अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः , अनुष्टुप् छन्दः ,
चामुण्डा देवता , अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम् ,
दिग्बन्धदेवतास्तत्वम् , श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।
ॐ नमश्चण्डिकायै ।
ॐ चण्डिका देवी को नमस्कार है ।
मार्कण्डेय उवाच ।
मार्कण्डेय बोला ।
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ॥ १॥
यत् = जो
गुह्यं = गोपनीय
परमं = अत्यंत
लोके = संसार में
सर्वरक्षाकरं = सब प्रकार से रक्षा करने वाला
नृणाम् = मनुष्यों की
यत् न = जो नहीं
कस्यचित् आख्यातं = किसी को बताया गया
तत् मे = उसे मुझे
ब्रूहि = बताइये
पितामह = हे पितामह
हे पितामह जो संसार में अत्यंत गोपनीय है , मनुष्यों की सब पकार से रक्षा करने वाला है , जो किसी को नहं बताया गया उस (साधन) को मुझे बताइये ।
ब्रह्मोवाच ।
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् ।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने ॥ २॥
अस्ति = है
गुह्यतमं = गोपनीय से भी गोपनीय
विप्र = ब्राह्मण
सर्वभूतोपकारकम् = सभी प्राणियों का उपकार करने वाला
देव्या: = देवी का
तु = निश्चय ही
कवचं = कवच
पुण्यं = पवित्र
तच्छृणुष्व = तत् श्रुणुष्व = वह सुनो
महामुने = हे महामुनि
ब्राह्मण निश्चय ही देवी का पवित्र कवच गोपनीय से भी गोपनीय, सभी प्राणियों का उपकार करने वाला है , हे महामुनि , वह सुनो ।
प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥ ३॥
प्रथमं शैलपुत्रीति = पहली शैलपुत्री
द्वितीयं ब्रह्मचारिणी = दूसरी ब्रह्मचारिणी
तृतीयं चन्द्रघण्टेति = तीसरी चन्द्रघंटा
कूष्माण्डेति चतुर्थकम् = चौथी कूष्माण्डा
(देवी के नौ रूप हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं ) पहली शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी , तीसरी चन्द्रघंटा , चौथी कूष्माण्डा
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनी तथा ।
सप्तमं कालरात्रिश्च महागौरीति चाष्टमम् ॥ ४॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ॥ ५॥
पञ्चमं स्कन्दमातेति = पांचवी सकंधमाता
षष्ठं कात्यायनी तथा = इसी प्रकार छटी कात्यायनी
सप्तमं कालरात्रिश्च = और सातवीं काल रात्रि
महागौरीति चाष्टमम् = और आठवीं महा गौरी
नवमं सिद्धिदात्री = नौवीं सिद्धिदात्री
च = और
नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः = नौ दुर्गायै प्रसिद्ध हैं
उक्तान्येतानि नामानि = उक्तानि एतानि नामानि =ये नाम कहे गए हैं
ब्रह्मणैव= ब्रह्मा द्वारा ही
महात्मना = हे महात्मा
पांचवी सकंधमाता , इसी प्रकार छटी कात्यायनी, और सातवीं काल रात्रि और आठवीं महा गौरी, और नौवीं सिद्धिदात्री , (इस प्रकार ) नौ दुर्गायै प्रसिद्ध हैं , हे महात्मा ये नाम ब्रह्मा द्वारा ही बताये गए हैं ।
अग्निना दह्यमानास्तु शत्रुमध्यगता रणे ।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः ॥ ६।
अग्निना =अग्नि में
दह्यमाना: = जलता हुआ
तु = और
शत्रुमध्यगता रणे = युद्ध में शत्रुओं के बीच फंसा
विषमे = विषम
दुर्गमे = संकट में पड़ा
चैव = और इसी प्रकार
भयार्ताः = भय से आतुर
शरणं = शरण में
गताः = जाता है
अग्नि में जलता हुआ और युद्ध में शत्रुओं के बीच फंसा, विषम संकट में पड़ा और इसी प्रकार भय से आतुर (दुर्गा की ) शरण में जाता है
न तेषां जायते किञ्चिदशुभं रणसङ्कटे ।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि ।। ७।।
न तेषां जायते = उनका नहीं होता
किञ्चित् अशुभं = कुछ भी अशुभ
रणसङ्कटे = युद्ध के संकट में
आपदं = आपत्ति
तस्य = उस पर
न= नहीं
च= और
पश्यन्ति = दिखाई देती
शोकदुःखभयम् = शौक दुःख भय
न हि = और न
उनका कुछ भी अशुभ नहीं होता , और न युद्ध संकट में आपत्ति दिखाई देती है , और न दुःख शौक भय होता है ।
यैस्तु भक्त्या स्मृता नित्यं तेषां वृद्धिः प्रजायते ।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसि तान्न संशयः ॥ ८॥
यैस्तु= यै: तु= और जो
भक्त्या = भक्ति पूर्वक
स्मृता = स्मरण करते हैं
नित्यं = रोज़
तेषां = उनका
वृद्धिः =विकास
प्रजायते = होता है
ये = जो
त्वां = तुम्हे
स्मरन्ति = स्मरण करते हैं
देवेशि = देवी
रक्षसि = रक्षा करती हो
तान्न संशयः= इसमें कोई संदेह नहीं
और जो भक्तिपूर्वक रोज तुम्हारा स्मरण करते हैं उनका विकास होता है , हे देवी जो तुम्हे स्मरण करते हैं उनकी तुम रक्षा करती हो इसमें कोई संदेह नहीं ।
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना ।
ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना ॥ ९॥
प्रेतसंस्था = प्रेत पर आरूढ़ है
तु = और
चामुण्डा = चामुण्डा देवी
वाराही = वाराही
महिषासना ।= भैंसे पर सवार है
ऐन्द्री = इंद्री
गजसमारूढा = हाथी पर बैठी है
वैष्णवी = वैष्णवी
गरुडासना = गुरुङ पर सवार है
और चामुण्डा देवी प्रेत पर आरूढ़ है , वाराही भैंसे पर सवार है , ऐन्द्री हाथी पर बैठी है , वैष्णवी गुरुङ पर सवार हैं ।
माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना ।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया ।।१०।।
माहेश्वरी = माहेश्वरी
वृषारूढा = वृष पर आरूढ़
कौमारी = कौमारी
शिखिवाहना = मोर के वाहन पर
लक्ष्मीः = लक्ष्मी
पद्मासना = कमल के आसन पर
देवी = देवी
पद्महस्ता = कमल हाथ में लिए
हरिप्रिया = विष्णु प्रिया
माहेश्वरी वृष पर आरूढ़ , कौमारी मोर के वाहन पर , विष्णुप्रिया देवी लक्ष्मी कमल हाथ में लिए कमल के आसन पर बैठी हैं ।
श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना ।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता ।।११।।
श्वेतरूपधरा = श्वेत रूप धारे
देवि = देवी
ईश्वरी = ईश्वरी
वृषवाहना = वृषभ पर सवार है
ब्राह्मी = ब्राह्मी
हंससमारूढा = हंस पर आरूढ़ है
सर्वाभरणभूषिता= सभी आभूषणों से सुसज्ज्त
देवी ईश्वरी श्वेत रूप धारे वृषभ पर सवार है , ब्राह्मी सभी आभूषणों से सुसज्जित हंस पर आरूढ़ है ।
इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः ।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः ।।१२।।
इत्येता = इति एता = इस प्रकार ये
मातरः = माताएं
सर्वाः = सभी
सर्वयोगसमन्विताः सभी योग शक्तियों से संपन्न
नानाभरणशोभाढ्या = अनेक प्रकार के आभूषणों से सुशोभित
नानारत्नोपशोभिताः= अनेक प्रकार के रत्नों से शोभायमान हैं
इस प्रकार ये सभी माताएं सभी योग शक्तियों से संपन्न, अनेक प्रकार के आभूषणों से सुशोभित , अनेक प्रकार के रत्नों से शोभायमान हैं ।
दृश्यन्ते रथमारूढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः ।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम् ।।१३।।
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च ।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम् ।।१४।।
दृश्यन्ते = दिखाई देती हैं
रथमारूढा = रथ पर सवार
देव्यः = देवियाँ
क्रोधसमाकुलाः क्रोध से युक्त
शङ्खं = शंख
चक्रं = चक्र
गदां = गदा
शक्तिं = शक्ति
हलं च = और हल
मुसल = मूसल
युधम् = शस्त्र
खेटकं = खेटक
तोमरं = तोमर
चैव = और इसी प्रकार
परशुं = परशु
पाशमेव = पाश
च = और
कुन्तायुधं = कुंत का हथियार
त्रिशूलं च = और त्रिशूल
शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्= = उत्तम शस्त्र शार्ङ्ग
देवियाँ क्रोध से युक्त शंख , चक्र गदा शक्ति , हल और मूसल के शस्त्र , खेटक, तोमर और इसी प्रकार परशु , पाश और कुंत का हथियार और उत्तम शस्त्र शार्ङ्ग लिए रथ पर सवार दिखाई देती हैं ।
