जाओ 
 ईशे = ईश्वरी 

नारायणि नमोऽस्तुते  नारायणी तुम्हे नमस्कार है 

मेधा, सरस्वती ,वरा  (श्रेष्ठ ), भूति ( ऐश्वर्यरूपा) , बाभ्रवि (पार्वती) , तामसी (काली ), नियता (सन्यम्परायणा ), तुम प्रसन्न हो जाओ हे  ईश्वरी  नारायणी तुम्हें नमस्कार है । 

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥ २४॥

सर्वस्वरूपे = सर्वस्वरूपा
सर्वेशे = सर्वेश्वरी 
सर्वशक्तिसमन्वितेसब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न
भयेभ्य: त्राहि = सब भयों से रक्षा कीजिये
नो = हमारी
देवि = देवी 
दुर्गे देवि = हे   दुर्गे देवी
नमः अस्तु ते = तुम्हे नमस्कार है

सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न देवी सब भयों से हमारी रक्षा कीजिये | 
हे  दुर्गे देवी तुम्हें नमस्कार है |


एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम् ।
पातु नः सर्वभूतेभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते ॥ २५॥

एतत् = ये 
ते = तुम्हारा 
वदनं = मुख 
सौम्यं = सौम्य 
लोचन त्रय भूषितम्= तीन नयनों से सुसज्जित 
पातु = रक्षा करे 
नः = हमारी 
सर्वभूतेभ्यः = सब भयों से 
कात्यायनि नमोऽस्तु ते= कात्यायनि तुम्हे नमस्कार है 


तीन नयनों से सुसज्जित ये तुम्हारा सौम्य मुख सब भयों से हमारी रक्षा करे । हे  कात्यायनि तुम्हें नमस्कार है । 

ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम् ।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते ॥ २६॥

करालम् = विकराल 
अत्युग्रम्= अत्यंत उग्र 
अशेष असुरसूदनम्= सभी असुरों क संहार करने वाला 
त्रिशूलं = त्रिशूल 
पातु= रक्षा करे
 नो = हमारी 
भीते= भय से 
भद्रकालि  = भद्रकाली 
नमोऽस्तु ते =तुम्हें नमस्कार है 


हे भद्रकाली ,जवालों से विकराल , अत्यंत उग्र ,सभी असुरों क संहार करने वाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमारी रक्षा करे , तुम्हें  नमस्कार है । 

हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ॥ २७॥

हिनस्ति =नष्ट करता है 
दैत्य तेजांसि = दैत्यों के तेज को 
स्वनेन आपूर्य = आवाज़ से व्याप्त करता है 
या = जो 
जगत् = संसार को 
सा = वह 
घण्टा = घंटा 
पातु = रक्षा करे 
नो = हमारी 
देवि = हे देवी 
पापेभ्यो = पापों से 
नः = हमारी 
सुतानिव = पुत्रों के समान


हे देवी जो घंटा दैत्यों के तेज को नष्ट करता है , संसार को आवाज़ से व्याप्त करता है वह हमारी पुत्रों के समान पापों से रक्षा करे । 

असुरासृग्वसापङ्कचर्चितस्ते करोज्ज्वलः ।
शुभाय खड्गो भवतु चण्डिके त्वां नता वयम् ॥ २८॥

असुरासृग्वसापङ्क चर्चित:= असुरों के खून और चर्बी से चर्चित 
ते =वह  
करोज्ज्वलः = हाथों में चमकती 
शुभाय = शुभ  
खड्गो = तलवार 
भवतु = हो 
चण्डिके त्वां नता वयम्= हे चण्डिका हम आपको नमन करते हैं 


असुरों के खून और चर्बी से चर्चित, हाथों में चमकती वह तलवार (हमारे लिए ) शुभ हो ।  हे चण्डिका हम आपको नमन करते हैं । 

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
        रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
        त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥ २९॥

