ॐ अरुणां करुणातरङ्गिताक्षीं धृतपाशाङ्कुशबाणचापहस्ताम्।
अणिमादिभिरावृतां मयूखैरहमित्येव विभावये भवानीम्।।
अरुणां = लाल रंग वाली
करुणातरङ्गिताक्षीं = आँखों में करुणा की लहर वाली
धृत पाश अङ्कुश बाण चाप हस्ताम्= हाथों में पाश, अंकुश , बाण , चाप धारण किये
अणिमादिभि :आवृतां = अणिमा आदि से घिरी
मयूखै:= किरणों से
अहमित्येव = मैं इस प्रकार
विभावये = विचार करता/ करती हूँ ।
भवानीम्= भवानी का
लाल रंग वाली, आँखों में करुणा की लहर वाली, हाथों में पाश, अंकुश , बाण , चाप धारण किये, अणिमा आदि किरणों से से घिरी भवानी का मैं इस प्रकार विचार करता/ करती हूँ ।
ॐ ऋषिरुवाच ॥ १॥
ऋषि बोले ।
चण्डे च निहते दैत्ये मुण्डे च विनिपातिते ।
बहुलेषु च सैन्येषु क्षयितेष्वसुरेश्वरः ॥ २॥
चण्डे च निहते = चण्ड के मारे जाने पर
दैत्ये मुण्डे च विनिपातिते और दैत्य मुंड के मारे जाने पर
बहुलेषु च सैन्येषु = और बहुत साड़ी सेना
क्षयितेषु= नष्ट होने पर
असुरेश्वरः= असुरों के राजा
ततः कोपपराधीनचेताः शुम्भः प्रतापवान् ।
उद्योगं सर्वसैन्यानां दैत्यानामादिदेश ह ॥ ३॥
ततः = तब
कोपपराधीनचेताः = क्रोध के पराधीन मन
शुम्भः = शुम्भ
प्रतापवान् = प्रतापी
उद्योगं = लड़ाई का
सर्वसैन्यानां = सारी सेना को
दैत्यानाम = दैत्यों की
आदिदेश ह = आदेश दिया
तब तब क्रोध से युक्त मन वाले प्रतापी शुम्भ ने दैत्यों की सारी सेना को लड़ाई का आदेश दिया ।
अद्य सर्वबलैर्दैत्याः षडशीतिरुदायुधाः ।
कम्बूनां चतुरशीतिर्निर्यान्तु स्वबलैर्वृताः ॥ ४॥
अद्य = आज
सर्वबलै:= सारी सेना के साथ
दैत्याः = दैत्य
षडशीति= छियासी
उदायुधाः = हथियार उठाये , हथियारों से युक्त
कम्बूनां = कम्बु
चतुरशीति:= चुरासी
निर्यान्तु = कूच करें
स्वबलैर्वृताः= सारी सेना से घिर कर
आज छियासी दैत्य सारी सेना के साथ, चौरासी कम्बु सारी सेना से घिर कर हथियारों से युक्त कूच करें ।
कोटिवीर्याणि पञ्चाशदसुराणां कुलानि वै ।
शतं कुलानि धौम्राणां निर्गच्छन्तु ममाज्ञया ॥ ५॥
कोटिवीर्याणि = कोटि वीर्य
पञ्चाशद= पचास
असुराणां = असुर (सेनापति )
कुलानि=कुल के
वै = भी
शतं = सौ
कुलानि = कुल के
धौम्राणां = धौम्र
निर्गच्छन्तु = कूच करे
ममाज्ञया = मेरी आज्ञा से
कोटि वीर्य कुल के पचास असुर (सेनापति ), सौ धौम्र कुल के (सेनापति) भी कूच करें ।
कालका दौर्हृदा मौर्वाः कालिकेयास्तथासुराः ।
युद्धाय सज्जा निर्यान्तु आज्ञया त्वरिता मम ॥ ६॥
कालका =कालका
दौर्हृदा = दौर्हृदा
मौर्वाः =मौर्वाः
कालिकेया = कालिकेया
तथा= इसी प्रकार
असुराः = असुर सेनापति
युद्धाय = युद्ध के लिए
सज्जा = तैयार हो कर
निर्यान्तु = कूच करें
आज्ञया = आज्ञा से
त्वरिता = जल्दी से
मम= मेरी
कालका, दौर्हृदा, मौर्वा, कालिकेया असुर सेनापति मेरी आज्ञा से युद्ध के लिए तैयार हो कर कूच करें ।
इत्याज्ञाप्यासुरपतिः शुम्भो भैरवशासनः ।
निर्जगाम महासैन्यसहस्रैर्बहुभिर्वृतः ॥ ७॥
इत्याज्ञाप्या= इति आज्ञाप्या= ऐसा आदेश दे कर
असुरपतिः = असुरों का राजा
शुम्भो = शुम्भ
भैरवशासनः= भयानक शाशन करने वाला
निर्जगाम = गया
महासैन्य = महा सेनाओं
सहस्रै = हजारों
बहुभि:= कई प्रकार की
वृतः = घिर कर
ऐसा आदेश दे कर भयानक शाशन करने वाला असुरराज शुम्भ कई प्रकार की हजारों महासेनाओं के साथ गया ।
आयान्तं चण्डिका दृष्ट्वा तत्सैन्यमतिभीषणम् ।
ज्यास्वनैः पूरयामास धरणीगगनान्तरम् ॥ ८॥
आयान्तं = आते हुए
चण्डिका = चण्डिका ने
दृष्ट्वा = देख कर
तत्सैन्यम = उस सेना को
अतिभीषणम् = अत्यंत भयानक
ज्यास्वनैः = धनुष की टंकार से
पूरयामास = भर दिया , गूंजा दिया
धरणीगगना= धरती और आकाश की
अन्तरम् = दूरी को , खाली जगह को
चण्डिका ने उस अत्यंत भयानक सेना को आते हुए देख कर धनुष की टंकार से धरती और आकाश की दूरी को भर दिया ।
ततः सिंहो महानादमतीव कृतवान्नृप ।
घण्टास्वनेन तान्नादानम्बिका चोपबृंहयत् ॥ ९॥
ततः = तब
सिंहो = सिंह ने
महानादम = महान गर्जना
अतीव = अत्यंत
कृतवान् = की
नृप = हे राजा
घण्टास्वनेन = घंटे की आवाज से
तान् = उस
नादान्= आवाज को
अम्बिका = अम्बिका ने
च= और
उपबृंहयत् = बढ़ा दिया
हे राजा , तब सिंह ने अत्यंत महान गर्जना की और उस आवाज को अम्बिका ने घंटे की आवाज से बढ़ा दिया ।
धनुर्ज्यासिंहघण्टानां नादापूरितदिङ्मुखा ।
निनादैर्भीषणैः काली जिग्ये विस्तारितानना ॥ १०॥
धनुर्ज्या सिंह घण्टानां = धनुष , शेर और घंटे की
नाद = आवाज से
आपूरित = भर गयीं , गूंज उठी
दिङ्मुखा= चारों दिशाएँ
निनादै:= आवाज से
भीषणैः = भयंकर
काली = काली
जिग्ये = विजयी हुई
विस्तारितानना = बड़े मुख वाली
धनुष , शेर और घंटे की आवाज से चारों दिशाएँ गूंज उठी । बड़े मुख वाली काली भयंकर आवाज से विजयी हुई ।
तं निनादमुपश्रुत्य दैत्यसैन्यैश्चतुर्दिशम् ।
देवी सिंहस्तथा काली सरोषैः परिवारिताः ॥ ११॥
तं = उन
निनादम्= आवाज़ों को
उपश्रुत्य = सुन कर
दैत्यसैन्यै:= दैत्यों की सेना ने
चतुर्दिशम् चारों दिशाओं से
देवी = देवी
सिंहस्तथा = सिंह और
काली = काली को
सरोषैः = क्रोध से
परिवारिताः = घेर लिया
उन आवाज़ों को सुन कर दैत्यों की सेना ने क्रोध से चारों दिशाओं से देवी, सिंह और काली को घेर लिया ।
एतस्मिन्नन्तरे भूप विनाशाय सुरद्विषाम् ।
भवायामरसिंहानामतिवीर्यबलान्विताः ॥ १२॥
ब्रह्मेशगुहविष्णूनां तथेन्द्रस्य च शक्तयः ।
शरीरेभ्यो विनिष्क्रम्य तद्रूपैश्चण्डिकां ययुः ॥ १३॥
एतस्मिन् = इसी
अन्तरे = समय
भूप = हे राजा
विनाशाय = विनाश के लिए
सुरद्विषाम् ।= देवताओं के शत्रुओं के
भवाय= कल्याण के लिए
अमरसिंहानाम् = देवताओं के
अतिवीर्यबलान्विताः = अत्यंत पराक्रम और बल युक्त
ब्रह्मेशगुहविष्णूनां = ब्रह्मा , शिव , कार्तिकेय , विष्णु
तथा = इसी प्रकार
इन्द्रस्य = इंद्र के
च = और
शक्तयः= शक्तियां
शरीरेभ्यो= शरीरों से
विनिष्क्रम्य = निकल कर
तद् रुपैः = उसी रूप में
चण्डिकां=चण्डिका के
ययुः = पास गयीं
इसी समय हे राजा देवताओं के शत्रुओं के विनाश के लिए , देवताओं के कल्याण के लिए अत्यंत पराक्रम और बल युक्त ब्रह्मा , शिव , कार्तिकेय , विष्णु और इसी प्रकार इंद्र के शरीरों से निकल कर (उनकी) शक्तियां उसी रूप में चण्डिका के पास गयीं ।
यस्य देवस्य यद्रूपं यथा भूषणवाहनम् ।
तद्वदेव हि तच्छक्तिरसुरान्योद्धुमाययौ ॥ १४॥
यस्य = जिस
देवस्य = देवता का
यद्रूपं = जो रूप था
यथा = जैसी
भूषणवाहनम् = वेशभूषा , वाहन
तद्वदेव = तद्वद् एव = वैसे ही
हि = बिल्कुल
तच्छक्ति:= तद् शक्तिः = वह शक्ति
असुरा = असुरों से
योद्धुम् = युद्ध के लिए
आययौ = आई
जिस देवता का जैसा रूप था , जैसी वेशभूषा , वाहन थे बिल्कुल वैसे ही वो शक्ति असुरों से युद्ध करने आई ।
हंसयुक्तविमानाग्रे साक्षसूत्रकमण्डलुः ।
आयाता ब्रह्मणः शक्तिर्ब्रह्माणीत्यभिधीयते ॥ १५॥
हंसयुक्तविमानाग्रे = हंसों से युक्त विमान पर
साक्षसूत्रकमण्डलुः= स्फटिक माला(अक्षसूत्र ) , कमंडल युक्त
आयाता = आयीं
ब्रह्मणः शक्ति:= ब्रह्मा की शक्ति
ब्रह्माणी =ब्रह्माणी
सा = उसे
अभिधीयते = कहा जाता है
हंसों से युक्त विमान पर स्फटिक माला(अक्षसूत्र ) , कमंडल युक्त ब्रह्मा की शक्ति आयीं, उसे ब्रह्माणी कहा जाता है ।
माहेश्वरी वृषारूढा त्रिशूलवरधारिणी ।
महाहिवलया प्राप्ता चन्द्ररेखाविभूषणा ॥ १६॥
माहेश्वरी = माहेश्वरी
वृषारूढा = वृषभ पर बैठी
त्रिशूलवर धारिणी = श्रेष्ठ त्रिशूल धारण किये
महाहिवलया = महा अहि वलय = महान नाग का कडा पहने
प्राप्ता = आयीं
चन्द्ररेखाविभूषणा = चन्द्र रेखा से सुसज्जित
