ध्यायेयम् रत्नपीठे शुक कल पठितं शृण्वतीं श्यामलाङ्गीम्
न्यस्तैकांघ्रिम् सरोज शशिशकलधराम् वल्लकीम् वादयन्तीम् ।
कह्ला राबद्ध मालाम् नियमित विलसच्चोलिकां रक्तवस्त्राम्
माताङ्गीम् शंखपात्राम् मधुरमधुमदाम् चित्रकोद्भासिभालाम् ॥
ध्यायेयम्= ध्यान करते हैं
रत्नपीठे= रत्नों के सिंहासन पर बैठी
शुककलपठितं = पढ़ते हुए तोते की आवाज को
शृण्वतीं = सुनती
श्यामलाङ्गीम् = श्याम अंगों वाली
न्यस्तैक आंघ्रिम्= एक पैर को रखे
सरोज= कमल पर
शशिशकलधराम् = चन्द्र के खंड को धारण करने वाली
वल्लकीम् = वीणा
वादयन्तीम् = बजाती हुई
कह्लाराबद्धमालाम् = कल्हार पुष्पों की माला पहने
नियमित विलसच्चोलिकां= कासी चोली से सुशोभित
रक्तवस्त्राम् = लाल वस्त्र पहने
माताङ्गीम्= मातंगी देवी का
शंखपात्राम् = शंख का पात्र लिए
मधुरमधुमदाम् = मधु के हलके प्रभाव से मधुर
चित्रकोद्भासिभालाम् = बिंदी, टिकली से शोभित मस्तक वाली
ॐ ऋषिरुवाच ॥ १॥
ऋषि बोले ।
आज्ञप्तास्ते ततो दैत्याश्चण्डमुण्डपुरोगमाः ।
चतुरङ्गबलोपेता ययुरभ्युद्यतायुधाः ॥ २॥
आज्ञप्ता: = आज्ञा लेकर
ते = वे
ततो = तब
दैत्या: = दैत्य
चण्डमुण्ड= चण्डमुण्ड को
पुरोगमाः = आगे कर के
चतुरङ्गबलोपेता =चतुरङ्ग बल उपेता= चतुरङ्गी सेना के साथ
ययु:= गए
अभ्युद्यत = उठाये हुए
आयुधाः = हथियार
ता आज्ञा ले कर वे दैत्य चण्डमुण्ड को आगे करके चतुरङ्गी सेना के साथ हथियार उठाये हुए गए ।
ददृशुस्ते ततो देवीमीषद्धासां व्यवस्थिताम् ।
सिंहस्योपरि शैलेन्द्रशृङ्गे महति काञ्चने ॥ ३॥
ददृशु: = देख
ते = उन्होंने
ततो = तब
देवीम= देवी को
ईषद्धासां = मंद मंद मुस्कुराती
व्यवस्थिताम् = बैठी
सिंहस्य ऊपरि = सिंह के ऊपर
शैलेन्द्रशृङ्गे = पहाड़ की चोटी पर
महति = बड़ी
काञ्चने= सुनहरी
तब उन्होंने बड़ी सुनहरी पहाड़ की चोटी पर सिंह पर बैठी मंद मंद मुस्कुराती देवी को देखा ।
ते दृष्ट्वा तां समादातुमुद्यमं चक्रुरुद्यताः ।
आकृष्टचापासिधरास्तथान्ये तत्समीपगाः ॥ ४॥
ते = वे
दृष्ट्वा = देखकर
तां = उसको
समादातुम् = पकड़ने का
उद्यमं = प्रयास
चक्रु:= करने लगे
उद्यताः = उत्तेजित हो ,तत्परता से
आकृष्ट = खींच लिया
चाप = धनुष
असि धरा = तलवार ले ली
तथान्ये = इसी प्रकार दूसरे
तत्समीपगाः = उसके समीप चले गए
वे उसे देख कर तत्परता से पकड़ने का प्रयास करने लगे , धनुष खींच लिए , तलवार ले ली, इसी प्रकार दूसरे उसके समीप चले गए ।
ततः कोपं चकारोच्चैरम्बिका तानरीन्प्रति ।
कोपेन चास्या वदनं मषीवर्णमभूत्तदा ॥ ५॥
ततः = तब
कोपं = क्रोध
चकार= किया
उच्चै: = बहुत ज्यादा
अम्बिका = अम्बिका
तान्= उन
अरीन्= शत्रुओं के
प्रति= प्रति , तरफ
कोपेन = क्रोध से
च = और
अस्या = उसका
वदनं = मुख
मषीवर्णम् = स्याही के रंग का
अभूत् = हो गया
तदा = तब
तब अम्बिका ने उन शत्रुओं के प्रति बड़ा क्रोध किया और तब क्रोध से उसका मुख स्याही के रंग का काल हो गया ।
भ्रुकुटीकुटिलात्तस्या ललाटफलकाद्द्रुतम् ।
काली करालवदना विनिष्क्रान्तासिपाशिनी ॥ ६॥
भ्रुकुटीकुटिलात् = टेढ़ी हुई भ्रुकुटियों
तस्या = उसकी
ललाटफलकात् = माथे की सतह
द्रुतम् = तत्काल
काली = काली
करालवदना = भयंकर मुंह वाली
विनिष्क्रान्ता = निकली
असिपाशिनी= तलवार और पाश वाली
उसके माथे की सतह से टेढ़ी हुई भ्रुकुटियों तत्काल भयंकर मुख वाली , तलवार और पाश लिए काली निकली ।
