ध्यानम्
ॐ उत्तप्तहेमरुचिरां रविचन्द्रवह्निनेत्रां धनुश्शरयुताङ्कुशपाशशूलम्।
रम्यैर्भुजैश्च दधतीं शिवशक्तिरुपां कामेश्वरीं ह्रदि भजामि धृतेन्दुलेखाम्।।
उत्तप्त हेम रुचिरां = तपाये सोने जैसी सुन्दर
रविचन्द्रवह्निनेत्रां = रवि, चन्द्र, आग के तीन नेत्रों वाली ,
धनुश्शरयुताङ्कुशपाशशूलम्= धनुष-बाण, अंकुश, पाश, शूल
रम्यैर्भुजैश्च = और सुन्दर हाथों में
दधतीं = धारण किये
शिवशक्तिरुपां = शिवशक्ति स्वरूपा
कामेश्वरीं = कामेश्वरी देवी का
ह्रदि = हृदय में
भजामि = चिंतन करता / करती हूँ
धृतेन्दुलेखाम्= अर्धचन्द्र को डरा करने वाली
तपाये सोने जैसी सुन्दर , रवि, चन्द्र, आग के तीन नेत्रों वाली, और सुन्दर हाथों में धनुष-बाण, अंकुश, पाश, शूल धारण किये, शिवशक्ति स्वरूपा , अर्धचन्द्र को धारण करने वाली कामेश्वरी देवी का हृदय में चिंतन करता / करती हूँ ।
ॐ ऋषिरुवाच ॥ १॥
ऋषि बोले ।
निशुम्भं निहतं दृष्ट्वा भ्रातरं प्राणसम्मितम् ।
हन्यमानं बलं चैव शुम्भः क्रुद्धोऽब्रवीद्वचः ॥ २॥
निशुम्भं = निशुम्भ को
निहतं = मरा हुआ
दृष्ट्वा = देख कर
भ्रातरं = भाई
प्राणसम्मितम् = प्राणों के समान
हन्यमानं = मारी जाती हुई
बलं = सेना को
चैव = और ऐसे ही
शुम्भः = शुम्भ
क्रुद्ध: = क्रोधित
अब्रवीत्= बोला
वचः = वचन
प्राणों के सामान भाई निशुम्भ को मारा हुआ और ऐसे ही मारी जाती हुई सेना को देख कर शुम्भ क्रोधित वचन बोला ।
बलावलेपदुष्टे त्वं मा दुर्गे गर्वमावह ।
अन्यासां बलमाश्रित्य युद्ध्यसे चातिमानिनी ॥ ३॥
बलावलेप = बल के घमंड में
दुष्टे = दुष्ट
त्वं = तुम
मा = मत , नहीं
दुर्गे =दुर्गे
गर्वम् = गर्व
आवह = करो ,
अन्यासां = दूसरों के
बलमाश्रित्य = बल पर आश्रित
युद्ध्यसे = युद्ध करती हो
च= और
या= जो
अतिमानिनी= अत्यंत अभिमानी
बल के घमंड में हे दुष्ट दुर्गा अभिमान मत करो । और जो तुम अत्यंत माननी हो , दूसरों के बल पर आशीरत हो कर युद्ध करती हो ।
देव्युवाच ॥ ४॥
देवी बोलीं ।
एकैवाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा ।
पश्यैता दुष्ट मय्येव विशन्त्यो मद्विभूतयः ॥ ५॥
एकैवाहं = एक एव अहम्= एक मैं ही हूँ
जगत्य = जगति = संसार में
अत्र = यहां
द्वितीया = दूसरा
का = कौन
मम अपरा = मेरे इलावा
पश्य- देखो
एता: = ये
दुष्ट = हे दुष्ट
मय्येव = मयि एव = मुझमे ही
विशन्त्यो = प्रवेश कर रही हैं
मद्विभूतयः= मत् विभूतयः मेरी शक्तियां , मेरी माया
