Tuesday, March 24, 2015

अष्टमोऽध्यायः

ॐ अरुणां करुणातरङ्गिताक्षीं धृतपाशाङ्कुशबाणचापहस्ताम्।

अणिमादिभिरावृतां मयूखैरहमित्येव विभावये भवानीम्।।



 अरुणां = लाल रंग वाली 
करुणातरङ्गिताक्षीं = आँखों में करुणा की लहर वाली 
धृत पाश अङ्कुश बाण चाप हस्ताम्= हाथों में पाश, अंकुश , बाण , चाप धारण किये 

अणिमादिभि :आवृतां = अणिमा आदि से घिरी 
मयूखै:= किरणों से 
अहमित्येव = मैं इस प्रकार 
विभावये = विचार करता/ करती हूँ । 
भवानीम्= भवानी का 

लाल रंग वाली, आँखों में करुणा की लहर वाली, हाथों में पाश, अंकुश , बाण , चाप धारण किये, अणिमा आदि किरणों से से घिरी भवानी का मैं इस प्रकार विचार करता/ करती हूँ । 

ॐ ऋषिरुवाच ॥ १॥

ऋषि बोले । 

चण्डे च निहते दैत्ये मुण्डे च विनिपातिते ।
बहुलेषु च सैन्येषु क्षयितेष्वसुरेश्वरः ॥ २॥

चण्डे च निहते = चण्ड के मारे जाने पर 
दैत्ये मुण्डे च विनिपातिते और दैत्य मुंड के मारे जाने पर 
बहुलेषु च सैन्येषु = और बहुत साड़ी सेना 
क्षयितेषु= नष्ट होने पर 
असुरेश्वरः= असुरों के राजा 

ततः कोपपराधीनचेताः  शुम्भः प्रतापवान् ।
उद्योगं सर्वसैन्यानां दैत्यानामादिदेश ह ॥ ३॥

ततः = तब 
कोपपराधीनचेताः  = क्रोध के पराधीन मन 
शुम्भः = शुम्भ 
प्रतापवान् = प्रतापी 
उद्योगं = लड़ाई का 
सर्वसैन्यानां = सारी सेना को 
दैत्यानाम = दैत्यों की 
आदिदेश ह = आदेश दिया 


तब तब क्रोध से युक्त मन वाले प्रतापी शुम्भ ने दैत्यों की सारी सेना को लड़ाई का आदेश दिया । 

अद्य सर्वबलैर्दैत्याः षडशीतिरुदायुधाः ।
कम्बूनां चतुरशीतिर्निर्यान्तु स्वबलैर्वृताः ॥ ४॥

अद्य = आज 
सर्वबलै:= सारी सेना के साथ 
दैत्याः = दैत्य 
षडशीति= छियासी 
उदायुधाः = हथियार उठाये , हथियारों से युक्त 
कम्बूनां = कम्बु 
चतुरशीति:= चुरासी 
निर्यान्तु = कूच करें  
स्वबलैर्वृताः= सारी सेना से घिर कर 


आज छियासी दैत्य सारी सेना के साथ, चौरासी कम्बु सारी सेना से घिर कर हथियारों से युक्त कूच करें  । 

कोटिवीर्याणि पञ्चाशदसुराणां कुलानि वै ।
शतं कुलानि धौम्राणां निर्गच्छन्तु ममाज्ञया ॥ ५॥

कोटिवीर्याणि = कोटि वीर्य 
पञ्चाशद= पचास 
असुराणां = असुर (सेनापति )
कुलानि=कुल के 
 वै = भी 
शतं = सौ 
कुलानि = कुल के 
धौम्राणां = धौम्र
निर्गच्छन्तु = कूच करे 
ममाज्ञया = मेरी आज्ञा से 


कोटि वीर्य कुल के पचास असुर (सेनापति ), सौ धौम्र कुल के  (सेनापति) भी कूच करें ।  

कालका दौर्हृदा मौर्वाः कालिकेयास्तथासुराः ।
युद्धाय सज्जा निर्यान्तु आज्ञया त्वरिता मम ॥ ६॥

कालका =कालका
दौर्हृदा = दौर्हृदा 
मौर्वाः =मौर्वाः
कालिकेया = कालिकेया
तथा= इसी प्रकार 
असुराः = असुर सेनापति 
युद्धाय = युद्ध के लिए 
सज्जा = तैयार हो कर 
निर्यान्तु = कूच करें 
आज्ञया = आज्ञा से 
त्वरिता = जल्दी से 
मम= मेरी 


कालका, दौर्हृदा, मौर्वा, कालिकेया असुर सेनापति मेरी आज्ञा से  युद्ध के लिए  तैयार हो कर कूच करें । 

इत्याज्ञाप्यासुरपतिः शुम्भो भैरवशासनः ।
निर्जगाम महासैन्यसहस्रैर्बहुभिर्वृतः ॥ ७॥

इत्याज्ञाप्या= इति आज्ञाप्या= ऐसा आदेश दे कर 
असुरपतिः = असुरों का राजा 
शुम्भो = शुम्भ 
भैरवशासनः= भयानक शाशन करने वाला 
निर्जगाम = गया 
महासैन्य = महा सेनाओं 
सहस्रै = हजारों 
बहुभि:= कई प्रकार की 
वृतः = घिर कर 


ऐसा आदेश दे कर भयानक शाशन करने वाला असुरराज शुम्भ कई प्रकार की हजारों महासेनाओं के साथ गया ।  

आयान्तं चण्डिका दृष्ट्वा तत्सैन्यमतिभीषणम् ।
ज्यास्वनैः पूरयामास धरणीगगनान्तरम् ॥ ८॥

आयान्तं = आते हुए 
चण्डिका = चण्डिका ने 
दृष्ट्वा = देख कर 
तत्सैन्यम = उस सेना को 
अतिभीषणम् = अत्यंत भयानक 
ज्यास्वनैः = धनुष की टंकार से 
पूरयामास = भर दिया , गूंजा दिया 
धरणीगगना= धरती और आकाश की 
अन्तरम् = दूरी को , खाली जगह को 


चण्डिका ने उस अत्यंत भयानक सेना को आते हुए देख कर धनुष की टंकार से धरती और आकाश की  दूरी को  भर दिया । 

