Tuesday, March 24, 2015

नवमोऽध्यायः

ध्यानम्
ॐ बन्धूककाञ्चननिभं रुचिराक्षमालां
पाशाङ्कुशौ च वरदां निजबाहुदण्दैः।
बिभ्राणमिन्दुशकलाभरणं त्रिनेत्र-
मर्धाम्बिकेशमनिशं वपुराश्रयामि।।

बन्धूककाञ्चननिभं = बन्दूक के फूल और सोने के सामान रंग की 
रुचिराक्षमालां = सुन्दर अक्ष माला , 
पाशाङ्कुशौ = पाश, अंकुश 
च वरदां = और वरद मुद्रा 
निजबाहुदण्डैः = अपनी भुजाओं में दंड 
बिभ्राणमि= धारण किये 
इन्दुशकलाभरणं = अर्द चन्द्र के आभूषण वाले 
 त्रिनेम्= = तीन नेत्रों वाले 
अर्धाम्बिकेशम्= अर्ध अम्बिक ईश वपु : = अर्धनारीश्वर के रूप (श्रीविग्रह) की 
 अनिशं = निरंतर 

आश्रयामि= शरण लेता/ लेती हूँ 

बन्दूक के फूल और सोने के सामान रंग की सुन्दर अक्ष माला , पाश, अंकुश ,वरद मुद्रा और अपनी भुजाओं में दंड धारण किये , अर्द चन्द्र के आभूषण वाले, तीन नेत्रों वाले अर्धनारीश्वर के रूप (श्रीविग्रह) की निरंतर शरण लेता/ लेती हूँ । 


ॐ राजोवाच ॥ १॥

राजा बोले ।

विचित्रमिदमाख्यातं भगवन् भवता मम ।
देव्याश्चरितमाहात्म्यं रक्तबीजवधाश्रितम् ॥ २॥

विचित्रम् = अद्भुत 
इदम्= ये 
आख्यातं = बताया 
भगवन् = भगवन 
भवता = आप ने 
मम = मुझे 
देव्याश्चरितमाहात्म्यं = देवी चरित्र का माहात्म्य 
रक्तबीजवध= रक्तबीज की वध से 
आश्रितम् = सम्बंधित 


भगवन आप ने मुझे रक्तबीज की वध से सम्बंधित देवी चरित्र का ये अद्भुत माहात्म्य बताया । 

भूयश्चेच्छाम्यहं श्रोतुं रक्तबीजे निपातिते ।
चकार शुम्भो यत्कर्म निशुम्भश्चातिकोपनः ॥ ३॥

भूय:= दुबारा 
च = और 
इच्छामि= चाहता हूँ  
अहं = मैं 
श्रोतुं = सुनना  
रक्तबीजे = रक्त बीज के 
निपातिते = मारे जाने पर 
चकार = किया 
शुम्भो = शुम्भ ने 
यत्कर्म = जो कर्म 
निशुम्भ = निशुम्भ 
च = और 
अतिकोपनः= अत्यंत क्रोध में 


रक्त बीज के मारे जाने पर शुम्भ ने और निशुम्भ ने अत्यंत क्रोध में जो कर्म किया मैं दुबारा सुनना चाहता हूँ 

ऋषिरुवाच ॥ ४॥

ऋषि बोले ।

चकार कोपमतुलं रक्तबीजे निपातिते ।
शुम्भासुरो निशुम्भश्च हतेष्वन्येषु चाहवे ॥ ५॥

चकार = किया 
कोपम् = क्रोध 
अतुलं = अत्यंत 
रक्तबीजे = रक्तबीज के 
निपातिते = मारे जाने पर 
शुम्भ: = शुम्भ 
असुरो = असुरों ने 
निशुम्भश्च = और अशुम्भ 
हतेष्वन्येषु= हतेषु अन्येषु = अन्यों के मारे जाने पर 
च= और 
आहवे= युद्ध में 


युद्ध में शुम्भ और अशुम्भ असुरों ने रक्तबीज के और अन्यों के मारे जाने पर अत्यंत क्रोध किया । 

हन्यमानं महासैन्यं विलोक्यामर्षमुद्वहन् ।
अभ्यधावन्निशुम्भोऽथ मुख्ययासुरसेनया ॥ ६॥

