Tuesday, March 24, 2015

दशमोऽध्यायः


ध्यानम्
ॐ उत्तप्तहेमरुचिरां रविचन्द्रवह्निनेत्रां धनुश्शरयुताङ्कुशपाशशूलम्।

रम्यैर्भुजैश्च दधतीं शिवशक्तिरुपां कामेश्वरीं ह्रदि भजामि धृतेन्दुलेखाम्।।

उत्तप्त हेम रुचिरां = तपाये सोने जैसी सुन्दर 
रविचन्द्रवह्निनेत्रां = रवि, चन्द्र, आग के तीन नेत्रों वाली , 
धनुश्शरयुताङ्कुशपाशशूलम्= धनुष-बाण, अंकुश, पाश, शूल 

रम्यैर्भुजैश्च = और सुन्दर हाथों में 
दधतीं = धारण किये 
शिवशक्तिरुपां = शिवशक्ति स्वरूपा 
कामेश्वरीं = कामेश्वरी देवी का 
ह्रदि = हृदय में 
भजामि = चिंतन करता / करती हूँ 

धृतेन्दुलेखाम्= अर्धचन्द्र को डरा करने वाली 

तपाये सोने जैसी सुन्दर , रवि, चन्द्र, आग के तीन नेत्रों वाली,  और सुन्दर हाथों में धनुष-बाण, अंकुश, पाश, शूल धारण किये, शिवशक्ति स्वरूपा , अर्धचन्द्र को धारण करने वाली कामेश्वरी देवी का हृदय में चिंतन करता / करती हूँ । 

ॐ ऋषिरुवाच ॥ १॥

ऋषि बोले । 

निशुम्भं निहतं दृष्ट्वा भ्रातरं प्राणसम्मितम् ।
हन्यमानं बलं चैव शुम्भः क्रुद्धोऽब्रवीद्वचः ॥ २॥

निशुम्भं = निशुम्भ को 
निहतं = मरा हुआ 
दृष्ट्वा = देख कर 
भ्रातरं = भाई 
प्राणसम्मितम् = प्राणों के समान
हन्यमानं = मारी जाती हुई 
बलं = सेना को 
चैव = और ऐसे ही 
शुम्भः = शुम्भ 
क्रुद्ध: = क्रोधित 
अब्रवीत्= बोला 
वचः = वचन 


प्राणों के सामान भाई निशुम्भ को मारा हुआ और ऐसे ही मारी जाती हुई सेना को देख कर शुम्भ क्रोधित वचन बोला । 

बलावलेपदुष्टे त्वं मा दुर्गे गर्वमावह ।
अन्यासां बलमाश्रित्य युद्ध्यसे चातिमानिनी ॥ ३॥

बलावलेप = बल के घमंड में 
दुष्टे = दुष्ट 
त्वं = तुम 
मा = मत , नहीं 
दुर्गे =दुर्गे
गर्वम् = गर्व
आवह = करो , 
अन्यासां = दूसरों के  
बलमाश्रित्य = बल पर आश्रित 
युद्ध्यसे = युद्ध करती हो 
च= और 
या= जो 
अतिमानिनी= अत्यंत अभिमानी 


बल के घमंड में  हे दुष्ट दुर्गा अभिमान मत करो । और जो तुम अत्यंत माननी हो , दूसरों के बल पर आशीरत हो कर युद्ध करती हो । 

देव्युवाच ॥ ४॥

देवी बोलीं । 

एकैवाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा ।
पश्यैता दुष्ट मय्येव विशन्त्यो मद्विभूतयः ॥ ५॥

एकैवाहं = एक एव अहम्= एक मैं ही हूँ 
जगत्य = जगति = संसार में 
अत्र = यहां 
द्वितीया = दूसरा 
का  = कौन 
मम अपरा = मेरे इलावा  
पश्य- देखो 
एता: = ये 
दुष्ट = हे दुष्ट 
मय्येव = मयि एव = मुझमे  ही 
विशन्त्यो = प्रवेश कर रही हैं 
मद्विभूतयः= मत्  विभूतयः  मेरी शक्तियां , मेरी माया 


