Tuesday, March 24, 2015

षष्ठोऽध्यायः

ॐ नागाधीश्वरविष्टरां फणिफणोत्तंसोरुरत्नावली- 
भास्वद्देहलतां दिवाकरनिभां नेत्रत्रयोद्भासिताम्। 
मालाकुम्भकपालनीरजकरां चन्द्रार्धचूडां परां 
सर्वज्ञेश्वरभैरवाङ्कनिलयां पद्मावतीं चिन्तये।।

ॐ 
नागाधीश्वरविष्टरां = नागराज के सिंहासन पर बैठी 
फणिफणोत्तं सोरुरत्नावली  = नाग के फनो की उत्तम मणियों की विशाल  माला से 
भास्वद्देहलतां = उद्भासित देहलता वाली 
दिवाकरनिभां = सूर्य के सामान तेज वाली 
नेत्रत्रयोद्भासिताम्। = तीन नेत्रों से उद्भासित 
मालाकुम्भकपालनीरजकरां =हाथों में माला, कुम्भ , कपाल , कमल लिए 
चन्द्रार्धचूडां = अर्ध चन्द्र के मुकुट वाली 
परां = परमोत्कृष्ट
सर्वज्ञेश्वरभैरवाङ्कनिलयां = सर्वज्ञेश्वर भैरव के आँख में निवास करने वाली 

पद्मावतीं चिन्तये = पद्मावती देवी का चिंतन करते हैं । 

 नागराज के सिंहासन पर बैठी, नाग के फनो की उत्तम मणियों की विशाल  माला से उद्भासित देहलता वाली, सूर्य के सामान तेज वाली , तीन नेत्रों से उद्भासित , हाथों में माला, कुम्भ , कपाल , कमल लिए, अर्ध चन्द्र के मुकुट वाली सर्वज्ञेश्वर भैरव के आँख में निवास करने वाली, परमोत्कृष्ट पद्मावती देवी का चिंतन करते हैं । 


ॐ ऋषिरुवाच ॥ १॥
ऋषि बोले । 

इत्याकर्ण्य वचो देव्याः स दूतोऽमर्षपूरितः ।
समाचष्ट समागम्य दैत्यराजाय विस्तरात् ॥ २॥

इत्याकर्ण्य =इति आकर्ण्य= इस प्रकार सुन कर  
वचो = वचनों को 
देव्याः = देवी के 
स = वह 
दूतो= दूत 
अमर्षपूरितः = क्रोध से युक्त 
समाचष्ट = बयान किया , बोला 
समागम्य = पास जा कर 
दैत्यराजाय = दैत्यराज के 
विस्तरात्  विस्तार से 


इस प्रकार देवी के वचनों को सुन कर क्रोध से भरे उस दूत दैत्य राज के पास जा कर विस्तार से बोला । 

तस्य दूतस्य तद्वाक्यमाकर्ण्यासुरराट् ततः ।
सक्रोधः प्राह दैत्यानामधिपं धूम्रलोचनम् ॥ ३॥

तस्य = उस 
दूतस्य = दूत के 
तद्वाक्यम = वे वाक्य 
आकर्ण्य= सुन कर 
असुरराट् = दैत्यों का राजा  
ततः= तब 
सक्रोधः क्रोधयुक्त हो 
प्राह = बोला 
दैत्यानामधिपं = दैत्यों के सेनापति से 
धूम्रलोचनम् = धूम्रलोचन 


उस दूत के वे वाक्य सुन कर दैत्यों का राजा तब क्रोध युक्त हो दैत्यों के सेनापति धूम्रलोचन से बोला । 

हे धूम्रलोचनाशु त्वं स्वसैन्यपरिवारितः ।
तामानय बलाद्दुष्टां केशाकर्षणविह्वलाम् ॥ ४॥

हे धूम्रलोचना
आशु = जल्दी से 
त्वं = तुम 
स्वसैन्य= अपनी सेना से 
परिवारितः = घिर कर 
ताम= उसे 
आनय = लाओ 
बलात = जबरदस्ती 
दुष्टां = दुष्ट को 
केशाकर्षणविह्वलाम् = बालों से खींचते हुए 


हे धूम्रलोचना जल्दी से अपनी सेना से घिर कर उस दस्ता को बालों से खींचते हुए जबरदस्ती लाओ । 


तत्परित्राणदः कश्चिद्यदि वोत्तिष्ठतेऽपरः ।
स हन्तव्योऽमरो वापि यक्षो गन्धर्व एव वा ॥ ५॥