विचित्रखट्वाङ्गधरा नरमालाविभूषणा ।
द्वीपिचर्मपरीधाना शुष्कमांसातिभैरवा ॥ ७॥
विचित्र= अनोखी
खट्वाङ्गधरा = खट्वाङ्ग धारी
नरमालाविभूषणा = नरमुंड माला से सज्जित
द्वीपिचर्मपरीधाना = चीते की खाल के परिधान वाली
शुष्कमांसातिभैरवा = सूखे हुए मांस वाली अत्यंत डरावनी
(वे काली देवी) अनोखी खट्वाङ्ग धारी, नरमुंड माला से सज्जित, चीते की खाल के परिधान वाली सूखे हुए मांस वाली अत्यंत डरावनी थी
अतिविस्तारवदना जिह्वाललनभीषणा ।
निमग्नारक्तनयना नादापूरितदिङ्मुखा ॥ ८॥
अति विस्तार वदना = अत्यंत विशाल मुंह वाली
जिह्वा ललन भीषणा= लटकती जीभ से भयानक लगने वाली
निमग्ना रक्त नयना = अंदर घसी हुए लाल आँखों वाली
नादापूरितदिङ्मुखा = आवाज़ से चारों दिशाओं को गुंजाने वाली
अत्यंत विशाल मुंह वाली, लटकती जीभ से भयानक लगने वाली, अंदर घसी हुए लाल आँखों वाली, आवाज़ से चारों दिशाओं को गुंजाने वाली
सा वेगेनाभिपतिता घातयन्ती महासुरान् ।
सैन्ये तत्र सुरारीणामभक्षयत तद्बलम् ॥ ९॥
सा = वह
वेगेन = वेग से
अभिपतिता = कूद पड़ी , टूट पड़ी
घातयन्ती = मारती हुई
महासुरान् = महासुरों को
सैन्ये = सेना
तत्र = वहां
सुरारीणाम असुरों के
अभक्षयत्= खाने लगी
तद्बलम्= उस सेना को
वह वेग से महासुरों को मरती हुई सेना पर टूट पड़ी । वहाँ असुरों की उस सेना को खाने लगी ।
पार्ष्णिग्राहाङ्कुशग्राहयोधघण्टासमन्वितान् ।
समादायैकहस्तेन मुखे चिक्षेप वारणान् ॥ १०॥
पार्ष्णिग्राह = पार्श्व रक्षकों
अङ्कुशग्राह= महावतों
योध=योद्याओं
घण्टा= घंटों
समन्वितान् = के साथ
समादाय= पकड़ कर
एकहस्तेन=एक हाथ से
मुखे= मुंह में
चिक्षेप= फैंक रही थी
वारणान्= हाथियों
पार्श्व रक्षकों, महावतों, योद्याओं, घंटों के साथ हाथियों को एक हाथ से पकड़ कर मुंह में फैंक रही थी ।
तथैव योधं तुरगै रथं सारथिना सह ।
निक्षिप्य वक्त्रे दशनैश्चर्वयन्त्यतिभैरवम् ॥ ११॥
तथैव = इसी प्रकार ही
योधं = सैनिकों के
तुरगै = घोड़ों को
रथं = रथोंको
सारथिना = सारथियों
सह = के साथ
निक्षिप्य = फैंक कर
वक्त्रे = मुंह में
दशनै = दांतों से
चर्वयन्ति = चबाती थी
अतिभैरवम्= अत्यंत भयंकर
इसी प्रकार ही घोड़ों को सैनिको, रथों को सार्थियों के साथ मुंह में फैंक अत्यंत भयंकर दांतों से चबा जाती थी ।
एकं जग्राह केशेषु ग्रीवायामथ चापरम् ।
पादेनाक्रम्य चैवान्यमुरसान्यमपोथयत् ॥ १२॥
एकं = एक को
जग्राह = पकड़ कर
केशेषु = बालों से
ग्रीवायाम्= गर्दन से
अथ= तब
चापरम् =और दूसरे को
पादेनाक्रम्य = पैरों से दबा कर
चैवा= और ऐसे ही
अन्यम् = दूसरों को
उरसा = छाती से
अन्यम्= अन्यों को
अपोथयत् = कूट कर , पीस कर
तब एक को बालों से पकड़ कर ,दूसरे को गर्दन से पकड़ के ,और ऐसे ही दूसरों को पैर से दबा कर , अन्यों को छाती से कूट दिया ।
तैर्मुक्तानि च शस्त्राणि महास्त्राणि तथासुरैः ।
मुखेन जग्राह रुषा दशनैर्मथितान्यपि ॥ १३॥
तै: = उन
मुक्तानि = छोड़े गए
च = और
शस्त्राणि = शास्त्र
महास्त्राणि = शक्तिशाली अस्त्र
तथा= इस प्रकार
असुरैः = असुरों द्वारा
मुखेन = मुंह में
जग्राह =पकड़ कर
रुषा = क्रोध से
दशनै:= दांतों से
मथिता= पीस दिया
अन्यपि =
इस प्रकार उन असुरों के द्वारा छोड़े गए शक्तिशाली अस्त्रों और शास्त्रों को मुंह में पकड़ कर क्रोध से दांतों से पीस दिया |
