ॐ नागाधीश्वरविष्टरां फणिफणोत्तंसोरुरत्नावली-
भास्वद्देहलतां दिवाकरनिभां नेत्रत्रयोद्भासिताम्।
मालाकुम्भकपालनीरजकरां चन्द्रार्धचूडां परां
सर्वज्ञेश्वरभैरवाङ्कनिलयां पद्मावतीं चिन्तये।।
ॐ
नागाधीश्वरविष्टरां = नागराज के सिंहासन पर बैठी
फणिफणोत्तं सोरुरत्नावली = नाग के फनो की उत्तम मणियों की विशाल माला से
भास्वद्देहलतां = उद्भासित देहलता वाली
दिवाकरनिभां = सूर्य के सामान तेज वाली
नेत्रत्रयोद्भासिताम्। = तीन नेत्रों से उद्भासित
मालाकुम्भकपालनीरजकरां =हाथों में माला, कुम्भ , कपाल , कमल लिए
चन्द्रार्धचूडां = अर्ध चन्द्र के मुकुट वाली
परां = परमोत्कृष्ट
सर्वज्ञेश्वरभैरवाङ्कनिलयां = सर्वज्ञेश्वर भैरव के आँख में निवास करने वाली
पद्मावतीं चिन्तये = पद्मावती देवी का चिंतन करते हैं ।
नागराज के सिंहासन पर बैठी, नाग के फनो की उत्तम मणियों की विशाल माला से उद्भासित देहलता वाली, सूर्य के सामान तेज वाली , तीन नेत्रों से उद्भासित , हाथों में माला, कुम्भ , कपाल , कमल लिए, अर्ध चन्द्र के मुकुट वाली सर्वज्ञेश्वर भैरव के आँख में निवास करने वाली, परमोत्कृष्ट पद्मावती देवी का चिंतन करते हैं ।
ॐ ऋषिरुवाच ॥ १॥
ऋषि बोले ।
इत्याकर्ण्य वचो देव्याः स दूतोऽमर्षपूरितः ।
समाचष्ट समागम्य दैत्यराजाय विस्तरात् ॥ २॥
इत्याकर्ण्य =इति आकर्ण्य= इस प्रकार सुन कर
वचो = वचनों को
देव्याः = देवी के
स = वह
दूतो= दूत
अमर्षपूरितः = क्रोध से युक्त
समाचष्ट = बयान किया , बोला
समागम्य = पास जा कर
दैत्यराजाय = दैत्यराज के
विस्तरात् विस्तार से
इस प्रकार देवी के वचनों को सुन कर क्रोध से भरे उस दूत दैत्य राज के पास जा कर विस्तार से बोला ।
तस्य दूतस्य तद्वाक्यमाकर्ण्यासुरराट् ततः ।
सक्रोधः प्राह दैत्यानामधिपं धूम्रलोचनम् ॥ ३॥
तस्य = उस
दूतस्य = दूत के
तद्वाक्यम = वे वाक्य
आकर्ण्य= सुन कर
असुरराट् = दैत्यों का राजा
ततः= तब
सक्रोधः क्रोधयुक्त हो
प्राह = बोला
दैत्यानामधिपं = दैत्यों के सेनापति से
धूम्रलोचनम् = धूम्रलोचन
उस दूत के वे वाक्य सुन कर दैत्यों का राजा तब क्रोध युक्त हो दैत्यों के सेनापति धूम्रलोचन से बोला ।
हे धूम्रलोचनाशु त्वं स्वसैन्यपरिवारितः ।
तामानय बलाद्दुष्टां केशाकर्षणविह्वलाम् ॥ ४॥
हे धूम्रलोचना
आशु = जल्दी से
त्वं = तुम
स्वसैन्य= अपनी सेना से
परिवारितः = घिर कर
ताम= उसे
आनय = लाओ
बलात = जबरदस्ती
दुष्टां = दुष्ट को
केशाकर्षणविह्वलाम् = बालों से खींचते हुए
हे धूम्रलोचना जल्दी से अपनी सेना से घिर कर उस दस्ता को बालों से खींचते हुए जबरदस्ती लाओ ।
तत्परित्राणदः कश्चिद्यदि वोत्तिष्ठतेऽपरः ।
स हन्तव्योऽमरो वापि यक्षो गन्धर्व एव वा ॥ ५॥