हन्यमानं = मारी जाती हुई 
महासैन्यं = महा सेना को 
विलोक्य = देख कर 
अमर्षम् = गुस्से से 
उद्वहन् = जलता हुआ 
अभ्यधावत् = तरफ भागा
निशुम्भो =निशुम्भ  
अथ = तब 
मुख्यया = मुख्य 
असुरसेनया = असुरसेना के साथ 


मारी जाती हुई महा सेना को देख कर गुस्से से जलता हुआ निशुम्भ  तब मुख्य असुरसेना के साथ देवी की तरफ भागा । 

तस्याग्रतस्तथा पृष्ठे पार्श्वयोश्च महासुराः ।
सन्दष्टौष्ठपुटाः क्रुद्धा हन्तुं देवीमुपाययुः ॥ ७॥

तस्य = उसके 
अग्रत: = आगे 
तथा = इसी प्रकार 
पृष्ठे = पीछे 
पार्श्वयो: = दायें बाएं 
च = और  
महासुराः= महा असुर थे 
सन्दष्टौ = चबाता हुआ , काटता  हुआ 
औष्ठपुटाः =होंठों को 
क्रुद्धा = क्रोध में  
हन्तुं = मारने के लिए  
देवीम = देवी को 
उपाययुः = आगे बढ़ा 


उसके आगे और इसी प्रकार पीछे और दायें बाएं महा असुर थे । क्रोध में होंठों को चबाता हुआ देवी को मारने के लिए आगे बढ़ा ।  

आजगाम महावीर्यः शुम्भोऽपि स्वबलैर्वृतः ।
निहन्तुं चण्डिकां कोपात्कृत्वा युद्धं तु मातृभिः ॥ ८॥

आजगाम = आया 
महावीर्यः = महा पराक्रमी 
शुम्भोऽपि = शुम्भ भी 
स्वबलैर्वृतः अपनी सेना से घिर कर 
निहन्तुं = मारने के लिए 
चण्डिकां = चण्डिका को 
 कोपात्= क्रोध से 
 कृत्वा = कर के    
युद्धं = युद्ध 
तु = और 
मातृभिः= माताओं से 


और महा पराक्रमी शुम्भ भी अपनी सेना से घिर कर माताओं से युद्ध कर के चण्डिका को मारने के लिए आया । 

ततो युद्धमतीवासीद्देव्या शुम्भनिशुम्भयोः ।
शरवर्षमतीवोग्रं मेघयोरिव वर्षतोः ॥ ९॥

ततो = तब 
युद्धम् = युद्ध 
अतीव = अत्यंत 
आसीत् = था 
देव्या = देवी 
शुम्भनिशुम्भयोः = शुम्भ निशुम्भ
शरवर्षम् = तीरों की वर्षा 
अतीव = अत्यंत 
उग्रं = भयानक  
मेघयो:= मेघों की 
इव = जैसी 
वर्षतोः= वर्षा 


तब देवी (और) शुम्भ निशुम्भ का युद्ध अत्यंत भयानक था । तीरों की अत्यंत वर्षा  मेघों की वर्षा जैसी थी | 

चिच्छेदास्ताञ्छरांस्ताभ्यां चण्डिका स्वशरोत्करैः ।
ताडयामास चाङ्गेषु शस्त्रौघैरसुरेश्वरौ ॥ १०॥

चिच्छेद= काट दिया 
अस्तात् = फेंके गए 
शरात् = तीरों को 
ताभ्यां = उन दोनों के 
चण्डिका = चण्डिका ने 
स्वशर:= अपने तीरों के 
उत्करैः = ढ़ेर से  
ताडयामास = प्रहार किया 
च  = और 
अङ्गेषु = अंगों पर 
शस्त्रौघै:= शस्त्रों के प्रवाह से 
असुरेश्वरौ = दैत्यपतियों के 

चण्डिका ने अपने तीरों के ढेरों से उन दोनों के फेंके गए तीरों को काट दिया और शस्त्रों के प्रवाह से दैत्यपतियों के अंगों पर प्रहार किया । 