माहेश्वरी वृषभ पर बैठी, श्रेष्ठ त्रिशूल धारण किये , महान नाग का कडा पहने, चन्द्र रेखा से सुसज्जित आयीं ।
कौमारी शक्तिहस्ता च मयूरवरवाहना ।
योद्धुमभ्याययौ दैत्यानम्बिका गुहरूपिणी ॥ १७॥
कौमारी = कौमारी
शक्तिहस्ता = हाथ में शक्ति लिए
च = और
मयूरवरवाहना = श्रेष्ठ मयूर वाहन पर
योद्धुम = युद्ध के लिए
अभ्याययौ = पास आईं
दैत्यान= दैत्यों के साथ
अम्बिका = अम्बिका के
गुहरूपिणी = कार्तिकेय के रूप में
और कौमारी कार्तिकेय के रूप में हाथ में शक्ति लिए श्रेष्ठ मयूर वाहन पर दैत्यों के साथ युद्ध के लिए अम्बिका के पास आईं ।
तथैव वैष्णवी शक्तिर्गरुडोपरि संस्थिता ।
शङ्खचक्रगदाशार्ङ्गखड्गहस्ताभ्युपाययौ ॥ १८॥
तथैव = इसी प्रकार ही
वैष्णवी = वैष्णवी
शक्ति:= शक्ति
गरुडोपरि = गुरुङ के ऊपर
संस्थिता= बैठी
शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग खड्ग हस्ता = शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग खड्ग हाथ में लिए
अभ्युपाययौ = पास गयीं
इसी प्रकार ही वैष्णवी शक्ति गुरुङ के ऊपर बैठी शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग खड्ग हाथ में लिए पास गयीं ।
यज्ञवाराहमतुलं रूपं या बिभ्रतो हरेः ।
शक्तिः साप्याययौ तत्र वाराहीं बिभ्रती तनुम् ॥ १९॥
यज्ञवाराहम= यज्ञ बाराह का
अतुलं= अतुलनीय
रूपं = रूप
या = जिसने
बिभ्रतो = धारण किया है
हरेः = श्री हरी की
शक्तिः = शक्ति
सा = वह
अपि = भी
आययौ = आयीं
तत्र = वहां
वाराहीं = वाराह
बिभ्रती = धारण करके
तनुम् = शरीर
यज्ञ बाराह का अतुलनीय रूप जिस ने धारण किया है श्री ह्स्री की वह शक्ति भी वाराह का रूप धारण करके वहां आयीं ।
नारसिंही नृसिंहस्य बिभ्रती सदृशं वपुः ।
प्राप्ता तत्र सटाक्षेपक्षिप्तनक्षत्रसंहतिः ॥ २०॥
नारसिंही =नारसिंही
नृसिंहस्य = नृसिंह के
बिभ्रती = धारण कर के
सदृशं = सामान
वपुः = शरीर
प्राप्ता = आयीं
तत्र = वहां
सटाक्षेप= गर्दन के बाल हिलाने से
क्षिप्त= बिखर रहा था
नक्षत्र= तारों का
संहतिः = समूह
नारसिंही नृसिंह के सामान धारण कर के वहां आयीं , जिसके गर्दन के बाल हिलाने से तारों का समूह बिखर रहा था ।
वज्रहस्ता तथैवैन्द्री गजराजोपरि स्थिता ।
प्राप्ता सहस्रनयना यथा शक्रस्तथैव सा ॥ २१॥
वज्रहस्ता = व्रज हाथ में लिए
तथैवैन्द्री = इस प्रकार इंद्री
गजराजोपरि = गजराज के ऊपर
स्थिता = बैठ कर
प्राप्ता = आयीं
सहस्रनयना = हज़ारों नेत्रों वाली
यथा = जैसे
शक्र: =इंद्र
तथैव= वैसी ही
सा = वह
इसी प्रकार हज़ारों नेत्रों वाली इंद्री व्रज हाथ में लिए गजराज के ऊपर बैठ कर आयीं । जैसे इंद्र (का रूप है ) वैसी ही वह (थी ) ।
ततः परिवृतस्ताभिरीशानो देवशक्तिभिः ।
हन्यन्तामसुराः शीघ्रं मम प्रीत्याह चण्डिकाम् ॥ २२॥
ततः = तब
परिवृत:= घिरे
ताभि:= उन
ईशानो = शिव ने
देवशक्तिभिः = देव शक्तियों से
हन्यन्ताम्= संहार करो
असुराः = असुरों को
शीघ्रं = शीघ्र ही
मम = मेरी
प्रीत्या = प्रसन्नता के लिए
आह = कहा
चण्डिकाम् = चण्डिका
तब उन देव शक्तियों से घिरे शिव ने चण्डिका को कहा मेरी प्रसन्नता के लिए असुरों का शीघ्र ही संहार करो ।
ततो देवीशरीरात्तु विनिष्क्रान्तातिभीषणा ।
चण्डिका शक्तिरत्युग्रा शिवाशतनिनादिनी ॥ २३॥
ततो = तब
देवीशरीरात् =देवी के शरीर से
तु = और
विनिष्क्रान्ता = निकली , प्रकट हुईं
अतिभीषणा ।= अति भयंकर
चण्डिका = चण्डिका
शक्ति:= शक्ति
अत्युग्रा = अति उग्र
शिवाशतनिनादिनी = सौ गीदड़ों की आवाज़ वाली
तब देवी के शरीर से अति भयंकर और अति उग्र सौ गीदड़ों की आवाज़ वाली चण्डिका शक्ति प्रकट हुईं ।
सा चाह धूम्रजटिलमीशानमपराजिता ।
दूत त्वं गच्छ भगवन् पार्श्वं शुम्भनिशुम्भयोः ॥ २४॥
सा = उस
च = और
आह = कहा
धूम्रजटिलम्= धूमिल जटाओं वाले
ईशानम्= शिव को
अपराजिता = अपराजिता
दूत = दूत बन
त्वं = आप
गच्छ = जाइए
भगवन् = भगवन
पार्श्वं = पास
शुम्भनिशुम्भयोः = शुम्भ निशुम्भ के
और उस अपराजिता देवी ने धूमिल जटाओं वाले शिव को कहा , भगवन आप शुम्भ निशुम्भ के पास दूत बन कर जाइए ।
ब्रूहि शुम्भं निशुम्भं च दानवावतिगर्वितौ ।
ये चान्ये दानवास्तत्र युद्धाय समुपस्थिताः ॥ २५॥
ब्रूहि = कहिये
शुम्भं निशुम्भं च= और शुम्भ निशुम्भ को
दानवाव = दानवों को
अतिगर्वितौ = अत्यंत घमंडी
ये = जो
च = और
अन्ये = दूसरे
दानवा= दानव
तत्र = वहां
युद्धाय = युद्ध के लिए
समुपस्थिताः = उपस्थित हैं
और अत्यंत घमंडी दानवों शुम्भ निशुम्भ को और जो दूसरे दानवों को वहाँ युद्ध के लिए उपस्थित हैं , कहिये ।
त्रैलोक्यमिन्द्रो लभतां देवाः सन्तु हविर्भुजः ।
यूयं प्रयात पातालं यदि जीवितुमिच्छथ ॥ २६॥
त्रैलोक्यम् = तीनों लोक
इन्द्रो = इंद्र को
लभतां = मिल जाएँ
देवाः = देवता
सन्तु = करने लगे
हविर्भुजः= यज्ञ भाग का उपयोग
यूयं = तुम सब
प्रयात = चले जाएँ
पातालं = पाताल में
यदि = यदि
जीवितुम् = जीने की
इच्छथ= इच्छा है
यदि जीने की इच्छा है तो तुम सब पाताल में चले जाओ, इंद्र को तीनों लोक मिल जाएँ , देवता यज्ञ भाग का उपयोग करने लगे ।
बलावलेपादथ चेद्भवन्तो युद्धकाङ्क्षिणः ।
तदागच्छत तृप्यन्तु मच्छिवाः पिशितेन वः ॥ २७॥
बलावलेपात् = बल का घमंड से
अथ = अब
चेद् = यदि
भवन्तो = तुम सब को
युद्धकाङ्क्षिणः = युध्दि की इच्छा है
तदा= तब
अगच्छत = आओ
तृप्यन्तु = तृप्त हों
मच्छिवाः = मत् शिवाः = मेरी शिवायें
पिशितेन = मांस से
वः = तुम सब के
अब यदि बल का घमंड से तुम सब को युद्ध की अभिलाषा है तो आयटम सब के मांस से मेरी शिवायें तृप्त हों ।
यतो नियुक्तो दौत्येन तया देव्या शिवः स्वयम् ।
शिवदूतीति लोकेऽस्मिंस्ततः सा ख्यातिमागता ॥ २८॥
यतो = क्यूंकि
नियुक्तो = नियुक्त किया था
दौत्येन = दूत के लिए
तया = उस
देव्या = देवी ने
शिवः = शिव को
स्वयम्= खुद
शिवदूतीति = शिवदूती इस प्रकार
लोकेऽस्मिं इस संसार में
ततः = तब , इसलिए
सा = वह
ख्यातिमागता = ख्यातिम् आगता = प्रसिद्द हुई
क्यों की देवी ने खुद शिव को दूत नियुक्त किया था इसलिए वह इस संसार में शिवदूती के नाम से प्रसिद्द हुईं ।
तेऽपि श्रुत्वा वचो देव्याः शर्वाख्यातं महासुराः ।
अमर्षापूरिता जग्मुर्यत्र कात्यायनी स्थिता ॥ २९॥
तेऽपि = वे भी
श्रुत्वा = सुन कर
वचो = वचन
देव्याः = देवी के
शर्वाख्यातं = शिव द्वारा कहे
महासुराः= महाअसुर
अमर्षापूरिता = क्रोध से भरे
जग्मु: = गए
यत्र = जहां
कात्यायनी = कात्यायनी
स्थिता = विराजमान थीं
वे महाअसुर भी शिव द्वारा कहे देवी के वचनों को सुन कर क्रोध से भरे वहाँ गए जहां कात्यायनी देवी विराजमान थीं ।
ततः प्रथममेवाग्रे शरशक्त्यृष्टिवृष्टिभिः ।
ववर्षुरुद्धतामर्षास्तां देवीममरारयः ॥ ३०॥
ततः = तब
प्रथममेवा = पहले ही
अग्रे = तरफ , आगे
शर शक्ति ऋष्टि वृष्टिभिः = तीरों , शक्ति , ऋष्टि की
ववर्षु:= वर्षा की
उद्धत = उत्तेजित
अमर्षा: = क्रोध से
ताम् = उस
देवीम् = देवी
अमरारयः= असुरों ने
तब क्रोध से उत्तेजित असुरों ने पहले ही उस देवी की तरफ तीरों , शक्ति , ऋष्टि की वर्षा की ।
सा च तान् प्रहितान् बाणाञ्छूलशक्तिपरश्वधान् ।
चिच्छेद लीलयाध्मातधनुर्मुक्तैर्महेषुभिः ॥ ३१॥
सा =उसने
च = और
तान् = उन
प्रहितान् = फेंके गए
बाणान् = बाणों
शूलशक्तिपरश्वधान् = शूल , शक्ति , कुल्हाड़ियों को
चिच्छेद = काट दिया
लीलया= खेल खेल में
आध्मात= टंकार करते
धनु:= धनुष से
मुक्तै: = छोड़े
महेषुभिः महा इषुभिः = बड़े तीरों से
और उस देवी ने उन फेंके हुए बाणों ,शूल , शक्ति , कुल्हाड़ियों को खेल खेल में टंकार करते धनुष से छोड़े बड़े तीरों से काट दिया ।
तस्याग्रतस्तथा काली शूलपातविदारितान् ।