तद= उसकी 
परित्राणदः = बचाव के लिए 
कश्चिद्यदि = यदि कोई  
वा = भी 
त्तिष्ठते= खड़ा होता है 
अपरः=  दूसरा 
स = उसको 
हन्तव्य:= मार देना 
अमरो = देवता हो  
वापि = अथवा 
यक्षो = यक्ष 
गन्धर्व = गन्धर्व
एव = ही 
वा = अथवा


उसके बचाव के लिए यदि कोई भी दूसरा खड़ा होता है चाहे वो देवता हो , यक्ष हो अतः गंधव ही हो उसको मार देना । 



ऋषिरुवाच ॥ ६॥

ऋषि बोले । 

तेनाज्ञप्तस्ततः शीघ्रं स दैत्यो धूम्रलोचनः ।
वृतः षष्ट्या सहस्राणामसुराणां द्रुतं ययौ ॥ ७॥

तेन = उस की 
आज्ञप्त= आज्ञा पे 
ततः= तब 
शीघ्रं 
स = वह 
दैत्यो = दैत्य 
धूम्रलोचनः = धूम्रलोचन 
वृतः = घिर कर 
षष्ट्या सहस्राणाम = साठ हज़ार 
असुराणां  = असुरों से 
द्रुतं =तेजी  से 
ययौ =चला  गया 


उसकी आज्ञा पर  वह दैत्य शीघ्र साठ हज़ार असुरों से घर कर तेजी से चला गया |

स दृष्ट्वा तां ततो देवीं तुहिनाचलसंस्थिताम् ।
जगादोच्चैः प्रयाहीति मूलं शुम्भनिशुम्भयोः ॥ ८॥

स = उसने 
दृष्ट्वा = देख कर 
तां = उस 
ततो = तब 
देवीं = देवी को 
तुहिनाचल = हिमालय पर 
संस्थिताम् = स्थित 
जगाद= बोला 
उच्चैः = ज़ोर से 
प्रयाह= जाओ 
इति = इस प्रकार 
मूलं = पास 
शुम्भनिशुम्भयोः= शुम्भनिशुम्भ के 


वह तब हिमालय पर स्थित उस देवीको देख कर ज़ोर से इस प्रकार बोला शुम्भनिशुम्भ के पास जाओ । 


न चेत्प्रीत्याद्य भवती मद्भर्तारमुपैष्यति ।
ततो बलान्नयाम्येष केशाकर्षणविह्वलाम् ॥ ९॥

न = नहीं
चेत्प्रीत्या = प्रसन्नता  से 
अद्य  = अभी
भवती = आप 
मद्भर्तारमुपैष्यति = मद भर्तारं उपैष्यति = मेरे स्वामी के पास चलेंगी 
ततो = तो  
बलान्नयाम्येष= बलात नयामि एष = बलपूर्वक ले जाऊँगा ऐसे 
केशाकर्षणविह्वलाम् = बालों से पकड़ कर घसीटते हुए 

आप प्रसन्नता  से मेरे स्वामी के पास नहीं चलेंगी  तो बालों से पकड़ कर घसीटते हुए  ऐसे बलपूर्वक ले जाऊँगा |


देव्युवाच ॥ १०॥
देवी बोलीं । 


दैत्येश्वरेण प्रहितो बलवान्बलसंवृतः ।
बलान्नयसि मामेवं ततः किं ते करोम्यहम् ॥ ११॥

दैत्येश्वरेण = दैत्यों के स्वामी द्वारा 
प्रहितो = भेजे गए (तुम )
बलवान = बलवान  
बलसंवृतः = सेना से घिरे हो 

बलान्नयसि मामेवं ततः = मुझे बलपूर्वक ले जाओगे तो 

किं ते करोम्यहम् = तुम्हारा मैं क्या कर सकती हूँ 

दैत्यों के स्वामी द्वारा भेजे गए बलवान  सेना से घिरे  (तुम ) मुझे बलपूर्वक ले जाओगे तो 

 तुम्हारा मैं क्या कर सकती हूँ |

ऋषिरुवाच ॥ १२॥
ऋषि बोले । 

इत्युक्तः सोऽभ्यधावत्तामसुरो धूम्रलोचनः ।
हुङ्कारेणैव तं भस्म सा चकाराम्बिका तदा ॥ १३॥