हे डस्ट इस संसार में एक मैं ही हूँ , मेरे इलावा दूसरा कौन है देखों ये मेरी शक्तियां ( हैं और) मुझमे ही प्रवेश कर रही हैं |
ततः समस्तास्ता देव्यो ब्रह्माणीप्रमुखा लयम् ।
तस्या देव्यास्तनौ जग्मुरेकैवासीत्तदाम्बिका ॥ ६॥
ततः = तब
समस्ता : - सारी
ता =वे
देव्यो = देवियाँ
ब्रह्माणीप्रमुखा = ब्रह्माणी को प्रमुख कर
लयम् =लीन
तस्या = उस
देव्या= देवी के
तनौ = शरीर में
जग्मु:= हो गयीं
एकैवासीत्तदाम्बिका = एक एव आसीत् अम्बिका = एक अम्बिका ही थी
तब वे सारी देवियाँ ब्रह्माणी को प्रमुख कर उस देवी के शरीर में लीं हो गयीं , एक अम्बिका ही रह गयी ।
देव्युवाच ॥ ७॥
देवी बोलीं ।
अहं विभूत्या बहुभिरिह रूपैर्यदास्थिता ।
तत्संहृतं मयैकैव तिष्ठाम्याजौ स्थिरो भव ॥ ८॥
अहं = मैं
विभूत्या = माया से
बहुभि: = विभिन्न
इह = यहां
रूपै:= रूपों में
यदास्थिता = यत् आस्थिता= जो स्थित थी
तत्संहृतं - तत् संहृतम् = वे समेट लिए हैं
मया = मेरे द्वारा
एक एव = एक ही
तिष्ठामि = खड़ी हूँ
आजौ =युद्ध में
स्थिरो = स्थिर
भव= हो जाओं
मैं यहां माया से विभिन्न रूपों में जो स्थित थी वे मेरे द्वारा समेत लिए गए हैं , युद्ध में मैं एक ही खड़ी हूँ , तुम स्थिर हो जाओ ।
ऋषिरुवाच ॥ ९॥
ऋषि बोले ।
ततः प्रववृते युद्धं देव्याः शुम्भस्य चोभयोः ।
पश्यतां सर्वदेवानामसुराणां च दारुणम् ॥ १०॥
ततः = तब
प्रववृते = प्रवृत हुए , छिड़ना , शुरू होना
युद्धं = = युद्ध
देव्याः = देवी
शुम्भस्य = शुम्भ का
च= और
उभयोः= दोनों
पश्यतां = देखते हुए
सर्वदेवानाम = सब देवों
असुराणां= असुरों
च = और
दारुणम्= घोर
तब सभी देवताओं और असुरों के देखते हुए देवी और शुम्भ दोनों का घोर युद्ध छिड़ गया ।
शरवर्षैः शितैः शस्त्रैस्तथास्त्र्यैश्चैव दारुणैः ।
तयोर्युद्धमभूद्भूयः सर्वलोकभयङ्करम् ॥ ११॥
शरवर्षैः = तीरों की वर्षा
शितैः = तीखे
शस्त्रै:= शास्त्र
तथा =इसी प्रकार
च = और
अस्त्रैः = अस्त्र
एव ही = से ही
दारुणैः =भयंकर
तयो:= उन दोनों का
युद्धम् = युद्ध
अभूत् = हुआ
भूयः = फिर से
सर्वलोकभयङ्करम् = सारे संसार को भयभीत करने वाला
तीखे तीरों की वर्षा और इसी प्रकार ही शास्त्र और अस्त्रों से उन दोनों का सारे संसार को भयभीत करने वाला युद्ध हुआ ।
दिव्यान्यस्त्राणि शतशो मुमुचे यान्यथाम्बिका ।
बभञ्ज तानि दैत्येन्द्रस्तत्प्रतीघातकर्तृभिः ॥ १२॥
दिव्यान्यस्त्राणि= दिव्यानि अस्त्राणि = दिव्य अस्त्र
शतशो सैंकड़ों
मुमुचे = छोड़े