खट्वाङ्गपोथितांश्चारीन्कुर्वती व्यचरत्तदा ॥ ३२॥
तस्याग्रत: = उसके आगे
तथा = इसी प्रकार
काली = काली
शूलपातविदारितान् = शूल प्रहार से भेदती
खट्वाङ्गपोथितां = खट्वाङ्ग से नष्ट
च = और
अरीन् = दुश्मनों को
कुर्वन्ति = करती हुई
व्यचरत् = घूमने लगी
तदा = तब
और इसी प्रकार काली दुश्मनों को शूल प्रहार से भेदती और खट्वाङ्ग से नष्ट करती हुई उसके आगे घूमने लगी ।
कमण्डलुजलाक्षेपहतवीर्यान् हतौजसः ।
ब्रह्माणी चाकरोच्छत्रून्येन येन स्म धावति ॥ ३३॥
कमण्डलु = कमण्डलु
जलाक्षेप = जल छिड़क के
हतवीर्यान् = पराक्रम विहीन
हतौजसः= तेज विहीन
ब्रह्माणी = ब्रह्माणी
च= और
अकरोत् = कर देती
शत्रून्= शत्रुओं को
येन येन = जहां जहां
स्म = तब
धावति = जाती
ब्रह्माणी जहां जहां जाती तब कमण्डलु से जल छिड़क के शत्रुओं को पराक्रम विहीन और तेज विहीन कर देती ।
माहेश्वरी त्रिशूलेन तथा चक्रेण वैष्णवी ।
दैत्याञ्जघान कौमारी तथा शक्त्यातिकोपना ॥ ३४॥
माहेश्वरी = माहेश्वरी
त्रिशूलेन = त्रिशूल से
तथा = इसी प्रकार
चक्रेण = चक्र से
वैष्णवी = वैष्णवी
दैत्यान्= दैत्यों को
जघान = मार रही थीं
कौमारी = कौमारी
तथा = इसी प्रकार
शक्त्य = शक्ति से
अतिकोपना = अत्यंत क्रोधित
माहेश्वरी त्रिशूल से ,इसी प्रकार वैष्णवी चक्र से ,इसी प्रकार कौमारी शक्ति से दैत्यों को मार रही थीं ।
ऐन्द्री कुलिशपातेन शतशो दैत्यदानवाः ।
पेतुर्विदारिताः पृथ्व्यां रुधिरौघप्रवर्षिणः ॥ ३५॥
ऐन्द्री = ऐन्द्री के
कुलिशपातेन= व्रज के प्रहार से
शतशो = सैंकड़ों
दैत्यदानवाः = दैत्य और दानव
पेतु:= गिर गए
विदारिताः = कट कर
पृथ्व्यां = पृथ्वी पर
रुधिर= रक्त की
औघ= धारा
प्रवर्षिणः= बहाते हुए
ऐन्द्री के व्रज के प्रहार से सैंकड़ों दैत्य और दानव कट कर रक्त की धारा बहाते हुए पृथ्वी पर गिर गए ।
तुण्डप्रहारविध्वस्ता दंष्ट्राग्रक्षतवक्षसः ।
वाराहमूर्त्या न्यपतंश्चक्रेण च विदारिताः ॥ ३६॥
तुण्डप्रहार = थूथन के प्रहार से
विध्वस्ता = नष्ट हो गए
दंष्ट्राग्र= दाढ़ों के अग्र भाग से
क्षतवक्षसः= छाती भिद गयी
वाराहमूर्त्या = वाराही के
न्यपतं = गिर गए
चक्रेण = चक्र से
च = और
विदारिताः = टुकड़े हो कर
(असुर) वाराही के थूथन के प्रहार से नष्ट हो गए, दाढ़ों के अग्र भाग से छाती भिद गयी और चक्र से (उनके) टुकड़े हो कर गिर गए ।
नखैर्विदारितांश्चान्यान् भक्षयन्ती महासुरान् ।
नारसिंही चचाराजौ नादापूर्णदिगम्बरा ॥ ३७॥
नखै: = नाखूनों से
विदारितां = फाड़ दिया
च = और
अन्यान् = दूसरों को
भक्षयन्ती = खाती
महासुरान् = महासुरों को
नारसिंही = नारसिंही ने
चचार = घूमने लगी
आजौ = युद्ध भूमि में
नादापूर्णदिगम्बरा = दहाड़ से दिशाओं को गुंजाती हुई
नारसिंही ने महासुरों को नाखूनों से फाड़ दिया और दूसरों को खाती हुई युद्ध भूमि में दहाड़ से दिशाओं को गुंजाती हुई घूमने लगी ।
चण्डाट्टहासैरसुराः शिवदूत्यभिदूषिताः ।
पेतुः पृथिव्यां पतितांस्तांश्चखादाथ सा तदा ॥ ३८॥
चण्डाट्टहासै: = प्रचंड अट्ठास से
असुराः =असुर
शिवदूति= शिवदूती के
अभिदूषिताः= घायल , भयभीत
पेतुः = गिर गए
पृथिव्यां= पृथ्वी पर
पतितां= गिरे हुए
तां = उन
चखाद = खाने लगी
अथ = और
सा = वह
तदा= तब
असुर शिवदूती के प्रचंड अट्ठास से भयभीत हो पृथ्वी पर गिर गए और वह तब गिरे हुए उन असुरों को खा गयीं ।
इति मातृगणं क्रुद्धं मर्दयन्तं महासुरान् ।
दृष्ट्वाभ्युपायैर्विविधैर्नेशुर्देवारिसैनिकाः ॥ ३९॥
इति = इस प्रकार
मातृगणं = मातृगणों द्वारा
क्रुद्धं = क्रोध में
मर्दयन्तं = मर्दन करते
महासुरान् = महासुरों का
दृष्ट्वा= देख कर
अभ्युपायै:= उपायों से
विविधै:= विभिन्न
नेशु:= भाग खड़े हुए
देवारि सैनिकाः = दैत्य सैनिक
इस प्रकार मातृगणों द्वारा क्रोध में विभिन्न उपायों से महासुरों का मर्दन करते देख कर दैत्य सैनिक भाग खड़े हुए ।
पलायनपरान्दृष्ट्वा दैत्यान्मातृगणार्दितान् ।
योद्धुमभ्याययौ क्रुद्धो रक्तबीजो महासुरः ॥ ४०॥
पलायनपरान् = भागता हुआ
दृष्ट्वा = देख कर
दैत्यान् = दैत्यों को
मातृगणार्दितान् = मातृगणों से पीड़ित
योद्धुम्= युद्ध करने
अभ्याययौ = आया
क्रुद्धो= क्रोधित हो
रक्तबीजो = रक्तबीज
महासुरः= महासुर
मातृगणों से पीड़ित दैत्यों को भागता हुआ देख कर महासुर रक्तबीज क्रोधित हो युद्ध करने आया ।
रक्तबिन्दुर्यदा भूमौ पतत्यस्य शरीरतः ।
समुत्पतति मेदिन्यां तत्प्रमाणो महासुरः ॥ ४१॥
रक्तबिन्दु:= रक्त की बूंदे
यदा = जब
भूमौ = भूमि पर
पतति = गिरते
अस्य = उसके
शरीरतः = शरीर से
समुत्पतति उत्पन्न हो जाता
मेदिन्यां = भूमि से
तत्प्रमाणो = उसके जैसा
महासुरः= महासुर
जब उसके शरीर से रक्त की बूँदें भूमि पर गिरती , भूमि से उसके जैसा महासुर उत्पन्न हो जाता ।
युयुधे स गदापाणिरिन्द्रशक्त्या महासुरः ।
ततश्चैन्द्री स्ववज्रेण रक्तबीजमताडयत् ॥ ४२॥
युयुधे = युद्ध किया
स = उस
गदापाणि: = गदा हाथ में ले
इन्द्रशक्त्या = इंद्र की शक्ति से
महासुरः = महासुर ने
तत: = तब
च = और
एन्द्री = इंद्री ने
स्ववज्रेण = अपने वज्र से
रक्तबीजम्= रक्तबीज को
अताडयत् = मारा
तब उस महासुर ने गदा हाथ में ले इंद्र की शक्ति से युद्ध किया और ऐन्द्री ने अपने वज्र से रक्तबीज को मारा ।
कुलिशेनाहतस्याशु बहु सुस्राव शोणितम् ।
समुत्तस्थुस्ततो योधास्तद्रूपास्तत्पराक्रमाः ॥ ४३॥
कुलिशेन= वज्र से
आहत अस्य= घायल उसका
आशु = शीघ्र ही
बहु = बहुत सा
सुस्राव = बह गया
शोणितम् = रक्त
समुत्तस्थु = उठ खड़े हुए
ततो = तब
योधा= योद्धा
तद् रूपा= उसके रूप
तद् पराक्रमाः = उसके पराक्रम
वज्र से घायल उसका शीघ्र बहुत सा रक्त बह गया , तब उसी के रूप , उसी के पराक्रम वाले योद्धा उठ खड़े हुए ।
यावन्तः पतितास्तस्य शरीराद्रक्तबिन्दवः ।
तावन्तः पुरुषा जातास्तद्वीर्यबलविक्रमाः ॥ ४४॥
यावन्तः = जितने
पतिता = गिरे
तस्य = उसके
शरीरात् =शरीर से
रक्तबिन्दवः = रक्त बिंदु
तावन्तः = उतने ही
पुरुषा = पुरुष
जाता: = उत्पन्न हो गए
तद्वीर्यबलविक्रमाः = उसके जैसे साहसी, बली, पराक्रमी वाले
उसके शरीर से जितने भी रक्त बिंदु गिरे , उतने ही उसके जैसे साहसी, बली, पराक्रमी वाले पुरुष उत्पन्न हो गए ।
ते चापि युयुधुस्तत्र पुरुषा रक्तसम्भवाः ।
समं मातृभिरत्युग्रशस्त्रपातातिभीषणम् ॥ ४५॥
ते = वे
च = और
अपि = भी
युयुधु: = युद्ध करने लगे
तत्र = वहां
पुरुषा = पुरुष
रक्तसम्भवाः = रक्त से उत्पन्न
समं = साथ
मातृभि:= माताओं के
अत्युग्र अति उग्र = अत्यंत तीखे
शस्त्र = शास्त्र
पाताति =
भीषणम् =भयानक
और वे रक्त से उत्पन्न पुरुष भी माताओं के साथ अत्यंत उग्र शास्त्रों को छोड़ते हुए भयानक युद्ध करने लगे ।
पुनश्च वज्रपातेन क्षतमस्य शिरो यदा ।
ववाह रक्तं पुरुषास्ततो जाताः सहस्रशः ॥ ४६॥
पुनश्च = और फिर से
वज्रपातेन = वज्र के प्रहार से
क्षतम् =घायल
अस्य = उसके
शिरो = सिर से
यदा = जब
ववाह = बहा
रक्तं = रक्त
पुरुषा:= पुरुष
तत: = तब
जाताः = उत्पन्न हो गए
सहस्रशः = हजारों
और दुबारा वज्र के प्रहार से घायल उसके सिर से रक्त बहा तब हजारों पुरुष उत्पन्न हो गए ।
वैष्णवी समरे चैनं चक्रेणाभिजघान ह ।
गदया ताडयामास ऐन्द्री तमसुरेश्वरम् ॥ ४७॥
वैष्णवी = वैष्णवी ने
समरे = युद्ध में
च ऐनम् = और उसे
चक्रेणा = चक्र से
अभिजघान ह = मारा
गदया = गदा से
ताडयामास = पीटा
ऐन्द्री = ऐन्द्री
तमसुरेश्वरम् = उस असुरराज को
और युद्ध में उसे वैष्णवी ने चक्र से मारा, ऐन्द्री ने उस असुरराज को गदा से पीटा ।
वैष्णवीचक्रभिन्नस्य रुधिरस्रावसम्भवैः ।
सहस्रशो जगद्व्याप्तं तत्प्रमाणैर्महासुरैः ॥ ४८॥