तद= उसकी
परित्राणदः = बचाव के लिए
कश्चिद्यदि = यदि कोई
वा = भी
त्तिष्ठते= खड़ा होता है
अपरः= दूसरा
स = उसको
हन्तव्य:= मार देना
अमरो = देवता हो
वापि = अथवा
यक्षो = यक्ष
गन्धर्व = गन्धर्व
एव = ही
वा = अथवा
उसके बचाव के लिए यदि कोई भी दूसरा खड़ा होता है चाहे वो देवता हो , यक्ष हो अतः गंधव ही हो उसको मार देना ।
ऋषिरुवाच ॥ ६॥
ऋषि बोले ।
तेनाज्ञप्तस्ततः शीघ्रं स दैत्यो धूम्रलोचनः ।
वृतः षष्ट्या सहस्राणामसुराणां द्रुतं ययौ ॥ ७॥
तेन = उस की
आज्ञप्त= आज्ञा पे
ततः= तब
शीघ्रं
स = वह
दैत्यो = दैत्य
धूम्रलोचनः = धूम्रलोचन
वृतः = घिर कर
षष्ट्या सहस्राणाम = साठ हज़ार
असुराणां = असुरों से
द्रुतं =तेजी से
ययौ =चला गया
उसकी आज्ञा पर वह दैत्य शीघ्र साठ हज़ार असुरों से घर कर तेजी से चला गया |
स दृष्ट्वा तां ततो देवीं तुहिनाचलसंस्थिताम् ।
जगादोच्चैः प्रयाहीति मूलं शुम्भनिशुम्भयोः ॥ ८॥
स = उसने
दृष्ट्वा = देख कर
तां = उस
ततो = तब
देवीं = देवी को
तुहिनाचल = हिमालय पर
संस्थिताम् = स्थित
जगाद= बोला
उच्चैः = ज़ोर से
प्रयाह= जाओ
इति = इस प्रकार
मूलं = पास
शुम्भनिशुम्भयोः= शुम्भनिशुम्भ के
वह तब हिमालय पर स्थित उस देवीको देख कर ज़ोर से इस प्रकार बोला शुम्भनिशुम्भ के पास जाओ ।
न चेत्प्रीत्याद्य भवती मद्भर्तारमुपैष्यति ।
ततो बलान्नयाम्येष केशाकर्षणविह्वलाम् ॥ ९॥
न = नहीं
चेत्प्रीत्या = प्रसन्नता से
अद्य = अभी
भवती = आप
मद्भर्तारमुपैष्यति = मद भर्तारं उपैष्यति = मेरे स्वामी के पास चलेंगी
ततो = तो
बलान्नयाम्येष= बलात नयामि एष = बलपूर्वक ले जाऊँगा ऐसे
केशाकर्षणविह्वलाम् = बालों से पकड़ कर घसीटते हुए
आप प्रसन्नता से मेरे स्वामी के पास नहीं चलेंगी तो बालों से पकड़ कर घसीटते हुए ऐसे बलपूर्वक ले जाऊँगा |
देव्युवाच ॥ १०॥
देवी बोलीं ।
दैत्येश्वरेण प्रहितो बलवान्बलसंवृतः ।
बलान्नयसि मामेवं ततः किं ते करोम्यहम् ॥ ११॥
दैत्येश्वरेण = दैत्यों के स्वामी द्वारा
प्रहितो = भेजे गए (तुम )
बलवान = बलवान
बलसंवृतः = सेना से घिरे हो
बलान्नयसि मामेवं ततः = मुझे बलपूर्वक ले जाओगे तो
किं ते करोम्यहम् = तुम्हारा मैं क्या कर सकती हूँ
दैत्यों के स्वामी द्वारा भेजे गए बलवान सेना से घिरे (तुम ) मुझे बलपूर्वक ले जाओगे तो
तुम्हारा मैं क्या कर सकती हूँ |
ऋषिरुवाच ॥ १२॥
ऋषि बोले ।
इत्युक्तः सोऽभ्यधावत्तामसुरो धूम्रलोचनः ।
हुङ्कारेणैव तं भस्म सा चकाराम्बिका तदा ॥ १३॥
इत्युक्तः इति उक्तः = इस प्रकार कहने पर
सो= वह
अभ्यधावत्=ओर भागा
ताम= उसकी
असुरो = असुर
धूम्रलोचनः = धूम्रलोचन
हुङ्कारेणैव = हुंकार से ही
तं = उसे
भस्म = भस्म
सा = उस
चकार = कर दिया
अम्बिका = अम्बिका ने