हे डस्ट इस संसार में एक मैं ही हूँ , मेरे इलावा दूसरा कौन है देखों ये मेरी शक्तियां ( हैं और) मुझमे ही प्रवेश कर रही हैं |


ततः समस्तास्ता देव्यो ब्रह्माणीप्रमुखा लयम् ।
तस्या देव्यास्तनौ जग्मुरेकैवासीत्तदाम्बिका ॥ ६॥

ततः = तब 
समस्ता : - सारी
ता =वे 
देव्यो = देवियाँ 
ब्रह्माणीप्रमुखा = ब्रह्माणी को प्रमुख कर 
लयम् =लीन
तस्या = उस 
देव्या= देवी के 
तनौ  = शरीर में 
जग्मु:= हो गयीं 
एकैवासीत्तदाम्बिका = एक एव आसीत् अम्बिका = एक अम्बिका ही थी 


तब वे सारी देवियाँ ब्रह्माणी को प्रमुख कर उस देवी के शरीर में लीं हो गयीं , एक अम्बिका ही रह गयी । 


देव्युवाच ॥ ७॥

देवी बोलीं । 

अहं विभूत्या बहुभिरिह रूपैर्यदास्थिता ।
तत्संहृतं मयैकैव तिष्ठाम्याजौ स्थिरो भव ॥ ८॥

अहं = मैं 
विभूत्या = माया से 
बहुभि: = विभिन्न 
इह = यहां  
रूपै:= रूपों में
यदास्थिता = यत् आस्थिता= जो स्थित थी 
तत्संहृतं - तत् संहृतम् = वे समेट लिए हैं 
मया = मेरे द्वारा 
एक एव = एक ही 

तिष्ठामि = खड़ी हूँ 
आजौ =युद्ध में 
स्थिरो = स्थिर 
भव= हो जाओं


मैं यहां माया से विभिन्न रूपों में जो स्थित थी वे मेरे द्वारा समेत लिए गए हैं , युद्ध में मैं एक ही खड़ी हूँ , तुम स्थिर हो जाओ । 

ऋषिरुवाच ॥ ९॥

ऋषि बोले । 

ततः प्रववृते युद्धं देव्याः शुम्भस्य चोभयोः ।
पश्यतां सर्वदेवानामसुराणां च दारुणम् ॥ १०॥

ततः = तब 
प्रववृते = प्रवृत हुए , छिड़ना , शुरू होना 
युद्धं = = युद्ध 
देव्याः = देवी 
शुम्भस्य = शुम्भ का 
च= और 
उभयोः= दोनों 
पश्यतां = देखते हुए 
सर्वदेवानाम = सब देवों
असुराणां= असुरों 
 च = और 
दारुणम्= घोर 


तब सभी देवताओं और असुरों के देखते हुए देवी और शुम्भ दोनों का घोर युद्ध छिड़ गया । 

शरवर्षैः शितैः शस्त्रैस्तथास्त्र्यैश्चैव   दारुणैः ।
तयोर्युद्धमभूद्भूयः सर्वलोकभयङ्करम् ॥ ११॥

शरवर्षैः = तीरों की वर्षा 
शितैः = तीखे 
शस्त्रै:= शास्त्र 
तथा =इसी प्रकार 
च = और 
अस्त्रैः = अस्त्र 
एव ही = से  ही 
दारुणैः =भयंकर 
तयो:= उन दोनों का 
युद्धम् = युद्ध
अभूत् = हुआ 
भूयः = फिर से 
सर्वलोकभयङ्करम् = सारे संसार को भयभीत करने वाला 


तीखे तीरों की वर्षा और इसी प्रकार ही शास्त्र और अस्त्रों से उन दोनों का सारे संसार को भयभीत करने वाला युद्ध हुआ । 

दिव्यान्यस्त्राणि शतशो मुमुचे यान्यथाम्बिका ।
बभञ्ज तानि दैत्येन्द्रस्तत्प्रतीघातकर्तृभिः ॥ १२॥