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च ।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै ।।१५।।
दैत्यानां देहनाशाय = दैत्यों के शरीर के नाश
भक्तानाम अभयाय च = और भक्तों के अभय
धारयन्त्यायुधानीत्थं = धारयन्ति आयुधान् इथं = इन हथियारों को धारण किया है
देवानां च हिताय वै = और इसी प्रकार देवताओं के हित के लिए
दैत्यों के शरीर के नाश और भक्तों के अभय और इसी प्रकार देवताओं के हित के लिए ( देवियों ने ) इन हथियारों को धारण किया है ।
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे ।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि ।।१६।।
नमस्तेऽस्तु = तुम्हे नमस्कार है
महारौद्रे = महा रौद्र
महाघोरपराक्रमे= महान पराकम
महाबले = महाबली
महोत्साहे = महा उत्साही
महाभयविनाशिनि= महान भय का नाश करने वाली
महा रौद्र, महान पराकम, महाबली,महा उत्साही ,महान भय का नाश करने वाली देवी तुम्हें नमस्कार है।
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि ।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता ।।१७।।
त्राहि मां देवि = हे देवी मेरी रक्षा करो
दुष्प्रेक्ष्ये = जिसकी और देखना कठिन हो
शत्रूणां = शत्रुओं में
भयवर्धिनि = भय बढ़ाने वाली
प्राच्यां रक्षतु = पूर्व दिशा में रक्षा करे
माम= मेरी
एन्द्री = एन्द्री
आग्नेय्याम अग्निदेवता= अग्नि कोण में अग्नि शक्ति
शत्रुओं में भय बढ़ाने वाली हे देवी तुम्हारी और देखना भी कठिन है , मेरी रक्षा करो । पूर्व दिशा में एन्द्री, अग्नि कोण में अग्नि शक्ति मेरी रक्षा करे ।
दक्षिणेऽवतु वाराही नैऋत्यां खड्गधारिणी ।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद्वायव्यां मृगवाहिनी ।।१८।।
दक्षिणेऽवतु = दक्षिण दिशा में
वाराही = वाराही
नैऋत्यां = नैऋत्य कोण में
खड्गधारिणी = खड्गधारिणी
प्रतीच्यां = पश्चिम में
वारुणी = वारुणी
रक्षेत्= रक्षा करे
वायव्यां मृगवाहिनी = वायव्य कोण में मृगवाहिनी
दक्षिण दिशा में वाराही ,नैऋत्य कोण में खड्गधारिणी, पश्चिम में वारुणी वायव्य कोण में मृगवाहिनी रक्षा करे ।
उदीच्यां पातु कौबेरी ईशान्यां शूलधारिणी ।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी मे रक्षेदधस्ताद्वैष्णवी तथा ।।१९।।
उदीच्यां = उत्तर दिशा में
पातु कौबेरी = कौबेरी रक्षा करे
ईशान्यां शूलधारिणी = ईशान में शूलधारणी
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी = ऊपर से ब्रह्माणी
मे = मेरी
रक्षेत् = रक्षा करे
धस्तात् = नीचे से
वैष्णवी = वैष्णवी देवी
तथा= इसी प्रकार
उत्तर दिशा में कौबेरी रक्षा करे ईशान में शूलधारणी, ऊपर से ब्रह्माणी,इसी प्रकार नीचे से वैष्णवी देवी मेरी रक्षा करे ।
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना ।
जया मामग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः ।।२०।।
एवं दश दिशो = इसी प्रकार दसो दिशाओं से
रक्षेत् चामुण्डा = चामुण्डा रक्षा करे
शववाहना = शव के वाहन वाली
जया माम अग्रतः = जया मेरी आगे से
पातु = रक्षा करे
विजया पातु पृष्ठतः = विजया पीछे से रक्षा करे
इसी प्रकार शव के वाहन वाली चामुण्डा दसो दिशाओं में रक्षा करे । जया मेरी आगे से रक्षा करे, विजया पीछे से रक्षा करे ।
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता ।
शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता ।।२१।।
अजिता वामपार्श्वे= वाम भाग में अजीता
तु = और , अब
दक्षिणे च अपराजिता= और दक्षिण में अपराजिता
शिखाम् उद्योतिनी = उद्योतिनी शिखा की
रक्षेत् उमा = उमा रक्षा करे
मूर्ध्नि = मस्तक पर
व्यवस्थिता = विराजमान हो कर
अजीता वाम भाग की , और दक्षिण में अपराजिता, उद्योतिनी शिखा की , और उमा मस्तक पर विराजमान हो कर रक्षा करे ।
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद्यशस्विनी ।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा तु नासिके ।।२२।।
मालाधरी ललाटे = मालाधारी ललाट की
च = और
भ्रुवौ = भौहों की
रक्षेत्= रक्षा करे
यशस्विनी = यशस्विनी
त्रिनेत्रा च भ्रुवो: मध्ये= और भौहों के मध्य की त्रिनेत्रा
यमघण्टा तु नासिके =और नासिका की यमघण्टा
मालाधारी ललाट की और यशस्विनी भौहों की और भौहों के मध्य की त्रिनेत्रा और नासिका की यमघण्टा रक्षा करे ।
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी ।
कपोलौ कालिका रक्षेत् कर्णमूले तु शाङ्करी ।। २३।।
शङ्खिनी चक्षुषो: मध्ये = शङ्खिनी आँखों के बीच की
श्रोत्रयो: द्वारवासिनी= द्वारवासिनी कानों की
कपोलौ कालिका = कालिका गालों की
रक्षेत् = रक्षा करे
कर्णमूले तु शाङ्करी = और शाङ्करी कानों के मूल भाग की
शङ्खिनी आँखों के बीच की ,द्वारवासिनी कानों की , कालिका गालों की और शाङ्करी कानों के मूल भाग की रक्षा करे ।
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्टे च चर्चिका ।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती ।। २४।।
नासिकायां सुगन्धा = सुगन्धा नाक की
च = और
उत्तरोष्टे च चर्चिका = ऊपर के होठ की चर्चिका
अधरे च अमृतकला = और नीचे के होंठ की अमृतकला
जिह्वायां च सरस्वती = और जीभ की सरस्वती रक्षा करे
नाक की सुगंधा और ऊपर के होठ की चर्चिका और नीचे के होंठ की अमृतकला और जीभ की सरस्वती रक्षा करे ।
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका ।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ।। २५।।
दन्तान् रक्षतु कौमारी= दांतों की रक्षा कौमारी
कण्ठदेशे तु चण्डिका= और चण्डिका कण्ठप्रदेश की
घण्टिकां चित्रघण्टा च = और चित्रघण्टा घाँटी की
महामाया च तालुके = और महामाया तालु की
दांतों की कौमारी और चण्डिका कण्ठप्रदेश की और चित्रघण्टा घाँटी की और महामाया तालु की रक्षा करे ।
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद्वाचं मे सर्वमङ्गला ।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी ।। २६।।
कामाक्षी चिबुकं = कामाक्षी ठोडी की
रक्षेत् = रक्षा करे
वाचं मे सर्वमङ्गला = सर्वमङ्गला मेरी वाणी की
ग्रीवायां भद्रकाली = गर्दन की भद्रकाली
च पृष्ठवंशे धनुर्धरी= और धनुर्धरी मेरुदण्ड की
कामाक्षी ठोडी की , सर्वमङ्गला मेरी वाणी की , गर्दन की भद्रकाली और धनुर्धरी मेरुदण्ड की रक्षा करे ।
नीलग्रीवा बहिः कण्ठे नलिकां नलकूबरी ।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी ।। २७।।
नीलग्रीवा बहिः कण्ठे = नीलग्रीवा कंठ के बाहरी भाग की
नलिकां नलकूबरी = नलकूबरी कंठ की नली की
स्कन्धयोः खड्गिनी = खड्गिनी दोनों कन्धों की
रक्षेत् = रक्षा करे
बाहू मे वज्रधारिणी = वज्रधारिणी मेरी बाहों की
नीलग्रीवा कंठ के बाहरी भाग की, नलकूबरी कंठ की नली की , खड्गिनी दोनों कन्धों की , वज्रधारिणी मेरी बाहों की रक्षा करे ।
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च ।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत् कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी ।। २८।।
हस्तयो: दण्डिनी = दण्डिनी हाथों की
रक्षेत् = रक्षा करे
अम्बिका च अङ्गुलीषु= और अम्बिका उँगलियों की
च = और
नखान् शूलेश्वरी रक्षेत् = नाखूनों की शूलेश्वरी रक्षा करे
कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी= कुलेश्वरी पेट की रक्षा करे
दण्डिनी हाथों की रक्षा करे और अम्बिका उँगलियों की और शूलेश्वरी नाखूनों की रक्षा करे और कुलेश्वरी पेट की रक्षा करे ।
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनःशोकविनाशिनी ।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी ।। २९।।
स्तनौ महादेवी = स्तनों की महादेवी