तदा = तब
देवी के इस प्रकार कहने पर असुर धूम्रलोचन उसकी तरफ भागा, तब उस अम्बिका देवी ने उसे हुंकार से ही भस्म कर दिया ।
अथ क्रुद्धं महासैन्यमसुराणां तथाम्बिका ।
ववर्ष सायकैस्तीक्ष्णैस्तथा शक्तिपरश्वधैः ॥ १४॥
अथ = तब
क्रुद्धं = क्रोधित
महासैन्यमसुराणां = असुरों की महा सेना पर
तथाम्बिका = इस प्रकार अम्बिका ने
ववर्ष = वर्षा की
सायकै:= तीरों
तीक्ष्णै:= तीखे
तथा = इसी प्रकार , और
शक्तिपरश्वधैः= शक्ति , परशु की
तब इस प्रकार क्रोधित अम्बिका ने असुरों की महा सेना पर तीखे तीरों और शक्ति , परशुओं की वर्षा की ।
ततो धुतसटः कोपात्कृत्वा नादं सुभैरवम् ।
पपातासुरसेनायां सिंहो देव्याः स्ववाहनः ॥ १५॥
ततो = तब
धुतसटः = गर्दन के बाल हिलाते हुए
कोपात्= क्रोध से
कृत्वा = किया
नादं = आवाज़ , गर्जना
सुभैरवम् = भयंकर
पपात् = कूद पड़ा
असुरसेनायां = असुरों की सेना पर
सिंहो = सिंह ने
देव्याः = देवी के
स्ववाहनः = अपना वाहन
तब देवी का अपना वाहन सिंह ने गर्दन के बाल हिलाते हुए क्रोध से भयंकर गर्जना करते हुए असुरों की सेना पर कूद पड़ा ।
कांश्चित्करप्रहारेण दैत्यानास्येन चापरान् ।
आक्रान्त्या चाधरेणान्यान् जघान स महासुरान् ॥ १६॥
कांश्चित् = कुछ को
करप्रहारेण = हाथ के प्रहार से
दैत्यान् = दैत्यों को
आस्येन च = मुंह के
अपरान् = दूसरों को
आक्रम्य = पकड़ कर , दबा कर
च= और
अधरेण= जबड़ों में
अन्यान् = अन्य
जघान = मार दिया
स = उसने
महासुरान् = महासुरों को
उसने कुछ दैत्यों को हाथ के प्रहार से,दूसरों को मुंह के और अन्य महासुरों को जबड़ों में दबा कर मार दिया ।
केषाञ्चित्पाटयामास नखैः कोष्ठानि केसरी ।
तथा तलप्रहारेण शिरांसि कृतवान्पृथक् ॥ १७॥
केषाञ्चित = कुछ का
पाटयामास = फाड़ दिया
नखैः = नाखूनों से
कोष्ठानि = पेट
केसरी = शेर ने
तथा = इसी प्रकार
तलप्रहारेण = थप्पड़ के प्रहार से
शिरांसि = सर को
कृतवान = कर दिया
पृथक् = अलग
शेर ने कुछ का नाखूनों से पेट फाड़ दिया , इसी प्रकार थप्पड़ के प्रहार से सर को अलग कर दिया ।
विच्छिन्नबाहुशिरसः कृतास्तेन तथापरे ।
पपौ च रुधिरं कोष्ठादन्येषां धुतकेसरः ॥ १८॥
विच्छिन्न= अलग
बाहुशिरसः = बांह और सिर
कृता = कर दिए
तेन = उस ने
तथा= इस प्रकार
अपरे = दूसरों के
पपौ = पिया
च = और
रुधिरं = खून
कोष्ठात= पेट से
अन्येषां= अन्यों के
धुतकेसरः= गर्दन के बाल हिलाते हुए
गर्दन के बाल हिलाते हुए उस शेर ने दूसरों के बांह और इसी प्रकार सिर अलग कर दिए और अन्यों के पेट से खून पीया ।
क्षणेन तद्बलं सर्वं क्षयं नीतं महात्मना ।
तेन केसरिणा देव्या वाहनेनातिकोपिना ॥ १९॥
क्षणेन = क्षण भर में
तद्बलं = उस सेना को
सर्वं = सारे
