विनियोगः
अस्य श्री उत्तरचरित्रस्य रुद्र ऋषिः ।
श्रीमहासरस्वती देवता ।
अनुष्टुप् छन्दः । भीमा शक्तिः । भ्रामरी बीजम् ।
सूर्यस्तत्त्वम् ।
सामवेदः स्वरूपम् । श्रीमहासरस्वतीप्रीत्यर्थे
उत्तरचरित्रपाठे
विनियोगः ।
ध्यानम्
घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम् ।
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-
पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम् ॥
घण्टाशूलहलानि =घंटा , शूल , हल
शङ्खमुसले = शंख , मूसल
चक्रं धनुः सायकं= चक्र, धनुष। तीर
हस्ताब्जै: दधतीं = कर कमलों में धारण करती है
घनान्त = शरद ऋतु के
विलसत् शीतांशुतुल्यप्रभाम् = चमकते चाँद के सामान प्रभा वाली
गौरीदेहसमुद्भवां = गौरी के शरीर से प्रकट हुई
त्रिजगताम् आधारभूतां = तीनों जगतों की आधारभूता
महापूर्वामत्र
सरस्वतीमनुभजे = सरस्वती का भजन करता / करती हूँ
शुम्भादिदैत्यार्दिनीम् = शुम्भ आदि दैत्यों का नाश करने वाली
अपने करकमलों में घंटा , शूल , हल, शंख , मूसल, चक्र, धनुष, तीर धारण करने वाली , शरद ऋतु के चमकते चाँद के सामान प्रभा वाली , गौरी के शरीर से प्रकट हुई , तीनों जगतों की आधारभूता, शुम्भ आदि दैत्यों का नाश करने वाली सरस्वती का भजन करता / करती हूँ ।
ॐ क्लीं ऋषिरुवाच ॥ १॥
ऋषि बोले ।
पुरा शुम्भनिशुम्भाभ्यामसुराभ्यां शचीपतेः ।
त्रैलोक्यं यज्ञभागाश्च हृता मदबलाश्रयात् ॥ २॥
पुरा = पूर्व काल में
शुम्भनिशुम्भाभ्याम असुराभ्यां = शुम्भ और निशुम्भ असुरों ने
शचीपतेः= शची के पति इंद्र से
त्रैलोक्यं = तीनों लोकों को
यज्ञभागाश्च = और यज्ञ भाग को
हृता = छीन लिया
मदबलाश्रयात्= बल के घमंड में आकर
पूर्व काल में शुम्भ और निशुम्भ असुरों ने बल के घमंड में आकर शची के पति इंद्र से तीनों लोकों को और यज्ञ भाग को छीन लिया ।
तावेव सूर्यतां तद्वदधिकारं तथैन्दवम् ।
कौबेरमथ याम्यं च चक्राते वरुणस्य च ॥ ३॥
तावेव = वे दोनों ही
सूर्यतां = सूर्य का
तद्वत् =उसी प्रकार
अधिकारं = अधिकारों का
तथा = इसी प्रकार
एन्दवम् = चन्द्रमा
कौबेरम = कुबेर का
अथ = तब
याम्यं = यम का
च = और
चक्राते = सञ्चालन करने लगे
वरुणस्य = वरुण का
च =और
उसी प्रकार वे दोनों ही सूर्य के , इसी प्रकार चन्द्रमा , तब कुबेर और याम के और वरुण के अधिकारों का सञ्चालन करने लगे ।
तावेव पवनर्द्धिं च चक्रतुर्वह्निकर्म च ।
तावेव = वे दोनों ही
पवनर्द्धिं = वायु
च = और
चक्रतु: = करने लगे
वह्निकर्म च = और आग के कार्य
और वे दोनों ही वायु और अग्नि के कार्यों को करने लगे ।
ततो देवा विनिर्धूता भ्रष्टराज्याः पराजिताः ॥ ४॥
ततो = तब
देवा = देवताओं को
विनिर्धूता : = निकाल दिया गया
भ्रष्टराज्याः = राज्यभ्रष्ट
पराजिताः= पराजित
तब पराजित देवताओं को राष्ट्रभ्रष्ट कर निकाल दिया गया ।
हृताधिकारास्त्रिदशास्ताभ्यां सर्वे निराकृताः ।
महासुराभ्यां तां देवीं संस्मरन्त्यपराजिताम् ॥ ५॥
हृताधिकारा: = अधिकार हीन
त्रिदशास्ताभ्यां = देवताओं ने
सर्वे = सब
निराकृताः= अपमानित , निकाले गए
महासुराभ्यां= दोनों महान असुरों द्वारा
तां = उस
देवीं = देवी का
संस्मरन्त्ति = स्मरण किया
अपराजिताम् = अपराजिता
दोनों महान असुरों द्वारा निकाले गए अधिकार हीन देवताओं ने उस अपराजिता देवी का स्मरण किया ।
तयास्माकं वरो दत्तो यथापत्सु स्मृताखिलाः ।
भवतां नाशयिष्यामि तत्क्षणात्परमापदः ॥ ६॥
तया = उसने
अस्माकं = हमें
वरो = वरदान
दत्तो = दिया था
यथा = जिस प्रकार , कि
आपत्सु = आपत्ति के समय
स्मृता = स्मरण करने पर
अखिलाः = सभी
भवतां = भविष्य में
नाशयिष्यामि = नाश करुँगी
तत्क्षणात्= उसी क्षण
परमापदः= परम आपदाओं का
उसने हमे वरदान दिया था कि भविष्य में आपत्ति के समय स्मरण करने पर उसी क्षण सभी परम आपदाओं का नाश करुँगी ।
इति कृत्वा मतिं देवा हिमवन्तं नगेश्वरम् ।
जग्मुस्तत्र ततो देवीं विष्णुमायां प्रतुष्टुवुः ॥ ७॥
इति = इस प्रकार
कृत्वा = कर
मतिं = सोच
देवा = देवता
हिमवन्तं = हिमालय पर
नगेश्वरम् = गिरिराज
जग्मु:= गए
तत्र = वहाँ
ततो = तब
देवीं = देवी
विष्णुमायां = विष्णुमाया की
प्रतुष्टुवुः -= स्तुति की
इस प्रकार सोच कर देवता गिरिराज हिमालय पर गए । तब वहाँ देवी विष्णुमाया की स्तुति की ।
देवा ऊचुः ॥ ८॥
देवता बोले ।
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ॥ ९॥
नमो = नमन है
देव्यै = देवी को
महादेव्यै = महा देवी को
शिवायै= कल्याणकारी देवी को
सततं = हमेशा
नमः = नमन करते हैं
नमः = नमन
प्रकृत्यै = प्रकृति (सृजन का मूल ) को
भद्रायै = भद्रा(शुभ ) को
नियताः = एकाग्रता से
प्रणताः = प्रणाम करते हैं
स्म = हमेशा
ताम् = उसे
देवी को नमन है , कल्याणकारी महादेवी को हमेशा नमन है , प्रकृति, भद्रा को नमन है , उस देवी को हम एकाग्रता से हमेशा प्रणाम करते हैं ।
रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै नमो नमः ।
ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नमः ॥ १०॥
रौद्रायै = रौद्रा को
नमो = नमन है
नित्यायै = नित्या
गौर्यै = गौरी को
धात्र्यै = धात्री को
नमो नमः = नमन है नमन है
ज्योत्स्नायै = ज्योत्सनामयी
चेन्दुरूपिण्यै = चन्द्ररूपणी
सुखायै = सुख स्वरूपा को
सततं नमः = लगातार नमन है
रौद्रा को नमन है ,नित्या, गौरी को, धात्री को नमन है नमन है।ज्योत्सत्सनामयी , चन्द्ररूपणी , सुख स्वरूपा को लगातार नमन है ।
कल्याण्यै प्रणता वृद्ध्यै सिद्ध्यै कुर्मो नमो नमः ।
नैरृत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः ॥ ११॥
कल्याण्यै = कल्याण कारी
प्रणता = प्रणाम है
वृद्ध्यै = वृद्धि
सिद्ध्यै = सिद्धि
कुर्मो = आधार
नमो नमः = नमन है नमन है
नैरृत्यै = राक्षसों की नैऋति
भूभृतां = राजाओं की
लक्ष्म्यै = लक्ष्मी
शर्वाण्यै = शर्वाणी
ते = आपको
नमो नमः = नमन है नमन है
कल्याणकारी देवी को प्रणाम है , वृद्धि और सिद्धि की आधार देवी को नमन है, नमन है , नैऋति, राजाओं की लक्ष्मी , शिवपत्नी आपको नमन है, नमन है ।
दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै ।
ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ॥ १२॥
दुर्गायै = दुर्गा
दुर्गपारायै = दुर्गपारा (संकट में पार उतारने वाली)
सारायै = सारा (सारभूत )
सर्वकारिण्यै = सर्वकारिणी
ख्यात्यै = ख्याति
तथैव = इसी प्रकार ही
कृष्णायै=कृष्णा
धूम्रायै = धूम्रा देवी को
सततं नमः = हमेशा नमन है
दुर्गायै = दुर्गा, दुर्गपारा (संकट में पार उतारने वाली), सारा (सारभूत ), सर्वकारिणी , ख्याति, इसी प्रकार ही कृष्णा, धूम्रा देवी को हमेशा नमन है ।
अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नमः ।
नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नमः ॥ १३॥
अति सौम्य = अत्यंत सौम्य
अतिरौद्रायै = अत्यंत रौद्र रूपा
नतास्तस्यै = उसको नमस्कार करते है
नमो नमः = बार बार नमन करते हैं
नमो = नमन है
जगत्प्रतिष्ठायै = जगत की आधारभूता
देव्यै = देवी को
कृत्यै = करते हैं
नमो नमः = बार बार नमन
अत्यंत सौम्य , अत्यंत रौद्र रूपा उसको नमस्कार करते है , बार बार नमन करते हैं , जगत की आधारभूता को नमन है , देवी को बार बार नमन है ।
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ १४-१६॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
विष्णुमायेति विष्णु माया इति = विष्णुमाया इस प्रकार
शब्दिता = कही जाती है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में विष्णुमाया इसप्रकार कही जाती है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ १७-१९॥
या देवी सर्वभूतेषु = जो देवी सब प्राणियों में
चेतन: इति अभिधीयते = चेतना इस प्रकार कहलाती है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में चेतना इस प्रकार कहलाती है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ २०-२२॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
बुद्धिरूपेण = बुद्धि के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में बुद्धि के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ २३-२५॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
निद्रारूपेण = निद्रा के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में निद्रा के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ २६-२८॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