वैष्णवी = वैष्णवी के
चक्रभिन्न = चक्र से घायल
अस्य = उसके
रुधिरस्राव = रक्त बहने से
सम्भवैः = उत्पन्न
सहस्रशो = हज़ारों
जगद्व्याप्तं = जगत व्याप्त हो गया ।
तत्प्रमाणै: = उसके जैसे
महासुरैः = महासुरों से
वैष्णवी के चक्र से घायल उसके रक्त बहने से उत्पन्न उसके जैसे हज़ारों महासुरों से जगत व्याप्त हो गया ।
शक्त्या जघान कौमारी वाराही च तथासिना ।
माहेश्वरी त्रिशूलेन रक्तबीजं महासुरम् ॥ ४९॥
शक्त्या = शक्ति से
जघान = मारा
कौमारी = कौमारी ने
वाराही = वाराही
च = और
तथा = इसी प्रकार
असिना = तलवार से
माहेश्वरी = माहेश्वरी ने
त्रिशूलेन = त्रिशूल से
रक्तबीजं = रक्तबीज
महासुरम् =महासुर को
महासुर को कौमारी ने शक्ति से और वाराही ने तलवार से ,इसी प्रकार माहेश्वरी ने त्रिशूल से मारा ।
स चापि गदया दैत्यः सर्वा एवाहनत् पृथक् ।
मातॄः कोपसमाविष्टो रक्तबीजो महासुरः ॥ ५०॥
स = उस
च= और
अपि = भी
गदया = गदा से
दैत्यः = दैत्य
सर्वा = सब
एव = ही
आहनत् = प्रहार किया
पृथक् = अलग
मातॄः = माताओं को
कोप = क्रोध से
समाविष्टो = भर कर
रक्तबीजो = रक्तबीज
महासुरः = महासुर
और क्रोध से भरे उस रक्तबीज महासुर ने भी सब ही माताओं पर अलग अलग प्रहार किया ।
तस्याहतस्य बहुधा शक्तिशूलादिभिर्भुवि ।
पपात यो वै रक्तौघस्तेनासञ्छतशोऽसुराः ॥ ५१॥
तस्य: = उसके
आहतस्य= आहत होने पर
बहुधा = अनेक बार
शक्तिशूलादिभि:= शूल , शक्ति आदि से अनेक बार
भुवि= भूमि पर
पपात = गिरी
यो = जो
वै = निश्चित ही
रक्तौघ:= रक्त की धारा
तेन = उससे
सन् = हो गए
शतश: = सैंकड़ों
असुराः= असुर
अनेक बार शूल , शक्ति आदि से अनेक बार आहत होने पर उसके
रक्त की जो धारा भूमि पर गिरी उससे निश्चय ही सैंकड़ों असुर हो गए ।
तैश्चासुरासृक्सम्भूतैरसुरैः सकलं जगत् ।
व्याप्तमासीत्ततो देवा भयमाजग्मुरुत्तमम् ॥ ५२॥
तै: = उन
च = और
असुर असृक् सम्भूतै: = असुर के खून से बने
असुरैः = असुरों से
सकलं = सारा
जगत् = संसार
व्याप्तम्= व्यापत
आसीत् = था
ततो = तब
देवा: = देवताओं को
भयम् = भय
आजग्मु: = आया , हुआ
उत्तमम् = बहुत ज्यादा
और असुर के खून से बने उन असुरों से सारा संसार व्याप्त हो गया था , तब देवताओं को बहुत ज्यादा भय हुआ ।
तान् विषण्णान् सुरान् दृष्ट्वा चण्डिका प्राहसत्वरम् ।
उवाच कालीं चामुण्डे विस्तीर्णं वदनं कुरु ॥ ५३॥
तान् = उन
विषण्णान् = खिन्न
सुरान् = देवताओं को
दृष्ट्वा = देख कर
चण्डिका = चण्डिका
प्राह = सम्बोधित करते हुए
सत्वरम् = जल्दी से
उवाच = कहा
कालीं = काली को
चामुण्डे = हे चामुण्डा
विस्तीर्णं = विस्तृत
वदनं = मुख
कुरु = करो
उन खिन्न देवताओं को देख कर चण्डिका जल्दी से काली को सम्बोधित करते हुए बोली- हे चामुण्डा मुख विस्तृत करो ।
मच्छस्त्रपातसम्भूतान् रक्तबिन्दून् महासुरान् ।
रक्तबिन्दोः प्रतीच्छ त्वं वक्त्रेणानेन वेगिना ॥ ५४॥
मत् = मेरे
शस्त्रपात = शास्त्र प्रहार से
सम्भूतान् = उत्पन्न
रक्तबिन्दून्= रक्त बिन्दुओं से
महासुरान् =महासुरों
रक्तबिन्दोः = रक्त बिन्दुओं
प्रतीच्छ = खा जाओ , ग्रहण करो
त्वं = तुम
वक्त्रेण = मुख
अनेन = इस प्रकार
वेगिना = जल्दी से
मेरे शास्त्र प्रहार से रक्त बिन्दुओं , (और ) रक्तबिन्दुओं से उत्पन्न महासुरों को तुम मुंह में इस प्रकार जल्दी से ग्रहण करो ।
भक्षयन्ती चर रणे तदुत्पन्नान्महासुरान् ।
एवमेष क्षयं दैत्यः क्षेणरक्तो गमिष्यति ॥ ५५॥
भक्षयन्ती = खाती हुई
चर = विचरती रहो
रणे = रन भूमि में
तदुत्पन्नान् = उन उत्पन्न हुए
महासुरान् = महासुरों को
एवम = इस प्रकार
एष = यह
क्षयं = नष्ट
दैत्यः = दैत्य
क्षीण रक्त: रक्त कम होने से
गमिष्यति = हो जाएगा
उन उत्पन्न हुए महासुरों को खाती हुई रणभूमि में विचरती रहो , इस प्रकार यह रक्त कम होने से नष्ट हो जाएगा ।
भक्ष्यमाणास्त्वया चोग्रा न चोत्पत्स्यन्ति चापरे ।
इत्युक्त्वा तां ततो देवी शूलेनाभिजघान तम् ॥ ५६॥
भक्ष्यमाणा: = खाए जाते हुए
त्वया = तुम्हारे द्वारा
चोग्रा = उग्र असुर
च = और
न = नहीं
उत्पत्स्यन्ति = उत्पन्न होंगे
चापरे च अपरे = और दूसरे
इत्युक्त्वा इति उक्तवा = यह कह कर
तां = उसको
ततो = तब
देवी = देवी ने
शूलेन= शूल से
अभिजघान = प्रहार किया
तम्= उस पर
तुम्हारे द्वारा खाए जाते हुए और दूसरे उग्र असुर पैदा नहीं होंगे , उस काली को यह कह कर तब देवी ने शूल से उस पर प्रहार किया ।
मुखेन काली जगृहे रक्तबीजस्य शोणितम् ।
ततोऽसावाजघानाथ गदया तत्र चण्डिकाम् ॥ ५७॥
मुखेन = मुख से
काली = काली ने
जगृहे = ग्रहण कर लिया
रक्तबीजस्य = रक्तबीज का
शोणितम् = खून
ततो = तब
असौ = उस रक्तबीज ने
जघान = प्रहार किया
अथ = और
गदया = गदा से
तत्र = वहां
चण्डिकाम् = चण्डिका पर
मुख से काली ने रक्तबीज का खून ग्रहण कर लिया , और तब वहाँ उसने गदा से चण्डिका पर प्रहार किया ।
न चास्या वेदनां चक्रे गदापातोऽल्पिकामपि ।
तस्याहतस्य देहात्तु बहु सुस्राव शोणितम् ॥ ५८॥
न = नहीं
च = और
अस्या = उस को
वेदनां = वेदना
चक्रे = हुई
गदापातो= गदा के प्रहार से
अल्पिकामपि = थोड़ी सी भी
तस्य = उस
आहतस्य= घायल के
देहात्= शरीर से
तु = पर
बहु = बहुत सा
सुस्राव = बह गया
शोणितम्= खून
पर गदा के प्रहार से उस देवी को थोड़ी सी भी वेदना नहीं हुई , पर उस (रक्तबीज) के घायल शरीर से बहुत सा खून बह गया ।
यतस्ततस्तद्वक्त्रेण चामुण्डा सम्प्रतीच्छति ।
मुखे समुद्गता येऽस्या रक्तपातान्महासुराः ॥ ५९॥
तांश्चखादाथ चामुण्डा पपौ तस्य च शोणितम् ।
यत: तत: = जहां भी
तत् = वह
वक्त्रेण = मुंह से
चामुण्डा = चामुण्डा ने
सम्प्रतीच्छति = ग्रहण कर लिया
मुखे = मुख में
समुद्गता = उत्पन्न हुए
ये = जो
अस्या = उसके
रक्तपातात्= रक्त गिरा
महासुराः=महासुर
तां = उनको
चखाद = खा लिया
अथ = भी
चामुण्डा= चामुण्डा ने
पपौ = पी लिया
तस्य = उसका
च = और
शोणितम् = खून
जहां भी वह रक्त गिरा चामुण्डा ने वह मुंह में ग्रहण कर लिया , जो उसके मुंह में महासुर उत्पन्न हुए
उनको चामुण्डा ने खा लिया और उस (रक्तबीज) का खून भी पी लिया ।
देवी शूलेन वज्रेण बाणैरसिभिरृष्टिभिः ॥ ६०॥
जघान रक्तबीजं तं चामुण्डापीतशोणितम् ।
देवी = देवी ने
शूलेन = शूल से
वज्रेण वज्र
बाणै: = बाणों
असिभि:= तलवारों
ऋष्टिभिः = ऋष्टियों से
जघान = मार दिया
रक्तबीजं = रक्त बीज को
तं = उस के
चामुण्डा = चामुण्डा ने
पीत = पी लिया
शोणितम् = रक्त को
सेवी ने बाणों, व्रजों , तलवारों ऋष्टियों से रक्त बीज को मार दिया । उसके रक्त को चामुण्डा ने पी लिया ।
स पपात महीपृष्ठे शस्त्रसङ्घसमाहतः ॥ ६१॥
नीरक्तश्च महीपाल रक्तबीजो महासुरः ।
स = वह
पपात = गिर गया
महीपृष्ठे = भूमि पर
शस्त्रसङ्घ = शास्त्रों के समूह से
समाहतः= आहत हुआ
नीरक्त= बिना रक्त के
च = और
महीपाल = हे राजन
रक्तबीजो = रक्तबीज
महासुरः = महासुर
वह महासुर रक्तबीज शास्त्रों के समूह से आहत हुआ और बिना रक्त के हो भूमि पर गिर गया ।
ततस्ते हर्षमतुलमवापुस्त्रिदशा नृप ॥ ६२॥
तत:= तब
ते = उन
हर्षम् अतुलम्= अत्यंत हर्ष
अवापु:= प्राप्त हुआ
त्रिदशा = देवताओं को
नृप= हे राजा
हे राजा तब उन देवताओं को अत्यंत हर्ष प्राप्त हुआ ।
तेषां मातृगणो जातो ननर्तासृङ्मदोद्धतः ॥ ६३॥
तेषां = उन (देवताओं ) से
मातृगणो = माताओं के समूह ने
जातो = उत्पन्न ,
ननर्त= नृत्य किया
असृङ्मदोद्धतः = खून के मद से उत्तेजित हो
उन (देवताओं ) से उत्पन्न माताओं के समूह ने खून के मद से उत्तेजित हो नृत्य किया ।
॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