यानि= जो
अथ = तब
अम्बिका = अम्बिका ने
बभञ्ज = तोड़ दिया
तानि = उन को
दैत्येन्द्र:= दैत्य राज
तत = तब
प्रतीघातकर्तृभिः = निवारक अस्त्रों से
तब अम्बिका ने जो सैंकड़ों दिव्य अस्त्र छोड़े उनको तब दैत्यराज ने निवारक अस्त्रों से तोड़ दिया ।
मुक्तानि तेन चास्त्राणि दिव्यानि परमेश्वरी ।
बभञ्ज लीलयैवोग्रहुङ्कारोच्चारणादिभिः ॥ १३॥
मुक्तानि = छोड़े
तेन = उस के
च=और
अस्त्राणि = अस्त्रों को
दिव्यानि = दिव्य
परमेश्वरी= परमेश्वरी ने
बभञ्ज = तोड़ दिया
लीलयैव=खेल है में ही
उग्रहुङ्कार= भयंकर हुंकार के
उच्चारणादिभिः= उच्चारण आदि से
और उसके छोड़े गए दिव्य अस्त्रों को देवी ने खेल खेल में भयंकर हुंकार के उच्चारण आदि से तोड़ दिया ।
ततः शरशतैर्देवीमाच्छादयत सोऽसुरः ।
सापि तत्कुपिता देवी धनुश्चिच्छेद चेषुभिः ॥ १४॥
शरशतै:= सैंकड़ों तीरों से
देवीम्= देवी को
आच्छादयत् = ढक दिया
स: = उस
असुरः= असुर ने
सा= उस
अपि = भी
तत्= तब
कुपिता = क्रोधित
देवी = देवी ने
धनु:= धनुष को
चिच्छेद = काट दिया
च = और
इषुभिः= तीरों से
तब उस असुर ने देवी को सैंकड़ों तीरों से ढक दिया और तब उस क्रोधत देवी ने भी तीरों से उसके धनुष को काट दिया ।
छिन्ने धनुषि दैत्येन्द्रस्तथा शक्तिमथाददे ।
चिच्छेद देवी चक्रेण तामप्यस्य करे स्थिताम् ॥ १५॥
छिन्ने = टूटने पर
धनुषि = धनुष के
दैत्येन्द्र:= दैत्य राज ने
तथा = इस प्रकार
शक्तिम् = शक्ति
अथ= तब
आददे = उठाई
चिच्छेद = काट दिया
देवी = देवी ने
चक्रेण = चक से
ताम्= उस के
अपि =भी
अस्य = इसे
करे = हाथ में
स्थिताम् = स्थित
इस प्रकार धनुष टूटने पर दैत्यराज ने तब शक्ति उठाई । देवी ने चक्र से उसके हाथ में स्थित इसे भी काट दिया ।
ततः खड्गमुपादाय शतचन्द्रं च भानुमत् ।
अभ्यधा वत तां देवीं दैत्यानामधिपेश्वरः ॥ १६॥
ततः = तब
खड्गम्= तलवार
उपादाय= ले कर
शतचन्द्रं = सौ चंद्रमा वाली
च = और
भानुमत् = चमकती
अभ्यधावत = ओर दौड़ा
तां = और
देवीं =देवी की
दैत्यानाम् = दैत्यों का
अधिपेश्वरः = स्वामी
और तब दैत्यों का स्वामी सौ चन्द्रमा वाली चमकती तलवार ले कर देवी की तरफ दौड़ा ।
तस्यापतत एवाशु खड्गं चिच्छेद चण्डिका ।
धनुर्मुक्तैः शितैर्बाणैश्चर्म चार्ककरामलम् ॥ १७॥
तस्य= उसके
अपतत= आते
एव= ही
आशु = जल्दी से
खड्गं= तलवार को
चिच्छेद = काट दिया
चण्डिका = चण्डिका ने
धनुर्मुक्तैः= धनुष से छोड़े
शितै:= तीखे
बाणै:= बाणों से
चर्म = ढाल को
च= और