क्षुधारूपेण = भूख के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में भूख के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु छायारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ २९-३१॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
छायारूपेण = छाया के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में छाया के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ३२-३४॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
शक्तिरूपेण = शक्ति के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में शक्ति के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ३५-३७॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
तृष्णारूपेण = तृष्णा के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में तृष्णा के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ३८-४०॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
क्षान्तिरूपेण = क्षमा के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में क्षमा के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ४१-४३॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
जातिरूपेण = जाति के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में जाति के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ४४-४६॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
लज्जारूपेण =लज्जा के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में लज्जा के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ४७-४९॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
शान्तिरूपेण = शान्ति के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में शान्ति के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५०-५२॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
श्रद्धारूपेण = श्रद्धा के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में श्रद्धा के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५३-५५॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
कान्तिरूपेण = कान्ति(चमक , सौंदर्य ) के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में कान्ति के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५६-५८॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
लक्ष्मीरूपेण = लक्ष्मी के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में लक्ष्मी के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५९-६१॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
वृत्तिरूपेण = वृत्ति के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में वृत्ति के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ६२-६४॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
स्मृतिरूपेण = स्मृति के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में स्मृति के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ६५-६७॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
दयारूपेण = दया के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में दया के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ६८-७०॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
तुष्टिरूपेण = तुष्टि के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में तुष्टि के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ७१-७३॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
मातृरूपेण = माता के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में माता के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ७४-७६॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
भ्रान्तिरूपेण = भ्रान्ति के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में भ्रान्ति के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या ।
भूतेषु सततं तस्यै व्याप्त्यै देव्यै नमो नमः ॥ ७७॥
इन्द्रियाणाम् अधिष्ठात्री = इन्द्रियों की अधिष्ठात्री(मुखिया ) हैं
भूतानां = प्राणियों की
च= और
अखिलेषु = सभी
या = जो
भूतेषु = प्राणियों में
सततं = सदा
तस्यै = उस
व्याप्त्यै= व्याप्त है
देव्यै = देवी को
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो सभी प्राणियों की इन्द्रियों की अधिष्ठात्री(मुखिया) हैं और सभी प्राणियों में सदा व्याप्त हैं , उस देवी को बारम्बार नमस्कार है ।
चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद् व्याप्य स्थिता जगत् ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ७८-८०॥
चितिरूपेण = चैतन्य रूप से
या = जो
कृत्स्नम्= कर के
एतत्= इस
व्याप्य = व्याप्त
स्थिता = स्थित हैं
जगत् = संसार को
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो चैतन्य रूप से इस जगत को व्याप्त करके स्थित हैं उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, बारम्बार नमस्कार है ।
स्तुता सुरैः पूर्वमभीष्टसंश्रया-
त्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता ।
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः ॥ ८१॥
स्तुता = स्तुति की
सुरैः = देवताओं ने
पूर्वम्= पूर्वकाल में
अभीष्टसंश्रयात् = अभीष्ट की प्राप्ति होने से
तथा = इसी प्रकार
सुरेन्द्रेण = देवराज इंद्र ने
दिनेषु = रोज
सेविता = सेवा की
करोतु = करे
सा = वह
नः = हमारा
शुभहेतु: ईश्वरी= कल्याण की साधनभूता ईश्वरी
शुभानि = कल्याण
भद्राण्य = मंगल करे
अभिहन्तु = नाश करे
च= और
आपदः = आपदाओं का
पूर्वकाल में अभीष्ट की प्राप्ति होने से देवताओं ने स्तुति की , इसी प्रकार देवराज न्द्र ने रोज़ सेवा की वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मंगल करे और आपदाओं का नाश करे ।
या साम्प्रतं चोद्धतदैत्यतापितै-
रस्माभिरीशा च सुरैर्नमस्यते ।
या च स्मृता तत्क्षणमेव हन्ति नः
सर्वापदो भक्तिविनम्रमूर्तिभिः ॥ ८२॥
या = जो
साम्प्रतं = अब
च = और
उद्धत दैत्य तापितै = उद्दंड दैत्यों से सताए हुए
अस्माभि:= हम
ईशा = ईश्वरी को
च = और
सुरै:= देवता
नमस्यते = नमस्कार करते हैं
या = जो
च = और
स्मृता = स्मरण करने पर
तत्क्षणम एव = उसी क्षण ही
हन्ति = नाश करे
नः= हमारी
सर्व आपदो = सभी आपदाओं का
भक्ति विनम्र मूर्तिभिः= भक्ति से विनम्र हो
और जो उद्दंड दैत्यों से सताए हुए हम देवताओं की ईश्वरी है और जो भक्ति से विनम्र हो स्मरण करने पर उसी क्षण ही हमारी सभी आपदाओं नष्ट करती है | (उसे हम ) इस समय नमस्कार करते हैं ।
ऋषिरुवाच ॥ ८३॥
ऋषि बोला ।
एवं स्तवाभियुक्तानां देवानां तत्र पार्वती ।
स्नातुमभ्याययौ तोये जाह्नव्या नृपनन्दन ॥ ८४॥
एवं = इस प्रकार
स्तवाभियुक्तानां = स्तुति करने पर
देवानां = देवताओं के द्वारा
तत्र= वहां
पार्वती= पार्वती
स्नातुम = स्नान के लिए
अभ्याययौ= आई
तोये = पानी में
जाह्नव्या= गंगा के
नृपनन्दन = हे राजा
हे राजा इस प्रकार देवताओं के द्वारा स्तुति करने पर पार्वती गंगा के पानी में स्नान करने के लिए वहां आई ।
साब्रवीत्तान् सुरान् सुभ्रूर्भवद्भिः स्तूयतेऽत्र का ।
शरीरकोशतश्चास्याः समुद्भूताब्रवीच्छिवा ॥ ८५॥
सा = वह
अब्रवीत् = बोली
तान् = उन
सुरान् = देवताओं से
सुभ्रू:= सुन्दर भोहों वाली
भवद्भिः = आप
स्तूयतेऽत्र = यहां स्तुति करते हैं
का = किस की
शरीरकोशत्= शरीर से
च = और
अस्याः = उसके
समुद्भूता= प्रकट हुई
अब्रवीत् = बोली
शिवा = शिवा देवी
सुन्दर भोहों वाली वह उन देवताओं से बोलीं , आप यहां किस की स्तुति करते हैं और उसके शरीर से प्रकट हुई शिवा देवी बोलीं ।
स्तोत्रं ममैतत्क्रियते शुम्भदैत्यनिराकृतैः ।
देवैः समेतैः समरे निशुम्भेन पराजितैः ॥ ८६॥
स्तोत्रं = स्तोत्र
मम एतत् = मेरा ये
क्रियते = कर रहे हैं
शुम्भदैत्य= शुम्भदैत्य से
निराकृतैः = अपमानित
देवैः = देवता
समेतैः = इकट्ठे हुए
समरे = युद्ध में
निशुम्भेन = निशुम्भ से
पराजितैः = पराजित हो
शुम्भदैत्य से अपमानित, युद्ध में निशुंभ से पराजित हो इकट्ठे हुए देवता मेरा ये स्तोत्र कर रहे हैं ।
शरीरकोशाद्यत्तस्याः पार्वत्या निःसृताम्बिका ।