बलिनां तद्बलं सर्वमसुराणां दुरात्मनाम् ।
ममर्दाभक्षयच्चान्यानन्यांश्चाताडयत्तदा ॥ १४॥
बलिनां = शक्तिशाली
तद्बलं = वह सेना
सर्वमसुराणां = सारे असुरों की
दुरात्मनाम्= दुरात्मना
ममर्द = रौंद डाली
अभक्षयत्= खा लिया
च = और
अन्यान= दूसरों को
अन्यां= अन्यों को
च = और
अताडयत् = मार दिया
सारे दुरात्मा असुरों की शक्तिशाली सेना को रौंद दिया और अन्यों को खा लिया और दूसरों को मार दिया ।
असिना निहताः केचित्केचित्खट्वाङ्गताडिताः ।
जग्मुर्विनाशमसुरा दन्ताग्राभिहतास्तथा ॥ १५॥
असिना = तलवार से
निहताः = मारे गए
केचित् = कुछ
खट्वाङ्ग= खट्वाङ्ग
ताडिताः = पीटे गए
जग्मु = प्राप्त हुए
विनाशम् = विनाश को , मृत्यु को
असुरा= असुर
दन्ताग्र = दांतों के अग्र भाग से
अभिहता= काटने पर
तथा = इसी प्रकार
कुछ तलवार से मारे गए , कुछ खट्वाङ्ग से पीटे गए और इसी प्रकार कुछ असुर दांतों के अग्र भाग से काटने पर मृत्यु को प्राप्त हुए ।
क्षणेन तद्बलं सर्वमसुराणां निपातितम् ।
दृष्ट्वा चण्डोऽभिदुद्राव तां कालीमतिभीषणाम् ॥ १६॥
क्षणेन = क्षण भर में
तद्बलं = उस सेना
सर्वमसुराणां= सारे असुरों की
निपातितम्= गिरा
दृष्ट्वा = देख कर
चण्ड:= चण्ड
अभिदुद्राव = की ओर दौड़ा
तां = उस
कालीमतिभीषणाम् -= अति भयंकर काली
क्षण भर में सारे असुरों की उस सेना को गिरा देख कर चण्ड उस अति डरावनी काली की तरफ दौड़ा ।
शरवर्षैर्महाभीमैर्भीमाक्षीं तां महासुरः ।
छादयामास चक्रैश्च मुण्डः क्षिप्तैः सहस्रशः ॥ १७॥
शरवर्षै:= तीरों की वर्षा
महाभीमै:= शक्तिशाली
भीमाक्षीं= बड़ी आँखों वाली
तां= उस
महासुरः= महासुर
छादयामास = आच्छादित कर दिया
चक्रै:= चक्र
च = और
मुण्डः = मुंड
क्षिप्तैः = फेंके
सहस्रशः= हजारों
बड़ी आँखों वाली उस काली को चण्ड ने शक्तिशाली तीरों की वर्षा ढक दिया और मुंड ने हजारों चक्र भेजे ।
तानि चक्राण्यनेकानि विशमानानि तन्मुखम् ।
बभुर्यथार्कबिम्बानि सुबहूनि घनोदरम् ॥ १८॥
तानि = वे
चक्राण्यनेकानि = चक्राणि अनेकानि = अनेक चक्र
विशमानानि = घुसते हुए
तन्मुखम् = उसके मुंह में
बभु:= चमक रहे थे
यथा = जिस प्रकार
अर्कबिम्बानि = सुर के बिम्ब
सुबहूनि = अनेक
घनोदरम् = बादलों में
वे अनेक चक्र उसके मुंह में घुसते हुए चम रहे थे जिस प्रकार बादलों में सूर्य के अनेक बिम्ब चमकते हैं ।
ततो जहासातिरुषा भीमं भैरवनादिनी ।
काली करालवक्त्रान्तर्दुर्दर्शदशनोज्ज्वला ॥ १९॥
ततो = तब
जहास = हंसी
अतिरुषा = अत्यंत क्रोध में
भीमं = ज़ोर से
भैरव नादिनी= भयंकर गर्जना करने वाली
काली =काली
कराल वक्त्र अन्तः = विकराल मुंह में
दुर्दर्श = मुश्किल से दिखाई देने वाले
दशन उज्ज्वला = उज्ज्वल दांतों वाली
तब अत्यंत क्रोध में भयंकर गर्जना करने वाली विकराल मुंह में मुश्किल से दिखाई देने वाले उज्ज्वल दांतों वाली काली ज़ोर से हंसी ।
उत्थाय च महासिंहं देवी चण्डमधावत ।
गृहीत्वा चास्य केशेषु शिरस्तेनासिनाच्छिनत् ॥ २०॥
उत्थाय = चढ़ कर
च = और
महासिंहं = सिंह पर
देवी = देवी
चण्डम= चण्ड की तरफ
अधावत = दौड़ी
गृहीत्वा = पकड़ कर
चास्य च अस्य = और उसके
केशेषु= बालों को
शिर:= सिर
तेन= उस
असिना= तलवार से
आच्छिनत् = काट दिया
और देवी महासिंह पर चढ़ कर चण्ड की तरफ दौड़ी और उसके बाल पकड़ कर उसका सर तलवार से काट दिया ।