दिव्यान्यस्त्राणि=  दिव्यानि अस्त्राणि = दिव्य अस्त्र 
शतशो  सैंकड़ों 
मुमुचे = छोड़े 
यानि= जो 
अथ = तब 
अम्बिका = अम्बिका ने 
बभञ्ज = तोड़ दिया 
तानि = उन को 
दैत्येन्द्र:= दैत्य राज 
तत = तब  
प्रतीघातकर्तृभिः = निवारक अस्त्रों से 


तब अम्बिका ने जो सैंकड़ों दिव्य अस्त्र छोड़े उनको तब दैत्यराज ने निवारक अस्त्रों से तोड़ दिया । 

मुक्तानि तेन चास्त्राणि दिव्यानि परमेश्वरी ।
बभञ्ज लीलयैवोग्रहुङ्कारोच्चारणादिभिः ॥ १३॥

मुक्तानि = छोड़े 
तेन = उस के 
च=और 
अस्त्राणि = अस्त्रों को 
दिव्यानि = दिव्य 
परमेश्वरी= परमेश्वरी ने 
बभञ्ज = तोड़ दिया 
लीलयैव=खेल है में ही 
उग्रहुङ्कार= भयंकर हुंकार के 
उच्चारणादिभिः= उच्चारण आदि से 


और उसके छोड़े गए दिव्य अस्त्रों को देवी ने खेल खेल में भयंकर हुंकार के उच्चारण आदि से तोड़ दिया । 

ततः शरशतैर्देवीमाच्छादयत सोऽसुरः ।
सापि तत्कुपिता देवी धनुश्चिच्छेद चेषुभिः ॥ १४॥

शरशतै:= सैंकड़ों तीरों से 
देवीम्=  देवी को 
आच्छादयत् = ढक दिया 
स: = उस 
असुरः= असुर ने 
सा= उस 
अपि = भी 
तत्= तब 
कुपिता = क्रोधित 
देवी = देवी ने 
धनु:= धनुष को 
चिच्छेद = काट दिया 
च = और 
इषुभिः= तीरों से 


तब उस असुर ने देवी को सैंकड़ों तीरों से ढक दिया और तब उस क्रोधत देवी ने भी तीरों से उसके धनुष को काट दिया । 

छिन्ने धनुषि दैत्येन्द्रस्तथा शक्तिमथाददे ।
चिच्छेद देवी चक्रेण तामप्यस्य करे स्थिताम् ॥ १५॥

छिन्ने = टूटने पर 
धनुषि = धनुष के 
दैत्येन्द्र:= दैत्य राज ने 
तथा = इस प्रकार 
शक्तिम् = शक्ति 
अथ= तब 
आददे = उठाई 
चिच्छेद = काट दिया 
देवी = देवी ने 
चक्रेण = चक से 
 ताम्= उस के 
 अपि =भी 
 अस्य = इसे 
करे = हाथ में 
स्थिताम् = स्थित


इस प्रकार धनुष टूटने पर दैत्यराज ने तब शक्ति उठाई । देवी ने चक्र से उसके हाथ में स्थित इसे भी काट दिया । 

ततः खड्गमुपादाय शतचन्द्रं च भानुमत् ।
अभ्यधा वत तां देवीं दैत्यानामधिपेश्वरः ॥ १६॥

ततः = तब 
खड्गम्= तलवार 
उपादाय= ले कर 
शतचन्द्रं = सौ चंद्रमा वाली 
च = और 
भानुमत् = चमकती 
अभ्यधावत = ओर दौड़ा 
तां = और 
देवीं =देवी की 
दैत्यानाम् = दैत्यों का  
अधिपेश्वरः = स्वामी 


और तब दैत्यों का स्वामी सौ चन्द्रमा वाली चमकती तलवार ले कर देवी की तरफ दौड़ा । 


तस्यापतत एवाशु खड्गं चिच्छेद चण्डिका ।
धनुर्मुक्तैः शितैर्बाणैश्चर्म चार्ककरामलम् ॥ १७॥