कौशिकीति समस्तेषु ततो लोकेषु गीयते ॥ ८७॥
शरीरकोशात् = शरीर कोश से
यत् = क्यूंकि
तस्याः = उस
पार्वत्या = पार्वती के
निःसृत अम्बिका = अम्बिका प्रकट हुई
कौशिकी इति = कोशिकी , इस प्रकार
समस्तेषु = सारे
ततो = इसलिए
लोकेषु= लोकों में
गीयते = कही जाती है
क्यूंकि अम्बिका उस पार्वती के शरीरकोश से प्रकट हुई , इसलिए सारे लोकों में कौशिकी इस प्रकार कही जाती है ।
तस्यां विनिर्गतायां तु कृष्णाभूत्सापि पार्वती ।
कालिकेति समाख्याता हिमाचलकृताश्रया ॥ ८८॥
तस्यां = उस कौशिकी के
विनिर्गतायां = निकलने के बाद
तु = और
कृष्णाभूत् = काली हो गयी
सा अपि = वह भी
पार्वती = पार्वती
कालिकेति= कालिका देवी इस प्रकार
समाख्याता = विख्यात हुई
हिमाचलकृताश्रया = हिमाचल पर रहने वाली
और उस कौशिकी के निकलने के बाद वह पार्वती भी काली हो गयी , (और ) हिमाचल पर रहने वाली कालिका देवी इस प्रकार विख्यात हुईं ।
ततोऽम्बिकां परं रूपं बिभ्राणां सुमनोहरम् ।
ददर्श चण्डो मुण्डश्च भृत्यौ शुम्भनिशुम्भयोः ॥ ८९॥
ततो अम्बिकां = तब अम्बिका को
परं = परम
रूपं = रूप
बिभ्राणां = धारण करने वाली
सुमनोहरम् = मनोहर
ददर्श= देखा
चण्डो मुण्डश्च = चंड और मुंड ने
भृत्यौ शुम्भनिशुम्भयोः = शुम्भनिशुम्भ के सेवक
तब परम मनोहर रूप धारण करने वाली अम्बिका को शुम्भनिशुम्भ के सेवक चंड और मुंड ने देखा ।
ताभ्यां शुम्भाय चाख्याता सातीव सुमनोहरा ।
काप्यास्ते स्त्री महाराज भासयन्ती हिमाचलम् ॥ ९०॥
ताभ्यां = उनके द्वारा
शुम्भाय = शुम्भ को
आख्याता = बताया गया
च= और
सा= वह
अतीव = अत्यंत
सुमनोहरा = मनोहर
काप्यास्ते = का अपि = कोई
आस्ते = वहां है ,स्थित है
स्त्री = स्त्री
महाराज = हे महराज
भासयन्ती = प्रकाशित कर रही है
हिमाचलम् = हिमालय को
उनके द्वारा शुम्भ को बताया गया कि कोई अत्यंत मनोहर स्त्री वहां है जो हिमालय को प्रकाशित कर रही है ।
नैव तादृक् क्वचिद्रूपं दृष्टं केनचिदुत्तमम् ।
ज्ञायतां काप्यसौ देवी गृह्यतां चासुरेश्वर ॥ ९१॥
नैव = न एव = ना ही
तादृक् = उसके जैसा
क्वचित् = कहीं
रूपं = कोई रूप
दृष्टं = देखा
केनचित्= किसी का
उत्तमम् = उत्तम
ज्ञायतां = पता लगाइये
काप्य असौ = कौन यह
देवी = देवी है
गृह्यतां = ग्रहण करो
च= और
असुरेश्वर= असुरराज
उसके जैसा उत्तम रूप किसीका और कहीं नहीं देखा । हे असुरराज पता लगाइये यह देवी कौन है और ग्रहण कीजिये ।
स्त्रीरत्नमतिचार्वङ्गी द्योतयन्ती दिशस्त्विषा ।
सा तु तिष्ठति दैत्येन्द्र तां भवान् द्रष्टुमर्हति ॥ ९२॥
स्त्रीरत्नम् = स्त्रियों में रतन है
अतिचार्वङ्गी = अति चारु अंगी = अत्यंत सुन्दर अंगों की
द्योतयन्ती = प्रकाशित कर रही है
दिश:= दिशाओं को
त्विषा = चमक से
सा = वह
तु = = निश्चय ही
तिष्ठति = स्थित है
दैत्येन्द्र = दैत्यराज
तां = वह
भवान् = आप
द्रष्टुम् = देखने
अर्हति= योग्य है
वह स्त्रियों में रतन है , अत्यंत सुन्दर अंगों की चमक से दिशाओं को प्रकाशित करती हुई स्थित है , वह निश्चित ही आपके देखने योग्य है ।
यानि रत्नानि मणयो गजाश्वादीनि वै प्रभो ।
त्रैलोक्ये तु समस्तानि साम्प्रतं भान्ति ते गृहे ॥ ९३॥
यानि = जो भी
रत्नानि = रत्न
मणयो = मणि
गजाश्वादीनि = हाथी, घोड़े आदि
वै = वे
प्रभो = प्रभु
त्रैलोक्ये = तीनों लोक में
तु = निश्चित रूप से
समस्तानि = सब
साम्प्रतं = अब
भान्ति = चमक रहे हैं
ते = तुम्हारे
गृहे = घर में
तीनों लोकों में मणि, हाथी, घोड़े आदि जो भी रत्न हैं , वे वे सब निश्चित रूप से अब आपके घर में चमक रहे हैं ।
ऐरावतः समानीतो गजरत्नं पुरन्दरात् ।
पारिजाततरुश्चायं तथैवोच्चैःश्रवा हयः ॥ ९४॥
ऐरावतः = ऐरावतः
समानीतो = लिया गया
गजरत्नं = हाथियों में रत्न
पुरन्दरात् = इंद्र से
पारिजाततरु= पारिजात वृक्ष
च = और
अयं = यह
तथैव = वैसे ही
उच्चैःश्रवा = उच्चैःश्रवा
हयः= घोडा
इंद्र से लिया गया हाथियों में रत्न ऐरावत और यह पारिजात वृक्ष , वैसे ही उच्चैःश्रवा घोडा ।
विमानं हंससंयुक्तमेतत्तिष्ठति तेऽङ्गणे ।
रत्नभूतमिहानीतं यदासीद्वेधसोऽद्भुतम् ॥ ९५॥
विमानं = विमान
हंस संयुक्तम् एतत् = हंस से युक्त यह
तिष्ठति = स्थित है
ते अङ्गणे = आपके आँगन में
रत्नभूतम् = रत्न जड़ा
इह = यहां
आनीतं = लाया गया है
यदा = जो
आसीत्= था
वेधसो = ब्रह्मा का
अद्भुतम् = अद्भुत
हंसों से युक्त रत्नजड़ा अद्भुत विमान जो ब्रह्मा का था , यहां लाया गया आपके आँगन में स्थित है ।
निधिरेष महापद्मः समानीतो धनेश्वरात् ।
किञ्जल्किनीं ददौ चाब्धिर्मालामम्लानपङ्कजाम् ॥ ९६॥
निधि: = निधि
एष = ये
महापद्मः = महापद्म नामक
समानीतो = छीन लाये हैं
धनेश्वरात् = कुबेर से
किञ्जल्किनीं = किञ्जल्किनी
ददौ = दी है
च = और
अब्धि:= समुन्दर ने
मालाम्= माला
अम्लान पङ्कजाम् = न कुम्लाने वाले कमलों की
ये महापद्म नमक निधि कुबेर से छीन लाये हैं और समुन्दर ने ना कुम्लाने वाले कमलों की किञ्जल्किनीं माला दी है ।
छत्रं ते वारुणं गेहे काञ्चनस्रावि तिष्ठति ।
तथायं स्यन्दनवरो यः पुरासीत्प्रजापतेः ॥ ९७॥
छत्रं = छत्र
ते = और
वारुणं = वरुण का
गेहे = घर में
काञ्चनस्रावि = सोने की वर्षा करने वाला
तिष्ठति = स्थित है
तथा= इसी प्रकार
अयं = ये
स्यन्दन वरो = श्रेष्ठ रथ
यः = जो
पुरा आसीत्= पहले था
प्रजापतेः प्रजापति का
और वरुण का सोने की वर्षा करने वाला छत्र आपके घर में स्थित है , इसी प्रकार श्रेष्ठ रथ जो पाले प्रजापति का था ।
मृत्योरुत्क्रान्तिदा नाम शक्तिरीश त्वया हृता ।
पाशः सलिलराजस्य भ्रातुस्तव परिग्रहे ॥ ९८॥
मृत्यो: = यम से
उत्क्रान्तिदा = उत्क्रान्तिदा
नाम = नाम की
शक्ति: = शक्ति
ईश = हे ईश्वर
त्वया = तुमने
हृता = छीन ली है
पाशः = पाश
सलिलराजस्य= सलिल राज वरुण का
भ्रातु: भाई ने
तव = तुम्हारे
परिग्रहे = छीन लिया है
हे ईश्वर तुमने यम से उत्क्रान्तिदा नाम की शक्ति छीन ली है ,सलिल राज वरुण का पाश तुम्हारे भाई ने छीन लिया है ।
निशुम्भस्याब्धिजाताश्च समस्ता रत्नजातयः ।
वह्निरपि ददौ तुभ्यमग्निशौचे च वाससी ॥ ९९॥
निशुम्भस्य = निशुम्भ के
अब्धिजाता= समुन्दर से उत्पन्न
च = और
समस्ता =सब
रत्नजातयः = रत्नों के प्रकार
वह्नि: = अग्नि ने
अपि = भी
ददौ = दिए हैं
तुभ्यम् = तुम्हे
अग्निशौचे = अग्नि द्वारा शुद्ध किये
च = और
वाससी = वस्त्र
और निशुम्भ के पास समुन्दर से उत्पन्न सब रत्नों के प्रकार हैं और अग्नि ने भी अग्नि से शुद्ध वस्त्र तुम्हे दिए हैं ।
एवं दैत्येन्द्र रत्नानि समस्तान्याहृतानि ते ।
स्त्रीरत्नमेषा कल्याणी त्वया कस्मान्न गृह्यते ॥ १००॥
एवं = इस प्रकार
दैत्येन्द्र = दैत्यराज
रत्नानि = रत्न
समस्तानि = सब
आहृतानि = छीन लिए हैं
ते = तुमने
स्त्रीरत्नम् = स्त्रियों में रत्न
एषा= यह
कल्याणी = कल्याणी
त्वया = तुम्हारे द्वारा
कस्मात् न = किसलिए नहीं
गृह्यते अधिकृत की जाए
इस प्रकार तुमने दैत्यराज सब रत्न छीन लिए हैं , यह स्त्रियों में रत्न कल्याणी तुम्हारे द्वारा किसलिए नहीं अधिकृत की जाए ।
ऋषिरुवाच ॥ १०१॥
ऋषि बोला ।
निशम्येति वचः शुम्भः स तदा चण्डमुण्डयोः ।
प्रेषयामास सुग्रीवं दूतं देव्या महासुरम् ॥ १०२॥
निशम्येति = इस प्रकार सुन कर
वचः = वचन
शुम्भः = शुम्भ
स = वह
तदा = तब
चण्डमुण्डयोः = चण्डमुण्ड के
प्रेषयामास = पास भेजा
सुग्रीवं = सुग्रीव को
दूतं = दूत बना
देव्या = देवी के
महासुरम् = महासुर
चण्डमुण्ड के इस प्रकार के वचनों को सुनकर उस शुम्भ ने महासुर सुग्रीव को दूत बना कर देवी के पास भेजा ।
इति चेति च वक्तव्या सा गत्वा वचनान्मम ।
यथा चाभ्येति सम्प्रीत्या तथा कार्यं त्वया लघु ॥ १०३॥
इति चेति = इस प्रकार के
च = और
वक्तव्या = कहना
सा = उसको
गत्वा = जा कर
वचनान्मम = मेरे वचनों को
यथा = जिससे
च = और
अभ्येति = पास आ जाए
सम्प्रीत्या = प्रसन्न हो
तथा = ऐसा
कार्यं = करना है
त्वया = तुम्हें
लघु = शीघ्र
और जा कर उसको इस प्रकार के मेरे वचनों को कहना और ऐसा तुम्हें करना है जिससे प्रसन्न हो कर शीघ्र (मेरे) पास आ जाए ।
स तत्र गत्वा यत्रास्ते शैलोद्देशेऽतिशोभने ।
तां च देवीं ततः प्राह श्लक्ष्णं मधुरया गिरा ॥ १०४॥
स = वह
तत्र = वहां
गत्वा = जा कर
यत्र= जहां
आस्ते = स्थित थी
शैलोद्देशे = पर्वतीय प्रदेश में
अतिशोभने = अत्यंत सुन्दर
तां = उसे
च = और
देवीं = देवी को
ततः = तब ,
प्राह = बोला
श्लक्ष्णं = कोमलता से
मधुरया = मीठी
गिरा = आवाज़ में