इत्युक्तः इति उक्तः = इस प्रकार कहने पर 
सो= वह 
अभ्यधावत्=ओर भागा
ताम= उसकी 
असुरो = असुर 
धूम्रलोचनः = धूम्रलोचन
हुङ्कारेणैव = हुंकार से ही 
तं = उसे 
भस्म = भस्म 
सा = उस 
चकार = कर दिया 
अम्बिका = अम्बिका ने 
तदा = तब 


देवी के इस प्रकार कहने पर असुर धूम्रलोचन उसकी तरफ भागा, तब उस अम्बिका देवी ने उसे हुंकार से ही भस्म कर दिया । 

अथ क्रुद्धं महासैन्यमसुराणां तथाम्बिका ।
ववर्ष सायकैस्तीक्ष्णैस्तथा शक्तिपरश्वधैः ॥ १४॥

अथ = तब 
क्रुद्धं = क्रोधित 
महासैन्यमसुराणां = असुरों की महा सेना पर 
तथाम्बिका = इस प्रकार अम्बिका ने 
ववर्ष = वर्षा की 
सायकै:= तीरों 
तीक्ष्णै:= तीखे 
तथा = इसी प्रकार , और 
शक्तिपरश्वधैः= शक्ति , परशु की 


तब इस प्रकार क्रोधित अम्बिका ने असुरों की महा सेना पर तीखे तीरों और शक्ति , परशुओं की वर्षा की । 

ततो धुतसटः कोपात्कृत्वा नादं सुभैरवम् ।
पपातासुरसेनायां सिंहो देव्याः स्ववाहनः ॥ १५॥

ततो = तब 
धुतसटः = गर्दन के बाल हिलाते हुए 
कोपात्= क्रोध से 
कृत्वा = किया 
नादं = आवाज़ , गर्जना 
सुभैरवम् = भयंकर 
पपात् = कूद पड़ा
असुरसेनायां = असुरों की सेना पर 
सिंहो = सिंह ने 
देव्याः = देवी के 
स्ववाहनः = अपना  वाहन 

तब देवी का अपना वाहन सिंह ने गर्दन के बाल हिलाते हुए  क्रोध से भयंकर गर्जना करते हुए असुरों की सेना पर कूद पड़ा । 

कांश्चित्करप्रहारेण दैत्यानास्येन चापरान् ।
आक्रान्त्या चाधरेणान्यान् जघान स महासुरान् ॥ १६॥

कांश्चित् = कुछ को 
करप्रहारेण = हाथ के प्रहार से 
दैत्यान् = दैत्यों को 
आस्येन च = मुंह के 
अपरान् = दूसरों को 
आक्रम्य = पकड़ कर , दबा कर 
च= और 
अधरेण= जबड़ों में 
अन्यान् = अन्य 
जघान = मार दिया 
स = उसने 
महासुरान् = महासुरों  को 


उसने कुछ दैत्यों को हाथ के प्रहार से,दूसरों को मुंह के और अन्य महासुरों को जबड़ों में दबा कर मार दिया । 

केषाञ्चित्पाटयामास नखैः कोष्ठानि केसरी ।
तथा तलप्रहारेण शिरांसि कृतवान्पृथक् ॥ १७॥

केषाञ्चित = कुछ का 
पाटयामास = फाड़ दिया 
नखैः = नाखूनों से 
कोष्ठानि = पेट 
केसरी = शेर ने 
तथा = इसी प्रकार 
तलप्रहारेण = थप्पड़ के प्रहार से 
शिरांसि = सर को 
कृतवान = कर दिया 
पृथक् = अलग


शेर ने कुछ का नाखूनों से पेट फाड़ दिया , इसी प्रकार थप्पड़ के प्रहार से सर को अलग कर दिया ।

विच्छिन्नबाहुशिरसः कृतास्तेन तथापरे ।
पपौ च रुधिरं कोष्ठादन्येषां धुतकेसरः ॥ १८॥

विच्छिन्न= अलग 
बाहुशिरसः = बांह और सिर
कृता = कर दिए 
तेन = उस ने 
तथा= इस प्रकार 
अपरे = दूसरों के 
पपौ = पिया 
च = और 
रुधिरं = खून 
कोष्ठात= पेट से 
अन्येषां= अन्यों के 
धुतकेसरः= गर्दन के बाल हिलाते हुए 


गर्दन के बाल हिलाते हुए उस शेर ने दूसरों के बांह और इसी प्रकार सिर अलग कर दिए और अन्यों  के पेट से खून पीया । 

क्षणेन तद्बलं सर्वं क्षयं नीतं महात्मना ।
तेन केसरिणा देव्या वाहनेनातिकोपिना ॥ १९॥