क्षयं नीतं= नष्ट कर दिया
महात्मना = हे महात्मा
तेन = उस
केसरिणा केसरी ने
देव्या = देवी के
वाहनेन = वाहन
अतिकोपिना = अति क्रोधित
हे महात्मन उस देवी के वाहन अति क्रोधित केसरी ने क्षण भर में उस सारी सेना को नष्ट कर दिया ।
श्रुत्वा तमसुरं देव्या निहतं धूम्रलोचनम् ।
बलं च क्षयितं कृत्स्नं देवीकेसरिणा ततः ॥ २०॥
श्रुत्वा = सुन कर
तमसुरं = उस असुर
देव्या = देवी द्वारा
निहतं = मारे जाने
धूम्रलोचनम् = धूम्रलोचन के
बलं = सेना को
च = और
क्षयितं = नष्ट
कृत्स्नं = कर दिया
देवीकेसरिणा देवी के केसरी द्वारा
ततः = तब
तब देवी द्वारा उस असुर धूम्रलोचन के मारे जाने और देवी के वाहन केसरी द्वारा सेना को नष्ट करने का सुन कर
चुकोप दैत्याधिपतिः शुम्भः प्रस्फुरिताधरः ।
आज्ञापयामास च तौ चण्डमुण्डौ महासुरौ ॥ २१॥
चुकोप = क्रोध से
दैत्याधिपतिः = दैत्यों के स्वामी
शुम्भः = शुम्भ
प्रस्फुरिताधरः = काँपते होंठ वाले
आज्ञापयामास = आज्ञा दी
च = और
तौ = उन दोनों
चण्डमुण्डौ महासुरौ =चण्डमुण्ड महासुरों को
और क्रोध से काँपते होंठ वाले दैत्यों के स्वामी शुम्भ ने उन दोनों चण्डमुण्ड महासुरों को आज्ञा दी ।
हे चण्ड हे मुण्ड बलैर्बहुभिः परिवारितौ ।
तत्र गच्छत गत्वा च सा समानीयतां लघु ॥ २२॥
हे चण्ड हे मुण्ड
बलै:= सेना
बहुभिः = बड़ी
परिवारितौ = के साथ , घिर कर
तत्र= वहां
गच्छत = जाओ
गत्वा जा कर
च = और
सा = उसे
समानीयतां = साथ लाओ
लघु= जल्दी
हे चण्ड हे मुण्ड बड़ी सेना के साथ वहाँ जाओ और जा कर जल्दी उसे साथ ले कर आओ ।
केशेष्वाकृष्य बद्ध्वा वा यदि वः संशयो युधि ।
तदाशेषायुधैः सर्वैरसुरैर्विनिहन्यताम् ॥ २३॥
केशेष्वाकृष्य = बालों से घसीट कर
बद्ध्वा = बाँध कर
वा = अथवा
यदि = यदि
वः = तुम्हें
संशयो= संशय हो
युधि= युद्ध में
तदा = तब
अशेष = सभी
आयुधैः = हथियारों
सर्वै: = सभी
असुरै:= असुरों
विनिहन्य = मार देना
ताम् = उसे
बालों से घसीट कर अथवा बाँध कर (उसे लाओ ) यदि तुम्हे संसय हो तब युद्ध में सभी असुरों और सभी हथियारों (की सहायता) से उसे मार देना ।
तस्यां हतायां दुष्टायां सिंहे च विनिपातिते ।
शीघ्रमागम्यतां बद्ध्वा गृहीत्वा तामथाम्बिकाम् ॥ २४॥
तस्यां = उसको
हतायां = पराजित कर
दुष्टायां = दुष्टा को
सिंहे = सिंह को
च = और
विनिपातिते = मार कर , पराजित कर
शीघ्रमागम्यतां = जल्दी आओ
बद्ध्वा = बाँध कर
गृहीत्वा = साथ ले कर
तामथाम्बिकाम् = ताम अथ अम्बिका = तब उस अम्बिका को
उस दुष्ट को पराजित कर और सिंह को मार कर , तब उस अम्बिका को बाँध कर साथ ले कर जल्दी आओ ।
॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
शुम्भनिशुम्भसेनानीधूम्रलोचनवधो नाम षष्ठोऽध्यायः ॥ ६॥