अथ मुण्डोऽभ्यधावत्तां दृष्ट्वा चण्डं निपातितम् ।
तमप्यपातयद्भूमौ सा खड्गाभिहतं रुषा ॥ २१॥
अथ = तब
मुण्ड: = मुंड
अभ्यधावत् = तरफ़ दौड़ा
ताम्= उस की
दृष्ट्वा= देख कर
चण्डं = चण्ड को
निपातितम् = गिरा हुआ
तमप्य= तं अपि= उसको भी
अपातयत् = गिरा दिया
भूमौ = भूमि पर
सा = उसने
खड्गाभिहतं = तलवार से मार कर
रुषा = क्रोध में
तब चण्ड को गिरा हुआ देख कर मुंड उस देवी की ओर भागा, उसकोभी उसने तलवार से मार कर भूमि पर गिरा दिया ।
हतशेषं ततः सैन्यं दृष्ट्वा चण्डं निपातितम् ।
मुण्डं च सुमहावीर्यं दिशो भेजे भयातुरम् ॥ २२॥
हतशेषं = मरने से बची
ततः = तब
सैन्यं = सेना
दृष्ट्वा = देख कर
चण्डं = चण्ड
निपातितम् = गिरा हुआ , पराजित
मुण्डं = मुण्ड
च = और
सुमहावीर्यं = महा पराक्रमी
दिशो भेजे = चारों दिशाओं में भाग गयी
भयातुरम् = भय से व्याकुल हो
तन मरने से बची सेना चाँद और मुंड को गिरा हुआ देख कर भय से व्याकुल हो चारों दिशाओं में भाग गयी ।
शिरश्चण्डस्य काली च गृहीत्वा मुण्डमेव च ।
प्राह प्रचण्डाट्टहासमिश्रमभ्येत्य चण्डिकाम् ॥ २३॥
शिर: चण्डस्य च मुण्डमेव च = चण्ड का और इसी प्रकार मुंड का सिर
काली = काली
गृहीत्वा = पकड़ कर
प्राह = बोली
प्रचण्डाट्टहास मिश्रम प्रचंड अट्ठहास करती हुई
अभ्येत्य =पास पहुंच कर
चण्डिकाम् = चण्डिका के
चण्ड का और इसी प्रकार मुंड का सिर पकड़ कर प्रचंड अट्ठहास करती हुई चण्डिका के पास पहुंच कर बोली ।
मया तवात्रोपहृतौ चण्डमुण्डौ महापशू ।
युद्धयज्ञे स्वयं शुम्भं निशुम्भं च हनिष्यसि ॥ २४॥
मया = मेरे द्वारा
तवात्र = तव अत्र = यहां तुम्हारे पास
उपहृतौ = लाया गया है
चण्डमुण्डौ = चण्डमुण्ड
महापशू = महा पशुओं को
युद्धयज्ञे = युद्धयज्ञ में
स्वयं = खुद
शुम्भं निशुम्भं च = शुम्भ और निशुम्भ का
हनिष्यसि = वध करना
मेरे द्वारा चण्डमुण्ड महा पशुओं को यहां तुम्हारे पास लाया गया है , युद्धयज्ञ में खुद शुम्भ और निशुम्भ का आप वध करना ।
ऋषिरुवाच ॥ २५॥
ऋषि बोले ।
तावानीतौ ततो दृष्ट्वा चण्डमुण्डौ महासुरौ ।
उवाच कालीं कल्याणी ललितं चण्डिका वचः ॥ २६॥
ता:= उनको
अवनीतौ = लाया हुआ
ततो = तब
दृष्ट्वा = देख कर
चण्डमुण्डौ = चण्डमुण्ड
महासुरौ =महासुर
उवाच = बोलीं
कालीं = काली को
कल्याणी = कल्याणमयी
ललितं = सुन्दर, कोमल
चण्डिका= चण्डिका
वचः = वचन तब उन महासुरों चण्ड मुण्ड को लाया हुआ देख कर कल्याणमयी चण्डिका देवी काली को कोमल शब्दों में बोलीं ।
यस्माच्चण्डं च मुण्डं च गृहीत्वा त्वमुपागता ।
चामुण्डेति ततो लोके ख्याता देवी भविष्यसि ॥ २७॥
यस्मात = क्यों की
चण्डं च मुण्डं च = चण्ड और मुण्ड को
गृहीत्वा = पकड़ कर
त्वम = तुम
उपागता = लायी हो
चामुण्डा = चामुण्डा
इति = इस प्रकार से
ततो तब
लोके = संसार में
ख्याता = प्रसिद्द
देवी = देवी
भविष्यसि = होंगी
देवी, क्यों की तुम चण्ड और मुण्ड को पकड़ कर लायी हो , इस लिए संसार में चामुण्डा इस प्रकार से से प्रसिद्ध होंगी ।
॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
चण्डमुण्डवधो नाम सप्तमोऽध्यायः ॥ ७॥
न्यस्तैकांघ्रिम् सरोज शशिशकलधराम् वल्लकीम् वादयन्तीम् ।
कह्ला राबद्ध मालाम् नियमित विलसच्चोलिकां रक्तवस्त्राम्
माताङ्गीम् शंखपात्राम् मधुरमधुमदाम् चित्रकोद्भासिभालाम् ॥