और वह वहां अत्यंत सुन्दर पर्वतीय प्रदेश में जा कर जहां देवी स्थित थी , उस देवी को तब मीठी वाणी में कोमलता से बोला ।
दूत उवाच ॥ १०५॥
दूत बोला ।
देवि दैत्येश्वरः शुम्भस्त्रैलोक्ये परमेश्वरः ।
दूतोऽहं प्रेषितस्तेन त्वत्सकाशमिहागतः ॥ १०६॥
देवि = हे देवी
दैत्येश्वरः = दैत्य राज
शुम्भ: = शुम्भ
त्रैलोक्ये = तीनों लोकों के
परमेश्वरः = स्वामी हैं
दूतः अहम् = मैं दूत हूँ
प्रेषित:= भेजा गया
तेन = उनके द्वारा
त्वत्सकाशम् = तुम्हारे पास
इह= यहां
आगतः= आया हूँ
हे देवी दैत्य राज शुम्भ तीनों लोकों के स्वामी हैं मैं उनके द्वारा भेजा गया दूत तुम्हारे पास यहां आया हूँ ।
अव्याहताज्ञः सर्वासु यः सदा देवयोनिषु ।
निर्जिताखिलदैत्यारिः स यदाह शृणुष्व तत् ॥ १०७॥
अव्याहता = पालन होता है
आज्ञः = आज्ञा का
सर्वासु = सब
यः = जिसकी
सदा = सदा
देवयोनिषु = देवताओं द्वारा
निर्जिता = अपराजित
अखिलदैत्यारिः = सभी देवताओ से
स = उसने
यत् आह = जो कहा
शृणुष्व = सुनो
तत् = वह
सब देवताओं द्वारा जिसकी आज्ञा का पालन होता है , सभी देवताओ से अपराजित उसने जो कहा वह सुनो ।
मम त्रैलोक्यमखिलं मम देवा वशानुगाः ।
यज्ञभागानहं सर्वानुपाश्नामि पृथक् पृथक् ॥ १०८॥
मम = मेरे हैं
त्रैलोक्यम= तीनों लोक
अखिलं = सब
मम = मेरे
देवा = देवता
वशानुगाः= आज्ञाकारी हैं
यज्ञभागान् = यज्ञ भागों को
अहं = मैं
सर्वान् = सब
उपाश्नामि = प्राप्त करता हूँ
पृथक् पृथक् =अलग अलग
तीनों लोक मेरे हैं , सब देवता मेरे आज्ञाकारी हैं , सारे यज्ञ के भागों को मैं ही अलग अलग प्राप्त करता हूँ ।
त्रैलोक्ये वररत्नानि मम वश्यान्यशेषतः ।
तथैव गजरत्नं च हृतं देवेन्द्रवाहनम् ॥ १०९॥
त्रैलोक्ये = तीनों लोकों के
वररत्नानि = श्रेष्ठ रत्न
मम = मेरे
वश्यान् - वश में हैं
अशेषतः = सारे
तथैव = इसी प्रकार ही
गजरत्नं = हाथियों में रत्न
च = और
हृतं = छीन लिया है
देवेन्द्रवाहनम् = इंद्र का वाहन , ऐरावत
तीनों लोकों के श्रेष्ठ रतन मेरे वश में हैं और हाथियों में रत्न इंद्र का वाहन , ऐरावत छीन लिया है ।
क्षीरोदमथनोद्भूतमश्वरत्नं ममामरैः ।
उच्चैःश्रवससंज्ञं तत्प्रणिपत्य समर्पितम् ॥ ११०॥
क्षीरोदमथन्= समुन्दर मंथन से
उद्भूतम् = प्रकट हुआ
अश्वरत्नं = अश्वों में रत्न
मम = मुझे
अमरैः = देवताओं ने
उच्चैःश्रवस संज्ञं = उच्चैःश्रवस नाम का
तत्= वह
प्रणिपत्य = झुक कर
समर्पितम् = समर्पित कर दिया
समुन्दर मंथन से प्रकट हुआ उच्चैःश्रवस नाम का वह अश्वरत्न देवताओं ने झुक कर मुझे समर्पित कर दिया ।
यानि चान्यानि देवेषु गन्धर्वेषूरगेषु च ।
रत्नभूतानि भूतानि तानि मय्येव शोभने ॥ १११॥
यानि = जितने
च= और
अन्यानि = अन्य
देवेषु = देवताओं
गन्धर्वेषु=गन्धर्वों
उरगेषु = नागों
च = और
रत्नभूतानि = रत्नभूत
भूतानि = पदार्थ
तानि = वे
मय्येव = मेरे ही
शोभने= हे सुंदरी
हे सुंदरी और जितने अन्य रत्नभूत पदार्थ देवताओं, गन्धर्वों और नागों के पास थे , वे मेरे ही पास हैं ।
स्त्रीरत्नभूतां त्वां देवि लोके मन्यामहे वयम् ।
सा त्वमस्मानुपागच्छ यतो रत्नभुजो वयम् ॥ ११२॥
स्त्रीरत्नभूतां = स्त्रियों में रत्न हो
त्वां = तुम
देवि = देवी
लोके = संसार में
मन्यामहे = हम सोचते हैं , मानते हैं
वयम् = हम
सा = ऐसी , वह
त्वम्= तुम
अस्मान् = हमारे
उपागच्छ = पास आ जाओ
यतो = क्यों कि
रत्नभुजो = रत्नों को भोगने वाले
वयम् = हम
देवी हम मानते है तुम संसार में स्त्रियों में रत्न हो , ऐसी तुम हमारे पास आ जाओ , क्यों कि हम रत्नों को भोगने वाले हम हैं ।
मां वा ममानुजं वापि निशुम्भमुरुविक्रमम् ।
भज त्वं चञ्चलापाङ्गि रत्नभूतासि वै यतः ॥ ११३॥
मां = मेरी
वा = या
ममानुजं = मेरे भाई
वापि = या
निशुम्भम् उरुविक्रमम्= महा पराक्रमी निशुम्भ की
भज = शरण में आ जाओ
त्वं = तुम
चञ्चलापाङ्गि = चंचल नेत्रों वाली
रत्नभूतासि = रत्न हो
वै = भी
यतः= जो
हे चंचल नेत्रों वाली जो तुम भी रत्न हो , या मेरी या मेरे पराक्रमी भाई निशुम्भ की शरण में आ जाओ ।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यसे मत्परिग्रहात् ।
एतद्बुद्ध्या समालोच्य मत्परिग्रहतां व्रज ॥ ११४॥
परम ऐश्वर्यम् = महान ऐश्वर्य की
अतुलं = तुलनारहित
प्राप्स्यसे = प्राप्ति होगी
मत्परिग्रहात् = मेरा वरन करने से
एतत् = यह
बुद्ध्या= बुद्धि से
समालोच्य = विचार कर
मत्परिग्रहतां = मेरा वरन करने के लिए
व्रज = बढ़ो , प्राप्त करो
मेरा वरन करने से तुलनारहित महान ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी , यह बुद्धि से विचार कर मेरे वरन करने के लिए बढ़ो ।
ऋषिरुवाच ॥ ११५॥
ऋषि बोला ।
इत्युक्ता सा तदा देवी गम्भीरान्तःस्मिता जगौ ।
दुर्गा भगवती भद्रा ययेदं धार्यते जगत् ॥ ११६॥
इत्युक्ता इति उक्ता = इस प्रकार कहे जाने पर
सा = वह
तदा = तब
देवी = देवी
गम्भीरान्तःस्मिता= मन में गंभीरता से हंसी
जगौ = बोली
दुर्गा = दुर्गा
भगवती = भगवती
भद्रा = कल्याणमयी
ययेदं = यत इदं = जो इस
धार्यते = धारण करती है
जगत् = जगत को
(दूत द्वारा) इस प्रकार कहे जाने पर तब वह कल्याणमयी भगवती दुर्गा देवी जो इस जगत को धारण करती है मन में गंभीरता से हंसी और बोली ।
देव्युवाच ॥ ११७॥
देवी बोलीं ।
सत्यमुक्तं त्वया नात्र मिथ्या किञ्चित्त्वयोदितम् ।
त्रैलोक्याधिपतिः शुम्भो निशुम्भश्चापि तादृशः ॥ ११८॥
सत्यम् उक्तं = सत्य कहा है
त्वया = उमने
न = नही
अत्र = यहां
मिथ्या = झूट
किञ्चित्= कुछ
त्वया = तुम्हारे
उदितम् = कहे में
त्रैलोक्य अधिपतिः= तीनों लोकों के स्वामी
शुम्भो = शुम्भ
निशुम्भश्चापि = निशुंभ भी
तादृशः= वैसे ही हैं
तुमने सत्य कहा है , यहां तुम्हारे कहे में कुछ झूट नहीं है , शुम्भ तीनों लोकों के स्वामी हैं और निशुम्भ भी वैसे ही हैं ।
किं त्वत्र यत्प्रतिज्ञातं मिथ्या तत्क्रियते कथम् ।
श्रूयतामल्पबुद्धित्वात्प्रतिज्ञा या कृता पुरा ॥ ११९॥
किंतु = परन्तु
अत्र = यहां (इस विषय में )
यत् प्रतिज्ञातं = जो प्रतिज्ञा की है
मिथ्या = झूट
तत् = वह
क्रियते = करूँ
कथम्= कैसे
श्रूयताम्= सुनो
अल्पबुद्धित्वात् = अल्प बुद्धि के कारण
प्रतिज्ञा= प्रतिज्ञा
या = जो
कृता = की है
पुरा = पहले
परन्तु यहां (इस विषय में ) जो प्रतिज्ञा की है वह झूट कैसे करूँ , अल्प बुद्धि के कारण पहले जो प्रतिज्ञा की है वह सुनो ।
यो मां जयति सङ्ग्रामे यो मे दर्पं व्यपोहति ।
यो मे प्रतिबलो लोके स मे भर्ता भविष्यति ॥ १२०॥
यो = जो
मां = मुझे
जयति = जीतेगा
सङ्ग्रामे = युद्ध में
यो मे = जो मेरे
दर्पं = घमंड को
व्यपोहति = खंडित करेगा
यो मे = जो मेरे
प्रतिबलो = समान बलि होगा
लोके = संसार में
स मे = वो मेरा
भर्ता = पति
भविष्यति = होगा
जो मुझे युद्ध में जीतेगा, जो मेरे घमंड को खंडित करेगा , जो संसार में मेरे समान बाली होगा वो मेरा पति होगा ।
तदागच्छतु शुम्भोऽत्र निशुम्भो वा महाबलः ।
मां जित्वा किं चिरेणात्र पाणिं गृह्णातु मे लघु ॥ १२१॥
तदा = तब
आगच्छतु = आ कर
शुम्भो= शुम्भ
अत्र = यहाँ
निशुम्भो = निशुम्भ
वा = अथवा
महाबलः = महाबली
मां = मुझे
जित्वा = जीत कर
किं चिरेण अत्र = यहां देर क्या है
पाणिं = हाथ
गृह्णातु = ग्रहण कर ले
मे = मेरा
लघु= शीघ्र
तब शुम्भ अथवा महाबली निशुम्भ यहां आ कर मुझे जीत कर शीघ्र मेरा हाथ ग्रहण कर लें , इसमें देर क्या है ?
दूत उवाच ॥ १२२॥
दूत बोला ।
अवलिप्तासि मैवं त्वं देवि ब्रूहि ममाग्रतः ।
त्रैलोक्ये कः पुमांस्तिष्ठेदग्रे शुम्भनिशुम्भयोः ॥ १२३॥
अवलिप्तासि = घमंडी
मा =नहीं
एवं = ऐसा
त्वं = तुम
देवि = देवी
ब्रूहि = कहो
ममाग्रतः = मेरे आगे
त्रैलोक्ये तीनों लोकों में
कः = कौन
पुमां = मनुष्य
तिष्ठेत् = ठहरता है
अग्रे = आगे
शुम्भनिशुम्भयोः = शुम्भ निशुम्भ के
देवी तुम घमंडी हो , मेरे आगे ऐसा न कहो , तीनों लोकों में कौन मनुष्य शुम्भ निशुम्भ के आगे ठहर सकता है ?
अन्येषामपि दैत्यानां सर्वे देवा न वै युधि ।
तिष्ठन्ति सम्मुखे देवि किं पुनः स्त्री त्वमेकिका ॥ १२४॥
अन्य एषाम = इन दूसरे
अपि= भी
दैत्यानां = दैत्यों के
सर्वे = सभी
देवा = देवता
न = नहीं
वै = निश्चित रूप से
युधि = युद्ध में
तिष्ठन्ति = ठहरते
सम्मुखे = आगे
देवि = देवी
किं पुनः तवं= फिर तुम्हारा क्या
स्त्री तवं ऐकिका= अकेली स्त्री
निश्चित ररप से सभी देवता इन दूसरे दैत्यों के सामने भी युद्ध में नहीं ठहरते , देवी तुम अकेली स्त्री हो तुम्हारा क्या ?