ततः सिंहो महानादमतीव कृतवान्नृप ।
घण्टास्वनेन तान्नादानम्बिका चोपबृंहयत् ॥ ९॥ 

ततः = तब 
सिंहो = सिंह ने 
महानादम = महान गर्जना 
अतीव = अत्यंत 
कृतवान् = की 
नृप = हे राजा 
घण्टास्वनेन = घंटे की आवाज से 
तान् = उस 
नादान्= आवाज को 
अम्बिका = अम्बिका ने 
च= और 
उपबृंहयत् = बढ़ा दिया 


हे राजा , तब सिंह ने अत्यंत महान गर्जना की और उस आवाज को अम्बिका ने घंटे की आवाज से बढ़ा दिया । 

धनुर्ज्यासिंहघण्टानां नादापूरितदिङ्मुखा ।
निनादैर्भीषणैः काली जिग्ये विस्तारितानना ॥ १०॥

धनुर्ज्या सिंह घण्टानां = धनुष , शेर और घंटे की 
नाद = आवाज से 
आपूरित = भर गयीं , गूंज उठी 
दिङ्मुखा= चारों दिशाएँ 
निनादै:= आवाज से 
भीषणैः = भयंकर 
काली = काली 
जिग्ये = विजयी हुई 
विस्तारितानना = बड़े मुख वाली 


धनुष , शेर और घंटे की आवाज से चारों दिशाएँ गूंज उठी । बड़े मुख वाली काली भयंकर आवाज से विजयी हुई । 

तं निनादमुपश्रुत्य दैत्यसैन्यैश्चतुर्दिशम् ।
देवी सिंहस्तथा काली सरोषैः परिवारिताः ॥ ११॥

तं = उन  
निनादम्= आवाज़ों को 
उपश्रुत्य = सुन कर 
दैत्यसैन्यै:= दैत्यों की सेना ने 
चतुर्दिशम्  चारों दिशाओं से 
देवी = देवी 
सिंहस्तथा = सिंह और 
काली = काली को 
सरोषैः = क्रोध से 
परिवारिताः = घेर लिया 


उन आवाज़ों को सुन कर दैत्यों की सेना ने क्रोध से चारों दिशाओं से देवी, सिंह और काली को घेर लिया । 

एतस्मिन्नन्तरे भूप विनाशाय सुरद्विषाम् ।
भवायामरसिंहानामतिवीर्यबलान्विताः ॥ १२॥

ब्रह्मेशगुहविष्णूनां तथेन्द्रस्य च शक्तयः ।
शरीरेभ्यो विनिष्क्रम्य तद्रूपैश्चण्डिकां ययुः ॥ १३॥

एतस्मिन् = इसी 
अन्तरे = समय 
भूप = हे राजा 
विनाशाय = विनाश के लिए 
सुरद्विषाम् ।= देवताओं के शत्रुओं के 
भवाय= कल्याण के लिए 
अमरसिंहानाम् = देवताओं के 
अतिवीर्यबलान्विताः = अत्यंत पराक्रम और बल युक्त   

ब्रह्मेशगुहविष्णूनां = ब्रह्मा , शिव , कार्तिकेय , विष्णु 
तथा = इसी प्रकार 
इन्द्रस्य = इंद्र के 
 च = और 
 शक्तयः= शक्तियां 
शरीरेभ्यो= शरीरों से 
विनिष्क्रम्य = निकल कर 
तद् रुपैः = उसी रूप में 
चण्डिकां=चण्डिका के

 ययुः = पास गयीं 

इसी समय हे राजा  देवताओं के शत्रुओं के विनाश के लिए , देवताओं के कल्याण के लिए अत्यंत पराक्रम और बल युक्त   ब्रह्मा , शिव , कार्तिकेय , विष्णु और इसी प्रकार इंद्र के शरीरों से निकल कर (उनकी) शक्तियां उसी रूप में चण्डिका के पास गयीं । 


यस्य देवस्य यद्रूपं यथा भूषणवाहनम् ।
तद्वदेव हि तच्छक्तिरसुरान्योद्धुमाययौ ॥ १४॥


यस्य = जिस 
देवस्य = देवता का 
यद्रूपं = जो रूप था 
यथा = जैसी 
भूषणवाहनम् = वेशभूषा , वाहन 
तद्वदेव = तद्वद् एव  = वैसे ही 
हि = बिल्कुल
तच्छक्ति:= तद् शक्तिः = वह शक्ति 
असुरा = असुरों से 
योद्धुम् = युद्ध के लिए 
आययौ = आई

जिस देवता का जैसा रूप था , जैसी वेशभूषा , वाहन थे बिल्कुल  वैसे ही वो शक्ति असुरों से युद्ध करने आई । 

हंसयुक्तविमानाग्रे साक्षसूत्रकमण्डलुः ।
आयाता ब्रह्मणः शक्तिर्ब्रह्माणीत्यभिधीयते ॥ १५॥

हंसयुक्तविमानाग्रे = हंसों से युक्त विमान पर 
साक्षसूत्रकमण्डलुः= स्फटिक माला(अक्षसूत्र )  , कमंडल युक्त 
आयाता = आयीं 
ब्रह्मणः शक्ति:=  ब्रह्मा की शक्ति 
ब्रह्माणी =ब्रह्माणी
सा = उसे 
अभिधीयते = कहा जाता है 

हंसों से युक्त विमान पर स्फटिक माला(अक्षसूत्र ) , कमंडल युक्त ब्रह्मा की शक्ति आयीं, उसे ब्रह्माणी कहा जाता है । 

माहेश्वरी वृषारूढा त्रिशूलवरधारिणी ।
महाहिवलया प्राप्ता चन्द्ररेखाविभूषणा ॥  १६॥

माहेश्वरी = माहेश्वरी 
वृषारूढा = वृषभ पर बैठी 
त्रिशूलवर धारिणी = श्रेष्ठ त्रिशूल धारण किये  
महाहिवलया = महा अहि वलय = महान नाग का कडा पहने 
प्राप्ता = आयीं 
चन्द्ररेखाविभूषणा = चन्द्र रेखा से सुसज्जित 