क्षणेन = क्षण भर में 
तद्बलं = उस सेना को 
सर्वं = सारे 
क्षयं नीतं= नष्ट कर दिया 
महात्मना = हे महात्मा 
तेन = उस 
केसरिणा केसरी ने 
देव्या = देवी के 
वाहनेन = वाहन 
अतिकोपिना = अति क्रोधित 


हे महात्मन उस देवी के वाहन अति क्रोधित केसरी ने क्षण भर में उस सारी सेना को नष्ट कर दिया । 

श्रुत्वा तमसुरं देव्या निहतं धूम्रलोचनम् ।
बलं च क्षयितं कृत्स्नं देवीकेसरिणा ततः ॥ २०॥

श्रुत्वा = सुन कर 
तमसुरं = उस असुर 
देव्या = देवी द्वारा 
निहतं = मारे जाने 
धूम्रलोचनम् = धूम्रलोचन के 
बलं = सेना को  
च = और 
क्षयितं = नष्ट 
कृत्स्नं = कर दिया 
देवीकेसरिणा देवी के केसरी द्वारा 
ततः = तब 

तब देवी द्वारा उस असुर धूम्रलोचन के मारे जाने और देवी के वाहन केसरी द्वारा सेना को नष्ट करने का सुन कर 

चुकोप दैत्याधिपतिः शुम्भः प्रस्फुरिताधरः ।
आज्ञापयामास च तौ चण्डमुण्डौ महासुरौ ॥ २१॥

चुकोप = क्रोध से  
दैत्याधिपतिः = दैत्यों के स्वामी 
शुम्भः = शुम्भ 
प्रस्फुरिताधरः = काँपते  होंठ वाले 
आज्ञापयामास = आज्ञा दी 
च = और 
तौ = उन दोनों 
चण्डमुण्डौ महासुरौ =चण्डमुण्ड महासुरों को 


और क्रोध से  काँपते  होंठ वाले दैत्यों के स्वामी शुम्भ  ने उन दोनों चण्डमुण्ड महासुरों को आज्ञा दी । 



हे चण्ड हे मुण्ड बलैर्बहुभिः परिवारितौ ।
तत्र गच्छत गत्वा च सा समानीयतां लघु ॥ २२॥

हे चण्ड हे मुण्ड 
बलै:= सेना 
बहुभिः = बड़ी 
परिवारितौ = के साथ , घिर कर 
तत्र= वहां  
गच्छत = जाओ 
गत्वा जा कर 
च = और 
सा = उसे 
समानीयतां = साथ लाओ 
लघु= जल्दी 



हे चण्ड हे मुण्ड बड़ी सेना के साथ वहाँ जाओ और जा कर जल्दी उसे साथ ले कर आओ । 

केशेष्वाकृष्य बद्ध्वा वा यदि वः संशयो युधि ।
तदाशेषायुधैः सर्वैरसुरैर्विनिहन्यताम् ॥ २३॥

केशेष्वाकृष्य = बालों से घसीट कर 
बद्ध्वा = बाँध कर 
वा = अथवा 
यदि = यदि 
वः = तुम्हें 
संशयो= संशय हो 
युधि= युद्ध में 
तदा = तब 
अशेष = सभी 
आयुधैः = हथियारों 
सर्वै: = सभी 
असुरै:= असुरों 
विनिहन्य = मार देना 
ताम् = उसे 


बालों से घसीट कर अथवा बाँध कर (उसे लाओ ) यदि तुम्हे संसय हो तब युद्ध में सभी असुरों और सभी हथियारों (की सहायता) से उसे मार देना । 

तस्यां हतायां दुष्टायां सिंहे च विनिपातिते ।
शीघ्रमागम्यतां बद्ध्वा गृहीत्वा तामथाम्बिकाम् ॥ २४॥

तस्यां = उसको 
हतायां = पराजित कर  
दुष्टायां = दुष्टा को 
सिंहे = सिंह को 
च = और 
विनिपातिते = मार कर , पराजित कर 
शीघ्रमागम्यतां = जल्दी आओ 
बद्ध्वा = बाँध कर 
गृहीत्वा = साथ ले कर 
तामथाम्बिकाम् = ताम अथ अम्बिका = तब उस अम्बिका को 


उस दुष्ट को पराजित कर और सिंह को मार कर , तब उस अम्बिका को बाँध कर साथ ले कर जल्दी आओ ।  

॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
शुम्भनिशुम्भसेनानीधूम्रलोचनवधो नाम षष्ठोऽध्यायः ॥ ६॥

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