रक्तबीजवधो नामाष्टमोऽध्यायः ॥ ८॥
अणिमादिभिरावृतां मयूखैरहमित्येव विभावये भवानीम्।।
अरुणां = लाल रंग वाली
करुणातरङ्गिताक्षीं = आँखों में करुणा की लहर वाली
धृत पाश अङ्कुश बाण चाप हस्ताम्= हाथों में पाश, अंकुश , बाण , चाप धारण किये
अणिमादिभि :आवृतां = अणिमा आदि से घिरी
मयूखै:= किरणों से
अहमित्येव = मैं इस प्रकार
विभावये = विचार करता/ करती हूँ ।
भवानीम्= भवानी का
लाल रंग वाली, आँखों में करुणा की लहर वाली, हाथों में पाश, अंकुश , बाण , चाप धारण किये, अणिमा आदि किरणों से से घिरी भवानी का मैं इस प्रकार विचार करता/ करती हूँ ।
ॐ ऋषिरुवाच ॥ १॥
ऋषि बोले ।
चण्डे च निहते दैत्ये मुण्डे च विनिपातिते ।
बहुलेषु च सैन्येषु क्षयितेष्वसुरेश्वरः ॥ २॥
चण्डे च निहते = चण्ड के मारे जाने पर
दैत्ये मुण्डे च विनिपातिते और दैत्य मुंड के मारे जाने पर
बहुलेषु च सैन्येषु = और बहुत साड़ी सेना
क्षयितेषु= नष्ट होने पर
असुरेश्वरः= असुरों के राजा
ततः कोपपराधीनचेताः शुम्भः प्रतापवान् ।
उद्योगं सर्वसैन्यानां दैत्यानामादिदेश ह ॥ ३॥
ततः = तब
कोपपराधीनचेताः = क्रोध के पराधीन मन
शुम्भः = शुम्भ
प्रतापवान् = प्रतापी
उद्योगं = लड़ाई का
सर्वसैन्यानां = सारी सेना को
दैत्यानाम = दैत्यों की
आदिदेश ह = आदेश दिया
तब तब क्रोध से युक्त मन वाले प्रतापी शुम्भ ने दैत्यों की सारी सेना को लड़ाई का आदेश दिया ।
अद्य सर्वबलैर्दैत्याः षडशीतिरुदायुधाः ।
कम्बूनां चतुरशीतिर्निर्यान्तु स्वबलैर्वृताः ॥ ४॥
अद्य = आज
सर्वबलै:= सारी सेना के साथ
दैत्याः = दैत्य
षडशीति= छियासी
उदायुधाः = हथियार उठाये , हथियारों से युक्त
कम्बूनां = कम्बु
चतुरशीति:= चुरासी
निर्यान्तु = कूच करें
स्वबलैर्वृताः= सारी सेना से घिर कर
आज छियासी दैत्य सारी सेना के साथ, चौरासी कम्बु सारी सेना से घिर कर हथियारों से युक्त कूच करें ।
कोटिवीर्याणि पञ्चाशदसुराणां कुलानि वै ।
शतं कुलानि धौम्राणां निर्गच्छन्तु ममाज्ञया ॥ ५॥
कोटिवीर्याणि = कोटि वीर्य
पञ्चाशद= पचास
असुराणां = असुर (सेनापति )
कुलानि=कुल के
वै = भी
शतं = सौ
कुलानि = कुल के
धौम्राणां = धौम्र
निर्गच्छन्तु = कूच करे
ममाज्ञया = मेरी आज्ञा से
कोटि वीर्य कुल के पचास असुर (सेनापति ), सौ धौम्र कुल के (सेनापति) भी कूच करें ।
कालका दौर्हृदा मौर्वाः कालिकेयास्तथासुराः ।
युद्धाय सज्जा निर्यान्तु आज्ञया त्वरिता मम ॥ ६॥
कालका =कालका
दौर्हृदा = दौर्हृदा
मौर्वाः =मौर्वाः
कालिकेया = कालिकेया
तथा= इसी प्रकार
असुराः = असुर सेनापति
युद्धाय = युद्ध के लिए
सज्जा = तैयार हो कर
निर्यान्तु = कूच करें
आज्ञया = आज्ञा से
त्वरिता = जल्दी से
मम= मेरी
कालका, दौर्हृदा, मौर्वा, कालिकेया असुर सेनापति मेरी आज्ञा से युद्ध के लिए तैयार हो कर कूच करें ।
इत्याज्ञाप्यासुरपतिः शुम्भो भैरवशासनः ।
निर्जगाम महासैन्यसहस्रैर्बहुभिर्वृतः ॥ ७॥
इत्याज्ञाप्या= इति आज्ञाप्या= ऐसा आदेश दे कर
असुरपतिः = असुरों का राजा
शुम्भो = शुम्भ
भैरवशासनः= भयानक शाशन करने वाला
निर्जगाम = गया
महासैन्य = महा सेनाओं
सहस्रै = हजारों
बहुभि:= कई प्रकार की
वृतः = घिर कर
ऐसा आदेश दे कर भयानक शाशन करने वाला असुरराज शुम्भ कई प्रकार की हजारों महासेनाओं के साथ गया ।
आयान्तं चण्डिका दृष्ट्वा तत्सैन्यमतिभीषणम् ।
ज्यास्वनैः पूरयामास धरणीगगनान्तरम् ॥ ८॥
आयान्तं = आते हुए
चण्डिका = चण्डिका ने
दृष्ट्वा = देख कर
तत्सैन्यम = उस सेना को
अतिभीषणम् = अत्यंत भयानक
ज्यास्वनैः = धनुष की टंकार से
पूरयामास = भर दिया , गूंजा दिया
धरणीगगना= धरती और आकाश की
अन्तरम् = दूरी को , खाली जगह को
चण्डिका ने उस अत्यंत भयानक सेना को आते हुए देख कर धनुष की टंकार से धरती और आकाश की दूरी को भर दिया ।
ततः सिंहो महानादमतीव कृतवान्नृप ।
घण्टास्वनेन तान्नादानम्बिका चोपबृंहयत् ॥ ९॥
ततः = तब
सिंहो = सिंह ने
महानादम = महान गर्जना
अतीव = अत्यंत
कृतवान् = की
नृप = हे राजा
घण्टास्वनेन = घंटे की आवाज से
तान् = उस
नादान्= आवाज को
अम्बिका = अम्बिका ने
च= और
उपबृंहयत् = बढ़ा दिया
हे राजा , तब सिंह ने अत्यंत महान गर्जना की और उस आवाज को अम्बिका ने घंटे की आवाज से बढ़ा दिया ।
धनुर्ज्यासिंहघण्टानां नादापूरितदिङ्मुखा ।
निनादैर्भीषणैः काली जिग्ये विस्तारितानना ॥ १०॥
धनुर्ज्या सिंह घण्टानां = धनुष , शेर और घंटे की
नाद = आवाज से
आपूरित = भर गयीं , गूंज उठी
दिङ्मुखा= चारों दिशाएँ
निनादै:= आवाज से
भीषणैः = भयंकर
काली = काली
जिग्ये = विजयी हुई
विस्तारितानना = बड़े मुख वाली
धनुष , शेर और घंटे की आवाज से चारों दिशाएँ गूंज उठी । बड़े मुख वाली काली भयंकर आवाज से विजयी हुई ।
तं निनादमुपश्रुत्य दैत्यसैन्यैश्चतुर्दिशम् ।
देवी सिंहस्तथा काली सरोषैः परिवारिताः ॥ ११॥
तं = उन
निनादम्= आवाज़ों को
उपश्रुत्य = सुन कर
दैत्यसैन्यै:= दैत्यों की सेना ने
चतुर्दिशम् चारों दिशाओं से
देवी = देवी
सिंहस्तथा = सिंह और
काली = काली को
सरोषैः = क्रोध से
परिवारिताः = घेर लिया
उन आवाज़ों को सुन कर दैत्यों की सेना ने क्रोध से चारों दिशाओं से देवी, सिंह और काली को घेर लिया ।
एतस्मिन्नन्तरे भूप विनाशाय सुरद्विषाम् ।
भवायामरसिंहानामतिवीर्यबलान्विताः ॥ १२॥
ब्रह्मेशगुहविष्णूनां तथेन्द्रस्य च शक्तयः ।
शरीरेभ्यो विनिष्क्रम्य तद्रूपैश्चण्डिकां ययुः ॥ १३॥
एतस्मिन् = इसी
अन्तरे = समय
भूप = हे राजा
विनाशाय = विनाश के लिए
सुरद्विषाम् ।= देवताओं के शत्रुओं के
भवाय= कल्याण के लिए
अमरसिंहानाम् = देवताओं के
अतिवीर्यबलान्विताः = अत्यंत पराक्रम और बल युक्त
ब्रह्मेशगुहविष्णूनां = ब्रह्मा , शिव , कार्तिकेय , विष्णु
तथा = इसी प्रकार
इन्द्रस्य = इंद्र के
च = और
शक्तयः= शक्तियां
शरीरेभ्यो= शरीरों से
विनिष्क्रम्य = निकल कर
तद् रुपैः = उसी रूप में
चण्डिकां=चण्डिका के
ययुः = पास गयीं
इसी समय हे राजा देवताओं के शत्रुओं के विनाश के लिए , देवताओं के कल्याण के लिए अत्यंत पराक्रम और बल युक्त ब्रह्मा , शिव , कार्तिकेय , विष्णु और इसी प्रकार इंद्र के शरीरों से निकल कर (उनकी) शक्तियां उसी रूप में चण्डिका के पास गयीं ।
यस्य देवस्य यद्रूपं यथा भूषणवाहनम् ।
तद्वदेव हि तच्छक्तिरसुरान्योद्धुमाययौ ॥ १४॥
यस्य = जिस
देवस्य = देवता का
यद्रूपं = जो रूप था
यथा = जैसी
भूषणवाहनम् = वेशभूषा , वाहन
तद्वदेव = तद्वद् एव = वैसे ही
हि = बिल्कुल
तच्छक्ति:= तद् शक्तिः = वह शक्ति
असुरा = असुरों से
योद्धुम् = युद्ध के लिए
आययौ = आई
जिस देवता का जैसा रूप था , जैसी वेशभूषा , वाहन थे बिल्कुल वैसे ही वो शक्ति असुरों से युद्ध करने आई ।
हंसयुक्तविमानाग्रे साक्षसूत्रकमण्डलुः ।
आयाता ब्रह्मणः शक्तिर्ब्रह्माणीत्यभिधीयते ॥ १५॥
हंसयुक्तविमानाग्रे = हंसों से युक्त विमान पर
साक्षसूत्रकमण्डलुः= स्फटिक माला(अक्षसूत्र ) , कमंडल युक्त
आयाता = आयीं
ब्रह्मणः शक्ति:= ब्रह्मा की शक्ति
ब्रह्माणी =ब्रह्माणी
सा = उसे
अभिधीयते = कहा जाता है
हंसों से युक्त विमान पर स्फटिक माला(अक्षसूत्र ) , कमंडल युक्त ब्रह्मा की शक्ति आयीं, उसे ब्रह्माणी कहा जाता है ।
माहेश्वरी वृषारूढा त्रिशूलवरधारिणी ।
महाहिवलया प्राप्ता चन्द्ररेखाविभूषणा ॥ १६॥
माहेश्वरी = माहेश्वरी
वृषारूढा = वृषभ पर बैठी
त्रिशूलवर धारिणी = श्रेष्ठ त्रिशूल धारण किये
महाहिवलया = महा अहि वलय = महान नाग का कडा पहने
प्राप्ता = आयीं
चन्द्ररेखाविभूषणा = चन्द्र रेखा से सुसज्जित
माहेश्वरी वृषभ पर बैठी, श्रेष्ठ त्रिशूल धारण किये , महान नाग का कडा पहने, चन्द्र रेखा से सुसज्जित आयीं ।