ध्यायेयम्= ध्यान करते हैं
रत्नपीठे= रत्नों के सिंहासन पर बैठी
शुककलपठितं = पढ़ते हुए तोते की आवाज को
शृण्वतीं = सुनती
श्यामलाङ्गीम् = श्याम अंगों वाली
न्यस्तैक आंघ्रिम्= एक पैर को रखे
सरोज= कमल पर
शशिशकलधराम् = चन्द्र के खंड को धारण करने वाली
वल्लकीम् = वीणा
वादयन्तीम् = बजाती हुई
कह्लाराबद्धमालाम् = कल्हार पुष्पों की माला पहने
नियमित विलसच्चोलिकां= कासी चोली से सुशोभित
रक्तवस्त्राम् = लाल वस्त्र पहने
माताङ्गीम्= मातंगी देवी का
शंखपात्राम् = शंख का पात्र लिए
मधुरमधुमदाम् = मधु के हलके प्रभाव से मधुर
चित्रकोद्भासिभालाम् = बिंदी, टिकली से शोभित मस्तक वाली
रत्नों के सिंहासन पर बैठी , पढ़ते हुए तोते की आवाज को सुनती, श्याम अंगों वाली कमल पर एक पैर को रखे ,चन्द्र के खंड को धारण करने वाली, वीणा बजाती हुई, कल्हार पुष्पों की माला पहने , कसी चोली से सुशोभित , लाल वस्त्र पहने , शंख का पात्र लिए, मधु के हलके प्रभाव से मधुर,बिंदी, टिकली से शोभित मस्तक वाली मातंगी देवी का ध्यान करते हैं ।
ॐ ऋषिरुवाच ॥ १॥
ऋषि बोले ।
आज्ञप्तास्ते ततो दैत्याश्चण्डमुण्डपुरोगमाः ।
चतुरङ्गबलोपेता ययुरभ्युद्यतायुधाः ॥ २॥
आज्ञप्ता: = आज्ञा लेकर
ते = वे
ततो = तब
दैत्या: = दैत्य
चण्डमुण्ड= चण्डमुण्ड को
पुरोगमाः = आगे कर के
चतुरङ्गबलोपेता =चतुरङ्ग बल उपेता= चतुरङ्गी सेना के साथ
ययु:= गए
अभ्युद्यत = उठाये हुए
आयुधाः = हथियार
ता आज्ञा ले कर वे दैत्य चण्डमुण्ड को आगे करके चतुरङ्गी सेना के साथ हथियार उठाये हुए गए ।
ददृशुस्ते ततो देवीमीषद्धासां व्यवस्थिताम् ।
सिंहस्योपरि शैलेन्द्रशृङ्गे महति काञ्चने ॥ ३॥
ददृशु: = देख
ते = उन्होंने
ततो = तब
देवीम= देवी को
ईषद्धासां = मंद मंद मुस्कुराती
व्यवस्थिताम् = बैठी
सिंहस्य ऊपरि = सिंह के ऊपर
शैलेन्द्रशृङ्गे = पहाड़ की चोटी पर
महति = बड़ी
काञ्चने= सुनहरी
तब उन्होंने बड़ी सुनहरी पहाड़ की चोटी पर सिंह पर बैठी मंद मंद मुस्कुराती देवी को देखा ।
ते दृष्ट्वा तां समादातुमुद्यमं चक्रुरुद्यताः ।
आकृष्टचापासिधरास्तथान्ये तत्समीपगाः ॥ ४॥
ते = वे
दृष्ट्वा = देखकर
तां = उसको
समादातुम् = पकड़ने का
उद्यमं = प्रयास
चक्रु:= करने लगे
उद्यताः = उत्तेजित हो ,तत्परता से
आकृष्ट = खींच लिया
चाप = धनुष
असि धरा = तलवार ले ली
तथान्ये = इसी प्रकार दूसरे
तत्समीपगाः = उसके समीप चले गए
वे उसे देख कर तत्परता से पकड़ने का प्रयास करने लगे , धनुष खींच लिए , तलवार ले ली, इसी प्रकार दूसरे उसके समीप चले गए ।
ततः कोपं चकारोच्चैरम्बिका तानरीन्प्रति ।
कोपेन चास्या वदनं मषीवर्णमभूत्तदा ॥ ५॥
ततः = तब
कोपं = क्रोध
चकार= किया
उच्चै: = बहुत ज्यादा
अम्बिका = अम्बिका
तान्= उन
अरीन्= शत्रुओं के
प्रति= प्रति , तरफ
कोपेन = क्रोध से
च = और
अस्या = उसका
वदनं = मुख
मषीवर्णम् = स्याही के रंग का
अभूत् = हो गया
तदा = तब
तब अम्बिका ने उन शत्रुओं के प्रति बड़ा क्रोध किया और तब क्रोध से उसका मुख स्याही के रंग का काल हो गया ।
भ्रुकुटीकुटिलात्तस्या ललाटफलकाद्द्रुतम् ।
काली करालवदना विनिष्क्रान्तासिपाशिनी ॥ ६॥
भ्रुकुटीकुटिलात् = टेढ़ी हुई भ्रुकुटियों
तस्या = उसकी
ललाटफलकात् = माथे की सतह
द्रुतम् = तत्काल
काली = काली
करालवदना = भयंकर मुंह वाली