रक्षेत् = रक्षा करे
मनःशोकविनाशिनी = मन की शोकविनाशिनी
हृदये ललिता देवी = हृदय की ललित देवी
उदरे शूलधारिणी = उदर की शूलधारणी
स्तनों की महादेवी , मन की शोकविनाशिनी, हृदय की ललित देवी , हृदय की ललित देवी , उदर की शूलधारणी रक्षा करे ।
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा ।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी ।। ३०।।
नाभौ च कामिनी = नाभी की कामिनी
रक्षेद् = रक्षा करे
गुह्यं गुह्येश्वरी तथा = और गुह्य भाग की गुह्येश्वरी
पूतना कामिका मेढ्रं = पूतना और कामिका लिंग की
गुदे महिषवाहिनी= महिषवाहिनी गुदा की
नाभी की कामिनी और गुह्य भाग की गुह्येश्वरी, पूतना और कामिका लिंग की , महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करे ।
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी ।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ।। ३१।।
कट्यां भगवती = भगवती कमर की
रक्षेत् = रक्षा करे
जानुनी विन्ध्यवासिनी= विन्ध्यवासिनी घुटनों की
जङ्घे महाबला = महाबला जंघाओं की
रक्षेत् = रक्षा करे
सर्वकामप्रदायिनी= सभी कामनाओं को देने वाली
भगवती कमर की , विन्ध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करे, सभी कामनाओं को देने वाली महाबला जंघाओं की रक्षा करे ।
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी ।
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी ।। ३२।।
गुल्फयो: नारसिंही च = और टकनों की नारसिंही
पादपृष्ठे तु तैजसी = और पैरों के पृष्ठ भाग की तैजसी
पादाङ्गुलीषु श्री = श्री देवी पैरों की उँगलियों की
रक्षेत् = रक्षा करे
पादाधस्तलवासिनी = तलवासिनी तलवों की
और टकनों की नारसिंही, और पैरों के पृष्ठ भाग की तैजसी , श्री देवी पैरों की उँगलियों की , तलवासिनी तलवों की रक्षा करे ।
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी ।
रोमकूपेषु कौमारी त्वचं वागीश्वरी तथा ।। ३३।।
नखान् दंष्ट्राकराली च = और दंष्ट्राकराली नखों की
केशां च एव उर्ध्वकेशिनी = और ऐसे ही उर्ध्वकेशिनी बालों की
रोमकूपेषु कौमारी = कौमारी रोमकूपों की
त्वचं वागीश्वरी तथा = और वागीश्वरी त्वचा की
और दंष्ट्राकराली नखों की , और ऐसे ही उर्ध्वकेशिनी बालों की , कौमारी रोमकूपों की और वागीश्वरी त्वचा की रक्षा करे ।
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती ।
अन्त्राणि कालरात्रिश्व पित्तं च मुकुटेश्वरी ।। ३४।।
रक्त मज्जा वसा मांसान्य अस्थि मेदांसि = रक्त , मज्जा , वसा, मांस , हड्डी , मेद की
पार्वती = पार्वती
अन्त्राणि कालरात्रिश्व= आँतों की कालरात्रि
पित्तं च मुकुटेश्वरी = और पित्त की मुक्तेश्वरी
रक्त , मज्जा , वसा, मांस , हड्डी , मेद की पार्वती , आँतों की कालरात्रि और पित्त की मुक्तेश्वरी रक्षा करे ।
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा ।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसन्धिषु ।। ३५।।
पद्मावती पद्मकोशे = पद्मकोश की पद्मावती
कफे चूडामणि: तथा = और कफ की चूडामणि
ज्वालामुखी = ज्वालामुखी
नखज्वालाम - नख के तेज की
अभेद्या = अभेद्या देवी
सर्वसन्धिषु = सभी जोड़ों की
पद्मकोश की पद्मावती और कफ की चूडामणि, नख के तेज की ज्वालामुखी, सभी जोड़ों की अभेद्या देवी रक्षा करें ।
शुक्रं ब्रह्माणी मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा ।
अहङ्कारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी ।। ३६।।
शुक्रं ब्रह्माणी मे = ब्रह्माणी मेरे वीर्य की
रक्षेत् = रक्षा करे
छायां छत्रेश्वरी तथा = और छत्रेश्वरी छाया की
अहङ्कारं मनो बुद्धिं = अहंकार , मन और बुद्धि की
रक्षेत् = रक्षा करे
मे= मेरे
धर्मधारिणी= धर्मधारिणी
ब्रह्माणी मेरे वीर्य की और छत्रेश्वरी छाया की रक्षा करे, धर्मधारिणी मेरे अहंकार , मन और बुद्धि की रक्षा करे ।
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम् ।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत् प्राणान् कल्याणशोभना ।। ३७।।
प्राण अपानौ तथा व्यानम् = प्राण , अपान , व्यान
उदानं च समानकम्= उदान और समान वायु की
वज्रहस्ता = वज्रहस्ता
च मे = और मेरी
रक्षेत्= रक्षा करे
प्राणान् कल्याणशोभना = कल्याणशोभना प्राणों की
वज्रहस्ता प्राण , अपान , व्यान , उदान और समान वायु की और कल्याणशोभना मेरे प्राणों की रक्षा करे ।
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी ।
सत्त्वं रजस्तमश्वैव रक्षेन्नारायणी सदा ।। ३८।।
रसे रूपे च = रस रूप
गन्धे च शब्दे = गंध और शब्द की
स्पर्शे च योगिनी = और स्पर्श की योगिनी
सत्त्वं रजस्तमश्व एव = सत्व , रज और तम गुणों की
रक्षेत्= रक्षा करे
नारायणी = नारायणी
सदा = हमेशा
रस, रूप , गंध और शब्द और स्पर्श की योगिनी देवी , सत्व , रज और तम गुणों की नारायणी हमेशा रक्षा करे ।
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी ।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्या च चक्रिणी ।। ३९।।
आयू रक्षतु वाराही = वाराही आयु की रक्षा करे
धर्मं रक्षतु वैष्णवी = धर्म की वैष्णवी रक्षा करे
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च = यश , कीर्ति , लक्ष्मी और
धनं विद्या च चक्रिणी= धन व विद्या की चक्रिणी देवी
वाराही आयु की रक्षा करे, धर्म की वैष्णवी रक्षा करे , यश , कीर्ति , लक्ष्मी और धन व विद्या की चक्रिणी देवी रक्षा करे ।
गोत्रमिन्द्राणी मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके ।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी ।। ४०।।
गोत्रमिन्द्राणी मे = मेरे गोत्र की इन्द्राणी
रक्षेत्= रक्षा करे
पशून्मे रक्ष चण्डिके= पशुओं की चण्डिका रक्षा करे
पुत्रान् = पुत्रों की
रक्षेत्= रक्षा करे
महालक्ष्मी: = महालक्ष्मी
भार्यां रक्षतु भैरवी = पत्नी की भैरवी रक्षा करे
मेरे गोत्र की इन्द्राणी रक्षा करे ,पशुओं की चण्डिका रक्षा करे , पुत्रों की महालक्ष्मी रक्षा करे ,पत्नी की भैरवी रक्षा करे ।
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमङ्करी तथा ।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता ।।४१।।
पन्थानं सुपथा = सुपथा मेरे पथ की
रक्षेत्= रक्षा करे
मार्गं क्षेमङ्करी तथा = और मार्ग की क्षेमकरी
राजद्वारे महालक्ष्मी:= राजा के दरबार में महालक्ष्मी
विजया सर्वतः स्थिता = सब जगह स्थित विजया चारों और से
सुपथा मेरे पथ की और मार्ग की क्षेमकरी , राजा के दरबार में महालक्ष्मी, सब जगह स्थित विजया चारों और से रक्षा करे ।
रक्षाहीनं तु यत् स्थानं वर्जितं कवचेन तु ।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी ।।४२।।
रक्षाहीनं तु यत् स्थानं = और जो स्थान रक्षा रहित हैं
वर्जितं कवचेन तु = और कवच में नहीं कहे गए हैं
तत्सर्वं रक्ष मे देवि = उन सभी स्थानों पर मेरी रक्षा करो , हे देवी
जयन्ती पापनाशिनी= विजयशालिनी , पापनाशिनी
और जो स्थान रक्षा रहित हैं और कवच में नहीं कहे गए हैं, हे विजयशालिनी , पापनाशिनी देवी उन सभी स्थानों पर मेरी रक्षा करो ।
पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः ।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति ।।४३।।
पदमेकं न गच्छेत् तु= और एक कदम भी न जाए
यदीच्छेच्छुभमात्मनः = यत् इच्छेत् शुभम् आत्मनः = जिसे अपने शुभ की इच्छा है
कवचेनावृतो= कवच से आवृत हो
नित्यं = रोज़
यत्र यत्रैव= जहां जहां
गच्छति = जाते हैं
जिसे अपने शुभ की इच्छा है( कवच बिना) एक कदम भी न जाएँ , जो रोज़ कवच से आवृत हो जहां जहां जाते हैं