अर्क कर = सूर्य की किरणों सी
अमलम्= उज्जवल
उसके आते ही चण्डिका ने जल्दी से धनुष से छोड़े तीखे बाणों से तलवार को और सूर्य की किरणों सी उज्जवल ढाल को काट दिया ।
हताश्वः स तदा दैत्यश्छिन्नधन्वा विसारथिः ।
जग्राह मुद्गरं घोरमम्बिकानिधनोद्यतः ॥ १८॥
हताश्वः = मारे गए घोड़े
स = वह
तदा = तब
दैत्य: = दैत्य
छिन्नधन्वा = टूटे धनुष
विसारथिः = सारथि रहित
जग्राह = हाथ में ले
मुद्गरं = मुद्गर
घोरम =भयंकर
अम्बिका = अम्बिका को
निधन: = मारने के लिए
उद्यतः= तैयार हुआ तब मारे गए घोड़े , टूटे धनुष , सारथि रहित वह दैत्य भयंकर मुद्गर हाथ मे ले अम्बिका को मारने के लिए तैयार हुआ ।
चिच्छेदापततस्तस्य मुद्गरं निशितैः शरैः ।
तथापि सोऽभ्यधावत्तां मुष्टिमुद्यम्य वेगवान् ॥ १९॥
चिच्छेद= काट दिया
अपतत= आती हुई
तस्य = उसकी
मुद्गरं = मुद्गर को
निशितैः = तीखे
शरैः = तीरों से
तथापि= तो भी
स = वह
अभ्यधावत् = तरफ भगा
ताम् = उसकी
मुष्टिम् = मुट्ठी
उद्यम्य = ऊपर उठा
वेगवान् = तेजी से
आती हुई उसकी मुदगर को तीखे तीरों से काट दिया तो भी वह मुठ्ठी उठा कर तेजी से उस देवी की तरफ भागा ।
स मुष्टिं पातयामास हृदये दैत्यपुङ्गवः ।
देव्यास्तं चापि सा देवी तलेनोरस्यताडयत् ॥ २०॥
स = उसने
मुष्टिं = मुट्ठी से
पातयामास = प्रहार किया
हृदये = छाती पर
दैत्यपुङ्गवः दैत्यराज ने
देव्या:= देवी के
तं = उस की
चापि च= और
अपि = भी
सा = उस
देवी = देवी ने
तलेन = थप्पड़ से
उरस्य = छाती को
अताडयत् = पीटा
उस दैत्यराज ने मुट्ठी से देवी की छाती पर प्रहार किया , देवी ने भी थप्पड़ से उसकी छाती को पीटा ।
तलप्रहाराभिहतो निपपात महीतले ।
स दैत्यराजः सहसा पुनरेव तथोत्थितः ॥ २१॥
तलप्रहार= थप्पड़ के प्रहार से
अभिहतो = पिटा
निपपात = गिर गया
महीतले = पृथ्वी पर
स = वह
दैत्यराजः = दैत्यराज
सहसा = अचानक
पुन: = दुबारा
एव = ही
तथा = उसी प्रकार
उत्थितः = खड़ा हो गया
थपाद के प्रहार से पिटा वह दैत्यराज पृथ्वी पर गिर गया , अचानक दुबारा उसी प्रकार ही खड़ा हो गया ।
उत्पत्य च प्रगृह्योच्चैर्देवीं गगनमास्थितः ।
तत्रापि सा निराधारा युयुधे तेन चण्डिका ॥ २२॥
उत्पत्य = उछल कर
च = और
प्रगृह्य = पकड़ कर
उच्चै: = ज़ोर से
देवीं = देवी को
गगनम = आकाश में
अस्थितः = खड़ा हो गया
तत्रापि तत्र अपि = वहां भी
सा = उस
निराधारा = बिना आधार के
युयुधे = युद्ध किया
तेन = उससे
चण्डिका= चण्डिका ने