निशुम्भो निशितं खड्गं चर्म चादाय सुप्रभम् ।
अताडयन्मूर्ध्नि सिंहं देव्या वाहनमुत्तमम् ॥ ११॥

निशुम्भो = निशुम्भ ने 
निशितं = तीखी 
खड्गं = तलवार 
चर्म =ढाल 
च= और 
आदाय = ले कर 
सुप्रभम् = चमकीली 
अताडयत् = मार 
मूर्ध्नि = माथे पर 
सिंहं = सिंह के 
देव्या = देवी के 
वाहनम् = वाहन  
उत्तमम् = उत्तम 


निशुम्भ ने तीखी तलवार और चमकीली ढाल ले कर देवी के उत्तम वाहन सिंह के माथे पर प्रहार किया । 

ताडिते वाहने देवी क्षुरप्रेणासिमुत्तमम् ।
निशुम्भस्याशु चिच्छेद चर्म चाप्यष्टचन्द्रकम् ॥ १२॥

ताडिते = प्रहार होने पर 
वाहने = वाहन पर 
देवी = देवी ने  
क्षुरप्रेणा= तेज धार वाला तीर 
असिम् = तलवार को 
उत्तमम् = उत्तम 
निशुम्भस्य = निशुम्भ की 
आशु = शीघ्र 
चिच्छेद = काट दिया 
चर्म = ढाल 
च = और 
अपि = भी 
अष्टचन्द्रकम् =  आठ चंद्रमाओं वाली 


वाहन पर प्रहार होने पर देवी ने तेज धार वाले तीर से शीघ्र निशुम्भ की उत्तम तलवार और  आठ चंद्रमाओं वाली ढाल को भी काट दिया ।  

छिन्ने चर्मणि खड्गे च शक्तिं चिक्षेप सोऽसुरः ।
तामप्यस्य द्विधा चक्रे चक्रेणाभिमुखागताम् ॥ १३॥

छिन्ने = टूटने पर 
चर्मणि = ढाल 
खड्गे = तलवार 
च = और ढाल 
शक्तिं = शक्ति 
चिक्षेप = फेंकी 
सोऽसुरः = स: असुरः = उस असुर ने  
 ताम् = उसके 
अपि = भी 
अस्य = उस देवी के  
 द्विधा = दो भाग 
चक्रे = कर दिए 
चक्रेणा= चक्र से 
अभिमुख = पास , सामने 
आगताम् = आती हुई 


तलवार और ढाल के टूटने पर उस असुर ने शक्ति फेंकी , उस देवी के पास आती हुई उस (शक्ति ) के भी चक्र से दो भाग कर दिए | 

कोपाध्मातो निशुम्भोऽथ शूलं जग्राह दानवः ।
आयातं मुष्टिपातेन देवी तच्चाप्यचूर्णयत् ॥ १४॥

कोप आध्मात् = क्रोध से जलते हुए 
निशुम्भ:= निशुम्भ  ने 
अथ = तब 
शूलं = शूल 
जग्राह = ले कर 
दानवः = दानव
आयातं = आते हुए
मुष्टिपातेन = मुट्ठी के प्रहार से 
 देवी = देवी ने 
तत्= उसको  भी 
च  = और 
अपि = भी 
अचूर्णयत् = पीस दिया


क्रोध से जलते हुए निशुम्भ  ने तब शूल ले कर आया , आते हुए उस शूल को भी देवी ने मुट्ठी के प्रहार से पीस दिया । 

आविध्याथ गदां सोऽपि चिक्षेप चण्डिकां प्रति ।
सापि देव्या त्रिशूलेन भिन्ना भस्मत्वमागता ॥ १५॥

आविध्य = घुमा कर 
अथ = तब 
गदां = गदा 
सोऽपि = उसने भी 
चिक्षेप = फेंकी 
चण्डिकां = चण्डिका की 
प्रति = तरफ 
सापि = वह भी 
देव्या = देवी के 
त्रिशूलेन = त्रिशूल से 
भिन्ना = टूट कर 
भस्मत्वम् आगता  = राख हो गयी 


तब उसने भी चण्डिका की तरफ घुमा कर गड़ाए फेंकी , वह भी देवी के त्रिशूल से टूट कर राख हो गयी । 