तत्र तत्रार्थलाभश्व विजयः सार्वकामिकः ।
तत्र तत्र = वहां वहां
अर्थलाभश्व = अर्थ लाभ
विजयः सार्वकामिकः= सब कामनाओं में विजय प्राप्त करते हैं
वहां वहां अर्थ लाभ व् सब कामनाओं में विजय प्राप्त करते हैं ।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम् ।
यं यं= जिस जिस
चिन्तयते कामं = अभीष्ट का चिंतन करते हैं
तं तं = उस उस को
प्राप्नोति निश्चितम्= निश्चय ही प्राप्त करते हैं
जिस जिस अभीष्ट का चिंतन करते हैं उस उस को निश्चय ही प्राप्त करते हैं ।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान् ।।४४।।
परमैश्वर्यम अतुलं = अतुलनीय परम ऐश्वर्य
प्राप्स्यते= प्राप्त करते हैं
भूतले = पृथ्वी पर
पुमान्= मनुष्य
पृथ्वी पर मनुष्य अतुलनीय परम ऐश्वर्य प्राप्त करता है ।
निर्भयो जायते मर्त्यः सङ्ग्रामेष्वपराजितः ।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान् ।। ४५।।
निर्भयो जायते = निर्भीक हो जाता है
मर्त्यः = मनुष्य
सङ्ग्रामेष्व अपराजितः = युद्ध में पराजय नहीं होती
त्रैलोक्ये तु= और त्रिलोक में
भवेत्पूज्यः= पूजनीय होता है
कवचेनावृतः पुमान् = कवच से सुरक्षित मनुष्य
कवच से सुरक्षित मनुष्य निर्भीक हो जाता है और त्रिलोक में पूजनीय होता है ।
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः ।। ४६।।
इदं तु देव्याः कवचं = और देवी का यह कवच
देवानामपि = देवताओं के लिए भी
दुर्लभम् = दुर्लभ है
यः पठेत्= जो पढता है
प्रयतो =नियम से
नित्यं त्रिसन्ध्यं = प्रतिदिन तीनों संध्याओं में
श्रद्धयान्वितः = श्रद्धापूर्वक
और देवी का यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है , जो नियम से प्रतिदिन तीनों संध्याओं में श्रद्धापूर्वक इसे पढता है ।
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः ।
जीवेद्वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः ।। ४७।।
दैवी कला भवेत्त तस्य = उसे देवी कला प्राप्त होती है
त्रैलोक्येष्वपराजितः = तीनों लोकों में पराजित नहीं होता
जीवेद्वर्षशतं = सौ वर्षों तक जीता है
साग्रम अपमृत्यु विवर्जितः= इतना ही नहीं अपमृत्यु(अकाल मृत्यु ) से रहित हो
उसे देवी कला प्राप्त होती है , तीनों लोकों में पराजित नहीं होता, इतना ही नहीं अपमृत्यु(अकाल मृत्यु ) से रहित हो सौ वर्षों तक जीता है ।
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः ।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चैव यद्विषम् ।। ४८।।
नश्यन्ति= नष्ट हो जाते हैं
व्याधयः = रोग
सर्वे लूताविस्फोटकादयः= मकरी चेचक आदि सभी
स्थावरं= स्थिर चीज़ों के जैसे भांग अफीम धतूरे आदि के
जङ्गमं= चलने वाली जीवित जैसे सांप , बिच्छु का
चैव = और इसी प्रकार
कृत्रिमं चैव= अहिफेन और तेल को मिलाने से बनाने वाले
यद्विषम् = जो जहर हैं
मकरी चेचक आदि सभी रोग , स्थिर चीज़ों के जैसे भांग अफीम धतूरे आदि के और इसी प्रकार चलने वाली जीवित जैसे सांप , बिच्छु का और ऐसे ही अहिफेन और तेल को मिलाने से बनाने वाले जो जहर हैं नष्ट हो जाते हैं ।
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले ।
भूचराः खेचराश्चैव कुलजाश्चौपदेशिकाः ।। ४९।।
अभिचाराणि = अभिचारण (मारन मोहन आदि ) के
सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि = सभी मन्त्र
भूतले = पृथ्वी पर
भूचराः=पृथ्वी पर विचरने वाले ग्रामदेवता
खेचरा= आकाश में विचरने वाले देवविशेष
च एव = और ऐसे ही
कुलजा = जल में प्रकट होने वाले गण
उपदेशिकाः= उपदेश से सिद्ध होने वाले देव
पृथ्वी पर अभिचारण (मारन मोहन आदि ) के सभी मन्त्र , पृथ्वी पर विचरने वाले ग्रामदेवता , आकाश में विचरने वाले देवविशेष और ऐसे ही जल में प्रकट होने वाले गण , उपदेश से सिद्ध होने वाले देव
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा ।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः ।। ५०।।
सहजा = जनम के साथ प्रकट होने वाले देवता
कुलजा = कुल देवता
माला= कंठमाला
डाकिनी शाकिनी तथा = डाकिनी शाकिनी और
अन्तरिक्षचरा= अंतरिक्ष में घूमने वाले
घोरा = भयंकर
डाकिन्यश्च = डाकनियाँ
महाबलाः= महाबली
जनम के साथ प्रकट होने वाले देवता , कुल देवता, कंठमाला , डाकिनी शाकिनी और अंतरिक्ष में घूमने वाले भयंकर महाबली डाकनियाँ
गृहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः ।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ।। ५१।।
गृहभूतपिशाचाश्च = गृह , भूत , पिशाच और
यक्षगन्धर्वराक्षसाः= यक्ष , गन्धर्व , राक्षस
ब्रह्मराक्षसवेतालाः = ब्रह्मराक्षस, बेताल
कूष्माण्डा = कूष्माण्ड,
भैरवादयः= भैरव आदि
गृह , भूत , पिशाच और यक्ष , गन्धर्व , राक्षस ,ब्रह्मराक्षस, बेताल , कूष्माण्ड,भैरव आदि
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे ह्रदि संस्थिते ।
नश्यन्ति = भाग जाते हैं
दर्शनात् = देख कर ही
तस्य = उसको
कवचे ह्रदि संस्थिते= हृदय में कवच धारण करने पर
हृदय में कवच धारण करने पर उस मनुष्य को देख कर ही भाग जाते हैं ।
मानोन्नतिर्भवेद्राज्ञास्तेजोवृद्धिकरं परम् ।। ५२।।
मानोन्नति:= मान की वृद्धि
भवेत् = होती है
राज्ञा: =राजा से
ते= वे ,
तेजोवृद्धिकरं परम् = तेज की वृद्धि करने वाला , उत्तम है
और राजा से उनके मान की वृद्धि होती है । ( यह कवच ) तेज की वृद्धि करने वाला , उत्तम है ।
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभुतले ।
जपेत् सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा ।।५३।।
यशसा = यश
वर्धते = वृद्धि को प्राप्त करता है
सोऽपि = वह भी
कीर्तिमण्डित = कीर्ति से सुशोभित
भुतले = पृथ्वी पर
जपेत् = जप करता है
सप्तशतीं = सप्तशती
चण्डीं = चंडी का
कृत्वा = करके
तु = और
कवचं = कवच का
पुरा = पहले
पृथ्वी पर कीर्ति से सुशोभित वह भी यश और वृद्धि को प्राप्त करता है । जो पहले कवच का पाठ करके सप्शती चंडी का जप करता है
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम् ।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां सन्ततिः पुत्रपौत्रिकी ।। ५४।।
यावत् = जब तक
भूमण्डलं = पृथ्वी
धत्ते = टिकी है
सशैलवनकाननम् = पर्वत, वन , कानन के साथ
तावत् = तब तक
तिष्ठति = ठहरती है
मेदिन्यां= पृथ्वी पर
सन्ततिः = संतान परम्परा
पुत्रपौत्रिकी = पुत्र पौत्र आदि
जब तक पृथ्वी पर्वत, वन , कानन के साथ टिकी है तब तक उसकी पुत्र पौत्र आदि संतान परम्परा रहती है ।
देहान्ते परमं स्थानं सुरैरपि सुदुर्लभम् ।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः ।। ५५।।
देहान्ते = देह का अंत होने पर
परमं स्थानं = उत्तम स्थान को
सुरैरपि सुदुर्लभम् = देवताओं को भी दुर्लभ
प्राप्नोति = प्राप्त करता है
पुरुषो= पुरुष
नित्यं = नित्य
महामायाप्रसादतः = महामाया के प्रसाद से
महामाया के प्रसाद से वह पुरुष देवताओं को भी दुर्लभ नित्य उत्तम स्थान को प्राप्त करता है ।
लभते परमं स्थानं शिवेन समतां व्रजेत् ।। ५६।।
लभते परमं स्थानं = उत्तम स्थान प्राप्त करके
शिवेन समतां = शिव के समान
व्रजेत् = होता है
उत्तम स्थान प्राप्त करके शिव के समान होता है ।
॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे हरिहरब्रह्मविरचितं
देवीकवचं समाप्तम् ॥
चामुण्डा देवता , अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम् ,
दिग्बन्धदेवतास्तत्वम् , श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।
ॐ नमश्चण्डिकायै ।
ॐ चण्डिका देवी को नमस्कार है ।
मार्कण्डेय उवाच ।
मार्कण्डेय बोला ।
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ॥ १॥