माहेश्वरी वृषभ पर बैठी, श्रेष्ठ त्रिशूल धारण किये , महान नाग का कडा पहने, चन्द्र रेखा से सुसज्जित आयीं । 

कौमारी शक्तिहस्ता च मयूरवरवाहना ।
योद्धुमभ्याययौ दैत्यानम्बिका गुहरूपिणी ॥ १७॥

कौमारी = कौमारी
शक्तिहस्ता = हाथ में शक्ति लिए 
च = और 
मयूरवरवाहना = श्रेष्ठ मयूर वाहन पर 
योद्धुम = युद्ध के लिए 
अभ्याययौ = पास  आईं
दैत्यान= दैत्यों के साथ 
अम्बिका = अम्बिका के 
गुहरूपिणी = कार्तिकेय के रूप में 

और कौमारी कार्तिकेय के रूप में हाथ में शक्ति लिए श्रेष्ठ मयूर वाहन पर दैत्यों के साथ  युद्ध के लिए अम्बिका के पास आईं । 

तथैव वैष्णवी शक्तिर्गरुडोपरि संस्थिता ।
शङ्खचक्रगदाशार्ङ्गखड्गहस्ताभ्युपाययौ ॥ १८॥

तथैव = इसी प्रकार ही 
वैष्णवी = वैष्णवी
शक्ति:= शक्ति 
गरुडोपरि = गुरुङ के ऊपर 
संस्थिता= बैठी 
शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग खड्ग हस्ता = शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग खड्ग हाथ में लिए 
अभ्युपाययौ = पास गयीं 


इसी प्रकार ही वैष्णवी शक्ति गुरुङ के ऊपर बैठी शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग खड्ग हाथ में लिए पास गयीं । 

यज्ञवाराहमतुलं रूपं या बिभ्रतो हरेः ।
शक्तिः साप्याययौ तत्र वाराहीं बिभ्रती तनुम् ॥ १९॥

यज्ञवाराहम= यज्ञ बाराह का 
अतुलं= अतुलनीय 
रूपं = रूप 
या = जिसने 
बिभ्रतो = धारण किया है 
हरेः = श्री हरी की 
शक्तिः = शक्ति 
सा =   वह 
अपि = भी 
आययौ = आयीं 
तत्र = वहां 
वाराहीं = वाराह 
बिभ्रती = धारण करके 
तनुम् = शरीर 


यज्ञ बाराह का अतुलनीय रूप जिस ने धारण किया है श्री ह्स्री की वह शक्ति भी वाराह का रूप धारण करके वहां आयीं ।  

नारसिंही नृसिंहस्य बिभ्रती सदृशं वपुः ।
प्राप्ता तत्र सटाक्षेपक्षिप्तनक्षत्रसंहतिः ॥ २०॥

नारसिंही =नारसिंही
नृसिंहस्य = नृसिंह के  
बिभ्रती = धारण कर के 
सदृशं = सामान 
वपुः = शरीर 
प्राप्ता = आयीं 
तत्र = वहां 
सटाक्षेप= गर्दन के बाल हिलाने से 
क्षिप्त= बिखर रहा था 
नक्षत्र= तारों का 
संहतिः = समूह 

नारसिंही नृसिंह के सामान धारण कर के वहां आयीं , जिसके गर्दन के बाल हिलाने से तारों का समूह बिखर रहा था । 

वज्रहस्ता तथैवैन्द्री गजराजोपरि स्थिता ।
प्राप्ता सहस्रनयना यथा शक्रस्तथैव सा ॥ २१॥

वज्रहस्ता = व्रज हाथ में लिए 
तथैवैन्द्री = इस प्रकार इंद्री 
गजराजोपरि = गजराज के ऊपर 
स्थिता = बैठ कर 
प्राप्ता = आयीं 
सहस्रनयना = हज़ारों नेत्रों  वाली 
यथा = जैसे
शक्र: =इंद्र  
तथैव= वैसी ही 
सा = वह 


इसी प्रकार हज़ारों नेत्रों  वाली इंद्री व्रज हाथ में लिए गजराज के ऊपर बैठ कर आयीं । जैसे इंद्र (का रूप है ) वैसी ही वह (थी ) । 

ततः परिवृतस्ताभिरीशानो देवशक्तिभिः ।
हन्यन्तामसुराः शीघ्रं मम प्रीत्याह चण्डिकाम् ॥ २२॥

ततः = तब 
परिवृत:= घिरे 
ताभि:= उन 
ईशानो = शिव ने 
देवशक्तिभिः = देव शक्तियों से 
हन्यन्ताम्= संहार करो 
असुराः = असुरों को 
शीघ्रं = शीघ्र ही 
मम = मेरी 
प्रीत्या = प्रसन्नता के लिए 
आह = कहा 
चण्डिकाम् = चण्डिका 


तब उन देव शक्तियों से घिरे शिव ने चण्डिका को कहा मेरी प्रसन्नता के लिए असुरों का शीघ्र ही संहार करो । 

ततो देवीशरीरात्तु विनिष्क्रान्तातिभीषणा ।
चण्डिका शक्तिरत्युग्रा शिवाशतनिनादिनी ॥ २३॥

ततो = तब 
देवीशरीरात् =देवी के  शरीर से 
तु = और 
विनिष्क्रान्ता = निकली , प्रकट हुईं 
अतिभीषणा ।= अति भयंकर 
चण्डिका = चण्डिका 
शक्ति:= शक्ति 
अत्युग्रा = अति उग्र 
शिवाशतनिनादिनी = सौ गीदड़ों की आवाज़ वाली 


तब देवी के शरीर से अति भयंकर और अति उग्र सौ गीदड़ों की आवाज़ वाली चण्डिका शक्ति प्रकट हुईं । 

सा चाह धूम्रजटिलमीशानमपराजिता ।
दूत त्वं गच्छ भगवन् पार्श्वं शुम्भनिशुम्भयोः ॥ २४॥

सा = उस 
च = और 
आह = कहा 
धूम्रजटिलम्= धूमिल जटाओं वाले 
ईशानम्= शिव को 
अपराजिता = अपराजिता 
दूत = दूत बन 
त्वं = आप 
गच्छ = जाइए 
भगवन् = भगवन 
पार्श्वं = पास 
शुम्भनिशुम्भयोः = शुम्भ निशुम्भ के 