भास्वद्देहलतां दिवाकरनिभां नेत्रत्रयोद्भासिताम्।
मालाकुम्भकपालनीरजकरां चन्द्रार्धचूडां परां
सर्वज्ञेश्वरभैरवाङ्कनिलयां पद्मावतीं चिन्तये।।
ॐ
नागाधीश्वरविष्टरां = नागराज के सिंहासन पर बैठी
फणिफणोत्तं सोरुरत्नावली = नाग के फनो की उत्तम मणियों की विशाल माला से
भास्वद्देहलतां = उद्भासित देहलता वाली
दिवाकरनिभां = सूर्य के सामान तेज वाली
नेत्रत्रयोद्भासिताम्। = तीन नेत्रों से उद्भासित
मालाकुम्भकपालनीरजकरां =हाथों में माला, कुम्भ , कपाल , कमल लिए
चन्द्रार्धचूडां = अर्ध चन्द्र के मुकुट वाली
परां = परमोत्कृष्ट
सर्वज्ञेश्वरभैरवाङ्कनिलयां = सर्वज्ञेश्वर भैरव के आँख में निवास करने वाली
पद्मावतीं चिन्तये = पद्मावती देवी का चिंतन करते हैं ।
नागराज के सिंहासन पर बैठी, नाग के फनो की उत्तम मणियों की विशाल माला से उद्भासित देहलता वाली, सूर्य के सामान तेज वाली , तीन नेत्रों से उद्भासित , हाथों में माला, कुम्भ , कपाल , कमल लिए, अर्ध चन्द्र के मुकुट वाली सर्वज्ञेश्वर भैरव के आँख में निवास करने वाली, परमोत्कृष्ट पद्मावती देवी का चिंतन करते हैं ।
ॐ ऋषिरुवाच ॥ १॥
ऋषि बोले ।
इत्याकर्ण्य वचो देव्याः स दूतोऽमर्षपूरितः ।
समाचष्ट समागम्य दैत्यराजाय विस्तरात् ॥ २॥
इत्याकर्ण्य =इति आकर्ण्य= इस प्रकार सुन कर
वचो = वचनों को
देव्याः = देवी के
स = वह
दूतो= दूत
अमर्षपूरितः = क्रोध से युक्त
समाचष्ट = बयान किया , बोला
समागम्य = पास जा कर
दैत्यराजाय = दैत्यराज के
विस्तरात् विस्तार से
इस प्रकार देवी के वचनों को सुन कर क्रोध से भरे उस दूत दैत्य राज के पास जा कर विस्तार से बोला ।
तस्य दूतस्य तद्वाक्यमाकर्ण्यासुरराट् ततः ।
सक्रोधः प्राह दैत्यानामधिपं धूम्रलोचनम् ॥ ३॥
तस्य = उस
दूतस्य = दूत के
तद्वाक्यम = वे वाक्य
आकर्ण्य= सुन कर
असुरराट् = दैत्यों का राजा
ततः= तब
सक्रोधः क्रोधयुक्त हो
प्राह = बोला
दैत्यानामधिपं = दैत्यों के सेनापति से
धूम्रलोचनम् = धूम्रलोचन
उस दूत के वे वाक्य सुन कर दैत्यों का राजा तब क्रोध युक्त हो दैत्यों के सेनापति धूम्रलोचन से बोला ।
हे धूम्रलोचनाशु त्वं स्वसैन्यपरिवारितः ।
तामानय बलाद्दुष्टां केशाकर्षणविह्वलाम् ॥ ४॥
हे धूम्रलोचना
आशु = जल्दी से
त्वं = तुम
स्वसैन्य= अपनी सेना से
परिवारितः = घिर कर
ताम= उसे
आनय = लाओ
बलात = जबरदस्ती
दुष्टां = दुष्ट को
केशाकर्षणविह्वलाम् = बालों से खींचते हुए
हे धूम्रलोचना जल्दी से अपनी सेना से घिर कर उस दस्ता को बालों से खींचते हुए जबरदस्ती लाओ ।
तत्परित्राणदः कश्चिद्यदि वोत्तिष्ठतेऽपरः ।
स हन्तव्योऽमरो वापि यक्षो गन्धर्व एव वा ॥ ५॥
तद= उसकी
परित्राणदः = बचाव के लिए