यत् = जो
गुह्यं = गोपनीय
परमं = अत्यंत
लोके = संसार में
सर्वरक्षाकरं = सब प्रकार से रक्षा करने वाला
नृणाम् = मनुष्यों की
यत् न = जो नहीं
कस्यचित् आख्यातं = किसी को बताया गया
तत् मे = उसे मुझे
ब्रूहि = बताइये
पितामह = हे पितामह
हे पितामह जो संसार में अत्यंत गोपनीय है , मनुष्यों की सब पकार से रक्षा करने वाला है , जो किसी को नहं बताया गया उस (साधन) को मुझे बताइये ।
ब्रह्मोवाच ।
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् ।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने ॥ २॥
अस्ति = है
गुह्यतमं = गोपनीय से भी गोपनीय
विप्र = ब्राह्मण
सर्वभूतोपकारकम् = सभी प्राणियों का उपकार करने वाला
देव्या: = देवी का
तु = निश्चय ही
कवचं = कवच
पुण्यं = पवित्र
तच्छृणुष्व = तत् श्रुणुष्व = वह सुनो
महामुने = हे महामुनि
ब्राह्मण निश्चय ही देवी का पवित्र कवच गोपनीय से भी गोपनीय, सभी प्राणियों का उपकार करने वाला है , हे महामुनि , वह सुनो ।
प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥ ३॥
प्रथमं शैलपुत्रीति = पहली शैलपुत्री
द्वितीयं ब्रह्मचारिणी = दूसरी ब्रह्मचारिणी
तृतीयं चन्द्रघण्टेति = तीसरी चन्द्रघंटा
कूष्माण्डेति चतुर्थकम् = चौथी कूष्माण्डा
(देवी के नौ रूप हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं ) पहली शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी , तीसरी चन्द्रघंटा , चौथी कूष्माण्डा
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनी तथा ।
सप्तमं कालरात्रिश्च महागौरीति चाष्टमम् ॥ ४॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ॥ ५॥
पञ्चमं स्कन्दमातेति = पांचवी सकंधमाता
षष्ठं कात्यायनी तथा = इसी प्रकार छटी कात्यायनी
सप्तमं कालरात्रिश्च = और सातवीं काल रात्रि
महागौरीति चाष्टमम् = और आठवीं महा गौरी
नवमं सिद्धिदात्री = नौवीं सिद्धिदात्री
च = और
नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः = नौ दुर्गायै प्रसिद्ध हैं
उक्तान्येतानि नामानि = उक्तानि एतानि नामानि =ये नाम कहे गए हैं
ब्रह्मणैव= ब्रह्मा द्वारा ही
महात्मना = हे महात्मा
पांचवी सकंधमाता , इसी प्रकार छटी कात्यायनी, और सातवीं काल रात्रि और आठवीं महा गौरी, और नौवीं सिद्धिदात्री , (इस प्रकार ) नौ दुर्गायै प्रसिद्ध हैं , हे महात्मा ये नाम ब्रह्मा द्वारा ही बताये गए हैं ।
अग्निना दह्यमानास्तु शत्रुमध्यगता रणे ।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः ॥ ६।
अग्निना =अग्नि में
दह्यमाना: = जलता हुआ
तु = और
शत्रुमध्यगता रणे = युद्ध में शत्रुओं के बीच फंसा
विषमे = विषम
दुर्गमे = संकट में पड़ा
चैव = और इसी प्रकार
भयार्ताः = भय से आतुर
शरणं = शरण में
गताः = जाता है
अग्नि में जलता हुआ और युद्ध में शत्रुओं के बीच फंसा, विषम संकट में पड़ा और इसी प्रकार भय से आतुर (दुर्गा की ) शरण में जाता है
न तेषां जायते किञ्चिदशुभं रणसङ्कटे ।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि ।। ७।।
न तेषां जायते = उनका नहीं होता
किञ्चित् अशुभं = कुछ भी अशुभ
रणसङ्कटे = युद्ध के संकट में
आपदं = आपत्ति
तस्य = उस पर
न= नहीं
च= और
पश्यन्ति = दिखाई देती
शोकदुःखभयम् = शौक दुःख भय
न हि = और न
उनका कुछ भी अशुभ नहीं होता , और न युद्ध संकट में आपत्ति दिखाई देती है , और न दुःख शौक भय होता है ।
यैस्तु भक्त्या स्मृता नित्यं तेषां वृद्धिः प्रजायते ।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसि तान्न संशयः ॥ ८॥
यैस्तु= यै: तु= और जो
भक्त्या = भक्ति पूर्वक
स्मृता = स्मरण करते हैं
नित्यं = रोज़
तेषां = उनका
वृद्धिः =विकास
प्रजायते = होता है
ये = जो
त्वां = तुम्हे
स्मरन्ति = स्मरण करते हैं
देवेशि = देवी
रक्षसि = रक्षा करती हो
तान्न संशयः= इसमें कोई संदेह नहीं
और जो भक्तिपूर्वक रोज तुम्हारा स्मरण करते हैं उनका विकास होता है , हे देवी जो तुम्हे स्मरण करते हैं उनकी तुम रक्षा करती हो इसमें कोई संदेह नहीं ।
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना ।
ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना ॥ ९॥
प्रेतसंस्था = प्रेत पर आरूढ़ है
तु = और
चामुण्डा = चामुण्डा देवी
वाराही = वाराही
महिषासना ।= भैंसे पर सवार है
ऐन्द्री = इंद्री
गजसमारूढा = हाथी पर बैठी है
वैष्णवी = वैष्णवी
गरुडासना = गुरुङ पर सवार है
और चामुण्डा देवी प्रेत पर आरूढ़ है , वाराही भैंसे पर सवार है , ऐन्द्री हाथी पर बैठी है , वैष्णवी गुरुङ पर सवार हैं ।
माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना ।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया ।।१०।।
माहेश्वरी = माहेश्वरी
वृषारूढा = वृष पर आरूढ़
कौमारी = कौमारी
शिखिवाहना = मोर के वाहन पर
लक्ष्मीः = लक्ष्मी
पद्मासना = कमल के आसन पर
देवी = देवी
पद्महस्ता = कमल हाथ में लिए
हरिप्रिया = विष्णु प्रिया
माहेश्वरी वृष पर आरूढ़ , कौमारी मोर के वाहन पर , विष्णुप्रिया देवी लक्ष्मी कमल हाथ में लिए कमल के आसन पर बैठी हैं ।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता ।।११।।
श्वेतरूपधरा = श्वेत रूप धारे
देवि = देवी
ईश्वरी = ईश्वरी
वृषवाहना = वृषभ पर सवार है
ब्राह्मी = ब्राह्मी
हंससमारूढा = हंस पर आरूढ़ है
सर्वाभरणभूषिता= सभी आभूषणों से सुसज्ज्त
देवी ईश्वरी श्वेत रूप धारे वृषभ पर सवार है , ब्राह्मी सभी आभूषणों से सुसज्जित हंस पर आरूढ़ है ।
इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः ।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः ।।१२।।
इत्येता = इति एता = इस प्रकार ये
मातरः = माताएं
सर्वाः = सभी
सर्वयोगसमन्विताः सभी योग शक्तियों से संपन्न
नानाभरणशोभाढ्या = अनेक प्रकार के आभूषणों से सुशोभित
नानारत्नोपशोभिताः= अनेक प्रकार के रत्नों से शोभायमान हैं
इस प्रकार ये सभी माताएं सभी योग शक्तियों से संपन्न, अनेक प्रकार के आभूषणों से सुशोभित , अनेक प्रकार के रत्नों से शोभायमान हैं ।
दृश्यन्ते रथमारूढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः ।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम् ।।१३।।
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च ।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम् ।।१४।।
दृश्यन्ते = दिखाई देती हैं
रथमारूढा = रथ पर सवार
देव्यः = देवियाँ
क्रोधसमाकुलाः क्रोध से युक्त
शङ्खं = शंख
चक्रं = चक्र
गदां = गदा
शक्तिं = शक्ति
हलं च = और हल
मुसल = मूसल
युधम् = शस्त्र
खेटकं = खेटक
तोमरं = तोमर
चैव = और इसी प्रकार
परशुं = परशु
पाशमेव = पाश
च = और
कुन्तायुधं = कुंत का हथियार
त्रिशूलं च = और त्रिशूल
शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्= = उत्तम शस्त्र शार्ङ्ग
देवियाँ क्रोध से युक्त शंख , चक्र गदा शक्ति , हल और मूसल के शस्त्र , खेटक, तोमर और इसी प्रकार परशु , पाश और कुंत का हथियार और उत्तम शस्त्र शार्ङ्ग लिए रथ पर सवार दिखाई देती हैं ।
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च ।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै ।।१५।।
दैत्यानां देहनाशाय = दैत्यों के शरीर के नाश
भक्तानाम अभयाय च = और भक्तों के अभय
धारयन्त्यायुधानीत्थं = धारयन्ति आयुधान् इथं = इन हथियारों को धारण किया है
देवानां च हिताय वै = और इसी प्रकार देवताओं के हित के लिए
दैत्यों के शरीर के नाश और भक्तों के अभय और इसी प्रकार देवताओं के हित के लिए ( देवियों ने ) इन हथियारों को धारण किया है ।