कौमारी शक्तिहस्ता च मयूरवरवाहना ।
योद्धुमभ्याययौ दैत्यानम्बिका गुहरूपिणी ॥ १७॥
कौमारी = कौमारी
शक्तिहस्ता = हाथ में शक्ति लिए
च = और
मयूरवरवाहना = श्रेष्ठ मयूर वाहन पर
योद्धुम = युद्ध के लिए
अभ्याययौ = पास आईं
दैत्यान= दैत्यों के साथ
अम्बिका = अम्बिका के
गुहरूपिणी = कार्तिकेय के रूप में
और कौमारी कार्तिकेय के रूप में हाथ में शक्ति लिए श्रेष्ठ मयूर वाहन पर दैत्यों के साथ युद्ध के लिए अम्बिका के पास आईं ।
तथैव वैष्णवी शक्तिर्गरुडोपरि संस्थिता ।
शङ्खचक्रगदाशार्ङ्गखड्गहस्ताभ्युपाययौ ॥ १८॥
तथैव = इसी प्रकार ही
वैष्णवी = वैष्णवी
शक्ति:= शक्ति
गरुडोपरि = गुरुङ के ऊपर
संस्थिता= बैठी
शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग खड्ग हस्ता = शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग खड्ग हाथ में लिए
अभ्युपाययौ = पास गयीं
इसी प्रकार ही वैष्णवी शक्ति गुरुङ के ऊपर बैठी शङ्ख चक्र गदा शार्ङ्ग खड्ग हाथ में लिए पास गयीं ।
यज्ञवाराहमतुलं रूपं या बिभ्रतो हरेः ।
शक्तिः साप्याययौ तत्र वाराहीं बिभ्रती तनुम् ॥ १९॥
यज्ञवाराहम= यज्ञ बाराह का
अतुलं= अतुलनीय
रूपं = रूप
या = जिसने
बिभ्रतो = धारण किया है
हरेः = श्री हरी की
शक्तिः = शक्ति
सा = वह
अपि = भी
आययौ = आयीं
तत्र = वहां
वाराहीं = वाराह
बिभ्रती = धारण करके
तनुम् = शरीर
यज्ञ बाराह का अतुलनीय रूप जिस ने धारण किया है श्री ह्स्री की वह शक्ति भी वाराह का रूप धारण करके वहां आयीं ।
नारसिंही नृसिंहस्य बिभ्रती सदृशं वपुः ।
प्राप्ता तत्र सटाक्षेपक्षिप्तनक्षत्रसंहतिः ॥ २०॥
नारसिंही =नारसिंही
नृसिंहस्य = नृसिंह के
बिभ्रती = धारण कर के
सदृशं = सामान
वपुः = शरीर
प्राप्ता = आयीं
तत्र = वहां
सटाक्षेप= गर्दन के बाल हिलाने से
क्षिप्त= बिखर रहा था
नक्षत्र= तारों का
संहतिः = समूह
नारसिंही नृसिंह के सामान धारण कर के वहां आयीं , जिसके गर्दन के बाल हिलाने से तारों का समूह बिखर रहा था ।
वज्रहस्ता तथैवैन्द्री गजराजोपरि स्थिता ।
प्राप्ता सहस्रनयना यथा शक्रस्तथैव सा ॥ २१॥
वज्रहस्ता = व्रज हाथ में लिए
तथैवैन्द्री = इस प्रकार इंद्री
गजराजोपरि = गजराज के ऊपर
स्थिता = बैठ कर
प्राप्ता = आयीं
सहस्रनयना = हज़ारों नेत्रों वाली
यथा = जैसे
शक्र: =इंद्र
तथैव= वैसी ही
सा = वह
इसी प्रकार हज़ारों नेत्रों वाली इंद्री व्रज हाथ में लिए गजराज के ऊपर बैठ कर आयीं । जैसे इंद्र (का रूप है ) वैसी ही वह (थी ) ।
ततः परिवृतस्ताभिरीशानो देवशक्तिभिः ।
हन्यन्तामसुराः शीघ्रं मम प्रीत्याह चण्डिकाम् ॥ २२॥
ततः = तब
परिवृत:= घिरे
ताभि:= उन
ईशानो = शिव ने
देवशक्तिभिः = देव शक्तियों से
हन्यन्ताम्= संहार करो
असुराः = असुरों को
शीघ्रं = शीघ्र ही
मम = मेरी
प्रीत्या = प्रसन्नता के लिए
आह = कहा
चण्डिकाम् = चण्डिका
तब उन देव शक्तियों से घिरे शिव ने चण्डिका को कहा मेरी प्रसन्नता के लिए असुरों का शीघ्र ही संहार करो ।
ततो देवीशरीरात्तु विनिष्क्रान्तातिभीषणा ।
चण्डिका शक्तिरत्युग्रा शिवाशतनिनादिनी ॥ २३॥
ततो = तब
देवीशरीरात् =देवी के शरीर से
तु = और
विनिष्क्रान्ता = निकली , प्रकट हुईं
अतिभीषणा ।= अति भयंकर
चण्डिका = चण्डिका
शक्ति:= शक्ति
अत्युग्रा = अति उग्र
शिवाशतनिनादिनी = सौ गीदड़ों की आवाज़ वाली
तब देवी के शरीर से अति भयंकर और अति उग्र सौ गीदड़ों की आवाज़ वाली चण्डिका शक्ति प्रकट हुईं ।
सा चाह धूम्रजटिलमीशानमपराजिता ।
दूत त्वं गच्छ भगवन् पार्श्वं शुम्भनिशुम्भयोः ॥ २४॥
सा = उस
च = और
आह = कहा
धूम्रजटिलम्= धूमिल जटाओं वाले
ईशानम्= शिव को
अपराजिता = अपराजिता
दूत = दूत बन
त्वं = आप
गच्छ = जाइए
भगवन् = भगवन
पार्श्वं = पास
शुम्भनिशुम्भयोः = शुम्भ निशुम्भ के
और उस अपराजिता देवी ने धूमिल जटाओं वाले शिव को कहा , भगवन आप शुम्भ निशुम्भ के पास दूत बन कर जाइए ।
ब्रूहि शुम्भं निशुम्भं च दानवावतिगर्वितौ ।
ये चान्ये दानवास्तत्र युद्धाय समुपस्थिताः ॥ २५॥
ब्रूहि = कहिये
शुम्भं निशुम्भं च= और शुम्भ निशुम्भ को
दानवाव = दानवों को
अतिगर्वितौ = अत्यंत घमंडी
ये = जो
च = और
अन्ये = दूसरे
दानवा= दानव
तत्र = वहां
युद्धाय = युद्ध के लिए
समुपस्थिताः = उपस्थित हैं
और अत्यंत घमंडी दानवों शुम्भ निशुम्भ को और जो दूसरे दानवों को वहाँ युद्ध के लिए उपस्थित हैं , कहिये ।
त्रैलोक्यमिन्द्रो लभतां देवाः सन्तु हविर्भुजः ।
यूयं प्रयात पातालं यदि जीवितुमिच्छथ ॥ २६॥
त्रैलोक्यम् = तीनों लोक
इन्द्रो = इंद्र को
लभतां = मिल जाएँ
देवाः = देवता
सन्तु = करने लगे
हविर्भुजः= यज्ञ भाग का उपयोग
यूयं = तुम सब
प्रयात = चले जाएँ
पातालं = पाताल में
यदि = यदि
जीवितुम् = जीने की
इच्छथ= इच्छा है
यदि जीने की इच्छा है तो तुम सब पाताल में चले जाओ, इंद्र को तीनों लोक मिल जाएँ , देवता यज्ञ भाग का उपयोग करने लगे ।
बलावलेपादथ चेद्भवन्तो युद्धकाङ्क्षिणः ।
तदागच्छत तृप्यन्तु मच्छिवाः पिशितेन वः ॥ २७॥
बलावलेपात् = बल का घमंड से
अथ = अब
चेद् = यदि
भवन्तो = तुम सब को
युद्धकाङ्क्षिणः = युध्दि की इच्छा है
तदा= तब
अगच्छत = आओ
तृप्यन्तु = तृप्त हों
मच्छिवाः = मत् शिवाः = मेरी शिवायें
पिशितेन = मांस से
वः = तुम सब के
अब यदि बल का घमंड से तुम सब को युद्ध की अभिलाषा है तो आयटम सब के मांस से मेरी शिवायें तृप्त हों ।
यतो नियुक्तो दौत्येन तया देव्या शिवः स्वयम् ।
शिवदूतीति लोकेऽस्मिंस्ततः सा ख्यातिमागता ॥ २८॥
यतो = क्यूंकि
नियुक्तो = नियुक्त किया था
दौत्येन = दूत के लिए
तया = उस
देव्या = देवी ने
शिवः = शिव को
स्वयम्= खुद
शिवदूतीति = शिवदूती इस प्रकार
लोकेऽस्मिं इस संसार में
ततः = तब , इसलिए
सा = वह
ख्यातिमागता = ख्यातिम् आगता = प्रसिद्द हुई
क्यों की देवी ने खुद शिव को दूत नियुक्त किया था इसलिए वह इस संसार में शिवदूती के नाम से प्रसिद्द हुईं ।
तेऽपि श्रुत्वा वचो देव्याः शर्वाख्यातं महासुराः ।
अमर्षापूरिता जग्मुर्यत्र कात्यायनी स्थिता ॥ २९॥
तेऽपि = वे भी
श्रुत्वा = सुन कर
वचो = वचन
देव्याः = देवी के
शर्वाख्यातं = शिव द्वारा कहे
महासुराः= महाअसुर
अमर्षापूरिता = क्रोध से भरे
जग्मु: = गए
यत्र = जहां
कात्यायनी = कात्यायनी
स्थिता = विराजमान थीं
वे महाअसुर भी शिव द्वारा कहे देवी के वचनों को सुन कर क्रोध से भरे वहाँ गए जहां कात्यायनी देवी विराजमान थीं ।
ततः प्रथममेवाग्रे शरशक्त्यृष्टिवृष्टिभिः ।
ववर्षुरुद्धतामर्षास्तां देवीममरारयः ॥ ३०॥
ततः = तब
प्रथममेवा = पहले ही
अग्रे = तरफ , आगे
शर शक्ति ऋष्टि वृष्टिभिः = तीरों , शक्ति , ऋष्टि की
ववर्षु:= वर्षा की
उद्धत = उत्तेजित
अमर्षा: = क्रोध से
ताम् = उस
देवीम् = देवी
अमरारयः= असुरों ने
तब क्रोध से उत्तेजित असुरों ने पहले ही उस देवी की तरफ तीरों , शक्ति , ऋष्टि की वर्षा की ।
सा च तान् प्रहितान् बाणाञ्छूलशक्तिपरश्वधान् ।
चिच्छेद लीलयाध्मातधनुर्मुक्तैर्महेषुभिः ॥ ३१॥
सा =उसने
च = और
तान् = उन
प्रहितान् = फेंके गए
बाणान् = बाणों
शूलशक्तिपरश्वधान् = शूल , शक्ति , कुल्हाड़ियों को
चिच्छेद = काट दिया
लीलया= खेल खेल में
आध्मात= टंकार करते
धनु:= धनुष से
मुक्तै: = छोड़े
महेषुभिः महा इषुभिः = बड़े तीरों से
और उस देवी ने उन फेंके हुए बाणों ,शूल , शक्ति , कुल्हाड़ियों को खेल खेल में टंकार करते धनुष से छोड़े बड़े तीरों से काट दिया ।
तस्याग्रतस्तथा काली शूलपातविदारितान् ।
खट्वाङ्गपोथितांश्चारीन्कुर्वती व्यचरत्तदा ॥ ३२॥
तस्याग्रत: = उसके आगे