और उछाल कर ज़ोर से देवी को पकड़ कर आकाश में खड़ा हो गया । वहां भी उस चण्डिक ने बिना आधार के उससे युद्ध किया ।
नियुद्धं खे तदा दैत्यश्चण्डिका च परस्परम् ।
चक्रतुः प्रथमं सिद्धमुनिविस्मयकारकम् ॥ २३॥
नियुद्धं = बाहुयुद्ध
खे = आकाश में
तदा = तब
दैत्य = दैत्य
चण्डिका= चण्डिका का
च = और
परस्परम् = आपस में
चक्रतुः = हुआ
प्रथमं = पहली बार
सिद्धमुनि = सिद्ध मुनियों को
विस्मय कारकम् = हैरान करने वाला
तब दैत्य और चण्डिका का आपस में आकाश में सिद्ध मुनियों को हैरान करने वाला पहली बार बाहुयुद्ध हुआ ।
ततो नियुद्धं सुचिरं कृत्वा तेनाम्बिका सह ।
उत्पाट्य भ्रामयामास चिक्षेप धरणीतले ॥ २४॥
ततो = तब
नियुद्धं = बाहु युद्ध
सुचिरं = देर तक
कृत्वा = कर के
तेन = उसके
अम्बिका = अम्बिका ने
सह = साथ
उत्पाट्य = उठा कर
भ्रामयामास = घुमाते हुए
चिक्षेप = फैंक दिया
धरणीतले= धरती पर
देर तक उसके साथ बाहु युद्ध करते हुए तब अम्बिका ने उसे उठा कर घुमाते हुए धरती पर फैंक दिया ।
स क्षिप्तो धरणीं प्राप्य मुष्टिमुद्यम्य वेगवान् ।
अभ्यधावत दुष्टात्मा चण्डिकानिधनेच्छया ॥ २५॥
स= वह
क्षिप्तो = फेंका हुआ
धरणीं = धरती पर
प्राप्य = आ कर
मुष्टिम् = मुट्ठी को
उद्यम्य = उठा कर
वेगवान् = शीघ्रता से
अभ्यधावत = की तरफ भागा
दुष्टात्मा = दुष्ट आत्मा
चण्डिका = चण्डिका को
निधन = मारने की इच्छा से
इच्छया= इच्छा से
वह फेंका हुआ दुष्ट आत्मा पृथ्वी पर आ कर चण्डिका को मारने की इच्छा से जल्दी से मुट्ठी उठा कर उसकी ओर भागा ।
तमायान्तं ततो देवी सर्वदैत्यजनेश्वरम् ।
जगत्यां पातयामास भित्त्वा शूलेन वक्षसि ॥ २६॥
तम= उस की
आयान्तं = आते हुए
ततो = तब
देवी =देवी ने
सर्वदैत्य जनेश्वरम् = सब दैत्यों के स्वामी
जगत्यां = भूमि पर
पातयामास = गिरा दिया
भित्त्वा = भेद कर
शूलेन =शूल से
वक्षसि = छाती को
तब आते हुए उस सब दैत्यों के स्वामी की छाती को देवी ने शूल से भेद कर भूमि पर गिरा दिया ।
स गतासुः पपातोर्व्यां देवी शूलाग्रविक्षतः ।
चालयन् सकलां पृथ्वीं साब्धिद्वीपां सपर्वताम् ॥ २७॥
स = वह
गतासुः =प्राण रहित
पपात = गिर गया
उर्व्यां = पृथ्वी पर
देवी = देवी के
शूलाग्र विक्षतः = शूल की नोक से घायल
चालयन् = कंपाता हुआ
सकलां = सारी
पृथ्वीं = धरती को
साब्धिद्वीपां = समुन्द्र , द्वीपों
सपर्वताम् = पर्वतों के साथ
देवी के शूल की नोक से घायल वह प्राणरहित हो साड़ी धरती को समुन्द्र , द्वीपों, पर्वतों के साथ कंपाता हुआ पृथ्वी पर गिर गया ।