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे ।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि ।।१६।।
नमस्तेऽस्तु = तुम्हे नमस्कार है
महारौद्रे = महा रौद्र
महाघोरपराक्रमे= महान पराकम
महाबले = महाबली
महोत्साहे = महा उत्साही
महाभयविनाशिनि= महान भय का नाश करने वाली
महा रौद्र, महान पराकम, महाबली,महा उत्साही ,महान भय का नाश करने वाली देवी तुम्हें नमस्कार है।
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि ।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता ।।१७।।
त्राहि मां देवि = हे देवी मेरी रक्षा करो
दुष्प्रेक्ष्ये = जिसकी और देखना कठिन हो
शत्रूणां = शत्रुओं में
भयवर्धिनि = भय बढ़ाने वाली
प्राच्यां रक्षतु = पूर्व दिशा में रक्षा करे
माम= मेरी
एन्द्री = एन्द्री
आग्नेय्याम अग्निदेवता= अग्नि कोण में अग्नि शक्ति
शत्रुओं में भय बढ़ाने वाली हे देवी तुम्हारी और देखना भी कठिन है , मेरी रक्षा करो । पूर्व दिशा में एन्द्री, अग्नि कोण में अग्नि शक्ति मेरी रक्षा करे ।
दक्षिणेऽवतु वाराही नैऋत्यां खड्गधारिणी ।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद्वायव्यां मृगवाहिनी ।।१८।।
दक्षिणेऽवतु = दक्षिण दिशा में
वाराही = वाराही
नैऋत्यां = नैऋत्य कोण में
खड्गधारिणी = खड्गधारिणी
प्रतीच्यां = पश्चिम में
वारुणी = वारुणी
रक्षेत्= रक्षा करे
वायव्यां मृगवाहिनी = वायव्य कोण में मृगवाहिनी
दक्षिण दिशा में वाराही ,नैऋत्य कोण में खड्गधारिणी, पश्चिम में वारुणी वायव्य कोण में मृगवाहिनी रक्षा करे ।
उदीच्यां पातु कौबेरी ईशान्यां शूलधारिणी ।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी मे रक्षेदधस्ताद्वैष्णवी तथा ।।१९।।
उदीच्यां = उत्तर दिशा में
पातु कौबेरी = कौबेरी रक्षा करे
ईशान्यां शूलधारिणी = ईशान में शूलधारणी
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी = ऊपर से ब्रह्माणी
मे = मेरी
रक्षेत् = रक्षा करे
धस्तात् = नीचे से
वैष्णवी = वैष्णवी देवी
तथा= इसी प्रकार
उत्तर दिशा में कौबेरी रक्षा करे ईशान में शूलधारणी, ऊपर से ब्रह्माणी,इसी प्रकार नीचे से वैष्णवी देवी मेरी रक्षा करे ।
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना ।
जया मामग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः ।।२०।।
एवं दश दिशो = इसी प्रकार दसो दिशाओं से
रक्षेत् चामुण्डा = चामुण्डा रक्षा करे
शववाहना = शव के वाहन वाली
जया माम अग्रतः = जया मेरी आगे से
पातु = रक्षा करे
विजया पातु पृष्ठतः = विजया पीछे से रक्षा करे
इसी प्रकार शव के वाहन वाली चामुण्डा दसो दिशाओं में रक्षा करे । जया मेरी आगे से रक्षा करे, विजया पीछे से रक्षा करे ।
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता ।
शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता ।।२१।।
अजिता वामपार्श्वे= वाम भाग में अजीता
तु = और , अब
दक्षिणे च अपराजिता= और दक्षिण में अपराजिता
शिखाम् उद्योतिनी = उद्योतिनी शिखा की
रक्षेत् उमा = उमा रक्षा करे
मूर्ध्नि = मस्तक पर
व्यवस्थिता = विराजमान हो कर
अजीता वाम भाग की , और दक्षिण में अपराजिता, उद्योतिनी शिखा की , और उमा मस्तक पर विराजमान हो कर रक्षा करे ।
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद्यशस्विनी ।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा तु नासिके ।।२२।।
मालाधरी ललाटे = मालाधारी ललाट की
च = और
भ्रुवौ = भौहों की
रक्षेत्= रक्षा करे
यशस्विनी = यशस्विनी
त्रिनेत्रा च भ्रुवो: मध्ये= और भौहों के मध्य की त्रिनेत्रा
यमघण्टा तु नासिके =और नासिका की यमघण्टा
मालाधारी ललाट की और यशस्विनी भौहों की और भौहों के मध्य की त्रिनेत्रा और नासिका की यमघण्टा रक्षा करे ।
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी ।
कपोलौ कालिका रक्षेत् कर्णमूले तु शाङ्करी ।। २३।।
शङ्खिनी चक्षुषो: मध्ये = शङ्खिनी आँखों के बीच की
श्रोत्रयो: द्वारवासिनी= द्वारवासिनी कानों की
कपोलौ कालिका = कालिका गालों की
रक्षेत् = रक्षा करे
कर्णमूले तु शाङ्करी = और शाङ्करी कानों के मूल भाग की
शङ्खिनी आँखों के बीच की ,द्वारवासिनी कानों की , कालिका गालों की और शाङ्करी कानों के मूल भाग की रक्षा करे ।
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्टे च चर्चिका ।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती ।। २४।।
नासिकायां सुगन्धा = सुगन्धा नाक की
च = और
उत्तरोष्टे च चर्चिका = ऊपर के होठ की चर्चिका
अधरे च अमृतकला = और नीचे के होंठ की अमृतकला
जिह्वायां च सरस्वती = और जीभ की सरस्वती रक्षा करे
नाक की सुगंधा और ऊपर के होठ की चर्चिका और नीचे के होंठ की अमृतकला और जीभ की सरस्वती रक्षा करे ।
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका ।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ।। २५।।
दन्तान् रक्षतु कौमारी= दांतों की रक्षा कौमारी
कण्ठदेशे तु चण्डिका= और चण्डिका कण्ठप्रदेश की
घण्टिकां चित्रघण्टा च = और चित्रघण्टा घाँटी की
महामाया च तालुके = और महामाया तालु की
दांतों की कौमारी और चण्डिका कण्ठप्रदेश की और चित्रघण्टा घाँटी की और महामाया तालु की रक्षा करे ।
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद्वाचं मे सर्वमङ्गला ।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी ।। २६।।
कामाक्षी चिबुकं = कामाक्षी ठोडी की
रक्षेत् = रक्षा करे
वाचं मे सर्वमङ्गला = सर्वमङ्गला मेरी वाणी की
ग्रीवायां भद्रकाली = गर्दन की भद्रकाली
च पृष्ठवंशे धनुर्धरी= और धनुर्धरी मेरुदण्ड की
कामाक्षी ठोडी की , सर्वमङ्गला मेरी वाणी की , गर्दन की भद्रकाली और धनुर्धरी मेरुदण्ड की रक्षा करे ।
नीलग्रीवा बहिः कण्ठे नलिकां नलकूबरी ।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी ।। २७।।
नीलग्रीवा बहिः कण्ठे = नीलग्रीवा कंठ के बाहरी भाग की
नलिकां नलकूबरी = नलकूबरी कंठ की नली की
स्कन्धयोः खड्गिनी = खड्गिनी दोनों कन्धों की
रक्षेत् = रक्षा करे
बाहू मे वज्रधारिणी = वज्रधारिणी मेरी बाहों की
नीलग्रीवा कंठ के बाहरी भाग की, नलकूबरी कंठ की नली की , खड्गिनी दोनों कन्धों की , वज्रधारिणी मेरी बाहों की रक्षा करे ।
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च ।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत् कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी ।। २८।।
हस्तयो: दण्डिनी = दण्डिनी हाथों की
रक्षेत् = रक्षा करे
अम्बिका च अङ्गुलीषु= और अम्बिका उँगलियों की
च = और
नखान् शूलेश्वरी रक्षेत् = नाखूनों की शूलेश्वरी रक्षा करे
कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी= कुलेश्वरी पेट की रक्षा करे
दण्डिनी हाथों की रक्षा करे और अम्बिका उँगलियों की और शूलेश्वरी नाखूनों की रक्षा करे और कुलेश्वरी पेट की रक्षा करे ।
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनःशोकविनाशिनी ।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी ।। २९।।
स्तनौ महादेवी = स्तनों की महादेवी
रक्षेत् = रक्षा करे
मनःशोकविनाशिनी = मन की शोकविनाशिनी
हृदये ललिता देवी = हृदय की ललित देवी
उदरे शूलधारिणी = उदर की शूलधारणी
स्तनों की महादेवी , मन की शोकविनाशिनी, हृदय की ललित देवी , हृदय की ललित देवी , उदर की शूलधारणी रक्षा करे ।
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा ।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी ।। ३०।।
नाभौ च कामिनी = नाभी की कामिनी
रक्षेद् = रक्षा करे