तस्य= उसके 
अपतत= आते 
 एव= ही 
आशु = जल्दी से 
खड्गं= तलवार को 
चिच्छेद = काट दिया 
चण्डिका = चण्डिका ने 
धनुर्मुक्तैः= धनुष से छोड़े 
शितै:= तीखे 
बाणै:= बाणों से 
चर्म = ढाल को 
च= और 
अर्क कर = सूर्य की किरणों सी  
अमलम्= उज्जवल 


उसके आते ही चण्डिका ने जल्दी से धनुष से छोड़े तीखे बाणों से तलवार को और सूर्य की किरणों सी  उज्जवल ढाल को काट दिया । 


हताश्वः स तदा दैत्यश्छिन्नधन्वा विसारथिः ।
जग्राह मुद्गरं घोरमम्बिकानिधनोद्यतः ॥ १८॥

हताश्वः = मारे गए घोड़े 
स = वह 
तदा = तब 
दैत्य: = दैत्य 
छिन्नधन्वा = टूटे धनुष 
विसारथिः = सारथि रहित 
जग्राह = हाथ में ले 
मुद्गरं = मुद्गर 
घोरम =भयंकर 
अम्बिका = अम्बिका को 
निधन: = मारने के लिए 

उद्यतः= तैयार हुआ तब मारे गए घोड़े , टूटे धनुष , सारथि रहित वह दैत्य भयंकर मुद्गर हाथ मे ले अम्बिका को मारने के लिए तैयार हुआ । 

चिच्छेदापततस्तस्य मुद्गरं निशितैः शरैः ।
तथापि सोऽभ्यधावत्तां मुष्टिमुद्यम्य वेगवान् ॥ १९॥

चिच्छेद= काट दिया 
अपतत= आती हुई 
तस्य = उसकी 
मुद्गरं = मुद्गर को 
निशितैः = तीखे 
शरैः = तीरों से 
तथापि= तो भी 
स = वह 
अभ्यधावत् = तरफ भगा 
ताम् = उसकी 
मुष्टिम् = मुट्ठी 
उद्यम्य = ऊपर उठा 
वेगवान् = तेजी से 


आती हुई उसकी मुदगर को तीखे तीरों से काट दिया तो भी वह मुठ्ठी उठा कर तेजी से उस देवी की तरफ भागा । 

स मुष्टिं पातयामास हृदये दैत्यपुङ्गवः ।
देव्यास्तं चापि सा देवी तलेनोरस्यताडयत् ॥ २०॥

स = उसने 
मुष्टिं = मुट्ठी से 
पातयामास = प्रहार किया 
हृदये = छाती पर 
दैत्यपुङ्गवः दैत्यराज ने 
देव्या:= देवी के 
तं = उस की 
चापि च= और 
अपि = भी 
सा = उस 
देवी = देवी ने 
तलेन = थप्पड़ से 
उरस्य = छाती को 
अताडयत् = पीटा 


उस दैत्यराज ने मुट्ठी से देवी की छाती पर प्रहार किया , देवी ने भी थप्पड़ से उसकी छाती को पीटा । 

तलप्रहाराभिहतो निपपात महीतले ।
स दैत्यराजः सहसा पुनरेव तथोत्थितः ॥ २१॥

तलप्रहार= थप्पड़ के प्रहार से 
अभिहतो = पिटा
निपपात = गिर गया 
महीतले = पृथ्वी पर 
स = वह 
दैत्यराजः = दैत्यराज 
सहसा = अचानक 
पुन: = दुबारा 
एव  = ही 
तथा = उसी प्रकार 
उत्थितः = खड़ा हो गया 


थपाद के प्रहार से पिटा वह दैत्यराज पृथ्वी पर गिर गया , अचानक दुबारा उसी प्रकार ही खड़ा हो गया । 

उत्पत्य च प्रगृह्योच्चैर्देवीं गगनमास्थितः ।
तत्रापि सा निराधारा युयुधे तेन चण्डिका ॥ २२॥

उत्पत्य = उछल कर 
च = और 
प्रगृह्य = पकड़ कर 
उच्चै: = ज़ोर से 
देवीं = देवी को  
गगनम = आकाश में 
अस्थितः = खड़ा हो गया 
तत्रापि तत्र अपि = वहां भी 
सा = उस 
निराधारा = बिना आधार के 
युयुधे = युद्ध किया 
तेन = उससे 
चण्डिका= चण्डिका ने 