इन्द्राद्याः सकला देवास्तस्थुर्येषां न संयुगे ।
शुम्भादीनां कथं तेषां स्त्री प्रयास्यसि सम्मुखम् ॥ १२५॥
इन्द्राद्याः = इंद्र आदि
सकला= सभी
देवा: = देवता
तस्थु: = खड़े होते
येषां = जिन
न = नहीं
संयुगे = साथ
शुम्भादीनां =शुम्भ आदि के
कथं = कैसे
तेषां = उसके
स्त्री = स्त्री
प्रयास्यसि = प्रयास
सम्मुखम् = आगे
इंद्र आदि देवता जिन शुम्भ आदि के साथ नहीं खड़े होते , उसके आगे स्त्री कैसे प्रयास करेगी ।
सा त्वं गच्छ मयैवोक्ता पार्श्वं शुम्भनिशुम्भयोः ।
केशाकर्षणनिर्धूतगौरवा मा गमिष्यसि ॥ १२६॥
सा = वह
त्वं = तुम
गच्छ = जाओ
मयैवोक्ता = मयि उक्त = मेरे कहने से
पार्श्वं = पास
शुम्भनिशुम्भयोः = शुम्भ निशुम्भ के
केशाकर्षण = बालों से खींचने पर
निर्धूतगौरवा = प्रतिष्ठा खो कर
मा = नहीं तो
गमिष्यसि = जाओगी
वह तुम मेरे कहने से शुम्भ निशुम्भ के पास चली जाओ , नहीं तो बालों से खींचने पर प्रतिष्ठा खो कर जाओगी ।
देव्युवाच ॥ १२७॥
देवी बोलीं ।
एवमेतद् बली शुम्भो निशुम्भश्चापितादृशः ।
किं करोमि प्रतिज्ञा मे यदनालोचिता पुरा ॥ १२८॥
एवमेतद् = ऐसा ही है
बली = बलवान
शुम्भो = शुम्भ
निशुम्भ:= निशुम्भ
च = और
अति = अत्यंत
वीर्यवान्= पराक्रमी
किं करोमि = क्या करूँ
प्रतिज्ञा = प्रतिज्ञा ली है
मे = मैंने
यद = जो
अनालोचिता = बिना सोचे
पुरा = पहले
ऐसा ही है , शुभ बलवान है और निशुम्भ भी अति पराक्रमी है , क्या करूँ मैंने पहले बिना सोचे प्रतिज्ञा ले ली है ।
स त्वं गच्छ मयोक्तं ते यदेतत्सर्वमादृतः ।
तदाचक्ष्वासुरेन्द्राय स च युक्तं करोतु यत् ॥ १२९॥
स त्वं = इसलिए तुम
गच्छ = जाओ
मयोक्तं मया उक्तं = मेरे द्वारा कहा गया
ते = तुम्हे
यत् = जो
एतत् = वो
सर्वं = सब
आदृत : = आदर से
तदा= तब
आचक्ष्वा = बोलना
असुरेन्द्राय = असुरराज से
स च = और वह
युक्तं = सही है
करोतु = करें
यत् = जो
इसलिए तुम जाओ , मेरे द्वारा तुम्हे जो कहा गया है वो सब आदर से असुरराज से बोलना , और वह तब जो सही है करें ।
॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
देव्या दूतसंवादो नाम पञ्चमोऽध्यायः ॥ ५॥
अस्य श्री उत्तरचरित्रस्य रुद्र ऋषिः ।
श्रीमहासरस्वती देवता ।
अनुष्टुप् छन्दः । भीमा शक्तिः । भ्रामरी बीजम् ।
सूर्यस्तत्त्वम् ।
सामवेदः स्वरूपम् । श्रीमहासरस्वतीप्रीत्यर्थे
उत्तरचरित्रपाठे
विनियोगः ।
ध्यानम्
घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम् ।
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-
पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम् ॥
घण्टाशूलहलानि =घंटा , शूल , हल
शङ्खमुसले = शंख , मूसल
चक्रं धनुः सायकं= चक्र, धनुष। तीर
हस्ताब्जै: दधतीं = कर कमलों में धारण करती है
घनान्त = शरद ऋतु के
विलसत् शीतांशुतुल्यप्रभाम् = चमकते चाँद के सामान प्रभा वाली
गौरीदेहसमुद्भवां = गौरी के शरीर से प्रकट हुई
त्रिजगताम् आधारभूतां = तीनों जगतों की आधारभूता
महापूर्वामत्र
सरस्वतीमनुभजे = सरस्वती का भजन करता / करती हूँ
शुम्भादिदैत्यार्दिनीम् = शुम्भ आदि दैत्यों का नाश करने वाली
अपने करकमलों में घंटा , शूल , हल, शंख , मूसल, चक्र, धनुष, तीर धारण करने वाली , शरद ऋतु के चमकते चाँद के सामान प्रभा वाली , गौरी के शरीर से प्रकट हुई , तीनों जगतों की आधारभूता, शुम्भ आदि दैत्यों का नाश करने वाली सरस्वती का भजन करता / करती हूँ ।
ॐ क्लीं ऋषिरुवाच ॥ १॥
ऋषि बोले ।
पुरा शुम्भनिशुम्भाभ्यामसुराभ्यां शचीपतेः ।
त्रैलोक्यं यज्ञभागाश्च हृता मदबलाश्रयात् ॥ २॥
पुरा = पूर्व काल में
शुम्भनिशुम्भाभ्याम असुराभ्यां = शुम्भ और निशुम्भ असुरों ने
शचीपतेः= शची के पति इंद्र से
त्रैलोक्यं = तीनों लोकों को
यज्ञभागाश्च = और यज्ञ भाग को
हृता = छीन लिया
मदबलाश्रयात्= बल के घमंड में आकर
पूर्व काल में शुम्भ और निशुम्भ असुरों ने बल के घमंड में आकर शची के पति इंद्र से तीनों लोकों को और यज्ञ भाग को छीन लिया ।
तावेव सूर्यतां तद्वदधिकारं तथैन्दवम् ।
कौबेरमथ याम्यं च चक्राते वरुणस्य च ॥ ३॥
तावेव = वे दोनों ही
सूर्यतां = सूर्य का
तद्वत् =उसी प्रकार
अधिकारं = अधिकारों का
तथा = इसी प्रकार
एन्दवम् = चन्द्रमा
कौबेरम = कुबेर का
अथ = तब
याम्यं = यम का
च = और
चक्राते = सञ्चालन करने लगे
वरुणस्य = वरुण का
च =और
उसी प्रकार वे दोनों ही सूर्य के , इसी प्रकार चन्द्रमा , तब कुबेर और याम के और वरुण के अधिकारों का सञ्चालन करने लगे ।
तावेव पवनर्द्धिं च चक्रतुर्वह्निकर्म च ।
तावेव = वे दोनों ही
पवनर्द्धिं = वायु
च = और
चक्रतु: = करने लगे
वह्निकर्म च = और आग के कार्य
और वे दोनों ही वायु और अग्नि के कार्यों को करने लगे ।
ततो देवा विनिर्धूता भ्रष्टराज्याः पराजिताः ॥ ४॥
ततो = तब
देवा = देवताओं को
विनिर्धूता : = निकाल दिया गया
भ्रष्टराज्याः = राज्यभ्रष्ट
पराजिताः= पराजित
तब पराजित देवताओं को राष्ट्रभ्रष्ट कर निकाल दिया गया ।
हृताधिकारास्त्रिदशास्ताभ्यां सर्वे निराकृताः ।
महासुराभ्यां तां देवीं संस्मरन्त्यपराजिताम् ॥ ५॥
हृताधिकारा: = अधिकार हीन
त्रिदशास्ताभ्यां = देवताओं ने
सर्वे = सब
निराकृताः= अपमानित , निकाले गए
महासुराभ्यां= दोनों महान असुरों द्वारा
तां = उस
देवीं = देवी का
संस्मरन्त्ति = स्मरण किया
अपराजिताम् = अपराजिता
दोनों महान असुरों द्वारा निकाले गए अधिकार हीन देवताओं ने उस अपराजिता देवी का स्मरण किया ।
तयास्माकं वरो दत्तो यथापत्सु स्मृताखिलाः ।
भवतां नाशयिष्यामि तत्क्षणात्परमापदः ॥ ६॥
तया = उसने
अस्माकं = हमें
वरो = वरदान
दत्तो = दिया था
यथा = जिस प्रकार , कि
आपत्सु = आपत्ति के समय
स्मृता = स्मरण करने पर
अखिलाः = सभी
भवतां = भविष्य में
नाशयिष्यामि = नाश करुँगी
तत्क्षणात्= उसी क्षण
परमापदः= परम आपदाओं का
उसने हमे वरदान दिया था कि भविष्य में आपत्ति के समय स्मरण करने पर उसी क्षण सभी परम आपदाओं का नाश करुँगी ।
इति कृत्वा मतिं देवा हिमवन्तं नगेश्वरम् ।
जग्मुस्तत्र ततो देवीं विष्णुमायां प्रतुष्टुवुः ॥ ७॥
इति = इस प्रकार
कृत्वा = कर
मतिं = सोच
देवा = देवता
हिमवन्तं = हिमालय पर
नगेश्वरम् = गिरिराज
जग्मु:= गए
तत्र = वहाँ
ततो = तब
देवीं = देवी
विष्णुमायां = विष्णुमाया की
प्रतुष्टुवुः -= स्तुति की
इस प्रकार सोच कर देवता गिरिराज हिमालय पर गए । तब वहाँ देवी विष्णुमाया की स्तुति की ।
देवा ऊचुः ॥ ८॥
देवता बोले ।
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ॥ ९॥
नमो = नमन है
देव्यै = देवी को
महादेव्यै = महा देवी को
शिवायै= कल्याणकारी देवी को
सततं = हमेशा
नमः = नमन करते हैं
नमः = नमन
प्रकृत्यै = प्रकृति (सृजन का मूल ) को
भद्रायै = भद्रा(शुभ ) को
नियताः = एकाग्रता से
प्रणताः = प्रणाम करते हैं
स्म = हमेशा
ताम् = उसे
देवी को नमन है , कल्याणकारी महादेवी को हमेशा नमन है , प्रकृति, भद्रा को नमन है , उस देवी को हम एकाग्रता से हमेशा प्रणाम करते हैं ।
रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै नमो नमः ।
ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नमः ॥ १०॥
रौद्रायै = रौद्रा को
नमो = नमन है
नित्यायै = नित्या
गौर्यै = गौरी को
धात्र्यै = धात्री को
नमो नमः = नमन है नमन है
ज्योत्स्नायै = ज्योत्सनामयी
चेन्दुरूपिण्यै = चन्द्ररूपणी
सुखायै = सुख स्वरूपा को
सततं नमः = लगातार नमन है
रौद्रा को नमन है ,नित्या, गौरी को, धात्री को नमन है नमन है।ज्योत्सत्सनामयी , चन्द्ररूपणी , सुख स्वरूपा को लगातार नमन है ।
कल्याण्यै प्रणता वृद्ध्यै सिद्ध्यै कुर्मो नमो नमः ।
नैरृत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः ॥ ११॥
कल्याण्यै = कल्याण कारी
प्रणता = प्रणाम है
वृद्ध्यै = वृद्धि
सिद्ध्यै = सिद्धि
कुर्मो = आधार
नमो नमः = नमन है नमन है
नैरृत्यै = राक्षसों की नैऋति
भूभृतां = राजाओं की
लक्ष्म्यै = लक्ष्मी
शर्वाण्यै = शर्वाणी
ते = आपको
नमो नमः = नमन है नमन है
कल्याणकारी देवी को प्रणाम है , वृद्धि और सिद्धि की आधार देवी को नमन है, नमन है , नैऋति, राजाओं की लक्ष्मी , शिवपत्नी आपको नमन है, नमन है ।
दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै ।
ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ॥ १२॥
दुर्गायै = दुर्गा
दुर्गपारायै = दुर्गपारा (संकट में पार उतारने वाली)
सारायै = सारा (सारभूत )
सर्वकारिण्यै = सर्वकारिणी
ख्यात्यै = ख्याति
तथैव = इसी प्रकार ही
कृष्णायै=कृष्णा
धूम्रायै = धूम्रा देवी को
सततं नमः = हमेशा नमन है
दुर्गायै = दुर्गा, दुर्गपारा (संकट में पार उतारने वाली), सारा (सारभूत ), सर्वकारिणी , ख्याति, इसी प्रकार ही कृष्णा, धूम्रा देवी को हमेशा नमन है ।
अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नमः ।
नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नमः ॥ १३॥
अति सौम्य = अत्यंत सौम्य
अतिरौद्रायै = अत्यंत रौद्र रूपा
नतास्तस्यै = उसको नमस्कार करते है
नमो नमः = बार बार नमन करते हैं
नमो = नमन है
जगत्प्रतिष्ठायै = जगत की आधारभूता
देव्यै = देवी को
कृत्यै = करते हैं
नमो नमः = बार बार नमन
अत्यंत सौम्य , अत्यंत रौद्र रूपा उसको नमस्कार करते है , बार बार नमन करते हैं , जगत की आधारभूता को नमन है , देवी को बार बार नमन है ।
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ १४-१६॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
विष्णुमायेति विष्णु माया इति = विष्णुमाया इस प्रकार