गुह्यं गुह्येश्वरी तथा = और गुह्य भाग की गुह्येश्वरी
पूतना कामिका मेढ्रं = पूतना और कामिका लिंग की
गुदे महिषवाहिनी= महिषवाहिनी गुदा की
नाभी की कामिनी और गुह्य भाग की गुह्येश्वरी, पूतना और कामिका लिंग की , महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करे ।
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी ।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ।। ३१।।
कट्यां भगवती = भगवती कमर की
रक्षेत् = रक्षा करे
जानुनी विन्ध्यवासिनी= विन्ध्यवासिनी घुटनों की
जङ्घे महाबला = महाबला जंघाओं की
रक्षेत् = रक्षा करे
सर्वकामप्रदायिनी= सभी कामनाओं को देने वाली
भगवती कमर की , विन्ध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करे, सभी कामनाओं को देने वाली महाबला जंघाओं की रक्षा करे ।
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी ।
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी ।। ३२।।
गुल्फयो: नारसिंही च = और टकनों की नारसिंही
पादपृष्ठे तु तैजसी = और पैरों के पृष्ठ भाग की तैजसी
पादाङ्गुलीषु श्री = श्री देवी पैरों की उँगलियों की
रक्षेत् = रक्षा करे
पादाधस्तलवासिनी = तलवासिनी तलवों की
और टकनों की नारसिंही, और पैरों के पृष्ठ भाग की तैजसी , श्री देवी पैरों की उँगलियों की , तलवासिनी तलवों की रक्षा करे ।
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी ।
रोमकूपेषु कौमारी त्वचं वागीश्वरी तथा ।। ३३।।
नखान् दंष्ट्राकराली च = और दंष्ट्राकराली नखों की
केशां च एव उर्ध्वकेशिनी = और ऐसे ही उर्ध्वकेशिनी बालों की
रोमकूपेषु कौमारी = कौमारी रोमकूपों की
त्वचं वागीश्वरी तथा = और वागीश्वरी त्वचा की
और दंष्ट्राकराली नखों की , और ऐसे ही उर्ध्वकेशिनी बालों की , कौमारी रोमकूपों की और वागीश्वरी त्वचा की रक्षा करे ।
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती ।
अन्त्राणि कालरात्रिश्व पित्तं च मुकुटेश्वरी ।। ३४।।
रक्त मज्जा वसा मांसान्य अस्थि मेदांसि = रक्त , मज्जा , वसा, मांस , हड्डी , मेद की
पार्वती = पार्वती
अन्त्राणि कालरात्रिश्व= आँतों की कालरात्रि
पित्तं च मुकुटेश्वरी = और पित्त की मुक्तेश्वरी
रक्त , मज्जा , वसा, मांस , हड्डी , मेद की पार्वती , आँतों की कालरात्रि और पित्त की मुक्तेश्वरी रक्षा करे ।
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा ।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसन्धिषु ।। ३५।।
पद्मावती पद्मकोशे = पद्मकोश की पद्मावती
कफे चूडामणि: तथा = और कफ की चूडामणि
ज्वालामुखी = ज्वालामुखी
नखज्वालाम - नख के तेज की
अभेद्या = अभेद्या देवी
सर्वसन्धिषु = सभी जोड़ों की
पद्मकोश की पद्मावती और कफ की चूडामणि, नख के तेज की ज्वालामुखी, सभी जोड़ों की अभेद्या देवी रक्षा करें ।
शुक्रं ब्रह्माणी मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा ।
अहङ्कारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी ।। ३६।।
शुक्रं ब्रह्माणी मे = ब्रह्माणी मेरे वीर्य की
रक्षेत् = रक्षा करे
छायां छत्रेश्वरी तथा = और छत्रेश्वरी छाया की
अहङ्कारं मनो बुद्धिं = अहंकार , मन और बुद्धि की
रक्षेत् = रक्षा करे
मे= मेरे
धर्मधारिणी= धर्मधारिणी
ब्रह्माणी मेरे वीर्य की और छत्रेश्वरी छाया की रक्षा करे, धर्मधारिणी मेरे अहंकार , मन और बुद्धि की रक्षा करे ।
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम् ।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत् प्राणान् कल्याणशोभना ।। ३७।।
प्राण अपानौ तथा व्यानम् = प्राण , अपान , व्यान
उदानं च समानकम्= उदान और समान वायु की
वज्रहस्ता = वज्रहस्ता
च मे = और मेरी
रक्षेत्= रक्षा करे
प्राणान् कल्याणशोभना = कल्याणशोभना प्राणों की
वज्रहस्ता प्राण , अपान , व्यान , उदान और समान वायु की और कल्याणशोभना मेरे प्राणों की रक्षा करे ।
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी ।
सत्त्वं रजस्तमश्वैव रक्षेन्नारायणी सदा ।। ३८।।
रसे रूपे च = रस रूप
गन्धे च शब्दे = गंध और शब्द की
स्पर्शे च योगिनी = और स्पर्श की योगिनी
सत्त्वं रजस्तमश्व एव = सत्व , रज और तम गुणों की
रक्षेत्= रक्षा करे
नारायणी = नारायणी
सदा = हमेशा
रस, रूप , गंध और शब्द और स्पर्श की योगिनी देवी , सत्व , रज और तम गुणों की नारायणी हमेशा रक्षा करे ।
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी ।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्या च चक्रिणी ।। ३९।।
आयू रक्षतु वाराही = वाराही आयु की रक्षा करे
धर्मं रक्षतु वैष्णवी = धर्म की वैष्णवी रक्षा करे
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च = यश , कीर्ति , लक्ष्मी और
धनं विद्या च चक्रिणी= धन व विद्या की चक्रिणी देवी
वाराही आयु की रक्षा करे, धर्म की वैष्णवी रक्षा करे , यश , कीर्ति , लक्ष्मी और धन व विद्या की चक्रिणी देवी रक्षा करे ।
गोत्रमिन्द्राणी मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके ।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी ।। ४०।।
गोत्रमिन्द्राणी मे = मेरे गोत्र की इन्द्राणी
रक्षेत्= रक्षा करे
पशून्मे रक्ष चण्डिके= पशुओं की चण्डिका रक्षा करे
पुत्रान् = पुत्रों की
रक्षेत्= रक्षा करे
महालक्ष्मी: = महालक्ष्मी
भार्यां रक्षतु भैरवी = पत्नी की भैरवी रक्षा करे
मेरे गोत्र की इन्द्राणी रक्षा करे ,पशुओं की चण्डिका रक्षा करे , पुत्रों की महालक्ष्मी रक्षा करे ,पत्नी की भैरवी रक्षा करे ।
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमङ्करी तथा ।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता ।।४१।।
पन्थानं सुपथा = सुपथा मेरे पथ की
रक्षेत्= रक्षा करे
मार्गं क्षेमङ्करी तथा = और मार्ग की क्षेमकरी
राजद्वारे महालक्ष्मी:= राजा के दरबार में महालक्ष्मी
विजया सर्वतः स्थिता = सब जगह स्थित विजया चारों और से
सुपथा मेरे पथ की और मार्ग की क्षेमकरी , राजा के दरबार में महालक्ष्मी, सब जगह स्थित विजया चारों और से रक्षा करे ।
रक्षाहीनं तु यत् स्थानं वर्जितं कवचेन तु ।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी ।।४२।।
रक्षाहीनं तु यत् स्थानं = और जो स्थान रक्षा रहित हैं
वर्जितं कवचेन तु = और कवच में नहीं कहे गए हैं
तत्सर्वं रक्ष मे देवि = उन सभी स्थानों पर मेरी रक्षा करो , हे देवी
जयन्ती पापनाशिनी= विजयशालिनी , पापनाशिनी
और जो स्थान रक्षा रहित हैं और कवच में नहीं कहे गए हैं, हे विजयशालिनी , पापनाशिनी देवी उन सभी स्थानों पर मेरी रक्षा करो ।
पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः ।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति ।।४३।।
पदमेकं न गच्छेत् तु= और एक कदम भी न जाए
यदीच्छेच्छुभमात्मनः = यत् इच्छेत् शुभम् आत्मनः = जिसे अपने शुभ की इच्छा है
कवचेनावृतो= कवच से आवृत हो
नित्यं = रोज़
यत्र यत्रैव= जहां जहां
गच्छति = जाते हैं
जिसे अपने शुभ की इच्छा है( कवच बिना) एक कदम भी न जाएँ , जो रोज़ कवच से आवृत हो जहां जहां जाते हैं
तत्र तत्रार्थलाभश्व विजयः सार्वकामिकः ।
तत्र तत्र = वहां वहां
अर्थलाभश्व = अर्थ लाभ
विजयः सार्वकामिकः= सब कामनाओं में विजय प्राप्त करते हैं
वहां वहां अर्थ लाभ व् सब कामनाओं में विजय प्राप्त करते हैं ।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम् ।
यं यं= जिस जिस
चिन्तयते कामं = अभीष्ट का चिंतन करते हैं
तं तं = उस उस को
प्राप्नोति निश्चितम्= निश्चय ही प्राप्त करते हैं