तथा = इसी प्रकार
काली = काली
शूलपातविदारितान् = शूल प्रहार से भेदती
खट्वाङ्गपोथितां = खट्वाङ्ग से नष्ट
च = और
अरीन् = दुश्मनों को
कुर्वन्ति = करती हुई
व्यचरत् = घूमने लगी
तदा = तब
और इसी प्रकार काली दुश्मनों को शूल प्रहार से भेदती और खट्वाङ्ग से नष्ट करती हुई उसके आगे घूमने लगी ।
कमण्डलुजलाक्षेपहतवीर्यान् हतौजसः ।
ब्रह्माणी चाकरोच्छत्रून्येन येन स्म धावति ॥ ३३॥
कमण्डलु = कमण्डलु
जलाक्षेप = जल छिड़क के
हतवीर्यान् = पराक्रम विहीन
हतौजसः= तेज विहीन
ब्रह्माणी = ब्रह्माणी
च= और
अकरोत् = कर देती
शत्रून्= शत्रुओं को
येन येन = जहां जहां
स्म = तब
धावति = जाती
ब्रह्माणी जहां जहां जाती तब कमण्डलु से जल छिड़क के शत्रुओं को पराक्रम विहीन और तेज विहीन कर देती ।
माहेश्वरी त्रिशूलेन तथा चक्रेण वैष्णवी ।
दैत्याञ्जघान कौमारी तथा शक्त्यातिकोपना ॥ ३४॥
माहेश्वरी = माहेश्वरी
त्रिशूलेन = त्रिशूल से
तथा = इसी प्रकार
चक्रेण = चक्र से
वैष्णवी = वैष्णवी
दैत्यान्= दैत्यों को
जघान = मार रही थीं
कौमारी = कौमारी
तथा = इसी प्रकार
शक्त्य = शक्ति से
अतिकोपना = अत्यंत क्रोधित
माहेश्वरी त्रिशूल से ,इसी प्रकार वैष्णवी चक्र से ,इसी प्रकार कौमारी शक्ति से दैत्यों को मार रही थीं ।
ऐन्द्री कुलिशपातेन शतशो दैत्यदानवाः ।
पेतुर्विदारिताः पृथ्व्यां रुधिरौघप्रवर्षिणः ॥ ३५॥
ऐन्द्री = ऐन्द्री के
कुलिशपातेन= व्रज के प्रहार से
शतशो = सैंकड़ों
दैत्यदानवाः = दैत्य और दानव
पेतु:= गिर गए
विदारिताः = कट कर
पृथ्व्यां = पृथ्वी पर
रुधिर= रक्त की
औघ= धारा
प्रवर्षिणः= बहाते हुए
ऐन्द्री के व्रज के प्रहार से सैंकड़ों दैत्य और दानव कट कर रक्त की धारा बहाते हुए पृथ्वी पर गिर गए ।
तुण्डप्रहारविध्वस्ता दंष्ट्राग्रक्षतवक्षसः ।
वाराहमूर्त्या न्यपतंश्चक्रेण च विदारिताः ॥ ३६॥
तुण्डप्रहार = थूथन के प्रहार से
विध्वस्ता = नष्ट हो गए
दंष्ट्राग्र= दाढ़ों के अग्र भाग से
क्षतवक्षसः= छाती भिद गयी
वाराहमूर्त्या = वाराही के
न्यपतं = गिर गए
चक्रेण = चक्र से
च = और
विदारिताः = टुकड़े हो कर
(असुर) वाराही के थूथन के प्रहार से नष्ट हो गए, दाढ़ों के अग्र भाग से छाती भिद गयी और चक्र से (उनके) टुकड़े हो कर गिर गए ।
नखैर्विदारितांश्चान्यान् भक्षयन्ती महासुरान् ।
नारसिंही चचाराजौ नादापूर्णदिगम्बरा ॥ ३७॥
नखै: = नाखूनों से
विदारितां = फाड़ दिया
च = और
अन्यान् = दूसरों को
भक्षयन्ती = खाती
महासुरान् = महासुरों को
नारसिंही = नारसिंही ने
चचार = घूमने लगी
आजौ = युद्ध भूमि में
नादापूर्णदिगम्बरा = दहाड़ से दिशाओं को गुंजाती हुई
नारसिंही ने महासुरों को नाखूनों से फाड़ दिया और दूसरों को खाती हुई युद्ध भूमि में दहाड़ से दिशाओं को गुंजाती हुई घूमने लगी ।
चण्डाट्टहासैरसुराः शिवदूत्यभिदूषिताः ।
पेतुः पृथिव्यां पतितांस्तांश्चखादाथ सा तदा ॥ ३८॥
चण्डाट्टहासै: = प्रचंड अट्ठास से
असुराः =असुर
शिवदूति= शिवदूती के
अभिदूषिताः= घायल , भयभीत
पेतुः = गिर गए
पृथिव्यां= पृथ्वी पर
पतितां= गिरे हुए
तां = उन
चखाद = खाने लगी
अथ = और
सा = वह
तदा= तब
असुर शिवदूती के प्रचंड अट्ठास से भयभीत हो पृथ्वी पर गिर गए और वह तब गिरे हुए उन असुरों को खा गयीं ।
इति मातृगणं क्रुद्धं मर्दयन्तं महासुरान् ।
दृष्ट्वाभ्युपायैर्विविधैर्नेशुर्देवारिसैनिकाः ॥ ३९॥
इति = इस प्रकार
मातृगणं = मातृगणों द्वारा
क्रुद्धं = क्रोध में
मर्दयन्तं = मर्दन करते
महासुरान् = महासुरों का
दृष्ट्वा= देख कर
अभ्युपायै:= उपायों से
विविधै:= विभिन्न
नेशु:= भाग खड़े हुए
देवारि सैनिकाः = दैत्य सैनिक
इस प्रकार मातृगणों द्वारा क्रोध में विभिन्न उपायों से महासुरों का मर्दन करते देख कर दैत्य सैनिक भाग खड़े हुए ।
पलायनपरान्दृष्ट्वा दैत्यान्मातृगणार्दितान् ।
योद्धुमभ्याययौ क्रुद्धो रक्तबीजो महासुरः ॥ ४०॥
पलायनपरान् = भागता हुआ
दृष्ट्वा = देख कर
दैत्यान् = दैत्यों को
मातृगणार्दितान् = मातृगणों से पीड़ित
योद्धुम्= युद्ध करने
अभ्याययौ = आया
क्रुद्धो= क्रोधित हो
रक्तबीजो = रक्तबीज
महासुरः= महासुर
मातृगणों से पीड़ित दैत्यों को भागता हुआ देख कर महासुर रक्तबीज क्रोधित हो युद्ध करने आया ।
रक्तबिन्दुर्यदा भूमौ पतत्यस्य शरीरतः ।
समुत्पतति मेदिन्यां तत्प्रमाणो महासुरः ॥ ४१॥
रक्तबिन्दु:= रक्त की बूंदे
यदा = जब
भूमौ = भूमि पर
पतति = गिरते
अस्य = उसके
शरीरतः = शरीर से
समुत्पतति उत्पन्न हो जाता
मेदिन्यां = भूमि से
तत्प्रमाणो = उसके जैसा
महासुरः= महासुर
जब उसके शरीर से रक्त की बूँदें भूमि पर गिरती , भूमि से उसके जैसा महासुर उत्पन्न हो जाता ।
युयुधे स गदापाणिरिन्द्रशक्त्या महासुरः ।
ततश्चैन्द्री स्ववज्रेण रक्तबीजमताडयत् ॥ ४२॥
युयुधे = युद्ध किया
स = उस
गदापाणि: = गदा हाथ में ले
इन्द्रशक्त्या = इंद्र की शक्ति से
महासुरः = महासुर ने
तत: = तब
च = और
एन्द्री = इंद्री ने
स्ववज्रेण = अपने वज्र से
रक्तबीजम्= रक्तबीज को
अताडयत् = मारा
तब उस महासुर ने गदा हाथ में ले इंद्र की शक्ति से युद्ध किया और ऐन्द्री ने अपने वज्र से रक्तबीज को मारा ।
कुलिशेनाहतस्याशु बहु सुस्राव शोणितम् ।
समुत्तस्थुस्ततो योधास्तद्रूपास्तत्पराक्रमाः ॥ ४३॥
कुलिशेन= वज्र से
आहत अस्य= घायल उसका
आशु = शीघ्र ही
बहु = बहुत सा
सुस्राव = बह गया
शोणितम् = रक्त
समुत्तस्थु = उठ खड़े हुए
ततो = तब
योधा= योद्धा
तद् रूपा= उसके रूप
तद् पराक्रमाः = उसके पराक्रम
वज्र से घायल उसका शीघ्र बहुत सा रक्त बह गया , तब उसी के रूप , उसी के पराक्रम वाले योद्धा उठ खड़े हुए ।
यावन्तः पतितास्तस्य शरीराद्रक्तबिन्दवः ।
तावन्तः पुरुषा जातास्तद्वीर्यबलविक्रमाः ॥ ४४॥
यावन्तः = जितने
पतिता = गिरे
तस्य = उसके
शरीरात् =शरीर से
रक्तबिन्दवः = रक्त बिंदु
तावन्तः = उतने ही
पुरुषा = पुरुष
जाता: = उत्पन्न हो गए
तद्वीर्यबलविक्रमाः = उसके जैसे साहसी, बली, पराक्रमी वाले
उसके शरीर से जितने भी रक्त बिंदु गिरे , उतने ही उसके जैसे साहसी, बली, पराक्रमी वाले पुरुष उत्पन्न हो गए ।
ते चापि युयुधुस्तत्र पुरुषा रक्तसम्भवाः ।
समं मातृभिरत्युग्रशस्त्रपातातिभीषणम् ॥ ४५॥
ते = वे
च = और
अपि = भी
युयुधु: = युद्ध करने लगे
तत्र = वहां
पुरुषा = पुरुष
रक्तसम्भवाः = रक्त से उत्पन्न
समं = साथ
मातृभि:= माताओं के
अत्युग्र अति उग्र = अत्यंत तीखे
शस्त्र = शास्त्र
पाताति =
भीषणम् =भयानक
और वे रक्त से उत्पन्न पुरुष भी माताओं के साथ अत्यंत उग्र शास्त्रों को छोड़ते हुए भयानक युद्ध करने लगे ।
पुनश्च वज्रपातेन क्षतमस्य शिरो यदा ।
ववाह रक्तं पुरुषास्ततो जाताः सहस्रशः ॥ ४६॥
पुनश्च = और फिर से
वज्रपातेन = वज्र के प्रहार से
क्षतम् =घायल
अस्य = उसके
शिरो = सिर से
यदा = जब
ववाह = बहा
रक्तं = रक्त
पुरुषा:= पुरुष
तत: = तब
जाताः = उत्पन्न हो गए
सहस्रशः = हजारों
और दुबारा वज्र के प्रहार से घायल उसके सिर से रक्त बहा तब हजारों पुरुष उत्पन्न हो गए ।
वैष्णवी समरे चैनं चक्रेणाभिजघान ह ।
गदया ताडयामास ऐन्द्री तमसुरेश्वरम् ॥ ४७॥
वैष्णवी = वैष्णवी ने
समरे = युद्ध में
च ऐनम् = और उसे
चक्रेणा = चक्र से
अभिजघान ह = मारा
गदया = गदा से
ताडयामास = पीटा
ऐन्द्री = ऐन्द्री
तमसुरेश्वरम् = उस असुरराज को
और युद्ध में उसे वैष्णवी ने चक्र से मारा, ऐन्द्री ने उस असुरराज को गदा से पीटा ।
वैष्णवीचक्रभिन्नस्य रुधिरस्रावसम्भवैः ।
सहस्रशो जगद्व्याप्तं तत्प्रमाणैर्महासुरैः ॥ ४८॥
वैष्णवी = वैष्णवी के
चक्रभिन्न = चक्र से घायल
अस्य = उसके