शब्दिता = कही जाती है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में विष्णुमाया इसप्रकार कही जाती है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ १७-१९॥
या देवी सर्वभूतेषु = जो देवी सब प्राणियों में
चेतन: इति अभिधीयते = चेतना इस प्रकार कहलाती है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में चेतना इस प्रकार कहलाती है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ २०-२२॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
बुद्धिरूपेण = बुद्धि के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में बुद्धि के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ २३-२५॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
निद्रारूपेण = निद्रा के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में निद्रा के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ २६-२८॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
क्षुधारूपेण = भूख के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में भूख के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु छायारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ २९-३१॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
छायारूपेण = छाया के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में छाया के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ३२-३४॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
शक्तिरूपेण = शक्ति के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में शक्ति के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ३५-३७॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
तृष्णारूपेण = तृष्णा के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में तृष्णा के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ३८-४०॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
क्षान्तिरूपेण = क्षमा के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में क्षमा के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ४१-४३॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
जातिरूपेण = जाति के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में जाति के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ४४-४६॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
लज्जारूपेण =लज्जा के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में लज्जा के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ४७-४९॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
शान्तिरूपेण = शान्ति के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में शान्ति के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५०-५२॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
श्रद्धारूपेण = श्रद्धा के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में श्रद्धा के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५३-५५॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
कान्तिरूपेण = कान्ति(चमक , सौंदर्य ) के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में कान्ति के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५६-५८॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
लक्ष्मीरूपेण = लक्ष्मी के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में लक्ष्मी के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५९-६१॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
वृत्तिरूपेण = वृत्ति के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में वृत्ति के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ६२-६४॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
स्मृतिरूपेण = स्मृति के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में स्मृति के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ६५-६७॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
दयारूपेण = दया के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में दया के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ६८-७०॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
तुष्टिरूपेण = तुष्टि के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में तुष्टि के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ७१-७३॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
मातृरूपेण = माता के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में माता के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ७४-७६॥
या = जो
देवी = देवी
सर्वभूतेषु = सब प्राणियों में
भ्रान्तिरूपेण = भ्रान्ति के रूप में
संस्थिता = स्थित है
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो देवी सब प्राणियों में भ्रान्ति के रूप में स्थित है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है , उसको नमस्कार है ,बारम्बार नमस्कार है ।
इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या ।
भूतेषु सततं तस्यै व्याप्त्यै देव्यै नमो नमः ॥ ७७॥
इन्द्रियाणाम् अधिष्ठात्री = इन्द्रियों की अधिष्ठात्री(मुखिया ) हैं
भूतानां = प्राणियों की
च= और
अखिलेषु = सभी
या = जो
भूतेषु = प्राणियों में
सततं = सदा
तस्यै = उस
व्याप्त्यै= व्याप्त है
देव्यै = देवी को
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो सभी प्राणियों की इन्द्रियों की अधिष्ठात्री(मुखिया) हैं और सभी प्राणियों में सदा व्याप्त हैं , उस देवी को बारम्बार नमस्कार है ।
चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद् व्याप्य स्थिता जगत् ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ७८-८०॥
चितिरूपेण = चैतन्य रूप से
या = जो
कृत्स्नम्= कर के
एतत्= इस
व्याप्य = व्याप्त
स्थिता = स्थित हैं
जगत् = संसार को
नमस्तस्यै= नमः तस्यै = उसको नमस्कार है
नमो नमः = बारम्बार नमस्कार है
जो चैतन्य रूप से इस जगत को व्याप्त करके स्थित हैं उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, उसको नमस्कार है, बारम्बार नमस्कार है ।
स्तुता सुरैः पूर्वमभीष्टसंश्रया-
त्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता ।
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः ॥ ८१॥
स्तुता = स्तुति की
सुरैः = देवताओं ने
पूर्वम्= पूर्वकाल में
अभीष्टसंश्रयात् = अभीष्ट की प्राप्ति होने से
तथा = इसी प्रकार
सुरेन्द्रेण = देवराज इंद्र ने
दिनेषु = रोज
सेविता = सेवा की
करोतु = करे
सा = वह
नः = हमारा
शुभहेतु: ईश्वरी= कल्याण की साधनभूता ईश्वरी
शुभानि = कल्याण
भद्राण्य = मंगल करे
अभिहन्तु = नाश करे
च= और
आपदः = आपदाओं का
पूर्वकाल में अभीष्ट की प्राप्ति होने से देवताओं ने स्तुति की , इसी प्रकार देवराज न्द्र ने रोज़ सेवा की वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मंगल करे और आपदाओं का नाश करे ।
या साम्प्रतं चोद्धतदैत्यतापितै-
रस्माभिरीशा च सुरैर्नमस्यते ।
या च स्मृता तत्क्षणमेव हन्ति नः
सर्वापदो भक्तिविनम्रमूर्तिभिः ॥ ८२॥
या = जो
साम्प्रतं = अब
च = और
उद्धत दैत्य तापितै = उद्दंड दैत्यों से सताए हुए
अस्माभि:= हम
ईशा = ईश्वरी को
च = और
सुरै:= देवता
नमस्यते = नमस्कार करते हैं
या = जो
च = और
स्मृता = स्मरण करने पर
तत्क्षणम एव = उसी क्षण ही
हन्ति = नाश करे
नः= हमारी
सर्व आपदो = सभी आपदाओं का
भक्ति विनम्र मूर्तिभिः= भक्ति से विनम्र हो
और जो उद्दंड दैत्यों से सताए हुए हम देवताओं की ईश्वरी है और जो भक्ति से विनम्र हो स्मरण करने पर उसी क्षण ही हमारी सभी आपदाओं नष्ट करती है | (उसे हम ) इस समय नमस्कार करते हैं ।
ऋषिरुवाच ॥ ८३॥
ऋषि बोला ।
एवं स्तवाभियुक्तानां देवानां तत्र पार्वती ।
स्नातुमभ्याययौ तोये जाह्नव्या नृपनन्दन ॥ ८४॥
एवं = इस प्रकार
स्तवाभियुक्तानां = स्तुति करने पर
देवानां = देवताओं के द्वारा
तत्र= वहां
पार्वती= पार्वती
स्नातुम = स्नान के लिए
अभ्याययौ= आई
तोये = पानी में
जाह्नव्या= गंगा के
नृपनन्दन = हे राजा
हे राजा इस प्रकार देवताओं के द्वारा स्तुति करने पर पार्वती गंगा के पानी में स्नान करने के लिए वहां आई ।
साब्रवीत्तान् सुरान् सुभ्रूर्भवद्भिः स्तूयतेऽत्र का ।
शरीरकोशतश्चास्याः समुद्भूताब्रवीच्छिवा ॥ ८५॥
सा = वह
अब्रवीत् = बोली
तान् = उन
सुरान् = देवताओं से
सुभ्रू:= सुन्दर भोहों वाली
भवद्भिः = आप
स्तूयतेऽत्र = यहां स्तुति करते हैं
का = किस की
शरीरकोशत्= शरीर से
च = और
अस्याः = उसके
समुद्भूता= प्रकट हुई
अब्रवीत् = बोली
शिवा = शिवा देवी
सुन्दर भोहों वाली वह उन देवताओं से बोलीं , आप यहां किस की स्तुति करते हैं और उसके शरीर से प्रकट हुई शिवा देवी बोलीं ।
स्तोत्रं ममैतत्क्रियते शुम्भदैत्यनिराकृतैः ।
देवैः समेतैः समरे निशुम्भेन पराजितैः ॥ ८६॥
स्तोत्रं = स्तोत्र
मम एतत् = मेरा ये
क्रियते = कर रहे हैं
शुम्भदैत्य= शुम्भदैत्य से
निराकृतैः = अपमानित
देवैः = देवता
समेतैः = इकट्ठे हुए
समरे = युद्ध में
निशुम्भेन = निशुम्भ से
पराजितैः = पराजित हो
शुम्भदैत्य से अपमानित, युद्ध में निशुंभ से पराजित हो इकट्ठे हुए देवता मेरा ये स्तोत्र कर रहे हैं ।