और उस अपराजिता देवी ने धूमिल जटाओं वाले शिव को कहा , भगवन आप शुम्भ निशुम्भ के पास दूत बन कर जाइए ।

ब्रूहि शुम्भं निशुम्भं च दानवावतिगर्वितौ ।
ये चान्ये दानवास्तत्र युद्धाय समुपस्थिताः ॥ २५॥

ब्रूहि = कहिये 
शुम्भं निशुम्भं च= और शुम्भ निशुम्भ को 
दानवाव = दानवों को 
अतिगर्वितौ = अत्यंत घमंडी 
ये = जो 
च = और 
अन्ये = दूसरे 
दानवा= दानव 
तत्र = वहां 
युद्धाय = युद्ध के लिए 
समुपस्थिताः = उपस्थित हैं 


और अत्यंत घमंडी दानवों शुम्भ निशुम्भ को और जो दूसरे दानवों को वहाँ युद्ध के लिए उपस्थित हैं , कहिये । 

त्रैलोक्यमिन्द्रो लभतां देवाः सन्तु हविर्भुजः ।
यूयं प्रयात पातालं यदि जीवितुमिच्छथ ॥ २६॥

त्रैलोक्यम् = तीनों लोक 
इन्द्रो = इंद्र को 
लभतां = मिल जाएँ 
देवाः = देवता 
सन्तु = करने लगे  
हविर्भुजः=  यज्ञ भाग का उपयोग 
यूयं = तुम सब 
प्रयात = चले जाएँ 
पातालं = पाताल में 
यदि = यदि 
जीवितुम् = जीने की 
इच्छथ= इच्छा है 


यदि जीने की इच्छा है तो तुम सब पाताल में चले जाओ, इंद्र को तीनों लोक मिल जाएँ , देवता यज्ञ भाग का उपयोग करने लगे । 

बलावलेपादथ चेद्भवन्तो युद्धकाङ्क्षिणः ।
तदागच्छत तृप्यन्तु मच्छिवाः पिशितेन वः ॥ २७॥

बलावलेपात् = बल का घमंड से 
अथ = अब 
चेद्  = यदि 
भवन्तो = तुम सब को 
युद्धकाङ्क्षिणः = युध्दि की इच्छा है 
तदा= तब 
अगच्छत = आओ 
तृप्यन्तु = तृप्त हों 
मच्छिवाः = मत् शिवाः = मेरी शिवायें 
पिशितेन = मांस से 
वः = तुम सब के 


अब यदि बल का घमंड से तुम सब को युद्ध की अभिलाषा है तो आयटम सब के मांस से मेरी शिवायें तृप्त हों । 

यतो नियुक्तो दौत्येन तया देव्या शिवः स्वयम् ।
शिवदूतीति लोकेऽस्मिंस्ततः सा ख्यातिमागता ॥ २८॥

यतो = क्यूंकि 
नियुक्तो = नियुक्त किया था 
दौत्येन = दूत के लिए 
तया = उस 
देव्या = देवी ने 
शिवः = शिव को 
स्वयम्= खुद
शिवदूतीति = शिवदूती इस प्रकार 
लोकेऽस्मिं इस संसार में 
ततः = तब , इसलिए 
सा = वह 
ख्यातिमागता = ख्यातिम् आगता =  प्रसिद्द हुई 


क्यों की देवी ने खुद शिव को दूत नियुक्त किया था इसलिए वह इस संसार में शिवदूती के नाम से प्रसिद्द हुईं । 

तेऽपि श्रुत्वा वचो देव्याः शर्वाख्यातं महासुराः ।
अमर्षापूरिता जग्मुर्यत्र कात्यायनी स्थिता ॥ २९॥

तेऽपि = वे भी 
श्रुत्वा = सुन कर 
वचो = वचन 
देव्याः = देवी के 
शर्वाख्यातं = शिव द्वारा कहे 
महासुराः= महाअसुर 
अमर्षापूरिता = क्रोध से भरे 
जग्मु: = गए 
यत्र = जहां 
कात्यायनी = कात्यायनी
स्थिता = विराजमान थीं 


वे महाअसुर भी शिव द्वारा कहे देवी के वचनों को सुन कर क्रोध से भरे वहाँ गए जहां कात्यायनी देवी विराजमान थीं । 

ततः प्रथममेवाग्रे शरशक्त्यृष्टिवृष्टिभिः ।
ववर्षुरुद्धतामर्षास्तां देवीममरारयः ॥ ३०॥

ततः = तब 
प्रथममेवा = पहले ही 
अग्रे =  तरफ , आगे
शर शक्ति  ऋष्टि वृष्टिभिः = तीरों , शक्ति , ऋष्टि की  
ववर्षु:= वर्षा की
उद्धत = उत्तेजित
अमर्षा: = क्रोध से 
ताम् =  उस 
देवीम् = देवी 
अमरारयः= असुरों ने 


तब क्रोध से उत्तेजित असुरों ने पहले ही उस देवी की तरफ तीरों , शक्ति , ऋष्टि की वर्षा की । 

सा च तान् प्रहितान् बाणाञ्छूलशक्तिपरश्वधान् ।
चिच्छेद लीलयाध्मातधनुर्मुक्तैर्महेषुभिः ॥ ३१॥
सा =उसने 
च = और 
तान् = उन 
प्रहितान् = फेंके गए  
बाणान् = बाणों 
शूलशक्तिपरश्वधान् = शूल , शक्ति , कुल्हाड़ियों को 
चिच्छेद = काट दिया 
लीलया= खेल खेल में 
आध्मात= टंकार करते 
धनु:= धनुष से 
मुक्तै: = छोड़े 
महेषुभिः महा इषुभिः = बड़े तीरों से 


और उस देवी ने उन फेंके हुए बाणों ,शूल , शक्ति , कुल्हाड़ियों को    खेल खेल में टंकार करते धनुष से छोड़े बड़े तीरों से काट दिया । 


तस्याग्रतस्तथा काली शूलपातविदारितान् ।
खट्वाङ्गपोथितांश्चारीन्कुर्वती व्यचरत्तदा ॥ ३२॥