और उछाल कर ज़ोर से देवी को पकड़ कर आकाश में खड़ा हो गया । वहां भी उस चण्डिक ने बिना आधार के उससे युद्ध किया । 

नियुद्धं खे तदा दैत्यश्चण्डिका च परस्परम् ।
चक्रतुः प्रथमं सिद्धमुनिविस्मयकारकम् ॥ २३॥

नियुद्धं = बाहुयुद्ध 
खे = आकाश में 
तदा = तब 
दैत्य = दैत्य 
चण्डिका= चण्डिका का 
च = और 
परस्परम् = आपस में 
चक्रतुः = हुआ 
प्रथमं = पहली बार 
सिद्धमुनि = सिद्ध मुनियों को 
विस्मय कारकम् = हैरान करने वाला 


तब दैत्य और चण्डिका का आपस में आकाश में सिद्ध मुनियों को हैरान करने वाला पहली बार बाहुयुद्ध हुआ । 

ततो नियुद्धं सुचिरं कृत्वा तेनाम्बिका सह ।
उत्पाट्य भ्रामयामास चिक्षेप धरणीतले ॥ २४॥

ततो = तब 
नियुद्धं = बाहु युद्ध 
सुचिरं = देर तक 
कृत्वा = कर के 
तेन = उसके 
अम्बिका = अम्बिका ने 
सह = साथ 
उत्पाट्य = उठा कर 
भ्रामयामास = घुमाते हुए 
चिक्षेप = फैंक दिया 
धरणीतले= धरती पर 


देर तक उसके साथ बाहु युद्ध करते हुए तब अम्बिका ने उसे उठा कर घुमाते हुए धरती पर फैंक दिया । 

स क्षिप्तो धरणीं प्राप्य मुष्टिमुद्यम्य वेगवान् ।
अभ्यधावत दुष्टात्मा चण्डिकानिधनेच्छया ॥ २५॥

स= वह 
क्षिप्तो = फेंका हुआ 
धरणीं = धरती पर 
प्राप्य = आ कर 
मुष्टिम् = मुट्ठी को 
उद्यम्य = उठा कर 
वेगवान् = शीघ्रता से 
अभ्यधावत = की तरफ भागा
दुष्टात्मा = दुष्ट आत्मा 
चण्डिका = चण्डिका को 
निधन = मारने की इच्छा से 
इच्छया=  इच्छा से 


वह फेंका हुआ दुष्ट आत्मा पृथ्वी पर आ कर चण्डिका को मारने की इच्छा से जल्दी से मुट्ठी उठा कर उसकी ओर भागा । 

तमायान्तं ततो देवी सर्वदैत्यजनेश्वरम् ।
जगत्यां पातयामास भित्त्वा शूलेन वक्षसि ॥ २६॥

तम=  उस की 
आयान्तं = आते हुए 
ततो = तब 
देवी =देवी ने 
सर्वदैत्य जनेश्वरम् = सब दैत्यों के स्वामी 
जगत्यां = भूमि पर 
पातयामास = गिरा दिया 
भित्त्वा = भेद कर 
शूलेन =शूल से 
वक्षसि = छाती को 


तब आते हुए उस सब दैत्यों के स्वामी की छाती को देवी ने शूल से भेद कर भूमि पर गिरा दिया । 

स गतासुः पपातोर्व्यां देवी शूलाग्रविक्षतः ।
चालयन् सकलां पृथ्वीं साब्धिद्वीपां सपर्वताम् ॥ २७॥

स = वह 
गतासुः =प्राण रहित 
पपात = गिर गया 
उर्व्यां = पृथ्वी पर 
देवी = देवी के 
शूलाग्र विक्षतः = शूल की नोक से घायल 
चालयन् = कंपाता हुआ 
सकलां = सारी 
पृथ्वीं = धरती को 
साब्धिद्वीपां = समुन्द्र , द्वीपों 
सपर्वताम् = पर्वतों के साथ 