शरीरकोशाद्यत्तस्याः पार्वत्या निःसृताम्बिका ।
कौशिकीति समस्तेषु ततो लोकेषु गीयते ॥ ८७॥
शरीरकोशात् = शरीर कोश से
यत् = क्यूंकि
तस्याः = उस
पार्वत्या = पार्वती के
निःसृत अम्बिका = अम्बिका प्रकट हुई
कौशिकी इति = कोशिकी , इस प्रकार
समस्तेषु = सारे
ततो = इसलिए
लोकेषु= लोकों में
गीयते = कही जाती है
क्यूंकि अम्बिका उस पार्वती के शरीरकोश से प्रकट हुई , इसलिए सारे लोकों में कौशिकी इस प्रकार कही जाती है ।
तस्यां विनिर्गतायां तु कृष्णाभूत्सापि पार्वती ।
कालिकेति समाख्याता हिमाचलकृताश्रया ॥ ८८॥
तस्यां = उस कौशिकी के
विनिर्गतायां = निकलने के बाद
तु = और
कृष्णाभूत् = काली हो गयी
सा अपि = वह भी
पार्वती = पार्वती
कालिकेति= कालिका देवी इस प्रकार
समाख्याता = विख्यात हुई
हिमाचलकृताश्रया = हिमाचल पर रहने वाली
और उस कौशिकी के निकलने के बाद वह पार्वती भी काली हो गयी , (और ) हिमाचल पर रहने वाली कालिका देवी इस प्रकार विख्यात हुईं ।
ततोऽम्बिकां परं रूपं बिभ्राणां सुमनोहरम् ।
ददर्श चण्डो मुण्डश्च भृत्यौ शुम्भनिशुम्भयोः ॥ ८९॥
ततो अम्बिकां = तब अम्बिका को
परं = परम
रूपं = रूप
बिभ्राणां = धारण करने वाली
सुमनोहरम् = मनोहर
ददर्श= देखा
चण्डो मुण्डश्च = चंड और मुंड ने
भृत्यौ शुम्भनिशुम्भयोः = शुम्भनिशुम्भ के सेवक
तब परम मनोहर रूप धारण करने वाली अम्बिका को शुम्भनिशुम्भ के सेवक चंड और मुंड ने देखा ।
ताभ्यां शुम्भाय चाख्याता सातीव सुमनोहरा ।
काप्यास्ते स्त्री महाराज भासयन्ती हिमाचलम् ॥ ९०॥
ताभ्यां = उनके द्वारा
शुम्भाय = शुम्भ को
आख्याता = बताया गया
च= और
सा= वह
अतीव = अत्यंत
सुमनोहरा = मनोहर
काप्यास्ते = का अपि = कोई
आस्ते = वहां है ,स्थित है
स्त्री = स्त्री
महाराज = हे महराज
भासयन्ती = प्रकाशित कर रही है
हिमाचलम् = हिमालय को
उनके द्वारा शुम्भ को बताया गया कि कोई अत्यंत मनोहर स्त्री वहां है जो हिमालय को प्रकाशित कर रही है ।
नैव तादृक् क्वचिद्रूपं दृष्टं केनचिदुत्तमम् ।
ज्ञायतां काप्यसौ देवी गृह्यतां चासुरेश्वर ॥ ९१॥
नैव = न एव = ना ही
तादृक् = उसके जैसा
क्वचित् = कहीं
रूपं = कोई रूप
दृष्टं = देखा
केनचित्= किसी का
उत्तमम् = उत्तम
ज्ञायतां = पता लगाइये
काप्य असौ = कौन यह
देवी = देवी है
गृह्यतां = ग्रहण करो
च= और
असुरेश्वर= असुरराज
उसके जैसा उत्तम रूप किसीका और कहीं नहीं देखा । हे असुरराज पता लगाइये यह देवी कौन है और ग्रहण कीजिये ।
स्त्रीरत्नमतिचार्वङ्गी द्योतयन्ती दिशस्त्विषा ।
सा तु तिष्ठति दैत्येन्द्र तां भवान् द्रष्टुमर्हति ॥ ९२॥
स्त्रीरत्नम् = स्त्रियों में रतन है
अतिचार्वङ्गी = अति चारु अंगी = अत्यंत सुन्दर अंगों की
द्योतयन्ती = प्रकाशित कर रही है
दिश:= दिशाओं को
त्विषा = चमक से
सा = वह
तु = = निश्चय ही
तिष्ठति = स्थित है
दैत्येन्द्र = दैत्यराज
तां = वह
भवान् = आप
द्रष्टुम् = देखने
अर्हति= योग्य है
वह स्त्रियों में रतन है , अत्यंत सुन्दर अंगों की चमक से दिशाओं को प्रकाशित करती हुई स्थित है , वह निश्चित ही आपके देखने योग्य है ।
यानि रत्नानि मणयो गजाश्वादीनि वै प्रभो ।
त्रैलोक्ये तु समस्तानि साम्प्रतं भान्ति ते गृहे ॥ ९३॥
यानि = जो भी
रत्नानि = रत्न
मणयो = मणि
गजाश्वादीनि = हाथी, घोड़े आदि
वै = वे
प्रभो = प्रभु
त्रैलोक्ये = तीनों लोक में
तु = निश्चित रूप से
समस्तानि = सब
साम्प्रतं = अब
भान्ति = चमक रहे हैं
ते = तुम्हारे
गृहे = घर में
तीनों लोकों में मणि, हाथी, घोड़े आदि जो भी रत्न हैं , वे वे सब निश्चित रूप से अब आपके घर में चमक रहे हैं ।
ऐरावतः समानीतो गजरत्नं पुरन्दरात् ।
पारिजाततरुश्चायं तथैवोच्चैःश्रवा हयः ॥ ९४॥
ऐरावतः = ऐरावतः
समानीतो = लिया गया
गजरत्नं = हाथियों में रत्न
पुरन्दरात् = इंद्र से
पारिजाततरु= पारिजात वृक्ष
च = और
अयं = यह
तथैव = वैसे ही
उच्चैःश्रवा = उच्चैःश्रवा
हयः= घोडा
इंद्र से लिया गया हाथियों में रत्न ऐरावत और यह पारिजात वृक्ष , वैसे ही उच्चैःश्रवा घोडा ।
विमानं हंससंयुक्तमेतत्तिष्ठति तेऽङ्गणे ।
रत्नभूतमिहानीतं यदासीद्वेधसोऽद्भुतम् ॥ ९५॥
विमानं = विमान
हंस संयुक्तम् एतत् = हंस से युक्त यह
तिष्ठति = स्थित है
ते अङ्गणे = आपके आँगन में
रत्नभूतम् = रत्न जड़ा
इह = यहां
आनीतं = लाया गया है
यदा = जो
आसीत्= था
वेधसो = ब्रह्मा का
अद्भुतम् = अद्भुत
हंसों से युक्त रत्नजड़ा अद्भुत विमान जो ब्रह्मा का था , यहां लाया गया आपके आँगन में स्थित है ।
निधिरेष महापद्मः समानीतो धनेश्वरात् ।
किञ्जल्किनीं ददौ चाब्धिर्मालामम्लानपङ्कजाम् ॥ ९६॥
निधि: = निधि
एष = ये
महापद्मः = महापद्म नामक
समानीतो = छीन लाये हैं
धनेश्वरात् = कुबेर से
किञ्जल्किनीं = किञ्जल्किनी
ददौ = दी है
च = और
अब्धि:= समुन्दर ने
मालाम्= माला
अम्लान पङ्कजाम् = न कुम्लाने वाले कमलों की
ये महापद्म नमक निधि कुबेर से छीन लाये हैं और समुन्दर ने ना कुम्लाने वाले कमलों की किञ्जल्किनीं माला दी है ।
छत्रं ते वारुणं गेहे काञ्चनस्रावि तिष्ठति ।
तथायं स्यन्दनवरो यः पुरासीत्प्रजापतेः ॥ ९७॥
छत्रं = छत्र
ते = और
वारुणं = वरुण का
गेहे = घर में
काञ्चनस्रावि = सोने की वर्षा करने वाला
तिष्ठति = स्थित है
तथा= इसी प्रकार
अयं = ये
स्यन्दन वरो = श्रेष्ठ रथ
यः = जो
पुरा आसीत्= पहले था
प्रजापतेः प्रजापति का
और वरुण का सोने की वर्षा करने वाला छत्र आपके घर में स्थित है , इसी प्रकार श्रेष्ठ रथ जो पाले प्रजापति का था ।
मृत्योरुत्क्रान्तिदा नाम शक्तिरीश त्वया हृता ।
पाशः सलिलराजस्य भ्रातुस्तव परिग्रहे ॥ ९८॥
मृत्यो: = यम से
उत्क्रान्तिदा = उत्क्रान्तिदा
नाम = नाम की
शक्ति: = शक्ति
ईश = हे ईश्वर
त्वया = तुमने
हृता = छीन ली है
पाशः = पाश
सलिलराजस्य= सलिल राज वरुण का
भ्रातु: भाई ने
तव = तुम्हारे
परिग्रहे = छीन लिया है
हे ईश्वर तुमने यम से उत्क्रान्तिदा नाम की शक्ति छीन ली है ,सलिल राज वरुण का पाश तुम्हारे भाई ने छीन लिया है ।
निशुम्भस्याब्धिजाताश्च समस्ता रत्नजातयः ।
वह्निरपि ददौ तुभ्यमग्निशौचे च वाससी ॥ ९९॥
निशुम्भस्य = निशुम्भ के
अब्धिजाता= समुन्दर से उत्पन्न
च = और
समस्ता =सब
रत्नजातयः = रत्नों के प्रकार
वह्नि: = अग्नि ने
अपि = भी
ददौ = दिए हैं
तुभ्यम् = तुम्हे
अग्निशौचे = अग्नि द्वारा शुद्ध किये
च = और
वाससी = वस्त्र
और निशुम्भ के पास समुन्दर से उत्पन्न सब रत्नों के प्रकार हैं और अग्नि ने भी अग्नि से शुद्ध वस्त्र तुम्हे दिए हैं ।
एवं दैत्येन्द्र रत्नानि समस्तान्याहृतानि ते ।
स्त्रीरत्नमेषा कल्याणी त्वया कस्मान्न गृह्यते ॥ १००॥
एवं = इस प्रकार
दैत्येन्द्र = दैत्यराज
रत्नानि = रत्न
समस्तानि = सब
आहृतानि = छीन लिए हैं
ते = तुमने
स्त्रीरत्नम् = स्त्रियों में रत्न
एषा= यह
कल्याणी = कल्याणी
त्वया = तुम्हारे द्वारा
कस्मात् न = किसलिए नहीं
गृह्यते अधिकृत की जाए
इस प्रकार तुमने दैत्यराज सब रत्न छीन लिए हैं , यह स्त्रियों में रत्न कल्याणी तुम्हारे द्वारा किसलिए नहीं अधिकृत की जाए ।
ऋषिरुवाच ॥ १०१॥
ऋषि बोला ।
निशम्येति वचः शुम्भः स तदा चण्डमुण्डयोः ।
प्रेषयामास सुग्रीवं दूतं देव्या महासुरम् ॥ १०२॥
निशम्येति = इस प्रकार सुन कर
वचः = वचन
शुम्भः = शुम्भ
स = वह
तदा = तब
चण्डमुण्डयोः = चण्डमुण्ड के
प्रेषयामास = पास भेजा
सुग्रीवं = सुग्रीव को
दूतं = दूत बना
देव्या = देवी के
महासुरम् = महासुर
चण्डमुण्ड के इस प्रकार के वचनों को सुनकर उस शुम्भ ने महासुर सुग्रीव को दूत बना कर देवी के पास भेजा ।
इति चेति च वक्तव्या सा गत्वा वचनान्मम ।
यथा चाभ्येति सम्प्रीत्या तथा कार्यं त्वया लघु ॥ १०३॥
इति चेति = इस प्रकार के
च = और
वक्तव्या = कहना
सा = उसको
गत्वा = जा कर
वचनान्मम = मेरे वचनों को
यथा = जिससे
च = और
अभ्येति = पास आ जाए
सम्प्रीत्या = प्रसन्न हो
तथा = ऐसा
कार्यं = करना है
त्वया = तुम्हें
लघु = शीघ्र
और जा कर उसको इस प्रकार के मेरे वचनों को कहना और ऐसा तुम्हें करना है जिससे प्रसन्न हो कर शीघ्र (मेरे) पास आ जाए ।
स तत्र गत्वा यत्रास्ते शैलोद्देशेऽतिशोभने ।
तां च देवीं ततः प्राह श्लक्ष्णं मधुरया गिरा ॥ १०४॥
स = वह
तत्र = वहां
गत्वा = जा कर
यत्र= जहां
आस्ते = स्थित थी
शैलोद्देशे = पर्वतीय प्रदेश में
अतिशोभने = अत्यंत सुन्दर
तां = उसे
च = और
देवीं = देवी को
ततः = तब ,
प्राह = बोला
श्लक्ष्णं = कोमलता से
मधुरया = मीठी
गिरा = आवाज़ में
और वह वहां अत्यंत सुन्दर पर्वतीय प्रदेश में जा कर जहां देवी स्थित थी , उस देवी को तब मीठी वाणी में कोमलता से बोला ।
दूत उवाच ॥ १०५॥
दूत बोला ।
देवि दैत्येश्वरः शुम्भस्त्रैलोक्ये परमेश्वरः ।
दूतोऽहं प्रेषितस्तेन त्वत्सकाशमिहागतः ॥ १०६॥
देवि = हे देवी
दैत्येश्वरः = दैत्य राज
शुम्भ: = शुम्भ
त्रैलोक्ये = तीनों लोकों के
परमेश्वरः = स्वामी हैं
दूतः अहम् = मैं दूत हूँ
प्रेषित:= भेजा गया
तेन = उनके द्वारा
त्वत्सकाशम् = तुम्हारे पास
इह= यहां
आगतः= आया हूँ
हे देवी दैत्य राज शुम्भ तीनों लोकों के स्वामी हैं मैं उनके द्वारा भेजा गया दूत तुम्हारे पास यहां आया हूँ ।
अव्याहताज्ञः सर्वासु यः सदा देवयोनिषु ।
निर्जिताखिलदैत्यारिः स यदाह शृणुष्व तत् ॥ १०७॥
अव्याहता = पालन होता है
आज्ञः = आज्ञा का
सर्वासु = सब
यः = जिसकी
सदा = सदा
देवयोनिषु = देवताओं द्वारा
निर्जिता = अपराजित
अखिलदैत्यारिः = सभी देवताओ से
स = उसने
यत् आह = जो कहा
शृणुष्व = सुनो
तत् = वह