तस्याग्रत: = उसके आगे 
तथा = इसी प्रकार 
काली = काली 
शूलपातविदारितान् = शूल प्रहार से भेदती 
खट्वाङ्गपोथितां = खट्वाङ्ग से नष्ट 
च = और 
 अरीन् = दुश्मनों को 
कुर्वन्ति = करती हुई 
व्यचरत् = घूमने लगी 
तदा = तब 


और इसी प्रकार काली दुश्मनों को शूल प्रहार से भेदती और खट्वाङ्ग से नष्ट करती हुई उसके आगे घूमने लगी । 

कमण्डलुजलाक्षेपहतवीर्यान् हतौजसः ।
ब्रह्माणी चाकरोच्छत्रून्येन येन स्म धावति ॥ ३३॥

कमण्डलु = कमण्डलु
जलाक्षेप = जल छिड़क  के 
हतवीर्यान् = पराक्रम विहीन 
हतौजसः= तेज  विहीन 
ब्रह्माणी = ब्रह्माणी
च= और 
अकरोत् = कर देती 
शत्रून्= शत्रुओं को 
येन येन = जहां जहां 
स्म = तब 
धावति = जाती 


ब्रह्माणी  जहां जहां जाती  तब कमण्डलु से जल छिड़क के शत्रुओं को पराक्रम विहीन और तेज विहीन कर देती । 

माहेश्वरी त्रिशूलेन तथा चक्रेण वैष्णवी ।
दैत्याञ्जघान कौमारी तथा शक्त्यातिकोपना ॥ ३४॥

माहेश्वरी = माहेश्वरी 
त्रिशूलेन = त्रिशूल से 
तथा = इसी प्रकार 
चक्रेण = चक्र से 
वैष्णवी = वैष्णवी
दैत्यान्= दैत्यों को 
जघान = मार रही थीं 
कौमारी = कौमारी 
तथा = इसी प्रकार 
शक्त्य = शक्ति से 
अतिकोपना = अत्यंत क्रोधित  


माहेश्वरी त्रिशूल से ,इसी प्रकार वैष्णवी चक्र से ,इसी प्रकार  कौमारी शक्ति से दैत्यों को मार रही थीं । 

ऐन्द्री कुलिशपातेन शतशो दैत्यदानवाः ।
पेतुर्विदारिताः पृथ्व्यां रुधिरौघप्रवर्षिणः ॥ ३५॥

ऐन्द्री = ऐन्द्री के 
कुलिशपातेन= व्रज के प्रहार से 
 शतशो = सैंकड़ों 
दैत्यदानवाः = दैत्य और दानव 
पेतु:= गिर गए 
विदारिताः = कट कर 
पृथ्व्यां = पृथ्वी पर 
रुधिर= रक्त की 
औघ= धारा
प्रवर्षिणः= बहाते हुए 


ऐन्द्री के व्रज के प्रहार से सैंकड़ों दैत्य और दानव कट कर रक्त की धारा बहाते हुए पृथ्वी पर गिर गए । 

तुण्डप्रहारविध्वस्ता दंष्ट्राग्रक्षतवक्षसः ।
वाराहमूर्त्या न्यपतंश्चक्रेण च विदारिताः ॥ ३६॥

तुण्डप्रहार = थूथन के प्रहार से 
विध्वस्ता = नष्ट हो गए 
दंष्ट्राग्र=  दाढ़ों के अग्र भाग से 
क्षतवक्षसः= छाती भिद गयी  
वाराहमूर्त्या = वाराही के  
न्यपतं = गिर गए 
चक्रेण = चक्र से 
च = और  
विदारिताः = टुकड़े हो कर 


(असुर) वाराही के थूथन के प्रहार से नष्ट हो गए,  दाढ़ों के अग्र भाग से छाती भिद गयी और चक्र से (उनके) टुकड़े हो कर गिर गए । 

नखैर्विदारितांश्चान्यान् भक्षयन्ती महासुरान् ।
नारसिंही चचाराजौ नादापूर्णदिगम्बरा ॥ ३७॥

नखै: = नाखूनों से 
विदारितां = फाड़ दिया 
च = और 
अन्यान् = दूसरों को 
भक्षयन्ती = खाती 
महासुरान् = महासुरों को 
नारसिंही = नारसिंही ने 
चचार = घूमने लगी 
आजौ = युद्ध भूमि में 
नादापूर्णदिगम्बरा = दहाड़ से दिशाओं को गुंजाती हुई 


नारसिंही ने महासुरों को नाखूनों से फाड़ दिया और दूसरों को खाती हुई युद्ध भूमि में दहाड़ से दिशाओं को गुंजाती हुई घूमने लगी । 

चण्डाट्टहासैरसुराः शिवदूत्यभिदूषिताः ।
पेतुः पृथिव्यां पतितांस्तांश्चखादाथ सा तदा ॥ ३८॥

चण्डाट्टहासै: = प्रचंड अट्ठास से 
असुराः =असुर 
शिवदूति= शिवदूती के 
अभिदूषिताः= घायल , भयभीत 
पेतुः = गिर गए 
पृथिव्यां= पृथ्वी पर 
पतितां= गिरे हुए 
तां = उन 
चखाद = खाने लगी 
अथ = और 
सा = वह 
तदा= तब 


असुर शिवदूती के  प्रचंड अट्ठास से भयभीत हो पृथ्वी पर गिर गए और वह तब गिरे हुए उन असुरों को खा गयीं । 

इति मातृगणं क्रुद्धं मर्दयन्तं महासुरान् ।
दृष्ट्वाभ्युपायैर्विविधैर्नेशुर्देवारिसैनिकाः ॥ ३९॥

इति = इस प्रकार 
मातृगणं = मातृगणों द्वारा 
क्रुद्धं = क्रोध में  
मर्दयन्तं = मर्दन करते 
महासुरान् = महासुरों का 
दृष्ट्वा= देख कर 
अभ्युपायै:= उपायों से 
विविधै:= विभिन्न 
नेशु:= भाग खड़े हुए 
देवारि सैनिकाः = दैत्य सैनिक 


इस प्रकार मातृगणों द्वारा क्रोध में विभिन्न उपायों से महासुरों का मर्दन करते देख कर दैत्य सैनिक भाग खड़े हुए । 