ततः परशुहस्तं तमायान्तं दैत्यपुङ्गवम् ।
आहत्य देवी बाणौघैरपातयत भूतले ॥ १६॥

ततः = तब 
परशुहस्तं = परशु हाथ में ले कर 
तम = उस 
आयान्तं = आते हुए 
दैत्यपुङ्गवम् = दैत्यराज 
आहत्य =घायल  कर 
देवी =देवी ने 
बाणौघै = बाणों के प्रवाह से 
अपातयत = गिरा दिया 
भूतले = भूमि पर 


तब परशु हाथ में ले कर आते हुए उस दैत्य राज को बाणों के प्रवाह से घायल कर भूमि पर गिरा दिया । 

तस्मिन्निपतिते भूमौ निशुम्भे भीमविक्रमे ।
भ्रातर्यतीव सङ्क्रुद्धः प्रययौ हन्तुमम्बिकाम् ॥ १७॥

तस्मिन्= उस 
निपतिते = गिरने पर 
भूमौ = भूमि पर 
निशुम्भे = निशुम्भ के 
भीमविक्रमे  अत्यंत पराक्रमी 
भ्रातर: = भाई
अतीव = बहुत 
सङ्क्रुद्धः = क्रोध के साथ 
प्रययौ = आगे आया 
हन्तुम्= मारने के  लिए 
अम्बिकाम् = अम्बिका को 


उस अत्यंत पराक्रमी भाई निशुम्भ के भूमि पर गिरने से बहुत क्रोध के साथ (शुम्भ) अम्बिका को मारने के लिए आगे आया । 

स रथस्थस्तथात्युच्चैर्गृहीतपरमायुधैः ।
भुजैरष्टाभिरतुलैर्व्याप्याशेषं बभौ नभः ॥ १८॥

स = वह 
रथस्थ = रथ पर बैठा  
तथा= इस प्रकार 
अति = अत्यंत 
उच्चै: = श्रेष्ठ
गृहीत = लिए 
परमायुधैः =परम शस्त्रों को 
भुजै: = भुजाओं  से 
अष्टाभि:= आठ  
अतुलै:= अतुलनीय 
व्याप्या = व्याप्त कर 
अशेषं = सारे 
बभौ = शोभनीय था 
नभः = आकाश को 


इस प्रकार वह रथ पर बैठा अत्यंत परम शस्त्रों को लिए , अतुलनीय आठ भुजाओं से सारे आकाश को व्याप्त कर शोभनीय था । 

तमायान्तं समालोक्य देवी शङ्खमवादयत् ।
ज्याशब्दं चापि धनुषश्चकारातीव दुःसहम् ॥ १९॥

तम= उसको 
आयान्तं = आता हुआ 
समालोक्य= देख कर 
 देवी = देवी ने 
शङ्खम = शंख 
अवादयत् = बजाया
ज्याशब्दं = टंकार की आवाज 
च= और  
अपि = भी 
धनुष = धनुष से 
च = और 
चकार = की 
अतीव = अत्यंत 
दुःसहम् = असहनीय 


उसको आता हुआ देख कर देवी ने शंख बजाया और धनुष से अत्यंत असहनीय टंकार की आवाज भी की । 

पूरयामास ककुभो निजघण्टास्वनेन च ।
समस्तदैत्यसैन्यानां तेजोवधविधायिना ॥ २०॥

पूरयामास = भर दिया 
ककुभो = सभी दिशाओं को 
निज घण्टा स्वनेन = अपने घंटे की आवाज़ से 
च =और 
समस्त दैत्य सैन्यानां = सारे दैत्यों की सेना 
तेजोवध = तेज को नष्ट 
विधायिना = करने वाली


और सारे दैत्यों की सेना के तेज को नष्ट करने वाली अपने घंटे की आवाज़ से सभी दिशाओं को भर दिया । 

ततः सिंहो महानादैस्त्याजितेभमहामदैः ।
पूरयामास गगनं गां तथैव दिशो दश ॥ २१॥

ततः = तब 
सिंहो = सिंह की 
महानादै:  = महा गर्जना 
त्याजित = दूर करने वाली 
एभ= हाथियों के 
महामदैः =महान मद को 
पूरयामास = भर दिया 
गगनं = आकाश 
गां = पृथ्वी 
तथैव = तथा इसी प्रकार 
दिशो = दिशाओं 
दश = दसों