विनिष्क्रान्ता = निकली
असिपाशिनी= तलवार और पाश वाली
उसके माथे की सतह से टेढ़ी हुई भ्रुकुटियों तत्काल भयंकर मुख वाली , तलवार और पाश लिए काली निकली ।
विचित्रखट्वाङ्गधरा नरमालाविभूषणा ।
द्वीपिचर्मपरीधाना शुष्कमांसातिभैरवा ॥ ७॥
विचित्र= अनोखी
खट्वाङ्गधरा = खट्वाङ्ग धारी
नरमालाविभूषणा = नरमुंड माला से सज्जित
द्वीपिचर्मपरीधाना = चीते की खाल के परिधान वाली
शुष्कमांसातिभैरवा = सूखे हुए मांस वाली अत्यंत डरावनी
(वे काली देवी) अनोखी खट्वाङ्ग धारी, नरमुंड माला से सज्जित, चीते की खाल के परिधान वाली सूखे हुए मांस वाली अत्यंत डरावनी थी
अतिविस्तारवदना जिह्वाललनभीषणा ।
निमग्नारक्तनयना नादापूरितदिङ्मुखा ॥ ८॥
अति विस्तार वदना = अत्यंत विशाल मुंह वाली
जिह्वा ललन भीषणा= लटकती जीभ से भयानक लगने वाली
निमग्ना रक्त नयना = अंदर घसी हुए लाल आँखों वाली
नादापूरितदिङ्मुखा = आवाज़ से चारों दिशाओं को गुंजाने वाली
अत्यंत विशाल मुंह वाली, लटकती जीभ से भयानक लगने वाली, अंदर घसी हुए लाल आँखों वाली, आवाज़ से चारों दिशाओं को गुंजाने वाली
सा वेगेनाभिपतिता घातयन्ती महासुरान् ।
सैन्ये तत्र सुरारीणामभक्षयत तद्बलम् ॥ ९॥
सा = वह
वेगेन = वेग से
अभिपतिता = कूद पड़ी , टूट पड़ी
घातयन्ती = मारती हुई
महासुरान् = महासुरों को
सैन्ये = सेना
तत्र = वहां
सुरारीणाम असुरों के
अभक्षयत्= खाने लगी
तद्बलम्= उस सेना को
वह वेग से महासुरों को मरती हुई सेना पर टूट पड़ी । वहाँ असुरों की उस सेना को खाने लगी ।
पार्ष्णिग्राहाङ्कुशग्राहयोधघण्टासमन्वितान् ।
समादायैकहस्तेन मुखे चिक्षेप वारणान् ॥ १०॥
पार्ष्णिग्राह = पार्श्व रक्षकों
अङ्कुशग्राह= महावतों
योध=योद्याओं
घण्टा= घंटों
समन्वितान् = के साथ
समादाय= पकड़ कर
एकहस्तेन=एक हाथ से
मुखे= मुंह में
चिक्षेप= फैंक रही थी
वारणान्= हाथियों
पार्श्व रक्षकों, महावतों, योद्याओं, घंटों के साथ हाथियों को एक हाथ से पकड़ कर मुंह में फैंक रही थी ।
तथैव योधं तुरगै रथं सारथिना सह ।
निक्षिप्य वक्त्रे दशनैश्चर्वयन्त्यतिभैरवम् ॥ ११॥
तथैव = इसी प्रकार ही
योधं = सैनिकों के
तुरगै = घोड़ों को
रथं = रथोंको
सारथिना = सारथियों
सह = के साथ
निक्षिप्य = फैंक कर
वक्त्रे = मुंह में
दशनै = दांतों से
चर्वयन्ति = चबाती थी
अतिभैरवम्= अत्यंत भयंकर
इसी प्रकार ही घोड़ों को सैनिको, रथों को सार्थियों के साथ मुंह में फैंक अत्यंत भयंकर दांतों से चबा जाती थी ।
एकं जग्राह केशेषु ग्रीवायामथ चापरम् ।
पादेनाक्रम्य चैवान्यमुरसान्यमपोथयत् ॥ १२॥
एकं = एक को
जग्राह = पकड़ कर
केशेषु = बालों से
ग्रीवायाम्= गर्दन से
अथ= तब
चापरम् =और दूसरे को
पादेनाक्रम्य = पैरों से दबा कर
चैवा= और ऐसे ही
अन्यम् = दूसरों को
उरसा = छाती से
अन्यम्= अन्यों को
अपोथयत् = कूट कर , पीस कर
तब एक को बालों से पकड़ कर ,दूसरे को गर्दन से पकड़ के ,और ऐसे ही दूसरों को पैर से दबा कर , अन्यों को छाती से कूट दिया ।
तैर्मुक्तानि च शस्त्राणि महास्त्राणि तथासुरैः ।
मुखेन जग्राह रुषा दशनैर्मथितान्यपि ॥ १३॥
तै: = उन
मुक्तानि = छोड़े गए
च = और
शस्त्राणि = शास्त्र
महास्त्राणि = शक्तिशाली अस्त्र
तथा= इस प्रकार
असुरैः = असुरों द्वारा
मुखेन = मुंह में
जग्राह =पकड़ कर
रुषा = क्रोध से
दशनै:= दांतों से