जिस जिस अभीष्ट का चिंतन करते हैं उस उस को निश्चय ही प्राप्त करते हैं ।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान् ।।४४।।
परमैश्वर्यम अतुलं = अतुलनीय परम ऐश्वर्य
प्राप्स्यते= प्राप्त करते हैं
भूतले = पृथ्वी पर
पुमान्= मनुष्य
पृथ्वी पर मनुष्य अतुलनीय परम ऐश्वर्य प्राप्त करता है ।
निर्भयो जायते मर्त्यः सङ्ग्रामेष्वपराजितः ।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान् ।। ४५।।
निर्भयो जायते = निर्भीक हो जाता है
मर्त्यः = मनुष्य
सङ्ग्रामेष्व अपराजितः = युद्ध में पराजय नहीं होती
त्रैलोक्ये तु= और त्रिलोक में
भवेत्पूज्यः= पूजनीय होता है
कवचेनावृतः पुमान् = कवच से सुरक्षित मनुष्य
कवच से सुरक्षित मनुष्य निर्भीक हो जाता है और त्रिलोक में पूजनीय होता है ।
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः ।। ४६।।
इदं तु देव्याः कवचं = और देवी का यह कवच
देवानामपि = देवताओं के लिए भी
दुर्लभम् = दुर्लभ है
यः पठेत्= जो पढता है
प्रयतो =नियम से
नित्यं त्रिसन्ध्यं = प्रतिदिन तीनों संध्याओं में
श्रद्धयान्वितः = श्रद्धापूर्वक
और देवी का यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है , जो नियम से प्रतिदिन तीनों संध्याओं में श्रद्धापूर्वक इसे पढता है ।
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः ।
जीवेद्वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः ।। ४७।।
दैवी कला भवेत्त तस्य = उसे देवी कला प्राप्त होती है
त्रैलोक्येष्वपराजितः = तीनों लोकों में पराजित नहीं होता
जीवेद्वर्षशतं = सौ वर्षों तक जीता है
साग्रम अपमृत्यु विवर्जितः= इतना ही नहीं अपमृत्यु(अकाल मृत्यु ) से रहित हो
उसे देवी कला प्राप्त होती है , तीनों लोकों में पराजित नहीं होता, इतना ही नहीं अपमृत्यु(अकाल मृत्यु ) से रहित हो सौ वर्षों तक जीता है ।
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः ।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चैव यद्विषम् ।। ४८।।
नश्यन्ति= नष्ट हो जाते हैं
व्याधयः = रोग
सर्वे लूताविस्फोटकादयः= मकरी चेचक आदि सभी
स्थावरं= स्थिर चीज़ों के जैसे भांग अफीम धतूरे आदि के
जङ्गमं= चलने वाली जीवित जैसे सांप , बिच्छु का
चैव = और इसी प्रकार
कृत्रिमं चैव= अहिफेन और तेल को मिलाने से बनाने वाले
यद्विषम् = जो जहर हैं
मकरी चेचक आदि सभी रोग , स्थिर चीज़ों के जैसे भांग अफीम धतूरे आदि के और इसी प्रकार चलने वाली जीवित जैसे सांप , बिच्छु का और ऐसे ही अहिफेन और तेल को मिलाने से बनाने वाले जो जहर हैं नष्ट हो जाते हैं ।
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले ।
भूचराः खेचराश्चैव कुलजाश्चौपदेशिकाः ।। ४९।।
अभिचाराणि = अभिचारण (मारन मोहन आदि ) के
सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि = सभी मन्त्र
भूतले = पृथ्वी पर
भूचराः=पृथ्वी पर विचरने वाले ग्रामदेवता
खेचरा= आकाश में विचरने वाले देवविशेष
च एव = और ऐसे ही
कुलजा = जल में प्रकट होने वाले गण
उपदेशिकाः= उपदेश से सिद्ध होने वाले देव
पृथ्वी पर अभिचारण (मारन मोहन आदि ) के सभी मन्त्र , पृथ्वी पर विचरने वाले ग्रामदेवता , आकाश में विचरने वाले देवविशेष और ऐसे ही जल में प्रकट होने वाले गण , उपदेश से सिद्ध होने वाले देव
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा ।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः ।। ५०।।
सहजा = जनम के साथ प्रकट होने वाले देवता
कुलजा = कुल देवता
माला= कंठमाला
डाकिनी शाकिनी तथा = डाकिनी शाकिनी और
अन्तरिक्षचरा= अंतरिक्ष में घूमने वाले
घोरा = भयंकर
डाकिन्यश्च = डाकनियाँ
महाबलाः= महाबली
जनम के साथ प्रकट होने वाले देवता , कुल देवता, कंठमाला , डाकिनी शाकिनी और अंतरिक्ष में घूमने वाले भयंकर महाबली डाकनियाँ
गृहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः ।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ।। ५१।।
गृहभूतपिशाचाश्च = गृह , भूत , पिशाच और
यक्षगन्धर्वराक्षसाः= यक्ष , गन्धर्व , राक्षस
ब्रह्मराक्षसवेतालाः = ब्रह्मराक्षस, बेताल
कूष्माण्डा = कूष्माण्ड,
भैरवादयः= भैरव आदि
गृह , भूत , पिशाच और यक्ष , गन्धर्व , राक्षस ,ब्रह्मराक्षस, बेताल , कूष्माण्ड,भैरव आदि
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे ह्रदि संस्थिते ।
नश्यन्ति = भाग जाते हैं
दर्शनात् = देख कर ही
तस्य = उसको
कवचे ह्रदि संस्थिते= हृदय में कवच धारण करने पर
हृदय में कवच धारण करने पर उस मनुष्य को देख कर ही भाग जाते हैं ।
मानोन्नतिर्भवेद्राज्ञास्तेजोवृद्धिकरं परम् ।। ५२।।
मानोन्नति:= मान की वृद्धि
भवेत् = होती है
राज्ञा: =राजा से
ते= वे ,
तेजोवृद्धिकरं परम् = तेज की वृद्धि करने वाला , उत्तम है
और राजा से उनके मान की वृद्धि होती है । ( यह कवच ) तेज की वृद्धि करने वाला , उत्तम है ।
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभुतले ।
जपेत् सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा ।।५३।।
यशसा = यश
वर्धते = वृद्धि को प्राप्त करता है
सोऽपि = वह भी
कीर्तिमण्डित = कीर्ति से सुशोभित
भुतले = पृथ्वी पर
जपेत् = जप करता है
सप्तशतीं = सप्तशती
चण्डीं = चंडी का
कृत्वा = करके
तु = और
कवचं = कवच का
पुरा = पहले
पृथ्वी पर कीर्ति से सुशोभित वह भी यश और वृद्धि को प्राप्त करता है । जो पहले कवच का पाठ करके सप्शती चंडी का जप करता है
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम् ।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां सन्ततिः पुत्रपौत्रिकी ।। ५४।।
यावत् = जब तक
भूमण्डलं = पृथ्वी
धत्ते = टिकी है
सशैलवनकाननम् = पर्वत, वन , कानन के साथ
तावत् = तब तक
तिष्ठति = ठहरती है
मेदिन्यां= पृथ्वी पर
सन्ततिः = संतान परम्परा
पुत्रपौत्रिकी = पुत्र पौत्र आदि
जब तक पृथ्वी पर्वत, वन , कानन के साथ टिकी है तब तक उसकी पुत्र पौत्र आदि संतान परम्परा रहती है ।
देहान्ते परमं स्थानं सुरैरपि सुदुर्लभम् ।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः ।। ५५।।
देहान्ते = देह का अंत होने पर
परमं स्थानं = उत्तम स्थान को
सुरैरपि सुदुर्लभम् = देवताओं को भी दुर्लभ
प्राप्नोति = प्राप्त करता है
पुरुषो= पुरुष
नित्यं = नित्य
महामायाप्रसादतः = महामाया के प्रसाद से
महामाया के प्रसाद से वह पुरुष देवताओं को भी दुर्लभ नित्य उत्तम स्थान को प्राप्त करता है ।
लभते परमं स्थानं शिवेन समतां व्रजेत् ।। ५६।।
लभते परमं स्थानं = उत्तम स्थान प्राप्त करके
शिवेन समतां = शिव के समान
व्रजेत् = होता है
उत्तम स्थान प्राप्त करके शिव के समान होता है ।
देवीकवचं समाप्तम् ॥
I am scared about the line यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम् ... lots of things come to our mind during wholesale day, especially while puja that you don't at all want to come reality.... Can you please describe it little.. I am too scared about it..
ReplyDeleteThere is no need to worry here. God knows how unstable, fast, weird human mind is because he is the one who created it. Goddess will only complete the wish which is beneficial to you and in the ideal possible manner. Not exactly how you thought about it. For the harmful wishes, goddess will help to find root cause, overcome, get rid.
Deleteplease can you upload all 3 rahasyas of saptshati with sandhi and word meanings
ReplyDeleteबहुत सुन्दर देवी कवचम्
ReplyDeleteThanks
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