रोगान्= रोगों को
अशेषान् = सब 
अपहंसि = नष्ट कर देती हो 
तुष्टा= प्रसन्न होने पर 
रुष्टा = कुपित होने पर 
 तु = और 
कामान् = कामनाओं का 
सकलान्= सभी 
अभीष्टान् = इच्छित 
त्वाम् = तुम्हारी 
आश्रितानां = शरण में आये 
न विपत् = विपत्ति नही आती 
नराणां = नरों को 
त्वाम् = तुम्हारे 
आश्रिता:  = आश्रित 
हि=निश्चित रूप से 
आश्रयतां = शरण 
प्रयान्ति = प्रदान करते हैं 


प्रसन्न होने पर सब रोगों को और कुपित होने पर सब कामनाओं को नष्ट कर देती हो , तुम्हारी शरण में आये नारों को विपत्ति नहीं आती , निश्चित रूप से तुम्हारे आश्रित (दूसरों को ) शरण प्रदान करते हैं । 

एतत्कृतं यत्कदनं त्वयाद्य
        धर्मद्विषां देवि महासुराणाम् ।
रूपैरनेकैर्बहुधात्ममूर्तिं
        कृत्वाम्बिके तत्प्रकरोति कान्या ॥ ३०॥

एतत् कृतं = जो किया है 
यत्= जो 
कदनं = वध , विनाश 
त्वया= तुम्हारे द्वारा 
अद्य = आज 
धर्मद्विषां = धर्म विरोधी 
देवि = देवी 
महासुराणाम् = महासुरों का 
रूपै:= रूप
अनेकै: = कई 
बहुधा= अलग प्रकार के 
आत्ममूर्तिं= अपने स्वरूपको 
कृत्वा= करके 
अम्बिके = अम्बिका 
तत्= वह 
प्रकरोति = करेगा 
का= कौन
अन्या = दूसरा 


देवी आज तुम्हारे द्वारा जो अपने स्वरुप के कई अलग प्रकार के रूप कर के धर्मविरोधी महासुरों का विनाश किया है , वह हे अम्बिके दूसरा कौन करेगा । 

विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपे-
      ष्वाद्येषु वाक्येषु च का त्वदन्या ।
ममत्वगर्तेऽतिमहान्धकारे
      विभ्रामयत्येतदतीव विश्वम् ॥ ३१॥

विद्यासु = विद्याओं में 
शास्त्रेषु = शास्त्रों में 
विवेकदीपेषु = दर्शन शास्त्र   
आद्येषु = आदि , प्रथम 
वाक्येषु = वाक्यों में 
च = और 
का = कौन है 
त्वदन्या = तुम्हारे इलावा 
ममत्वगर्ते= ममता के गर्त में 
अतिमहान्धकारे= अत्यंत अंधकारमय 
विभ्रामयति = घुमाती हो 
एतत = इस 
अतीव =अत्यंत 
विश्वम् = विश्व को 


विद्याओं में ,शास्त्रों में , दर्शन शास्त्र  में और आदि वाक्यों (वेदों ) में तुम्हारे इलावा और कौन है , ममता के अत्यंत अंधकारमय गर्त में इस विश्व को बहुत ज्यादा घुमाती हो , (वो भी तुम ही हो ) । 

रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा
        यत्रारयो दस्युबलानि यत्र ।
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये
        तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम् ॥ ३२॥

रक्षांसि = राक्षस 
यत्र = जहां 
उग्रविषा:= भयंकर विष वाले 
च  = और 
नागा= सांप 
 यत्र=  जहां 
अरयो = शत्रु 
दस्युबलानि = लुटेरों की सेना 
यत्र =  जहां 
दावानलो = दावानल (जंगल की आग ) 
यत्र =  जहां 
तथा = इसी प्रकार 
अब्धिमध्ये = समुन्दर के बीच में 
 तत्र = वहां 
स्थिता = रह कर 
 त्वं = तुम
परिपासि = रक्षा करती हो 
विश्वम्= विश्व की 