सब देवताओं द्वारा जिसकी आज्ञा का पालन होता है , सभी देवताओ से अपराजित उसने जो कहा वह सुनो ।
मम त्रैलोक्यमखिलं मम देवा वशानुगाः ।
यज्ञभागानहं सर्वानुपाश्नामि पृथक् पृथक् ॥ १०८॥
मम = मेरे हैं
त्रैलोक्यम= तीनों लोक
अखिलं = सब
मम = मेरे
देवा = देवता
वशानुगाः= आज्ञाकारी हैं
यज्ञभागान् = यज्ञ भागों को
अहं = मैं
सर्वान् = सब
उपाश्नामि = प्राप्त करता हूँ
पृथक् पृथक् =अलग अलग
तीनों लोक मेरे हैं , सब देवता मेरे आज्ञाकारी हैं , सारे यज्ञ के भागों को मैं ही अलग अलग प्राप्त करता हूँ ।
त्रैलोक्ये वररत्नानि मम वश्यान्यशेषतः ।
तथैव गजरत्नं च हृतं देवेन्द्रवाहनम् ॥ १०९॥
त्रैलोक्ये = तीनों लोकों के
वररत्नानि = श्रेष्ठ रत्न
मम = मेरे
वश्यान् - वश में हैं
अशेषतः = सारे
तथैव = इसी प्रकार ही
गजरत्नं = हाथियों में रत्न
च = और
हृतं = छीन लिया है
देवेन्द्रवाहनम् = इंद्र का वाहन , ऐरावत
तीनों लोकों के श्रेष्ठ रतन मेरे वश में हैं और हाथियों में रत्न इंद्र का वाहन , ऐरावत छीन लिया है ।
क्षीरोदमथनोद्भूतमश्वरत्नं ममामरैः ।
उच्चैःश्रवससंज्ञं तत्प्रणिपत्य समर्पितम् ॥ ११०॥
क्षीरोदमथन्= समुन्दर मंथन से
उद्भूतम् = प्रकट हुआ
अश्वरत्नं = अश्वों में रत्न
मम = मुझे
अमरैः = देवताओं ने
उच्चैःश्रवस संज्ञं = उच्चैःश्रवस नाम का
तत्= वह
प्रणिपत्य = झुक कर
समर्पितम् = समर्पित कर दिया
समुन्दर मंथन से प्रकट हुआ उच्चैःश्रवस नाम का वह अश्वरत्न देवताओं ने झुक कर मुझे समर्पित कर दिया ।
यानि चान्यानि देवेषु गन्धर्वेषूरगेषु च ।
रत्नभूतानि भूतानि तानि मय्येव शोभने ॥ १११॥
यानि = जितने
च= और
अन्यानि = अन्य
देवेषु = देवताओं
गन्धर्वेषु=गन्धर्वों
उरगेषु = नागों
च = और
रत्नभूतानि = रत्नभूत
भूतानि = पदार्थ
तानि = वे
मय्येव = मेरे ही
शोभने= हे सुंदरी
हे सुंदरी और जितने अन्य रत्नभूत पदार्थ देवताओं, गन्धर्वों और नागों के पास थे , वे मेरे ही पास हैं ।
स्त्रीरत्नभूतां त्वां देवि लोके मन्यामहे वयम् ।
सा त्वमस्मानुपागच्छ यतो रत्नभुजो वयम् ॥ ११२॥
स्त्रीरत्नभूतां = स्त्रियों में रत्न हो
त्वां = तुम
देवि = देवी
लोके = संसार में
मन्यामहे = हम सोचते हैं , मानते हैं
वयम् = हम
सा = ऐसी , वह
त्वम्= तुम
अस्मान् = हमारे
उपागच्छ = पास आ जाओ
यतो = क्यों कि
रत्नभुजो = रत्नों को भोगने वाले
वयम् = हम
देवी हम मानते है तुम संसार में स्त्रियों में रत्न हो , ऐसी तुम हमारे पास आ जाओ , क्यों कि हम रत्नों को भोगने वाले हम हैं ।
मां वा ममानुजं वापि निशुम्भमुरुविक्रमम् ।
भज त्वं चञ्चलापाङ्गि रत्नभूतासि वै यतः ॥ ११३॥
मां = मेरी
वा = या
ममानुजं = मेरे भाई
वापि = या
निशुम्भम् उरुविक्रमम्= महा पराक्रमी निशुम्भ की
भज = शरण में आ जाओ
त्वं = तुम
चञ्चलापाङ्गि = चंचल नेत्रों वाली
रत्नभूतासि = रत्न हो
वै = भी
यतः= जो
हे चंचल नेत्रों वाली जो तुम भी रत्न हो , या मेरी या मेरे पराक्रमी भाई निशुम्भ की शरण में आ जाओ ।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यसे मत्परिग्रहात् ।
एतद्बुद्ध्या समालोच्य मत्परिग्रहतां व्रज ॥ ११४॥
परम ऐश्वर्यम् = महान ऐश्वर्य की
अतुलं = तुलनारहित
प्राप्स्यसे = प्राप्ति होगी
मत्परिग्रहात् = मेरा वरन करने से
एतत् = यह
बुद्ध्या= बुद्धि से
समालोच्य = विचार कर
मत्परिग्रहतां = मेरा वरन करने के लिए
व्रज = बढ़ो , प्राप्त करो
मेरा वरन करने से तुलनारहित महान ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी , यह बुद्धि से विचार कर मेरे वरन करने के लिए बढ़ो ।
ऋषिरुवाच ॥ ११५॥
ऋषि बोला ।
इत्युक्ता सा तदा देवी गम्भीरान्तःस्मिता जगौ ।
दुर्गा भगवती भद्रा ययेदं धार्यते जगत् ॥ ११६॥
इत्युक्ता इति उक्ता = इस प्रकार कहे जाने पर
सा = वह
तदा = तब
देवी = देवी
गम्भीरान्तःस्मिता= मन में गंभीरता से हंसी
जगौ = बोली
दुर्गा = दुर्गा
भगवती = भगवती
भद्रा = कल्याणमयी
ययेदं = यत इदं = जो इस
धार्यते = धारण करती है
जगत् = जगत को
(दूत द्वारा) इस प्रकार कहे जाने पर तब वह कल्याणमयी भगवती दुर्गा देवी जो इस जगत को धारण करती है मन में गंभीरता से हंसी और बोली ।
देव्युवाच ॥ ११७॥
देवी बोलीं ।
सत्यमुक्तं त्वया नात्र मिथ्या किञ्चित्त्वयोदितम् ।
त्रैलोक्याधिपतिः शुम्भो निशुम्भश्चापि तादृशः ॥ ११८॥
सत्यम् उक्तं = सत्य कहा है
त्वया = उमने
न = नही
अत्र = यहां
मिथ्या = झूट
किञ्चित्= कुछ
त्वया = तुम्हारे
उदितम् = कहे में
त्रैलोक्य अधिपतिः= तीनों लोकों के स्वामी
शुम्भो = शुम्भ
निशुम्भश्चापि = निशुंभ भी
तादृशः= वैसे ही हैं
तुमने सत्य कहा है , यहां तुम्हारे कहे में कुछ झूट नहीं है , शुम्भ तीनों लोकों के स्वामी हैं और निशुम्भ भी वैसे ही हैं ।
किं त्वत्र यत्प्रतिज्ञातं मिथ्या तत्क्रियते कथम् ।
श्रूयतामल्पबुद्धित्वात्प्रतिज्ञा या कृता पुरा ॥ ११९॥
किंतु = परन्तु
अत्र = यहां (इस विषय में )
यत् प्रतिज्ञातं = जो प्रतिज्ञा की है
मिथ्या = झूट
तत् = वह
क्रियते = करूँ
कथम्= कैसे
श्रूयताम्= सुनो
अल्पबुद्धित्वात् = अल्प बुद्धि के कारण
प्रतिज्ञा= प्रतिज्ञा
या = जो
कृता = की है
पुरा = पहले
परन्तु यहां (इस विषय में ) जो प्रतिज्ञा की है वह झूट कैसे करूँ , अल्प बुद्धि के कारण पहले जो प्रतिज्ञा की है वह सुनो ।
यो मां जयति सङ्ग्रामे यो मे दर्पं व्यपोहति ।
यो मे प्रतिबलो लोके स मे भर्ता भविष्यति ॥ १२०॥
यो = जो
मां = मुझे
जयति = जीतेगा
सङ्ग्रामे = युद्ध में
यो मे = जो मेरे
दर्पं = घमंड को
व्यपोहति = खंडित करेगा
यो मे = जो मेरे
प्रतिबलो = समान बलि होगा
लोके = संसार में
स मे = वो मेरा
भर्ता = पति
भविष्यति = होगा
जो मुझे युद्ध में जीतेगा, जो मेरे घमंड को खंडित करेगा , जो संसार में मेरे समान बाली होगा वो मेरा पति होगा ।
तदागच्छतु शुम्भोऽत्र निशुम्भो वा महाबलः ।
मां जित्वा किं चिरेणात्र पाणिं गृह्णातु मे लघु ॥ १२१॥
तदा = तब
आगच्छतु = आ कर
शुम्भो= शुम्भ
अत्र = यहाँ
निशुम्भो = निशुम्भ
वा = अथवा
महाबलः = महाबली
मां = मुझे
जित्वा = जीत कर
किं चिरेण अत्र = यहां देर क्या है
पाणिं = हाथ
गृह्णातु = ग्रहण कर ले
मे = मेरा
लघु= शीघ्र
तब शुम्भ अथवा महाबली निशुम्भ यहां आ कर मुझे जीत कर शीघ्र मेरा हाथ ग्रहण कर लें , इसमें देर क्या है ?
दूत उवाच ॥ १२२॥
दूत बोला ।
अवलिप्तासि मैवं त्वं देवि ब्रूहि ममाग्रतः ।
त्रैलोक्ये कः पुमांस्तिष्ठेदग्रे शुम्भनिशुम्भयोः ॥ १२३॥
अवलिप्तासि = घमंडी
मा =नहीं
एवं = ऐसा
त्वं = तुम
देवि = देवी
ब्रूहि = कहो
ममाग्रतः = मेरे आगे
त्रैलोक्ये तीनों लोकों में
कः = कौन
पुमां = मनुष्य
तिष्ठेत् = ठहरता है
अग्रे = आगे
शुम्भनिशुम्भयोः = शुम्भ निशुम्भ के
देवी तुम घमंडी हो , मेरे आगे ऐसा न कहो , तीनों लोकों में कौन मनुष्य शुम्भ निशुम्भ के आगे ठहर सकता है ?
अन्येषामपि दैत्यानां सर्वे देवा न वै युधि ।
तिष्ठन्ति सम्मुखे देवि किं पुनः स्त्री त्वमेकिका ॥ १२४॥
अन्य एषाम = इन दूसरे
अपि= भी
दैत्यानां = दैत्यों के
सर्वे = सभी
देवा = देवता
न = नहीं
वै = निश्चित रूप से
युधि = युद्ध में
तिष्ठन्ति = ठहरते
सम्मुखे = आगे
देवि = देवी
किं पुनः तवं= फिर तुम्हारा क्या
स्त्री तवं ऐकिका= अकेली स्त्री
निश्चित ररप से सभी देवता इन दूसरे दैत्यों के सामने भी युद्ध में नहीं ठहरते , देवी तुम अकेली स्त्री हो तुम्हारा क्या ?
इन्द्राद्याः सकला देवास्तस्थुर्येषां न संयुगे ।
शुम्भादीनां कथं तेषां स्त्री प्रयास्यसि सम्मुखम् ॥ १२५॥
इन्द्राद्याः = इंद्र आदि
सकला= सभी
देवा: = देवता
तस्थु: = खड़े होते
येषां = जिन
न = नहीं
संयुगे = साथ
शुम्भादीनां =शुम्भ आदि के
कथं = कैसे
तेषां = उसके
स्त्री = स्त्री
प्रयास्यसि = प्रयास
सम्मुखम् = आगे
इंद्र आदि देवता जिन शुम्भ आदि के साथ नहीं खड़े होते , उसके आगे स्त्री कैसे प्रयास करेगी ।
सा त्वं गच्छ मयैवोक्ता पार्श्वं शुम्भनिशुम्भयोः ।
केशाकर्षणनिर्धूतगौरवा मा गमिष्यसि ॥ १२६॥
सा = वह
त्वं = तुम
गच्छ = जाओ
मयैवोक्ता = मयि उक्त = मेरे कहने से
पार्श्वं = पास
शुम्भनिशुम्भयोः = शुम्भ निशुम्भ के
केशाकर्षण = बालों से खींचने पर
निर्धूतगौरवा = प्रतिष्ठा खो कर
मा = नहीं तो
गमिष्यसि = जाओगी
वह तुम मेरे कहने से शुम्भ निशुम्भ के पास चली जाओ , नहीं तो बालों से खींचने पर प्रतिष्ठा खो कर जाओगी ।
देव्युवाच ॥ १२७॥
देवी बोलीं ।
एवमेतद् बली शुम्भो निशुम्भश्चापितादृशः ।
किं करोमि प्रतिज्ञा मे यदनालोचिता पुरा ॥ १२८॥
एवमेतद् = ऐसा ही है
बली = बलवान
शुम्भो = शुम्भ
निशुम्भ:= निशुम्भ
च = और
अति = अत्यंत
वीर्यवान्= पराक्रमी
किं करोमि = क्या करूँ
प्रतिज्ञा = प्रतिज्ञा ली है
मे = मैंने
यद = जो
अनालोचिता = बिना सोचे
पुरा = पहले
ऐसा ही है , शुभ बलवान है और निशुम्भ भी अति पराक्रमी है , क्या करूँ मैंने पहले बिना सोचे प्रतिज्ञा ले ली है ।
स त्वं गच्छ मयोक्तं ते यदेतत्सर्वमादृतः ।
तदाचक्ष्वासुरेन्द्राय स च युक्तं करोतु यत् ॥ १२९॥
स त्वं = इसलिए तुम
गच्छ = जाओ
मयोक्तं मया उक्तं = मेरे द्वारा कहा गया
ते = तुम्हे
यत् = जो
एतत् = वो
सर्वं = सब
आदृत : = आदर से
तदा= तब
आचक्ष्वा = बोलना
असुरेन्द्राय = असुरराज से
स च = और वह
युक्तं = सही है
करोतु = करें
यत् = जो
इसलिए तुम जाओ , मेरे द्वारा तुम्हे जो कहा गया है वो सब आदर से असुरराज से बोलना , और वह तब जो सही है करें ।
॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
देव्या दूतसंवादो नाम पञ्चमोऽध्यायः ॥ ५॥
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