कश्चिद्यदि = यदि कोई
वा = भी
त्तिष्ठते= खड़ा होता है
अपरः= दूसरा
स = उसको
हन्तव्य:= मार देना
अमरो = देवता हो
वापि = अथवा
यक्षो = यक्ष
गन्धर्व = गन्धर्व
एव = ही
वा = अथवा
उसके बचाव के लिए यदि कोई भी दूसरा खड़ा होता है चाहे वो देवता हो , यक्ष हो अतः गंधव ही हो उसको मार देना ।
ऋषिरुवाच ॥ ६॥
ऋषि बोले ।
तेनाज्ञप्तस्ततः शीघ्रं स दैत्यो धूम्रलोचनः ।
वृतः षष्ट्या सहस्राणामसुराणां द्रुतं ययौ ॥ ७॥
तेन = उस की
आज्ञप्त= आज्ञा पे
ततः= तब
शीघ्रं
स = वह
दैत्यो = दैत्य
धूम्रलोचनः = धूम्रलोचन
वृतः = घिर कर
षष्ट्या सहस्राणाम = साठ हज़ार
असुराणां = असुरों से
द्रुतं =तेजी से
ययौ =चला गया
उसकी आज्ञा पर वह दैत्य शीघ्र साठ हज़ार असुरों से घर कर तेजी से चला गया |
स दृष्ट्वा तां ततो देवीं तुहिनाचलसंस्थिताम् ।
जगादोच्चैः प्रयाहीति मूलं शुम्भनिशुम्भयोः ॥ ८॥
स = उसने
दृष्ट्वा = देख कर
तां = उस
ततो = तब
देवीं = देवी को
तुहिनाचल = हिमालय पर
संस्थिताम् = स्थित
जगाद= बोला
उच्चैः = ज़ोर से
प्रयाह= जाओ
इति = इस प्रकार
मूलं = पास
शुम्भनिशुम्भयोः= शुम्भनिशुम्भ के
वह तब हिमालय पर स्थित उस देवीको देख कर ज़ोर से इस प्रकार बोला शुम्भनिशुम्भ के पास जाओ ।
न चेत्प्रीत्याद्य भवती मद्भर्तारमुपैष्यति ।
ततो बलान्नयाम्येष केशाकर्षणविह्वलाम् ॥ ९॥
न = नहीं
चेत्प्रीत्या = प्रसन्नता से
अद्य = अभी
भवती = आप
मद्भर्तारमुपैष्यति = मद भर्तारं उपैष्यति = मेरे स्वामी के पास चलेंगी
ततो = तो
बलान्नयाम्येष= बलात नयामि एष = बलपूर्वक ले जाऊँगा ऐसे
केशाकर्षणविह्वलाम् = बालों से पकड़ कर घसीटते हुए
आप प्रसन्नता से मेरे स्वामी के पास नहीं चलेंगी तो बालों से पकड़ कर घसीटते हुए ऐसे बलपूर्वक ले जाऊँगा |
देव्युवाच ॥ १०॥
देवी बोलीं ।
दैत्येश्वरेण प्रहितो बलवान्बलसंवृतः ।
बलान्नयसि मामेवं ततः किं ते करोम्यहम् ॥ ११॥
दैत्येश्वरेण = दैत्यों के स्वामी द्वारा
प्रहितो = भेजे गए (तुम )
बलवान = बलवान
बलसंवृतः = सेना से घिरे हो
बलान्नयसि मामेवं ततः = मुझे बलपूर्वक ले जाओगे तो
किं ते करोम्यहम् = तुम्हारा मैं क्या कर सकती हूँ
दैत्यों के स्वामी द्वारा भेजे गए बलवान सेना से घिरे (तुम ) मुझे बलपूर्वक ले जाओगे तो
तुम्हारा मैं क्या कर सकती हूँ |
ऋषिरुवाच ॥ १२॥
ऋषि बोले ।
इत्युक्तः सोऽभ्यधावत्तामसुरो धूम्रलोचनः ।
हुङ्कारेणैव तं भस्म सा चकाराम्बिका तदा ॥ १३॥
इत्युक्तः इति उक्तः = इस प्रकार कहने पर
सो= वह
अभ्यधावत्=ओर भागा
ताम= उसकी
असुरो = असुर
धूम्रलोचनः = धूम्रलोचन
हुङ्कारेणैव = हुंकार से ही
तं = उसे
भस्म = भस्म
सा = उस
चकार = कर दिया
अम्बिका = अम्बिका ने
तदा = तब