जहां राक्षस हों , जहां भयंकर विष वाले सांप हों , जहां शत्रु हों , लुटेरों की सेना हो , जहां दावानल हो , इसी प्रकार समुन्दर के बीच में स्थित  रह कर तुम विश्व की रक्षा करती हो । 

विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं
        विश्वात्मिका धारयसीह विश्वम् ।
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति
        विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः ॥ ३३॥

विश्वेश्वरि= विश्व की अधीश्वरी 
त्वं = तुम 
परिपासि = रक्षा करती हो 
विश्वं= विश्व की 
 विश्वात्मिका = विश्व की आत्मा हो 
धारयसि धारण करती है 
विश्वं = विश्व को 
इह = इस 
विश्वेश वन्द्या = विश्वनाथ की वन्दनीय हो 
भवती = आप 
भवन्ति= होते हैं 
विश्वाश्रया = विश्व को आश्रय देने वाले 
ये = जो 
त्वयि = तुम्हारी 
 भक्तिनम्राः= भक्ति से नतमस्तक है 


विश्व की अधीश्वरी तुम विश्व की रक्षा करती हो ,विशव को धारण करने वाली विश्व की आत्मा हो , आप विश्वनाथ की वन्दनीय हो , जो तुम्हारी भक्ति से नतमस्तक हैं वे विश्व को आश्रय देने वाले होते हैं । 

देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीते-
      र्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्यः ।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु
        उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान् ॥ ३४॥

देवि =हे देवी 
प्रसीद = प्रसन्न हो जाओ 
परिपालय = रक्षा करो 
न:= हमारी 
अरिभीते- शत्रुओं के भय से 
नित्यं = हमेशा 
यथा= जिस प्रकार 
असुरवधात् = असुरों के वध से 
अधुना एव = अभी 
सद्यः = आज 
पापानि = पापों को 
सर्वजगतां = सारे जगत के 
प्रशमं नय: = नष्ट कर दो 
आशु = शीघ्र ही 
उत्पातपाकजनितान् = उत्पात और पापों से उत्पन्न 
महोपसर्गान् = बड़े उपद्रवों को 


हे देवी प्रसन्न हो जाओ, शत्रुओं के भय से हमारी रक्षा करो जिस प्रकार असुरों का वध कर आज अभी की है । सारे जगत के पापों और उत्पात और पापों से उत्पन्न बड़े उपद्रवों को शीघ्र ही नष्ट कर दो । 

प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि ।
त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव ॥ ३५॥

प्रणतानां = प्रणाम करते हैं 
प्रसीद = प्रसन्न हो जाओ 
त्वं = तुम 
देवि = हे देवी 
विश्व आर्तिहारिणि = विश्व की पीड़ा हरने वाली 
त्रैलोक्यवासिनाम् = तीनों लोकों के वासियों की 
 ईड्ये = पूजनीय 
लोकानां = लोगों को 
वरदा = वरदान देने वाली 
भव= हो जाओ 


विश्व की पीड़ा हरने वाली  हे देवी हम प्रणाम करते हैं तुम प्रसन्न हो जाओ , तीनों लोकों के वासियों की पूजनीय लोगों को  वरदान देने वाली हो जाओ । 

देव्युवाच ॥ ३६॥

देवी बोलीं । 

वरदाहं सुरगणा वरं यन्मनसेच्छथ ।
तं वृणुध्वं प्रयच्छामि जगतामुपकारकम् ॥ ३७॥

वरदाहं = मैं वर देती हूँ 
सुरगणा - हे सुरगण
वरं = वर
यत् मनस इच्छथ = जो मन चाहे 
तं = उसे 
वृणुध्वं = मांगो 
प्रयच्छामि = प्रदान करुँगी 
जगताम् = जगत के 
उपकारकम्= उपकार के लिए 


हे सुरगण मैं वार देती हूँ , जो मन चाहे मांगों , जगत के उपकार के लिए उस वर को प्रदान करुँगी । 