रुधिरस्राव = रक्त बहने से
सम्भवैः = उत्पन्न
सहस्रशो = हज़ारों
जगद्व्याप्तं = जगत व्याप्त हो गया ।
तत्प्रमाणै: = उसके जैसे
महासुरैः = महासुरों से
वैष्णवी के चक्र से घायल उसके रक्त बहने से उत्पन्न उसके जैसे हज़ारों महासुरों से जगत व्याप्त हो गया ।
शक्त्या जघान कौमारी वाराही च तथासिना ।
माहेश्वरी त्रिशूलेन रक्तबीजं महासुरम् ॥ ४९॥
शक्त्या = शक्ति से
जघान = मारा
कौमारी = कौमारी ने
वाराही = वाराही
च = और
तथा = इसी प्रकार
असिना = तलवार से
माहेश्वरी = माहेश्वरी ने
त्रिशूलेन = त्रिशूल से
रक्तबीजं = रक्तबीज
महासुरम् =महासुर को
महासुर को कौमारी ने शक्ति से और वाराही ने तलवार से ,इसी प्रकार माहेश्वरी ने त्रिशूल से मारा ।
स चापि गदया दैत्यः सर्वा एवाहनत् पृथक् ।
मातॄः कोपसमाविष्टो रक्तबीजो महासुरः ॥ ५०॥
स = उस
च= और
अपि = भी
गदया = गदा से
दैत्यः = दैत्य
सर्वा = सब
एव = ही
आहनत् = प्रहार किया
पृथक् = अलग
मातॄः = माताओं को
कोप = क्रोध से
समाविष्टो = भर कर
रक्तबीजो = रक्तबीज
महासुरः = महासुर
और क्रोध से भरे उस रक्तबीज महासुर ने भी सब ही माताओं पर अलग अलग प्रहार किया ।
तस्याहतस्य बहुधा शक्तिशूलादिभिर्भुवि ।
पपात यो वै रक्तौघस्तेनासञ्छतशोऽसुराः ॥ ५१॥
तस्य: = उसके
आहतस्य= आहत होने पर
बहुधा = अनेक बार
शक्तिशूलादिभि:= शूल , शक्ति आदि से अनेक बार
भुवि= भूमि पर
पपात = गिरी
यो = जो
वै = निश्चित ही
रक्तौघ:= रक्त की धारा
तेन = उससे
सन् = हो गए
शतश: = सैंकड़ों
असुराः= असुर
अनेक बार शूल , शक्ति आदि से अनेक बार आहत होने पर उसके
रक्त की जो धारा भूमि पर गिरी उससे निश्चय ही सैंकड़ों असुर हो गए ।
तैश्चासुरासृक्सम्भूतैरसुरैः सकलं जगत् ।
व्याप्तमासीत्ततो देवा भयमाजग्मुरुत्तमम् ॥ ५२॥
तै: = उन
च = और
असुर असृक् सम्भूतै: = असुर के खून से बने
असुरैः = असुरों से
सकलं = सारा
जगत् = संसार
व्याप्तम्= व्यापत
आसीत् = था
ततो = तब
देवा: = देवताओं को
भयम् = भय
आजग्मु: = आया , हुआ
उत्तमम् = बहुत ज्यादा
और असुर के खून से बने उन असुरों से सारा संसार व्याप्त हो गया था , तब देवताओं को बहुत ज्यादा भय हुआ ।
तान् विषण्णान् सुरान् दृष्ट्वा चण्डिका प्राहसत्वरम् ।
उवाच कालीं चामुण्डे विस्तीर्णं वदनं कुरु ॥ ५३॥
तान् = उन
विषण्णान् = खिन्न
सुरान् = देवताओं को
दृष्ट्वा = देख कर
चण्डिका = चण्डिका
प्राह = सम्बोधित करते हुए
सत्वरम् = जल्दी से
उवाच = कहा
कालीं = काली को
चामुण्डे = हे चामुण्डा
विस्तीर्णं = विस्तृत
वदनं = मुख
कुरु = करो
उन खिन्न देवताओं को देख कर चण्डिका जल्दी से काली को सम्बोधित करते हुए बोली- हे चामुण्डा मुख विस्तृत करो ।
मच्छस्त्रपातसम्भूतान् रक्तबिन्दून् महासुरान् ।
रक्तबिन्दोः प्रतीच्छ त्वं वक्त्रेणानेन वेगिना ॥ ५४॥
मत् = मेरे
शस्त्रपात = शास्त्र प्रहार से
सम्भूतान् = उत्पन्न
रक्तबिन्दून्= रक्त बिन्दुओं से
महासुरान् =महासुरों
रक्तबिन्दोः = रक्त बिन्दुओं
प्रतीच्छ = खा जाओ , ग्रहण करो
त्वं = तुम
वक्त्रेण = मुख
अनेन = इस प्रकार
वेगिना = जल्दी से
मेरे शास्त्र प्रहार से रक्त बिन्दुओं , (और ) रक्तबिन्दुओं से उत्पन्न महासुरों को तुम मुंह में इस प्रकार जल्दी से ग्रहण करो ।
भक्षयन्ती चर रणे तदुत्पन्नान्महासुरान् ।
एवमेष क्षयं दैत्यः क्षेणरक्तो गमिष्यति ॥ ५५॥
भक्षयन्ती = खाती हुई
चर = विचरती रहो
रणे = रन भूमि में
तदुत्पन्नान् = उन उत्पन्न हुए
महासुरान् = महासुरों को
एवम = इस प्रकार
एष = यह
क्षयं = नष्ट
दैत्यः = दैत्य
क्षीण रक्त: रक्त कम होने से
गमिष्यति = हो जाएगा
उन उत्पन्न हुए महासुरों को खाती हुई रणभूमि में विचरती रहो , इस प्रकार यह रक्त कम होने से नष्ट हो जाएगा ।
भक्ष्यमाणास्त्वया चोग्रा न चोत्पत्स्यन्ति चापरे ।
इत्युक्त्वा तां ततो देवी शूलेनाभिजघान तम् ॥ ५६॥
भक्ष्यमाणा: = खाए जाते हुए
त्वया = तुम्हारे द्वारा
चोग्रा = उग्र असुर
च = और
न = नहीं
उत्पत्स्यन्ति = उत्पन्न होंगे
चापरे च अपरे = और दूसरे
इत्युक्त्वा इति उक्तवा = यह कह कर
तां = उसको
ततो = तब
देवी = देवी ने
शूलेन= शूल से
अभिजघान = प्रहार किया
तम्= उस पर
तुम्हारे द्वारा खाए जाते हुए और दूसरे उग्र असुर पैदा नहीं होंगे , उस काली को यह कह कर तब देवी ने शूल से उस पर प्रहार किया ।
मुखेन काली जगृहे रक्तबीजस्य शोणितम् ।
ततोऽसावाजघानाथ गदया तत्र चण्डिकाम् ॥ ५७॥
मुखेन = मुख से
काली = काली ने
जगृहे = ग्रहण कर लिया
रक्तबीजस्य = रक्तबीज का
शोणितम् = खून
ततो = तब
असौ = उस रक्तबीज ने
जघान = प्रहार किया
अथ = और
गदया = गदा से
तत्र = वहां
चण्डिकाम् = चण्डिका पर
मुख से काली ने रक्तबीज का खून ग्रहण कर लिया , और तब वहाँ उसने गदा से चण्डिका पर प्रहार किया ।
न चास्या वेदनां चक्रे गदापातोऽल्पिकामपि ।
तस्याहतस्य देहात्तु बहु सुस्राव शोणितम् ॥ ५८॥
न = नहीं
च = और
अस्या = उस को
वेदनां = वेदना
चक्रे = हुई
गदापातो= गदा के प्रहार से
अल्पिकामपि = थोड़ी सी भी
तस्य = उस
आहतस्य= घायल के
देहात्= शरीर से
तु = पर
बहु = बहुत सा
सुस्राव = बह गया
शोणितम्= खून
पर गदा के प्रहार से उस देवी को थोड़ी सी भी वेदना नहीं हुई , पर उस (रक्तबीज) के घायल शरीर से बहुत सा खून बह गया ।
यतस्ततस्तद्वक्त्रेण चामुण्डा सम्प्रतीच्छति ।
मुखे समुद्गता येऽस्या रक्तपातान्महासुराः ॥ ५९॥
तांश्चखादाथ चामुण्डा पपौ तस्य च शोणितम् ।
यत: तत: = जहां भी
तत् = वह
वक्त्रेण = मुंह से
चामुण्डा = चामुण्डा ने
सम्प्रतीच्छति = ग्रहण कर लिया
मुखे = मुख में
समुद्गता = उत्पन्न हुए
ये = जो
अस्या = उसके
रक्तपातात्= रक्त गिरा
महासुराः=महासुर
तां = उनको
चखाद = खा लिया
अथ = भी
चामुण्डा= चामुण्डा ने
पपौ = पी लिया
तस्य = उसका
च = और
शोणितम् = खून
जहां भी वह रक्त गिरा चामुण्डा ने वह मुंह में ग्रहण कर लिया , जो उसके मुंह में महासुर उत्पन्न हुए
उनको चामुण्डा ने खा लिया और उस (रक्तबीज) का खून भी पी लिया ।
देवी शूलेन वज्रेण बाणैरसिभिरृष्टिभिः ॥ ६०॥
जघान रक्तबीजं तं चामुण्डापीतशोणितम् ।
देवी = देवी ने
शूलेन = शूल से
वज्रेण वज्र
बाणै: = बाणों
असिभि:= तलवारों
ऋष्टिभिः = ऋष्टियों से
जघान = मार दिया
रक्तबीजं = रक्त बीज को
तं = उस के
चामुण्डा = चामुण्डा ने
पीत = पी लिया
शोणितम् = रक्त को
सेवी ने बाणों, व्रजों , तलवारों ऋष्टियों से रक्त बीज को मार दिया । उसके रक्त को चामुण्डा ने पी लिया ।
स पपात महीपृष्ठे शस्त्रसङ्घसमाहतः ॥ ६१॥
नीरक्तश्च महीपाल रक्तबीजो महासुरः ।
स = वह
पपात = गिर गया
महीपृष्ठे = भूमि पर
शस्त्रसङ्घ = शास्त्रों के समूह से
समाहतः= आहत हुआ
नीरक्त= बिना रक्त के
च = और
महीपाल = हे राजन
रक्तबीजो = रक्तबीज
महासुरः = महासुर
वह महासुर रक्तबीज शास्त्रों के समूह से आहत हुआ और बिना रक्त के हो भूमि पर गिर गया ।
ततस्ते हर्षमतुलमवापुस्त्रिदशा नृप ॥ ६२॥
तत:= तब
ते = उन
हर्षम् अतुलम्= अत्यंत हर्ष
अवापु:= प्राप्त हुआ
त्रिदशा = देवताओं को
नृप= हे राजा
हे राजा तब उन देवताओं को अत्यंत हर्ष प्राप्त हुआ ।
तेषां मातृगणो जातो ननर्तासृङ्मदोद्धतः ॥ ६३॥
तेषां = उन (देवताओं ) से
मातृगणो = माताओं के समूह ने
जातो = उत्पन्न ,
ननर्त= नृत्य किया
असृङ्मदोद्धतः = खून के मद से उत्तेजित हो
उन (देवताओं ) से उत्पन्न माताओं के समूह ने खून के मद से उत्तेजित हो नृत्य किया ।
॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
रक्तबीजवधो नामाष्टमोऽध्यायः ॥ ८॥
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