देवी के इस प्रकार कहने पर असुर धूम्रलोचन उसकी तरफ भागा, तब उस अम्बिका देवी ने उसे हुंकार से ही भस्म कर दिया ।
अथ क्रुद्धं महासैन्यमसुराणां तथाम्बिका ।
ववर्ष सायकैस्तीक्ष्णैस्तथा शक्तिपरश्वधैः ॥ १४॥
अथ = तब
क्रुद्धं = क्रोधित
महासैन्यमसुराणां = असुरों की महा सेना पर
तथाम्बिका = इस प्रकार अम्बिका ने
ववर्ष = वर्षा की
सायकै:= तीरों
तीक्ष्णै:= तीखे
तथा = इसी प्रकार , और
शक्तिपरश्वधैः= शक्ति , परशु की
तब इस प्रकार क्रोधित अम्बिका ने असुरों की महा सेना पर तीखे तीरों और शक्ति , परशुओं की वर्षा की ।
ततो धुतसटः कोपात्कृत्वा नादं सुभैरवम् ।
पपातासुरसेनायां सिंहो देव्याः स्ववाहनः ॥ १५॥
ततो = तब
धुतसटः = गर्दन के बाल हिलाते हुए
कोपात्= क्रोध से
कृत्वा = किया
नादं = आवाज़ , गर्जना
सुभैरवम् = भयंकर
पपात् = कूद पड़ा
असुरसेनायां = असुरों की सेना पर
सिंहो = सिंह ने
देव्याः = देवी के
स्ववाहनः = अपना वाहन
तब देवी का अपना वाहन सिंह ने गर्दन के बाल हिलाते हुए क्रोध से भयंकर गर्जना करते हुए असुरों की सेना पर कूद पड़ा ।
कांश्चित्करप्रहारेण दैत्यानास्येन चापरान् ।
आक्रान्त्या चाधरेणान्यान् जघान स महासुरान् ॥ १६॥
कांश्चित् = कुछ को
करप्रहारेण = हाथ के प्रहार से
दैत्यान् = दैत्यों को
आस्येन च = मुंह के
अपरान् = दूसरों को
आक्रम्य = पकड़ कर , दबा कर
च= और
अधरेण= जबड़ों में
अन्यान् = अन्य
जघान = मार दिया
स = उसने
महासुरान् = महासुरों को
उसने कुछ दैत्यों को हाथ के प्रहार से,दूसरों को मुंह के और अन्य महासुरों को जबड़ों में दबा कर मार दिया ।
केषाञ्चित्पाटयामास नखैः कोष्ठानि केसरी ।
तथा तलप्रहारेण शिरांसि कृतवान्पृथक् ॥ १७॥
केषाञ्चित = कुछ का
पाटयामास = फाड़ दिया
नखैः = नाखूनों से
कोष्ठानि = पेट
केसरी = शेर ने
तथा = इसी प्रकार
तलप्रहारेण = थप्पड़ के प्रहार से
शिरांसि = सर को
कृतवान = कर दिया
पृथक् = अलग
शेर ने कुछ का नाखूनों से पेट फाड़ दिया , इसी प्रकार थप्पड़ के प्रहार से सर को अलग कर दिया ।
विच्छिन्नबाहुशिरसः कृतास्तेन तथापरे ।
पपौ च रुधिरं कोष्ठादन्येषां धुतकेसरः ॥ १८॥
विच्छिन्न= अलग
बाहुशिरसः = बांह और सिर
कृता = कर दिए
तेन = उस ने
तथा= इस प्रकार
अपरे = दूसरों के
पपौ = पिया
च = और
रुधिरं = खून
कोष्ठात= पेट से
अन्येषां= अन्यों के
धुतकेसरः= गर्दन के बाल हिलाते हुए
गर्दन के बाल हिलाते हुए उस शेर ने दूसरों के बांह और इसी प्रकार सिर अलग कर दिए और अन्यों के पेट से खून पीया ।
क्षणेन तद्बलं सर्वं क्षयं नीतं महात्मना ।
तेन केसरिणा देव्या वाहनेनातिकोपिना ॥ १९॥
क्षणेन = क्षण भर में
तद्बलं = उस सेना को
सर्वं = सारे
क्षयं नीतं= नष्ट कर दिया