देवा ऊचुः ॥ ३८॥

देवता बोले  । 

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥ ३९॥

सर्वा बाधा प्रशमनं = सब बाधाओं का शमन करो 
त्रैलोक्यस्य = तीनों लोकों की 
अखिलेश्वरि= हे अखिलेश्वरी 
एवमेव = इसी प्रकार  ही 
त्वया = तुम 
कार्यम्= करती रहो
अस्मत्= हमारे 
वैरि विनाशनम् = शत्रुओं का विनाश 


हे अखिलेश्वरी तीनों लोकों की सब बाधाओं का शमन करो इसी प्रकार ही त्वया हमारे शत्रुओं का विनाश करती रहो । 


देव्युवाच ॥ ४०॥

देवी बोलीं । 


वैवस्वतेऽन्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे ।
शुम्भो निशुम्भश्चैवान्यावुत्पत्स्येते महासुरौ ॥ ४१॥

वैवस्वते अन्तरे = वैवस्वत मन्वन्तर 
प्राप्ते = आने पर 
अष्टाविंशतिमे युगे = अठाईसवाँ युग 
शुम्भो निशुम्भ = शुम्भो निशुम्भ
च= और 
 एव अन्ये = जैसे दूसरे 
उत्पत्स्येते = उत्पन्न होंगे 
महासुरौ = महासुर


वैवस्वत मन्वन्तर में अठाईसवाँ युग आने पर शुम्भ और निशुम्भ जैसे दूसरे महासुर उत्पन्न होंगे । 

नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भसम्भवा ।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी ॥ ४२॥

नन्दगोपगृहे = नन्दगोपके घर में 
जाता = उत्पन्न हो 
यशोदागर्भसम्भवा= यशोदा के गर्भ से 
तत:= तब 
तौ= उन दोनों का 
नाशयिष्यामि = नाश करुँगी 
विन्ध्याचलनिवासिनी= विन्ध्याचलनिवासिनी के रूप में 


तब नन्दगोपके घर में यशोदा के गर्भ से उत्पन्न हो विन्ध्याचलनिवासिनी के रूप में उन दोनों का नाश करुँगी । 

पुनरप्यतिरौद्रेण रूपेण पृथिवीतले ।
अवतीर्य हनिष्यामि वैप्रचित्तांश्च दानवान् ॥ ४३॥

पुन:= दुबारा 
अपि = भी 
अतिरौद्रेण = अत्यंत भयंकर 
रूपेण = रूप में 
पृथिवीतले =भूमि पर 
अवतीर्य = अवतरित हो 
हनिष्यामि = वध करुँगी 
वैप्रचित्तां = वैप्रचित्ता
दानवान् = दानवों का 


दुबारा भी अत्यंत भयंकर रूप में अवतरित हो वैप्रचित्ता दानवों का वध करुँगी । 

भक्षयन्त्याश्च तानुग्रान् वैप्रचित्तान् महासुरान् ।
रक्ता दन्ता भविष्यन्ति दाडिमीकुसुमोपमाः ॥ ४४॥

भक्षयन्त्या:= खाने से 
च = और  
तान् उग्रान् = उन भयानक 
वैप्रचित्तान् महासुरान्= वैप्रचित्त महासुरों को 
रक्ता = लाल 
दन्ता = दांत 
भविष्यन्ति = हो जाएंगे 
दाडिमीकुसुम उपमाः= अनार के फूल के सामान 


और उन भयानक वैप्रचित्त महासुरों को खाने से अनार के फूल के सामान लाल दांत हो जाएंगे । 

ततो मां देवताः स्वर्गे मर्त्यलोके च मानवाः ।
स्तुवन्तो व्याहरिष्यन्ति सततं रक्तदन्तिकाम् ॥ ४५॥