हाथियों के महान मद को दूर करने वाली सिंह की महा गर्जना ने आकाश , पृथ्वी तथा इसी प्रकार दसों दिशाओं को भर दिया ।  

ततः काली समुत्पत्य गगनं क्ष्मामताडयत् ।
कराभ्यां तन्निनादेन प्राक्स्वनास्ते तिरोहिताः ॥ २२॥

ततः = तब 
काली = काली ने 
समुत्पत्य = उछाल कर 
गगनं = आकाश में 
क्ष्माम् = पृथ्वी पर 
अताडयत् = प्रहार किया 
कराभ्यां = हाथों से 
तन्निनादेन = तत् निनादेन = उस आवाज़ से 
प्राक् = पहले की 
स्वना:= आवाज़ थीं 
ते  = वे 
तिरोहिताः= शांत हो गयीं


तब काली ने आकाश में उछाल कर पृथ्वी पर हाथों से प्रहार  किया = उस आवाज़ से पहले की जो  आवाज़ें थी वो शांत हो गयीं 

अट्टाट्टहासमशिवं शिवदूती चकार ह ।
वैः शब्दैरसुरास्त्रेसुः शुम्भः कोपं परं ययौ ॥ २३॥

अट्टाट्टहासम = अट्टहास
अशिवं = अमंगलकारी 
शिवदूती = शिवदूती ने 
चकार = किया 
ह =  तब 
तैः = उन  
शब्दै:= आवाज़ों से 
असुरा:= असुर 
त्रेसुः = डर गए 
शुम्भः = शुम्भ को 
कोपं = क्रोध 
परं = अत्यंत 
ययौ =आया 


शिवदूती ने तब अमंगलकारी अट्टहास किया, उन आवाज़ों से असुर सर गए , (पर) शुम्भ को अत्यंत क्रोध आया । 

दुरात्मंस्तिष्ठ तिष्ठेति व्याजहाराम्बिका यदा ।
तदा जयेत्यभिहितं देवैराकाशसंस्थितैः ॥ २४॥

दुरात्म: = दुष्ट आत्मा
तिष्ठ तिष्ठेति = ठहरो ठहरो 
व्याजहारा = बोली 
अम्बिका =अम्बिका 
यदा = जब  
तदा = तब 
जयेत्य = जय इति = जय  हो  
अभिहितं = कहा  
देवै: = देवताओं ने 
आकाशसंस्थितैः  = आकाश में स्थित  


जब अम्बिका बोली, दुष्ट आत्मा ठहरो ठहरो,  तब आकाश में स्थित देवताओं ने कहा जय हो | 

शुम्भेनागत्य या शक्तिर्मुक्ता ज्वालातिभीषणा ।
आयान्ती वह्निकूटाभा सा निरस्ता महोल्कया ॥ २५॥

शुम्भेना = शुम्भ ने 
आगत्य = आ कर 
या = जो 
शक्ति:= शक्ति 
मुक्ता = छोड़ी 
ज्वालातिभीषणा = अति भयानक जलती हुई 
आयान्ती = आती हुई 
वह्निकूटाभा= आग के पर्वत जैसी शक्ति को 
सा = उसने 
निरस्ता = रोक दिया 

महोल्कया= महा उल्का से 

शुम्भ ने आ कर जो अति भयानक जलती हुई  शक्ति छोड़ी, आती हुई  आग के पर्वत जैसी शक्ति को उसने महा उल्का से  रोक दिया । 

सिंहनादेन शुम्भस्य व्याप्तं लोकत्रयान्तरम् ।
निर्घातनिःस्वनो घोरो जितवानवनीपते ॥ २६॥

सिंहनादेन = सिंह नाद से 
शुम्भस्य = शुम्भ के 
व्याप्तं = भर दिया  
लोकत्रयान्तरम् = तीनों लोकों  के अंतर को  
निर्घात = व्रजपात, विनाशी 
निःस्वनो = प्रतिध्वनि ने 
घोरो = घोर 
जितवान = विजयी  हुई 
अवनीपते = राजन 