मथिता= पीस दिया
अन्यपि =
इस प्रकार उन असुरों के द्वारा छोड़े गए शक्तिशाली अस्त्रों और शास्त्रों को मुंह में पकड़ कर क्रोध से दांतों से पीस दिया |
बलिनां तद्बलं सर्वमसुराणां दुरात्मनाम् ।
ममर्दाभक्षयच्चान्यानन्यांश्चाताडयत्तदा ॥ १४॥
बलिनां = शक्तिशाली
तद्बलं = वह सेना
सर्वमसुराणां = सारे असुरों की
दुरात्मनाम्= दुरात्मना
ममर्द = रौंद डाली
अभक्षयत्= खा लिया
च = और
अन्यान= दूसरों को
अन्यां= अन्यों को
च = और
अताडयत् = मार दिया
सारे दुरात्मा असुरों की शक्तिशाली सेना को रौंद दिया और अन्यों को खा लिया और दूसरों को मार दिया ।
असिना निहताः केचित्केचित्खट्वाङ्गताडिताः ।
जग्मुर्विनाशमसुरा दन्ताग्राभिहतास्तथा ॥ १५॥
असिना = तलवार से
निहताः = मारे गए
केचित् = कुछ
खट्वाङ्ग= खट्वाङ्ग
ताडिताः = पीटे गए
जग्मु = प्राप्त हुए
विनाशम् = विनाश को , मृत्यु को
असुरा= असुर
दन्ताग्र = दांतों के अग्र भाग से
अभिहता= काटने पर
तथा = इसी प्रकार
कुछ तलवार से मारे गए , कुछ खट्वाङ्ग से पीटे गए और इसी प्रकार कुछ असुर दांतों के अग्र भाग से काटने पर मृत्यु को प्राप्त हुए ।
क्षणेन तद्बलं सर्वमसुराणां निपातितम् ।
दृष्ट्वा चण्डोऽभिदुद्राव तां कालीमतिभीषणाम् ॥ १६॥
क्षणेन = क्षण भर में
तद्बलं = उस सेना
सर्वमसुराणां= सारे असुरों की
निपातितम्= गिरा
दृष्ट्वा = देख कर
चण्ड:= चण्ड
अभिदुद्राव = की ओर दौड़ा
तां = उस
कालीमतिभीषणाम् -= अति भयंकर काली
क्षण भर में सारे असुरों की उस सेना को गिरा देख कर चण्ड उस अति डरावनी काली की तरफ दौड़ा ।
शरवर्षैर्महाभीमैर्भीमाक्षीं तां महासुरः ।
छादयामास चक्रैश्च मुण्डः क्षिप्तैः सहस्रशः ॥ १७॥
शरवर्षै:= तीरों की वर्षा
महाभीमै:= शक्तिशाली
भीमाक्षीं= बड़ी आँखों वाली
तां= उस
महासुरः= महासुर
छादयामास = आच्छादित कर दिया
चक्रै:= चक्र
च = और
मुण्डः = मुंड
क्षिप्तैः = फेंके
सहस्रशः= हजारों
बड़ी आँखों वाली उस काली को चण्ड ने शक्तिशाली तीरों की वर्षा ढक दिया और मुंड ने हजारों चक्र भेजे ।
तानि चक्राण्यनेकानि विशमानानि तन्मुखम् ।
बभुर्यथार्कबिम्बानि सुबहूनि घनोदरम् ॥ १८॥
तानि = वे
चक्राण्यनेकानि = चक्राणि अनेकानि = अनेक चक्र
विशमानानि = घुसते हुए
तन्मुखम् = उसके मुंह में
बभु:= चमक रहे थे
यथा = जिस प्रकार
अर्कबिम्बानि = सुर के बिम्ब
सुबहूनि = अनेक
घनोदरम् = बादलों में
वे अनेक चक्र उसके मुंह में घुसते हुए चम रहे थे जिस प्रकार बादलों में सूर्य के अनेक बिम्ब चमकते हैं ।
ततो जहासातिरुषा भीमं भैरवनादिनी ।
काली करालवक्त्रान्तर्दुर्दर्शदशनोज्ज्वला ॥ १९॥
ततो = तब
जहास = हंसी
अतिरुषा = अत्यंत क्रोध में
भीमं = ज़ोर से
भैरव नादिनी= भयंकर गर्जना करने वाली
काली =काली
कराल वक्त्र अन्तः = विकराल मुंह में
दुर्दर्श = मुश्किल से दिखाई देने वाले
दशन उज्ज्वला = उज्ज्वल दांतों वाली
तब अत्यंत क्रोध में भयंकर गर्जना करने वाली विकराल मुंह में मुश्किल से दिखाई देने वाले उज्ज्वल दांतों वाली काली ज़ोर से हंसी ।
उत्थाय च महासिंहं देवी चण्डमधावत ।
गृहीत्वा चास्य केशेषु शिरस्तेनासिनाच्छिनत् ॥ २०॥
उत्थाय = चढ़ कर
च = और
महासिंहं = सिंह पर
देवी = देवी
चण्डम= चण्ड की तरफ
अधावत = दौड़ी
गृहीत्वा = पकड़ कर
चास्य च अस्य = और उसके
केशेषु= बालों को
शिर:= सिर