ततो = तब 
मां = मेरी 
देवताः = देवता 
स्वर्गे = स्वर्ग में 
मर्त्यलोके = मृत्युलोक में 
च = और 
मानवाः= मनुष्य 
स्तुवन्तो = स्तुति करेंगे 
व्याहरिष्यन्ति = कहते हुए 
सततं = हमेशा 
रक्तदन्तिकाम् = रक्तदन्तिका 


तन स्वर्ग में देवता और मृत्युलोक में मनुष्य हमेशा रक्त दन्तिका कहते हुए मेरी स्तुति करेंगे । 

भूयश्च शतवार्षिक्यामनावृष्ट्यामनम्भसि ।
मुनिभिः संस्मृता भूमौ सम्भविष्याम्ययोनिजा ॥ ४६॥

भूयश्च = और दुबारा 
शतवार्षिक्याम् = सौ वर्षों तक 
अनावृष्ट्याम् = बारिश न होने से 
अनम्भसि = पानी के अभाव में 
मुनिभिः = मुनियों के 
संस्मृता = स्तुति करने पर 
भूमौ = भूमि पर 
सम्भविष्यामि= प्रकट होउंगी 
अयोनिजा = अयोनिजा रूप में 


और दुबर सौ वर्षों तक बारिश न होने से पृथ्वी पर पानी के अभाव में मुनियों के स्तुति करने पर अयोनिजा रूप में प्रकट होउंगी । 

ततः शतेन नेत्राणां निरीक्षिष्याम्यहं मुनीन् ।
कीर्तयिष्यन्ति मनुजाः शताक्षीमिति मां ततः ॥ ४७॥

ततः = तब 
शतेन = सौ 
नेत्राणां = नेत्रों से 
निरीक्षिष्यामि= देखूंगी 
अहम्= मैं 
मुनीन् = मुनियों को 
कीर्तयिष्यन्ति = कीर्तन करेंगे
मनुजाः = मनुष्य 
शताक्षीम् इति= शताक्षी नाम से 
मां = मेरी 
ततः = तब 


तब मैं सौ नेत्रों से मुनियों को देखूंगी , मनुष्य तब शताक्षी के नाम से मेरा कीर्तन करेंगे । 

ततोऽहमखिलं लोकमात्मदेहसमुद्भवैः ।
भरिष्यामि सुराः शाकैरावृष्टेः प्राणधारकैः ॥ ४८॥

अहम्= मैं 
अखिलं = सारे 
लोकम् = संसार का 
आत्मदेह समुद्भवैः = अपनी देह पर उत्पन्न 
भरिष्यामि = भरण पोषण करुँगी 
सुराः = हे देवताओं 
शाकै:  = शाकों से 
आवृष्टेः = बारिश न होने तक 
प्राणधारकैः= प्राण दायक 


हे देवताओं तब मैं बारिश न होने तक अपनी देह पर उत्पन्न प्राण दायक शाकों से सारे संसार का  भरण पोषण करुँगी । 

शाकम्भरीति विख्यातिं तदा यास्याम्यहं भुवि ।
तत्रैव च वधिष्यामि दुर्गमाख्यं महासुरम् ॥ ४९॥

शाकम्भरीति = शाकम्भरी नाम से  
विख्यातिं = ख्याति 
तदा = तब 
यास्यामि = प्राप्त करुँगी 
भुवि = पृथ्वी पर 
तत्रैव = वहीँ 
च = और 
वधिष्यामि = वध करुँगी 
दुर्गमाख्यं = दुर्गम कहे जाने वाले 
महासुरम् = महासुर का 


तब मैं पृथ्वी पर शाकम्भरी नाम से  ख्याति प्राप्त करुँगी और वहीँ दुर्गम कहे जाने वाले महासुर का वध करुँगी । 

दुर्गादेवीति विख्यातं तन्मे नाम भविष्यति ।
पुनश्चाहं यदा भीमं रूपं कृत्वा हिमाचले ॥ ५०॥

दुर्गादेवी इति = दुर्गा देवी इसप्रकार 
विख्यातं = प्रसिद्द 
तत मे = तब मेरा  
नाम = नाम 
भविष्यति = होगा 
पुनश्च = और दुबारा 
अहं = मैं 
यदा = जब 
भीमं = भीम 
रूपं = रूप 
कृत्वा = करके 
हिमाचले = हिमाचल पर 


तब मेरा नाम दुर्गादेवी इस प्रकार प्रसिद्ध होगा , और दुबारा जब माओं हिमाचल पर भीम रूप करके ...