हे राजन , शुम्भ के सिंह नाद से तीनों लोकों  के अंतर को भर

दिया , (और) व्रजपात जैसी घोर प्रतिध्वनि विजयी हुई । 

शुम्भमुक्ताञ्छरान्देवी शुम्भस्तत्प्रहिताञ्छरान् ।
चिच्छेद स्वशरैरुग्रैः  शतशोऽथ सहस्रशः ॥ २७॥

शुम्भमुक्तान् = शुम्भ द्वारा छोड़े गए 
शरान्= तीरों को 
देवी  = देवी ने 
शुम्भ:= शुम्भ ने 
तत् = उसके  
प्रहितान् =छोड़े गए 
शरान् = तीरों को 
चिच्छेद = काट दिया 
स्वशरै: = अपने तीरों से 
उग्रैः  = भयानक 
शतश: = सैंकड़ों 
अथ = तब 
सहस्रशः = हज़ारों 


तब शुम्भ द्वारा छोड़े गए तीरों को देवी ने , उसके छोड़े गए तीरो को शुम्भ ने अपने सैंकड़ों हज़ारों भयानक तीरों से काट दिया । 

ततः सा चण्डिका क्रुद्धा शूलेनाभिजघान तम् ।
स तदाभिहतो भूमौ मूर्च्छितो निपपात ह ॥ २८॥

ततः =तब 
सा =उस 
चण्डिका = चण्डिका  ने 
क्रुद्धा = क्रोधित 
शूलेनाभिजघान = शूल से मारा
तम् =उसे 
स = वह 
तदा= तब 
अभिहतो = आघात से 
भूमौ = भूमि पर 
मूर्च्छितो = मूर्छित हो कर 
निपपात ह = गिर गया 



तब उस क्रोधित चण्डिका ने उसे शूल से मारा, वह तब आगत से मूर्छित हो कर भूमि पर  गिर गया |  

ततो निशुम्भः सम्प्राप्य चेतनामात्तकार्मुकः ।
आजघान शरैर्देवीं कालीं केसरिणं तथा ॥ २९॥

ततो = तब 
निशुम्भः = निशुम्भ 
सम्प्राप्य = पाने पर  
चेतनाम्= चेतना 
आत्त = ले कर 
कार्मुकः = धनुष 
आजघान = प्रहार किया 
शरै: = तीरों से 
देवीं = देवी 
कालीं = काली 
केसरिणं = सिंह 
तथा = इसी प्रकार 


तब निशुम्भ ने चेतना पाने पर धनुष लेकर तीरों से देवी , काली , इसी प्रकार सिंह पर प्रहार किया । 

पुनश्च कृत्वा बाहूनामयुतं दनुजेश्वरः ।
चक्रायुधेन दितिजश्छादयामास चण्डिकाम् ॥ ३०॥

पुन:= दुबारा 
च = और  
कृत्वा = कर 
बाहूनाम अयुतं = दस हज़ार बाहें कर 
दनुजेश्वरः= दैत्यराज 
चक्रायुधेन = चक्र के प्रहार से 
दितिज= दिति के पुत्र 
छादयामास = ढक दिया 
चण्डिकाम्= चण्डिका को 


और फिर से दिति के पुत्र  दैत्यराज दस हज़ार बाहें कर  चक्र के प्रहार से चण्डिका को ढक दिया । 

ततो भगवती क्रुद्धा दुर्गा दुर्गार्तिनाशिनी ।
चिच्छेद देवी चक्राणि स्वशरैः सायकांश्च तान् ॥ ३१॥

ततो = तब 
भगवती = भगवती 
क्रुद्धा = क्रोधित 
दुर्गा = दुर्गा 
दुर्गार्तिनाशिनी = बुरी दशा का नाश करने वाली 
चिच्छेद = काट दिए 
देवी = देवी ने 
चक्राणि = चक्रों 
स्वशरैः = अपने तीरों से 
सायकांश्च = और तीरों को 
तान् = उसके 


तब बुरी दशा का नाश करने वाली  भगवती दुर्गा देवी ने अपने तीरों से उसके चक्रों और तीरों को काट दिया । 