तेन= उस
असिना= तलवार से
आच्छिनत् = काट दिया
और देवी महासिंह पर चढ़ कर चण्ड की तरफ दौड़ी और उसके बाल पकड़ कर उसका सर तलवार से काट दिया ।
अथ मुण्डोऽभ्यधावत्तां दृष्ट्वा चण्डं निपातितम् ।
तमप्यपातयद्भूमौ सा खड्गाभिहतं रुषा ॥ २१॥
अथ = तब
मुण्ड: = मुंड
अभ्यधावत् = तरफ़ दौड़ा
ताम्= उस की
दृष्ट्वा= देख कर
चण्डं = चण्ड को
निपातितम् = गिरा हुआ
तमप्य= तं अपि= उसको भी
अपातयत् = गिरा दिया
भूमौ = भूमि पर
सा = उसने
खड्गाभिहतं = तलवार से मार कर
रुषा = क्रोध में
तब चण्ड को गिरा हुआ देख कर मुंड उस देवी की ओर भागा, उसकोभी उसने तलवार से मार कर भूमि पर गिरा दिया ।
हतशेषं ततः सैन्यं दृष्ट्वा चण्डं निपातितम् ।
मुण्डं च सुमहावीर्यं दिशो भेजे भयातुरम् ॥ २२॥
हतशेषं = मरने से बची
ततः = तब
सैन्यं = सेना
दृष्ट्वा = देख कर
चण्डं = चण्ड
निपातितम् = गिरा हुआ , पराजित
मुण्डं = मुण्ड
च = और
सुमहावीर्यं = महा पराक्रमी
दिशो भेजे = चारों दिशाओं में भाग गयी
भयातुरम् = भय से व्याकुल हो
तन मरने से बची सेना चाँद और मुंड को गिरा हुआ देख कर भय से व्याकुल हो चारों दिशाओं में भाग गयी ।
शिरश्चण्डस्य काली च गृहीत्वा मुण्डमेव च ।
प्राह प्रचण्डाट्टहासमिश्रमभ्येत्य चण्डिकाम् ॥ २३॥
शिर: चण्डस्य च मुण्डमेव च = चण्ड का और इसी प्रकार मुंड का सिर
काली = काली
गृहीत्वा = पकड़ कर
प्राह = बोली
प्रचण्डाट्टहास मिश्रम प्रचंड अट्ठहास करती हुई
अभ्येत्य =पास पहुंच कर
चण्डिकाम् = चण्डिका के
चण्ड का और इसी प्रकार मुंड का सिर पकड़ कर प्रचंड अट्ठहास करती हुई चण्डिका के पास पहुंच कर बोली ।
मया तवात्रोपहृतौ चण्डमुण्डौ महापशू ।
युद्धयज्ञे स्वयं शुम्भं निशुम्भं च हनिष्यसि ॥ २४॥
मया = मेरे द्वारा
तवात्र = तव अत्र = यहां तुम्हारे पास
उपहृतौ = लाया गया है
चण्डमुण्डौ = चण्डमुण्ड
महापशू = महा पशुओं को
युद्धयज्ञे = युद्धयज्ञ में
स्वयं = खुद
शुम्भं निशुम्भं च = शुम्भ और निशुम्भ का
हनिष्यसि = वध करना
मेरे द्वारा चण्डमुण्ड महा पशुओं को यहां तुम्हारे पास लाया गया है , युद्धयज्ञ में खुद शुम्भ और निशुम्भ का आप वध करना ।
ऋषिरुवाच ॥ २५॥
ऋषि बोले ।
तावानीतौ ततो दृष्ट्वा चण्डमुण्डौ महासुरौ ।
उवाच कालीं कल्याणी ललितं चण्डिका वचः ॥ २६॥
ता:= उनको
अवनीतौ = लाया हुआ
ततो = तब
दृष्ट्वा = देख कर
चण्डमुण्डौ = चण्डमुण्ड
महासुरौ =महासुर
उवाच = बोलीं
कालीं = काली को
कल्याणी = कल्याणमयी
ललितं = सुन्दर, कोमल
चण्डिका= चण्डिका
वचः = वचन तब उन महासुरों चण्ड मुण्ड को लाया हुआ देख कर कल्याणमयी चण्डिका देवी काली को कोमल शब्दों में बोलीं ।
यस्माच्चण्डं च मुण्डं च गृहीत्वा त्वमुपागता ।
चामुण्डेति ततो लोके ख्याता देवी भविष्यसि ॥ २७॥
यस्मात = क्यों की
चण्डं च मुण्डं च = चण्ड और मुण्ड को
गृहीत्वा = पकड़ कर
त्वम = तुम
उपागता = लायी हो
चामुण्डा = चामुण्डा
इति = इस प्रकार से
ततो तब
लोके = संसार में
ख्याता = प्रसिद्द
देवी = देवी
भविष्यसि = होंगी
देवी, क्यों की तुम चण्ड और मुण्ड को पकड़ कर लायी हो , इस लिए संसार में चामुण्डा इस प्रकार से से प्रसिद्ध होंगी ।
॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
चण्डमुण्डवधो नाम सप्तमोऽध्यायः ॥ ७॥
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