देवी के शूल की नोक से घायल वह प्राणरहित हो साड़ी धरती को समुन्द्र , द्वीपों, पर्वतों के साथ कंपाता हुआ पृथ्वी पर गिर गया । 

ततः प्रसन्नमखिलं हते तस्मिन् दुरात्मनि ।
जगत्स्वास्थ्यमतीवाप निर्मलं चाभवन्नभः ॥ २८॥

ततः = तब 
प्रसन्नम् = प्रसन्न 
अखिलं = सब 
 हते = मारे जाने पर 
तस्मिन् = उस 
दुरात्मनि = दुष्ट के 
जगत् = जगत 
स्वस्थ्यम् = स्वस्थ 
अतीव= बहुत ज्यादा 
आप = पानी 
निर्मलं = स्वच्छ  
च = और 
अभवत् = हो गया 
नभः = आकाश 


उस दुष्ट के मारे जाने पर सारा संसार प्रसन्न , जल अत्यंत स्वस्थ और आकाश स्वच्छ हो गया । 

उत्पातमेघाः सोल्का ये प्रागासंस्ते शमं ययुः ।
सरितो मार्गवाहिन्यस्तथासंस्तत्र पातिते ॥ २९॥

उत्पातमेघाः = उत्पात करते बादल 
सोल्का = उल्कापात 
ये = जो 
प्रागासं=   उल्का 
 प्राक्= पहले 
 असत्= थे 
ते  = वे 
शमं = शांत 
ययुः = हो गए 
सरितो = नदिया 
मार्ग = मार्ग से 
वाहिन्य: =बहने लगी 
तथा = इस प्रकार 
असत् = थी 
तत्र = वहाँ 
पातिते = मारे जाने पर 


इस प्रकार वहाँ (उस दैत्य) के मारे जाने पर उत्पात करते बादल, उल्कापात जो पहले थे शांत हो गए, नदियां मार्ग से बहने लगीं । 

ततो देवगणाः सर्वे हर्षनिर्भरमानसाः ।
बभूवुर्निहते तस्मिन् गन्धर्वा ललितं जगुः ॥ ३०॥

ततो = तब 
देवगणाः = देवगण 
सर्वे = सभी
हर्षनिर्भरमानसाः = हर्ष युक्त मन वाले   
बभूवु: = हो गए 
निहते = मारे जाने  पर  
तस्मिन् = उस के 
गन्धर्वा = गन्धर्व
ललितं = मधुरता से 
जगुः= गाने लगे 


उसके मारे जाने पर सभी देवगण हर्ष युक्त मन वाले हो गए गन्धर्व मधुरता से गाने लगे । 

अवादयंस्तथैवान्ये ननृतुश्चाप्सरोगणाः ।
ववुः पुण्यास्तथा वाताः सुप्रभोऽभूद्दिवाकरः ॥ ३१॥

अवादयत् = बजाने लगे 
तथा = इसी प्रकार 
एव = ही 
अन्ये = दूसरे 
ननृतु:= नाचने लगी 
च = और 
अप्सरोगणाः = अप्सराएं 
ववुः = बहने लगी 
पुण्या = पवित्र 
तथा = इसी प्रकार 
वाताः = वायु 
सुप्रभ:=अच्छी प्रभा वाले 
अभूत्= हो गए 

दिवाकर : = सूर्य 

 इसी प्रकार ही दूसरे बजाने लगे और  अप्सराएं नाचने लगीं । 

पवित्र वायु  बहने लगी, इसी प्रकार सूर्य अच्छी प्रभा वाले हो गए ।  

जज्वलुश्चाग्नयः शान्ताः शान्ता दिग्जनितस्वनाः ॥ ३२॥

जज्वलु:= जलने लगी 
च = और 
अग्नयः = अग्नि 
शान्ताः = शांति से 
शान्ता = शांत हो गया 
दिग्जनितस्वनाः = दिशाओं से उत्पन्न शोर 


अग्नि शान्ति से जलने अग्नि और दिशाओं में उत्पन्न शोर शांत हो गया । 

॥ स्वस्ति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे
देवीमाहात्म्ये शुम्भवधो नाम दशमोऽध्यायः ॥ १०॥

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