ततो निशुम्भो वेगेन गदामादाय चण्डिकाम् ।
अभ्यधावत वै हन्तुं दैत्यसैन्यसमावृतः ॥ ३२॥

ततो = तब 
निशुम्भो = निशुम्भ 
वेगेन = जल्दी से 
गदामादाय - गदा ले कर 
चण्डिकाम् = चण्डिका को   
अभ्यधावत = तरफ दौड़ा 
वै = निश्चित रूप से 
हन्तुं = मारने के लिए 
दैत्यसैन्य समावृतः = दैत्य सेना से घिरा 


तब निशुम्भ जल्दी से गदा ले कर निश्चित रूप से चण्डिका को मारने के लिए (उसकी ) तरफ दौड़ा । 



तस्यापतत एवाशु गदां चिच्छेद चण्डिका ।
खड्गेन शितधारेण स च शूलं समाददे ॥ ३३॥


तस्य - उसकी 
अपतत = आती हुई 
एव= ही 
आशु = जल्दी से
गदां = गदा को 
चिच्छेद = काट दिया 
चण्डिका = चण्डिका ने 
खड्गेन = तलवार से 
शितधारेण = तीखी धार वाली 
स =उसने 
च = और 
शूलं = शूल 
समाददे= ले लिया 

उसकी आती हुई गदा को जल्दी से ही अम्बिका ने अपनी तेज धार वाली तलवार से काट दिया , और उस (निशुम्भ ) ने शूल ले लिया । 


शूलहस्तं समायान्तं निशुम्भममरार्दनम् ।
हृदि विव्याध शूलेन वेगाविद्धेन चण्डिका ॥ ३४॥

शूलहस्तं = शूल लिए 
समायान्तं = आते हुए 
निशुम्भम = निशुम्भ का 
अमरार्दनम् = देवताओं को पीड़ा देने वाले 
हृदि = हृदय 
विव्याध = छेद दिया 
शूलेन = शूल से 
वेगाविद्धेन = वेग से चलाये गए  
चण्डिका = चण्डिका ने 


देवताओं को पीड़ा देने वाले शूल लिए आते हुए  निशुम्भ का हृदय चण्डिका ने वेग से चलाये गए शूल से छेद दिया । 


भिन्नस्य तस्य शूलेन हृदयान्निःसृतोऽपरः ।
महाबलो महावीर्यस्तिष्ठेति पुरुषो वदन् ॥ ३५॥

भिन्नस्य = विदीर्ण 
तस्य = उसके 
शूलेन = शूल से 
हृदयात्= हृदय से 
निसृतो= निकला 
अपरः = दूसरा 
महाबलो =महा शक्तिशाली 
महावीर्य:= महा पराक्रमी 
तिष्ठ = ठहरो 
इति = ऐसा 
पुरुषो = पुरुष 
वदन् = कहता हुआ 



शूल से विदीर्ण हुए उसके हृदय से दूसरा महाशक्तिशाली , महापराक्रमी पुरुष ठहरो ठहरो कहता हुआ निकला । 

तस्य निष्क्रामतो देवी प्रहस्य स्वनवत्ततः ।
शिरश्चिच्छेद खड्गेन ततोऽसावपतद्भुवि ॥ ३६॥

तस्य = उस के 
निष्क्रामतो = निकलते हुए 
देवी = देवी 
प्रहस्य = हँसते हुए   
स्वनवत् = ज़ोर से 
ततः = तब 
शिर:= सर को 
चिच्छेद = काट दिया 
खड्गेन = तलवार से 
ततोऽसावपतद्भुवि = ततः असौ अपतत् भुवि 

 ततः = तब 
 असौ = वह 
 अपतत् = गिर गया
 भुवि = भूमि पर 


देवी ने ज़ोर से हँसते हुए ,निकलते हुए उस (पुरुष) के सर को तलवार से काट दिया । तब वह भूमि पर गिर गया ।  

ततः सिंहश्चखादोग्रदंष्ट्राक्षुण्णशिरोधरान् ।
असुरांस्तांस्तथा काली शिवदूती तथापरान् ॥ ३७॥