रक्षांसि भक्षयिष्यामि मुनीनां त्राणकारणात् ।
तदा मां मुनयः सर्वे स्तोष्यन्त्यानम्रमूर्तयः ॥ ५१॥

रक्षांसि = राक्षसों  को 
भक्षयिष्यामि = खाऊँगी 
मुनीनां = मुनियों की 
त्राणकारणात् = रक्षा के लिए 
तदा = तब 
मां = मुझे 
मुनयः  मुनि 
सर्वे = सब 
तोष्यन्ति = स्तुति करेंगे 
नम्रमूर्तयः= नतमस्तक हो 


मुनियों की रक्षा के लिए आक्षसों को खाऊँगी तब सब मुनि नतमस्तक हो कर स्तुति करेंगे । 

भीमादेवीति विख्यातं तन्मे नाम भविष्यति ।
यदारुणाख्यस्त्रैलोक्ये महाबाधां करिष्यति ॥ ५२॥

भीमादेवी इति = भीमा देवी इस प्रकार 
विख्यातं = प्रसिद्द 
तन्मे = तब मेरा 
नाम = नाम 
भविष्यति = होगा 
यदा = जब 
अरुणाख्य= अरुण नाम का ( असुर ) 
त्रैलोक्ये = तीनों लोकों में 
महाबाधां = महा उपद्रव 
करिष्यति = करेगा 


तब मेरा नाम भीमा देवी इस प्रकार प्रसिद्द होगा । जब  अरुण नाम का ( असुर ) तीनों लोकों में महा उपद्रव करेगा...

तदाहं भ्रामरं रूपं कृत्वासङ्ख्येयषट्पदम् ।
त्रैलोक्यस्य हितार्थाय वधिष्यामि महासुरम् ॥ ५३॥

तदा अहं = तब मैं 
भ्रामरं = भ्रामर 
रूपं= रूप 
कृत्वा= करके 
असङ्ख्येय = असंख्य 
षट्पदम् = छह पैरों वाले 
त्रैलोक्यस्य= तीनों लोकों के 
हितार्थाय = हित के लिए 
वधिष्यामि = वध करुँगी 
महासुरम् = महासुर का 


तब मैं छह पैरों वाले असंख्य भ्रामरों का रूप कर के तीनों लोकों के हित के लिए महासुर का वध करुँगी । 

भ्रामरीति च मां लोकास्तदा स्तोष्यन्ति सर्वतः ।
इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति ॥ ५४॥


भ्रामरी इति = भ्रामरी इस प्रकार 
च = और 
मां = मेरी 
लोका:= लोग 
तदा = तब 
स्तोष्यन्ति = स्तुति करेंगे 
सर्वतः = सब 
इत्थं = इस प्रकार 
यदा यदा = जब जब 
बाधा = बाधा 
दानव = दानवों द्वारा 
उत्था = खड़ी
भविष्यति = होगी 

और तब सब लोग मेरी भरामृ इस प्रकार स्तुति करेंगे । इस प्रकार जब जब दानवों द्वारा बाधा खड़ी होगी ...

तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसङ्क्षयम् ॥ ५५॥

तदा तदा= तब तब 
अवतीर्या= अवतार ले कर 
अहं = मैं 
 करिष्यामि = करुँगी 
अरिसङ्क्षयम् =शत्रुओं का संहार 


तब तब अवतार ले कर मैं शत्रुओं का संहार करुँगी । 

॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
नारायणीस्तुतिर्नामैकादशोऽध्यायः ॥ ११॥

No comments:

Post a Comment