पलायनपरान्दृष्ट्वा दैत्यान्मातृगणार्दितान् ।
योद्धुमभ्याययौ क्रुद्धो रक्तबीजो महासुरः ॥ ४०॥

पलायनपरान् = भागता हुआ 
दृष्ट्वा = देख कर 
दैत्यान् = दैत्यों को 
मातृगणार्दितान् = मातृगणों से पीड़ित 
योद्धुम्= युद्ध करने  
अभ्याययौ = आया 
क्रुद्धो= क्रोधित हो 
रक्तबीजो = रक्तबीज 
महासुरः= महासुर 


मातृगणों से पीड़ित दैत्यों को भागता हुआ देख कर महासुर रक्तबीज क्रोधित हो युद्ध करने आया । 

रक्तबिन्दुर्यदा भूमौ पतत्यस्य शरीरतः ।
समुत्पतति मेदिन्यां तत्प्रमाणो महासुरः ॥ ४१॥

रक्तबिन्दु:= रक्त की बूंदे 
यदा = जब 
भूमौ = भूमि पर 
पतति = गिरते 
अस्य = उसके 
शरीरतः = शरीर से 
समुत्पतति उत्पन्न हो जाता 
मेदिन्यां = भूमि से 
तत्प्रमाणो = उसके जैसा 
महासुरः= महासुर


जब उसके शरीर से रक्त की बूँदें भूमि पर गिरती , भूमि से उसके जैसा महासुर उत्पन्न हो जाता । 

युयुधे स गदापाणिरिन्द्रशक्त्या महासुरः ।
ततश्चैन्द्री स्ववज्रेण रक्तबीजमताडयत् ॥ ४२॥

युयुधे = युद्ध किया 
स = उस
गदापाणि: = गदा हाथ में ले 
इन्द्रशक्त्या = इंद्र की शक्ति से 
महासुरः =  महासुर ने 
तत: = तब 
च = और 
एन्द्री = इंद्री ने 
स्ववज्रेण = अपने वज्र से 
रक्तबीजम्= रक्तबीज को 
अताडयत् = मारा


तब उस महासुर ने गदा हाथ में ले  इंद्र की शक्ति से युद्ध किया और ऐन्द्री ने अपने वज्र से रक्तबीज को मारा । 

कुलिशेनाहतस्याशु बहु सुस्राव शोणितम् ।
समुत्तस्थुस्ततो योधास्तद्रूपास्तत्पराक्रमाः ॥ ४३॥

कुलिशेन= वज्र से 
आहत अस्य= घायल उसका 
आशु  = शीघ्र  ही 
बहु = बहुत सा 
सुस्राव = बह गया 
शोणितम् = रक्त 
समुत्तस्थु = उठ खड़े हुए 
ततो = तब 
योधा= योद्धा 
तद् रूपा= उसके रूप 
तद् पराक्रमाः = उसके पराक्रम 



वज्र से घायल उसका शीघ्र बहुत सा रक्त बह गया , तब उसी के रूप , उसी के पराक्रम वाले योद्धा उठ खड़े हुए । 

यावन्तः पतितास्तस्य शरीराद्रक्तबिन्दवः ।
तावन्तः पुरुषा जातास्तद्वीर्यबलविक्रमाः ॥ ४४॥

यावन्तः = जितने 
पतिता = गिरे 
तस्य = उसके 
शरीरात् =शरीर से 
रक्तबिन्दवः = रक्त बिंदु 
तावन्तः = उतने ही 
पुरुषा = पुरुष 
जाता: = उत्पन्न हो गए 
तद्वीर्यबलविक्रमाः = उसके जैसे साहसी, बली, पराक्रमी वाले 


उसके शरीर से जितने भी रक्त बिंदु गिरे , उतने ही   उसके जैसे साहसी, बली, पराक्रमी वाले पुरुष उत्पन्न हो गए । 

ते चापि युयुधुस्तत्र पुरुषा रक्तसम्भवाः ।
समं मातृभिरत्युग्रशस्त्रपातातिभीषणम् ॥ ४५॥

ते = वे 
 च = और 
अपि = भी 
युयुधु: = युद्ध करने लगे 
तत्र = वहां 
पुरुषा = पुरुष 
रक्तसम्भवाः = रक्त से उत्पन्न 
समं = साथ 
मातृभि:= माताओं के 
अत्युग्र अति उग्र = अत्यंत तीखे 
शस्त्र = शास्त्र 
पाताति = 
भीषणम् =भयानक 


और वे रक्त से उत्पन्न पुरुष भी माताओं के साथ अत्यंत उग्र शास्त्रों को छोड़ते हुए भयानक युद्ध करने लगे । 

पुनश्च वज्रपातेन क्षतमस्य शिरो यदा ।
ववाह रक्तं पुरुषास्ततो जाताः सहस्रशः ॥ ४६॥

पुनश्च = और फिर से 
वज्रपातेन = वज्र के प्रहार से 
क्षतम् =घायल 
अस्य = उसके 
शिरो = सिर से 
यदा = जब 
ववाह = बहा 
रक्तं = रक्त 
पुरुषा:= पुरुष 
तत: = तब 
जाताः = उत्पन्न हो गए 
सहस्रशः = हजारों 


और दुबारा वज्र के प्रहार से घायल उसके सिर से रक्त बहा तब हजारों पुरुष उत्पन्न हो गए । 

वैष्णवी समरे चैनं चक्रेणाभिजघान ह ।
गदया ताडयामास ऐन्द्री तमसुरेश्वरम् ॥ ४७॥

वैष्णवी = वैष्णवी ने 
समरे = युद्ध में 
च ऐनम् = और उसे 
चक्रेणा = चक्र से 
अभिजघान ह = मारा
गदया = गदा से 
ताडयामास = पीटा 
ऐन्द्री = ऐन्द्री
तमसुरेश्वरम् = उस असुरराज को 


और युद्ध में उसे वैष्णवी ने चक्र से मारा, ऐन्द्री ने उस असुरराज को गदा से पीटा । 

वैष्णवीचक्रभिन्नस्य रुधिरस्रावसम्भवैः ।
सहस्रशो जगद्व्याप्तं तत्प्रमाणैर्महासुरैः ॥ ४८॥