महात्मना = हे महात्मा
तेन = उस
केसरिणा केसरी ने
देव्या = देवी के
वाहनेन = वाहन
अतिकोपिना = अति क्रोधित
हे महात्मन उस देवी के वाहन अति क्रोधित केसरी ने क्षण भर में उस सारी सेना को नष्ट कर दिया ।
श्रुत्वा तमसुरं देव्या निहतं धूम्रलोचनम् ।
बलं च क्षयितं कृत्स्नं देवीकेसरिणा ततः ॥ २०॥
श्रुत्वा = सुन कर
तमसुरं = उस असुर
देव्या = देवी द्वारा
निहतं = मारे जाने
धूम्रलोचनम् = धूम्रलोचन के
बलं = सेना को
च = और
क्षयितं = नष्ट
कृत्स्नं = कर दिया
देवीकेसरिणा देवी के केसरी द्वारा
ततः = तब
तब देवी द्वारा उस असुर धूम्रलोचन के मारे जाने और देवी के वाहन केसरी द्वारा सेना को नष्ट करने का सुन कर
चुकोप दैत्याधिपतिः शुम्भः प्रस्फुरिताधरः ।
आज्ञापयामास च तौ चण्डमुण्डौ महासुरौ ॥ २१॥
चुकोप = क्रोध से
दैत्याधिपतिः = दैत्यों के स्वामी
शुम्भः = शुम्भ
प्रस्फुरिताधरः = काँपते होंठ वाले
आज्ञापयामास = आज्ञा दी
च = और
तौ = उन दोनों
चण्डमुण्डौ महासुरौ =चण्डमुण्ड महासुरों को
और क्रोध से काँपते होंठ वाले दैत्यों के स्वामी शुम्भ ने उन दोनों चण्डमुण्ड महासुरों को आज्ञा दी ।
हे चण्ड हे मुण्ड बलैर्बहुभिः परिवारितौ ।
तत्र गच्छत गत्वा च सा समानीयतां लघु ॥ २२॥
हे चण्ड हे मुण्ड
बलै:= सेना
बहुभिः = बड़ी
परिवारितौ = के साथ , घिर कर
तत्र= वहां
गच्छत = जाओ
गत्वा जा कर
च = और
सा = उसे
समानीयतां = साथ लाओ
लघु= जल्दी
हे चण्ड हे मुण्ड बड़ी सेना के साथ वहाँ जाओ और जा कर जल्दी उसे साथ ले कर आओ ।
केशेष्वाकृष्य बद्ध्वा वा यदि वः संशयो युधि ।
तदाशेषायुधैः सर्वैरसुरैर्विनिहन्यताम् ॥ २३॥
केशेष्वाकृष्य = बालों से घसीट कर
बद्ध्वा = बाँध कर
वा = अथवा
यदि = यदि
वः = तुम्हें
संशयो= संशय हो
युधि= युद्ध में
तदा = तब
अशेष = सभी
आयुधैः = हथियारों
सर्वै: = सभी
असुरै:= असुरों
विनिहन्य = मार देना
ताम् = उसे
बालों से घसीट कर अथवा बाँध कर (उसे लाओ ) यदि तुम्हे संसय हो तब युद्ध में सभी असुरों और सभी हथियारों (की सहायता) से उसे मार देना ।
तस्यां हतायां दुष्टायां सिंहे च विनिपातिते ।
शीघ्रमागम्यतां बद्ध्वा गृहीत्वा तामथाम्बिकाम् ॥ २४॥
तस्यां = उसको
हतायां = पराजित कर
दुष्टायां = दुष्टा को
सिंहे = सिंह को
च = और
विनिपातिते = मार कर , पराजित कर
शीघ्रमागम्यतां = जल्दी आओ
बद्ध्वा = बाँध कर
गृहीत्वा = साथ ले कर
तामथाम्बिकाम् = ताम अथ अम्बिका = तब उस अम्बिका को
उस दुष्ट को पराजित कर और सिंह को मार कर , तब उस अम्बिका को बाँध कर साथ ले कर जल्दी आओ ।
॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
शुम्भनिशुम्भसेनानीधूम्रलोचनवधो नाम षष्ठोऽध्यायः ॥ ६॥
No comments:
Post a Comment