ततः = तब 
सिंह: = शेर 
चखाद = खा गया 
उग्रदंष्ट्रा क्षुण्ण = दाढ़ों से कुचल कर 
शिरोधरान्= गर्दन को 
असुरां = असुर की 
तां = उस 
तथा  = इसी प्रकार 
काली = काली 
शिवदूती = शिवदूती
तथा = इसी प्रकार
अपरान्=  दूसरों को 


तब शेर उस असुर की गर्दन को दाढ़ों से कुचल कर खा गया , इसी प्रकार काली , इसी प्रकार शिवदूती दूसरों को (खा गयीं ) । 

कौमारीशक्तिनिर्भिन्नाः केचिन्नेशुर्महासुराः ।
ब्रह्माणीमन्त्रपूतेन तोयेनान्ये निराकृताः ॥ ३८॥

कौमारी = कौमारी की 
शक्ति = शक्ति से 
निर्भिन्नाः = विदीर्ण हो 
केचित् = कुछ 
नेशु:=नष्ट हो गए 
महासुराः= महासुर   
ब्रह्माणी= ब्रह्माणी के 
मन्त्रपूतेन = मन्त्र पूत 
तोयेन = जल से 
अन्ये = दूसरे 
निराकृताः = दूर हटा दिए गए , खंडित कर दिए गए 

कुछ महासुर कौमारी की शक्ति से विदीर्ण हो नष्ट हो गए  , दूसरे ब्रह्माणी के मन्त्र पूत जल से दूर हटा दिए गए ।  


माहेश्वरीत्रिशूलेन भिन्नाः पेतुस्तथापरे ।
वाराहीतुण्डघातेन केचिच्चूर्णीकृता भुवि ॥ ३९॥

माहेश्वरी= माहेश्वरी के 
त्रिशूलेन = त्रिशूल से 
भिन्नाः = छिद कर 
पेतु:= गिर गए 
तथा= इसी प्रकार 
अपरे = दूसरे 
वाराही तुण्ड घातेन= वाराही के तुण्ड के प्रहार से 
 केचित् = कितनों का 
चूर्णीकृता = कचूमर हो गया 
 भुवि = पृथ्वी पर 


इसी प्रकार दूसरे माहेश्वरी के त्रिशूल से छिद कर गिर गए । कितनों का वाराही के तुण्ड के प्रहार से पृथ्वी पर कचूमर हो गया  । 

खण्डं खण्डं च चक्रेण वैष्णव्या दानवाः कृताः ।
वज्रेण चैन्द्रीहस्ताग्रविमुक्तेन तथापरे ॥ ४०॥

खण्डं खण्डं = टुकड़े टुकड़े 
च = और 
चक्रेण = चक्र से 
वैष्णव्या=  वैष्णवी द्वारा  
दानवाः = दानवों के 
कृताः = कर दिए गए 
वज्रेण = वज्र से 
चैन्द्री = और ऐन्द्री के  
हस्ताग्रविमुक्तेन = हाथ से छोड़े गए 
तथा = इसी प्रकार 
अपरे= दूसरों के 


वैष्णवी द्वारा चक्र से दानवों के टुकड़े टुकड़े कर दिए गए और इसी प्रकार ऐन्द्री के हाथ से छोड़े गए व्रज से दूसरे (असुरों) के (टुकड़े टुकड़े कर दिए गए ) । 

केचिद्विनेशुरसुराः केचिन्नष्टा महाहवात् ।
भक्षिताश्चापरे कालीशिवदूतीमृगाधिपैः ॥ ४१॥

केचित् = कुछ 
विनेशु:= नष्ट हो गए 
असुराः = असुर 
केचित् = कुछ 
नष्टा = भाग गए 
महाहवात् = महा युद्ध से 
भक्षिता:= खा लिया 
च = और 
अपरे = दूसरों को 
काली शिवदूती मृगाधिपैः = काली शिवदूती , सिंह ने 


कुछ असुर नष्ट हो गए , कुछ महायुद्ध से भाग गए , और दूसरों को काली शिवदूती,(और)  सिंह ने खा लिया । 

॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
निशुम्भवधो नाम नवमोऽध्यायः ॥ ९॥

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