वैष्णवी = वैष्णवी के 
चक्रभिन्न = चक्र से घायल 
अस्य = उसके 
रुधिरस्राव = रक्त बहने से 
सम्भवैः = उत्पन्न 
सहस्रशो = हज़ारों 
जगद्व्याप्तं = जगत व्याप्त हो गया । 
तत्प्रमाणै: = उसके जैसे 
महासुरैः = महासुरों से 


वैष्णवी के चक्र से घायल उसके रक्त बहने से उत्पन्न उसके जैसे  हज़ारों महासुरों से जगत व्याप्त हो गया । 

शक्त्या जघान कौमारी वाराही च तथासिना ।
माहेश्वरी त्रिशूलेन रक्तबीजं महासुरम् ॥ ४९॥

शक्त्या = शक्ति से 
जघान = मारा
कौमारी = कौमारी ने 
वाराही = वाराही
च = और 
तथा = इसी प्रकार 
असिना = तलवार से 
माहेश्वरी = माहेश्वरी ने 
त्रिशूलेन = त्रिशूल से 
रक्तबीजं = रक्तबीज 
महासुरम् =महासुर को 


महासुर को कौमारी ने शक्ति से और वाराही ने तलवार से ,इसी प्रकार माहेश्वरी ने त्रिशूल से मारा । 

स चापि गदया दैत्यः सर्वा एवाहनत् पृथक् ।
मातॄः कोपसमाविष्टो रक्तबीजो महासुरः ॥ ५०॥

स = उस 
च= और 
अपि = भी 
गदया = गदा से 
दैत्यः = दैत्य 
सर्वा = सब 
एव = ही 
आहनत् = प्रहार किया 
पृथक् = अलग 
मातॄः = माताओं को 
कोप = क्रोध से 
समाविष्टो = भर कर 
रक्तबीजो = रक्तबीज 
महासुरः = महासुर 


और क्रोध से भरे उस रक्तबीज महासुर ने भी  सब ही माताओं पर अलग अलग प्रहार किया । 

तस्याहतस्य बहुधा शक्तिशूलादिभिर्भुवि ।
पपात यो वै रक्तौघस्तेनासञ्छतशोऽसुराः ॥ ५१॥

तस्य: = उसके 
आहतस्य=  आहत होने पर 
बहुधा = अनेक बार 
शक्तिशूलादिभि:= शूल , शक्ति आदि से अनेक बार 
भुवि= भूमि पर 
पपात = गिरी
यो = जो 
वै = निश्चित ही 
रक्तौघ:= रक्त की धारा 
तेन = उससे 
 सन् = हो गए 
शतश: = सैंकड़ों 
असुराः= असुर 

अनेक बार शूल , शक्ति आदि से अनेक बार आहत होने पर उसके

रक्त की जो धारा भूमि पर गिरी उससे निश्चय ही सैंकड़ों असुर हो गए । 

तैश्चासुरासृक्सम्भूतैरसुरैः सकलं जगत् ।
व्याप्तमासीत्ततो देवा भयमाजग्मुरुत्तमम् ॥ ५२॥

तै: = उन 
च = और 
असुर असृक् सम्भूतै: = असुर के खून से बने 
असुरैः  = असुरों से 
सकलं = सारा 
जगत् = संसार 
व्याप्तम्= व्यापत 
आसीत् = था 
ततो = तब 
देवा: = देवताओं को 
भयम् = भय 
आजग्मु: = आया , हुआ 
उत्तमम् = बहुत ज्यादा 


और असुर के खून से बने उन असुरों से सारा संसार व्याप्त हो गया था , तब देवताओं को बहुत ज्यादा भय हुआ । 

तान् विषण्णान् सुरान् दृष्ट्वा चण्डिका प्राहसत्वरम् ।
उवाच कालीं चामुण्डे विस्तीर्णं वदनं कुरु ॥ ५३॥

तान् = उन 
विषण्णान् = खिन्न 
सुरान् = देवताओं को 
दृष्ट्वा = देख कर 
चण्डिका = चण्डिका 
प्राह = सम्बोधित करते हुए 
सत्वरम् = जल्दी से 
उवाच = कहा 
कालीं = काली को 
चामुण्डे = हे चामुण्डा 
विस्तीर्णं = विस्तृत 
वदनं = मुख 
कुरु = करो 


उन खिन्न देवताओं को देख कर चण्डिका जल्दी से काली को सम्बोधित करते हुए बोली- हे चामुण्डा मुख विस्तृत करो । 

मच्छस्त्रपातसम्भूतान् रक्तबिन्दून् महासुरान् ।
रक्तबिन्दोः प्रतीच्छ त्वं वक्त्रेणानेन वेगिना ॥ ५४॥
मत् = मेरे 
शस्त्रपात = शास्त्र प्रहार से 
सम्भूतान् = उत्पन्न 
रक्तबिन्दून्= रक्त बिन्दुओं से 
महासुरान् =महासुरों 
रक्तबिन्दोः = रक्त बिन्दुओं 
प्रतीच्छ = खा जाओ , ग्रहण करो 
त्वं = तुम 
वक्त्रेण = मुख 
अनेन  = इस प्रकार 
वेगिना = जल्दी से 

मेरे शास्त्र प्रहार से रक्त बिन्दुओं , (और ) रक्तबिन्दुओं से उत्पन्न महासुरों को तुम मुंह में इस प्रकार जल्दी से ग्रहण करो । 

भक्षयन्ती चर रणे तदुत्पन्नान्महासुरान् ।
एवमेष क्षयं दैत्यः क्षेणरक्तो गमिष्यति ॥ ५५॥

भक्षयन्ती = खाती हुई 
चर = विचरती  रहो  
रणे = रन भूमि में 
तदुत्पन्नान् = उन उत्पन्न  हुए 
महासुरान् = महासुरों को 
एवम = इस प्रकार 
एष = यह 
क्षयं = नष्ट 
दैत्यः = दैत्य 
क्षीण रक्त: रक्त कम होने से 
गमिष्यति = हो जाएगा 