ततः प्रसन्नमखिलं हते तस्मिन् दुरात्मनि ।
जगत्स्वास्थ्यमतीवाप निर्मलं चाभवन्नभः ॥ २८॥
ततः = तब
प्रसन्नम् = प्रसन्न
अखिलं = सब
हते = मारे जाने पर
तस्मिन् = उस
दुरात्मनि = दुष्ट के
जगत् = जगत
स्वस्थ्यम् = स्वस्थ
अतीव= बहुत ज्यादा
आप = पानी
निर्मलं = स्वच्छ
च = और
अभवत् = हो गया
नभः = आकाश
उस दुष्ट के मारे जाने पर सारा संसार प्रसन्न , जल अत्यंत स्वस्थ और आकाश स्वच्छ हो गया ।
उत्पातमेघाः सोल्का ये प्रागासंस्ते शमं ययुः ।
सरितो मार्गवाहिन्यस्तथासंस्तत्र पातिते ॥ २९॥
उत्पातमेघाः = उत्पात करते बादल
सोल्का = उल्कापात
ये = जो
प्रागासं= उल्का
प्राक्= पहले
असत्= थे
ते = वे
शमं = शांत
ययुः = हो गए
सरितो = नदिया
मार्ग = मार्ग से
वाहिन्य: =बहने लगी
तथा = इस प्रकार
असत् = थी
तत्र = वहाँ
पातिते = मारे जाने पर
इस प्रकार वहाँ (उस दैत्य) के मारे जाने पर उत्पात करते बादल, उल्कापात जो पहले थे शांत हो गए, नदियां मार्ग से बहने लगीं ।
ततो देवगणाः सर्वे हर्षनिर्भरमानसाः ।
बभूवुर्निहते तस्मिन् गन्धर्वा ललितं जगुः ॥ ३०॥
ततो = तब
देवगणाः = देवगण
सर्वे = सभी
हर्षनिर्भरमानसाः = हर्ष युक्त मन वाले
बभूवु: = हो गए
निहते = मारे जाने पर
तस्मिन् = उस के
गन्धर्वा = गन्धर्व
ललितं = मधुरता से
जगुः= गाने लगे
उसके मारे जाने पर सभी देवगण हर्ष युक्त मन वाले हो गए गन्धर्व मधुरता से गाने लगे ।
अवादयंस्तथैवान्ये ननृतुश्चाप्सरोगणाः ।
ववुः पुण्यास्तथा वाताः सुप्रभोऽभूद्दिवाकरः ॥ ३१॥
अवादयत् = बजाने लगे
तथा = इसी प्रकार
एव = ही
अन्ये = दूसरे
ननृतु:= नाचने लगी
च = और
अप्सरोगणाः = अप्सराएं
ववुः = बहने लगी
पुण्या = पवित्र
तथा = इसी प्रकार
वाताः = वायु
सुप्रभ:=अच्छी प्रभा वाले
अभूत्= हो गए
दिवाकर : = सूर्य
इसी प्रकार ही दूसरे बजाने लगे और अप्सराएं नाचने लगीं ।
पवित्र वायु बहने लगी, इसी प्रकार सूर्य अच्छी प्रभा वाले हो गए ।
जज्वलुश्चाग्नयः शान्ताः शान्ता दिग्जनितस्वनाः ॥ ३२॥
जज्वलु:= जलने लगी
च = और
अग्नयः = अग्नि
शान्ताः = शांति से
शान्ता = शांत हो गया
दिग्जनितस्वनाः = दिशाओं से उत्पन्न शोर
अग्नि शान्ति से जलने अग्नि और दिशाओं में उत्पन्न शोर शांत हो गया ।
॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे
देवीमाहात्म्ये शुम्भवधो नाम दशमोऽध्यायः ॥ १०॥
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