उन उत्पन्न हुए महासुरों को खाती हुई रणभूमि में विचरती रहो , इस प्रकार यह रक्त कम होने से नष्ट हो जाएगा ।

भक्ष्यमाणास्त्वया चोग्रा न चोत्पत्स्यन्ति चापरे ।
इत्युक्त्वा तां ततो देवी शूलेनाभिजघान तम् ॥ ५६॥

भक्ष्यमाणा: = खाए जाते हुए 
त्वया = तुम्हारे द्वारा  
चोग्रा = उग्र असुर 
च = और 
न = नहीं 
उत्पत्स्यन्ति = उत्पन्न होंगे 
चापरे च अपरे = और दूसरे 
इत्युक्त्वा इति उक्तवा = यह कह कर 
तां = उसको 
ततो  = तब 
देवी = देवी ने 
शूलेन= शूल से 
अभिजघान = प्रहार किया 
तम्= उस पर 


तुम्हारे द्वारा खाए जाते हुए और दूसरे उग्र असुर पैदा नहीं होंगे , उस काली को यह कह कर तब देवी ने शूल से उस पर प्रहार किया । 

मुखेन काली जगृहे रक्तबीजस्य शोणितम् ।
ततोऽसावाजघानाथ गदया तत्र चण्डिकाम् ॥ ५७॥

मुखेन = मुख से 
काली = काली ने 
जगृहे = ग्रहण कर लिया 
रक्तबीजस्य = रक्तबीज का 
शोणितम् = खून 
ततो = तब 
असौ = उस रक्तबीज ने 
जघान = प्रहार किया 
अथ = और 
गदया = गदा से 
तत्र = वहां 
चण्डिकाम् = चण्डिका पर 


मुख से काली ने रक्तबीज का खून ग्रहण कर लिया , और तब वहाँ उसने गदा से चण्डिका पर प्रहार किया । 

न चास्या वेदनां चक्रे गदापातोऽल्पिकामपि ।
तस्याहतस्य देहात्तु बहु सुस्राव शोणितम् ॥ ५८॥

न = नहीं 
च = और 
अस्या = उस को   
वेदनां = वेदना 
चक्रे = हुई 
गदापातो= गदा के प्रहार से 
अल्पिकामपि = थोड़ी सी भी 
तस्य = उस 
आहतस्य= घायल के 
 देहात्= शरीर से 
तु = पर 
बहु = बहुत सा 
सुस्राव = बह गया 
शोणितम्= खून 


पर गदा के प्रहार से उस देवी को थोड़ी सी भी वेदना नहीं हुई , पर उस (रक्तबीज) के घायल शरीर से बहुत सा खून बह गया ।  

यतस्ततस्तद्वक्त्रेण चामुण्डा सम्प्रतीच्छति ।
मुखे समुद्गता येऽस्या रक्तपातान्महासुराः ॥ ५९॥
तांश्चखादाथ चामुण्डा पपौ तस्य च शोणितम् ।

यत: तत: = जहां भी 
तत् = वह 
वक्त्रेण = मुंह से 
चामुण्डा = चामुण्डा ने 
सम्प्रतीच्छति = ग्रहण कर लिया 
मुखे = मुख में 
समुद्गता = उत्पन्न हुए 
ये = जो 
अस्या = उसके 
रक्तपातात्= रक्त गिरा 
महासुराः=महासुर 

तां = उनको 
चखाद = खा लिया 
अथ = भी 
चामुण्डा= चामुण्डा  ने 
पपौ = पी लिया 
तस्य = उसका 
च = और 
शोणितम् = खून 


जहां भी वह रक्त गिरा चामुण्डा ने वह मुंह में ग्रहण कर लिया , जो उसके मुंह में महासुर उत्पन्न हुए
उनको चामुण्डा ने खा लिया और उस (रक्तबीज) का खून भी  पी लिया ।



देवी शूलेन वज्रेण बाणैरसिभिरृष्टिभिः ॥ ६०॥
जघान रक्तबीजं तं चामुण्डापीतशोणितम् ।

देवी = देवी ने  
शूलेन = शूल से 
वज्रेण वज्र 
बाणै: = बाणों 
असिभि:= तलवारों 
ऋष्टिभिः = ऋष्टियों से 

जघान = मार दिया 
रक्तबीजं = रक्त बीज को 
तं = उस के  
चामुण्डा = चामुण्डा ने 
पीत = पी लिया 
शोणितम् = रक्त को 


सेवी ने बाणों, व्रजों , तलवारों ऋष्टियों से रक्त बीज को मार दिया । उसके रक्त को चामुण्डा ने पी लिया । 

स पपात महीपृष्ठे शस्त्रसङ्घसमाहतः ॥ ६१॥
नीरक्तश्च महीपाल रक्तबीजो महासुरः ।

स = वह 
पपात = गिर गया 
महीपृष्ठे = भूमि पर 
शस्त्रसङ्घ = शास्त्रों के समूह से 
समाहतः= आहत हुआ 

नीरक्त= बिना रक्त के 
च = और  
महीपाल = हे राजन 
रक्तबीजो = रक्तबीज 
महासुरः = महासुर


वह महासुर रक्तबीज शास्त्रों के समूह से आहत हुआ और बिना रक्त के हो भूमि पर गिर गया । 


ततस्ते हर्षमतुलमवापुस्त्रिदशा नृप ॥ ६२॥

तत:= तब 
ते = उन 
हर्षम् अतुलम्=  अत्यंत हर्ष 
अवापु:= प्राप्त हुआ 
त्रिदशा = देवताओं को 
नृप= हे राजा 


हे राजा तब उन देवताओं को अत्यंत हर्ष प्राप्त हुआ । 

तेषां मातृगणो जातो ननर्तासृङ्मदोद्धतः ॥ ६३॥

तेषां = उन (देवताओं ) से 
मातृगणो = माताओं के समूह ने 
जातो = उत्पन्न ,
ननर्त= नृत्य किया 
असृङ्मदोद्धतः = खून के मद से उत्तेजित हो


 उन (देवताओं ) से उत्पन्न माताओं के समूह ने खून के मद से उत्तेजित हो नृत्य किया । 

॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
रक्तबीजवधो नामाष्टमोऽध्यायः ॥ ८॥

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